मृत्यु के बाद क्या? || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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मृत्यु के बाद क्या? || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आज ओशो की किताब पढ़ रहे थे। उसमें ओशो बोलते हैं कि आपमें मैं जो ज्ञान का बीज डाल रहा हूँ, आपका शरीर ख़त्म हो जाएगा लेकिन यह बीज कभी ख़त्म नहीं होगा क्योंकि यह बीज अमर है, कभी-न-कभी तो इसको उपजना ही है।

तो क्या शरीर के मरने के बाद भी यह जो ज्ञान है और यह जो समझ है, कहीं आगे के जन्मों में भी होता है इसका कुछ?

आचार्य प्रशांत: शरीर के मरने के बाद ज्ञान नहीं रह जाता। कुछ नहीं रह जाता है, उसी ‘कुछ नहीं’ का नाम शान्ति है न! तुम शान्त कब होते हो, जब दिमाग में क्या चल रहा होता है?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: कुछ नहीं। और शरीर के जाने के बाद भी क्या बचता है?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: कुछ नहीं। तो शान्ति का ही दूसरा नाम क्या है?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: कुछ नहीं। कुछ थोड़े ही बचता है शरीर के जाने के बाद। क्या बचता है?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: ‘कुछ नहीं’ होने के लिए ही तो तड़प रहे हो तुम। मैं तुमसे कभी पूछूँ, ‘क्या मामला है?’ और तुम कह पाओ, ‘कुछ नहीं’, तो मतलब सब बढ़िया है। यही तो तुम्हें चाहिए कि ‘कुछ’ से ‘कुछ नहीं’ हो जाओ।

प्र: जन्मों के संस्कार…।

आचार्य: जन्मों के संस्कार ‘कुछ’ होते हैं। ‘कुछ’ होते हैं न, ‘कुछ’।

मैं पूछूँ, क्या संस्कार है। तो तुम मुझे ‘कुछ’ बताओगे। क्या बताओगे? कुछ।

वो सबको क्या हो जाना है?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: कुछ नहीं। यही मोक्ष है, यही मृत्यु है।

प्र: तो वो तो वैसे भी हो ही जाता है न मरने के बाद?

आचार्य: आध्यात्मिकता ज़िन्दा लोगों के लिए है। तुम्हें समस्या यह है कि मरने के बाद क्या होगा या परेशान तुम अपनी ज़िन्दगी से हो?

प्र: ज़िन्दगी से।

आचार्य: और अगर तुम्हें यह भी समस्या है कि मरने के बाद क्या होगा तो वो समस्या तुम्हें कब है? मरने के बाद है वो समस्या या वो समस्या भी अभी है?

प्र: अभी है।

आचार्य: भले ही तुम कहो कि मैं इस बात को लेकर परेशान हूँ कि दो साल बाद क्या होगा, लेकिन वो परेशानी तुम्हें दो साल बाद हो रही है या अभी हो रही है?

प्र: अभी हो रही है।

आचार्य: तो तुम परेशान किससे हो? अपनी तात्कालिक ज़िन्दगी से परेशान हो। आध्यात्मिकता उसके लिए है।

प्र: कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारे पिछले जन्म के संस्कार हमसे जुड़े हुए हैं?

आचार्य: इसमें शक क्या है? ऐसा ही है। है ही ऐसा।

तुम एक गाड़ी लेकर आये हो। पता नहीं कहाँ से तुम अपनी गाड़ी चलाते लेकर आये हो। अब यहाँ नीचे खड़ी की है, उसमें कीचड़-ही-कीचड़ लगा है। अब क्या तुम यह जाँचने जाओगे कि कीचड़ का कौन सा कतरा कब लगा? अरे, लगा होगा कभी, कहीं।

क्या पता इस जन्म में लगा, पिछले जन्म में लगा। कौन जाने अगला-पिछला जन्म होता है कि नहीं होता है!

एक बात पक्की है, क्या?

प्र: कीचड़ लगी है।

आचार्य: गाड़ी गन्दी है। साफ़ करो, बात ख़त्म। या प्रयोगशाला भेजोगे कि लाल मिट्टी कहाँ से आ रही है और काली मिट्टी कहाँ से आ रही है? अरे, जहाँ से आ रही हो, आ रही हो। मुझे क्या करना है? साफ़ करना है।

या तुम्हें सुख मिल जाएगा अगर कोई बता दे कि इस टायर पर जो यह गोबर लगा है, यह फ़लाना गाय का है। इससे साफ़ हो गई गाड़ी?

टायर पर जो गोबर लगा था वो किस गाय का था, यह तुम्हें बता दिया गया। इससे तुम्हें क्या मिला?

प्र: कुछ नहीं।

आचार्य: साफ़ करो, गाड़ी साफ़ करो। गाड़ी गन्दी है अभी और साफ़ होगी?

प्र: अभी।

आचार्य: अभी। इसीलिए जैसा जीवन सामने है अभी उसपर ध्यान दो। बाक़ी सब क्या है? बकवास।

प्र: आचार्य जी, आपने अभी थोड़ी देर पहले वृत्ति और कर्म के बारे में बोला। मैंने अभी हाल ही में देखा कि मैं क्या ग़लत कर्म कर रहा हूँ, उसमें मुझे पता चला कि मेरी वृत्ति क्या है। मैंने उसपर काम भी किया लेकिन वो हमेशा के लिए नहीं हो पाता है। मतलब कभी मैं कंट्रोल कर लेता हूँ और चीज़ों को सरल तरीक़े से हल कर लेता हूँ लेकिन कभी-कभार फिर वो…।

आचार्य: तुमने मेरी बात में अपनी बात की मिलावट कर दी। मैंने यह कहा था कि वृत्ति को कंट्रोल करना है?

प्र: नहीं।

आचार्य: मैंने यह कहा था कि जो देखो फिर उसके बाद कुछ करो या यह कहा था कि तुम पहले समझ लो कि तुम्हारा सब करना-वरना आता कहाँ से है? पर तुम्हारा वही है लगा दिया अपना ही काम। काम तुम्हारा, नाम हमारा कर दो बदनाम।

प्र: जैसे मान लीजिए कर्म करेंगे और देखें कि कर्म ग़लत हुआ, तो हो गया न वो तो। तो फिर सोच जो रहे हैं कि हो गया, तो फिर अतीत को तो नहीं सोच रहे हैं?

आचार्य: जब ग़लत हो रहा हो तब देखो, उससे अच्छा कुछ नहीं। पर यदि तुमने अभी तक जो किया उसको भी देख लो, स्मृति को भी देख लो तो वो स्मृति का सदुपयोग ही है। मैं बिलकुल नहीं कह रहा कि जो बीता था उसको बिसार दो, बीते से बहुत कुछ तुम्हें मिल जाएगा अपने बारे में। ध्यान से समझो कि बीते को बिसारना किसको चाहिए? अगर तुम वह अब हो ही नहीं जो अतीत में थे तो अतीत की परवाह मत करो।

पर हममें से अधिकांश लोग वही रह जाते हैं जो वो अतीत के थे, उन्हें अतीत की परवाह करनी चाहिए। क्यों? क्योंकि उनका अतीत उनका अतीत है ही नहीं, वे चूँकि बदले नहीं हैं इसीलिए अतीत वर्तमान है। तो जब तुम अतीत के बारे में सोच रहे हो या अतीत को देख रहे हो तो तुम अतीत को नहीं देख रहे, तुम वास्तव में वर्तमान को ही देख रहे हो।

जो बदल गया हो, जो यह कह सके कि मैं अब वह हूँ ही नहीं जो सालभर पहले था, उसे अब सालभर पहले की घटना के बारे में विचार करने की, स्मृति करने की, सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। पर हमारे साथ ऐसा होता है क्या? हम तो अड़े ही रहते हैं, हम बदलते कहाँ हैं। अगर तुम अड़े ही हुए हो, तुम वही हो जो पहले थे तो पहले जो कुछ हुआ उसपर ग़ौर करो, वो तुम्हारे काम आएगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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