मौत से मुँह छुपाने वाले || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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मौत से मुँह छुपाने वाले || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: मेरा सवाल फिर से मृत्यु के ऊपर ही है। आम ज़िन्दगी में जीवन के बारे में बोला जाता है कि जीवन आनन्द है या जीवन यह है, पर इसमें मृत्यु की कोई बात नहीं आती। जैसे आध्यात्मिकता में भी आप देखें तो लोगों ने मृत्यु पर ज़्यादा चर्चा नहीं की है। आजकल मोटिवेशन (प्रेरणा) देने वालों को भी देखें या कहीं भी तो मृत्यु के प्रति कोई बात दिखायी नहीं जा रही है कि वास्तविकता से कैसे सामना किया जाए।

आचार्य प्रशांत: डरे हुए हैं न। जो असली थे, उन्होंने तो सौ बार मौत की बात करी है। यहाँ 'कबीर साहब' का साखी ग्रन्थ रखा है, उसमें 'काल को अंग' है पूरा। काल को लेकर दो-चार साखियाँ, दो-चार दोहे नहीं हैं, काल का पूरा एक अध्याय है जिसमें मात्र काल की और मृत्यु की ही बात है। गुरु ग्रन्थ साहिब उठाइए, उसमें बार-बार, बार-बार मृत्यु की बात है। जीसस का जीवन देखिए, उस जीवन का शिखर ही है मृत्यु का उनका सहर्ष वरण।

आज अगर आप पायें कि अध्यात्म में जो लोग हैं वो मृत्यु की बात करने से घबरा रहे हैं तो बात बस यही है कि वो घबराये हुए हैं। जो घबराएगा, वो कतराएगा। वो कहते हैं, 'जीवन आनन्द है।' जो जीवन मृत्यु से समाप्त हो जाने वाला है, वो आनन्द कैसे हो सकता है? जिस जीवन को आनन्द बताया गया है वो भौतिक नहीं, आत्मिक जीवन है। भौतिक जीवन तो कष्ट से परिपूर्ण है।

आनन्द है वो जीवन जो न कभी शुरू होता है, न कभी ख़त्म होता है। यह जिसको आप कहते हैं ज़िन्दा होना, इस ज़िन्दगी में आनन्द हो ही नहीं सकता। हम तो ज़िन्दगी इसको समझते है न कि एक आदमी है, चल-फिर रहा है, साँस ले रहा है, खाना-पीना खा रहा है तो उसको कह देते हैं ज़िन्दा है। इसमें आनन्द नहीं हो सकता है।

जिस जीवन में आनन्द है वो वह जीवन है जो कभी शुरू ही नहीं होता। वो उस जीव के लिए है जो कभी जन्म ही नहीं लेता। वो उस जीव के लिए है जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती। समझ रहे हैं?

सच्चे गुरु की पहचान यह होगी कि वो बार-बार, बार-बार आपको जीवन की निस्सारता से परिचित कराएगा और आपका ध्यान मृत्यु की ओर खींचेगा।

और झूठे वक्ताओं की पहचान यह है कि वो मौत से बहुत कतराएँगे, मौत से बहुत ख़ौफ़ खाएँगे। मौत के बारे में कुछ बोलेंगे ही नहीं, मौत की बात ही नहीं करेंगे। वो बार-बार यही कहेंगे कि लेट्स मेक लाइफ़ ब्यूटीफुल (आइए जीवन को सुन्दर बनाएँ)। वो कभी बताएँगे ही नहीं, लाइफ़ माने क्या। हाँ, लाइफ़ शब्द का इस्तेमाल बार-बार करेंगे।

'जीवन-जीवन' करेंगे, जीवन क्या है यह कभी नहीं बताएँगे, क्योंकि उनके अनुसार जीवन है ही इस हाड़-माँस के पुतले का गतिशील होना। उनके जीवन की परिभाषा ही यही है कि हाड़-माँस का पुतला चल रहा है तो लाइफ़ है। और वो बार-बार कहेंगे, 'लाइफ़, वेलबीइंग, लाइफ़, वेलबीइंग' , पर कभी बताएँगे नहीं कि लाइफ़ माने क्या। लाइफ़ माने क्या? उनके अनुसार लाइफ़ यही है — प्रकृति। इसको वो लाइफ़ समझते हैं।

और आपने बात करी उनकी जो मोटिवेशनल (प्रेरणास्पद) बातें करते हैं। उनके लिए तो बहुत ज़रूरी है कि वो आपको याद ही न आने दें कि मरोगे। वो तो आपके अहंकार को बिलकुल झाड़ पर चढ़ा देना चाहते हैं। और मौत का तथ्य जब सामने आता है तो अहंकार मुँह के बल गिरता है धूल में। तो आपको तो मौत याद भी आ रही होगी तो वो कहेंगे, 'नही-नहीं, मौत-वौत कुछ नहीं, तू ज़िन्दा रहेगा! तू आगे बढ़। बस तू भाग मिल्खा! कर सकते हो तुम, कर सकते हो! तुम बढ़ो तो! तुम इरादा तो करो, तुम कर सकते हो!' अहंकार और सुनना क्या चाहता है? यही तो, 'हाँ, कर सकते हैं! हम भी कर सकते हैं!'

ख़ासतौर से जवान लोगों को पकड़ लो। उनमें तो राजसिकता वैसे ही बहुत चढ़ी रहती है और उनके इरादे भी बहुत कुछ पाने के होते हैं। अब जहाँ पाने निकले थे, वहाँ चाँटा खाकर आये हैं। फिर सामने मिल गये मोटिवेशन गुरु। वो बोलेंगे, 'नहीं, तुम कर सकते हो! कमर कस लो! तुम कर सकते हो!' वो फिर जाएगा, और करने क्या गया है? करने गया है कोई गलीज़ काम ही। उसको वो कभी नहीं बताएँगे कि क्या करने योग्य है। बस यह कहते रहेंगे कि तुम जो कुछ भी करना चाहो, तुम वह कर सकते हो।

वो इस प्रश्न को छेड़ेंगे ही नहीं कि जीवन का लक्ष्य क्या है, अतः प्रति पल क्या कर्म है जो करने योग्य है। इसकी बात ही नहीं करेंगे, क्योंकि यह बात करने के लिए गुरु में भी कुछ पात्रता होनी चाहिए। ख़ुद समझ में आया हो जीवन में क्या करने लायक़ है, तब तो दूसरों को बतायें न जीवन में क्या करने लायक़ है। वो बस यह बताते हैं, तुम्हें जो कुछ भी करना है यू कैन डू इट (तुम कर सकते हो)!

अब प्रश्न यह नहीं है कि वो इस तरह की बातें क्यों कर रहे हैं, प्रश्न यह है कि आप ये सब बातें सुन क्यों रहे हैं। हर समय में हर तरह के लोग हुए हैं। उन्हें हक़ है अपने तल की बात करने का। पर आपको भी तो हक़ है कि उनकी बात न सुनें। आप क्यों सुने जाते हैं?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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