प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं दो साल पहले फ्रांस आया था पढ़ाई करने के लिए। मेरी क्लास में कुछ पच्चीस लोग हैं जिसमें मैं अकेला इंडियन हूँ। तो कंपेयर टू (तुलनात्मक रूप से), जो मेरे क्लासमेट्स (सहपाठी) हैं; उनसे मुझे थोड़ा ज़्यादा एक्सपीरियंस (अनुभव) है। तो मुझे पहले से बहुत चीज़ें आती थीं, तो उसके कारण कंपैरिज़न (तुलना) हुआ और बहुत कॉन्फ्लिक्ट्स (टकराव) होने लग गए मेरे क्लासमेट्स और मेरे बीच में। क्योंकि मुझे थोड़ा ज़्यादा एक्सपीरियंस था उनसे और वो बिगिनर्स (शुरुआती छात्र) थे।
इसी चक्कर में किसी ने मेरा फ़ोन हैक कर लिया। उसने मेरे प्राइवेट इंफॉर्मेशन (निजी जानकारी) का मिसयूज़ (दुरुपयोग) करके काइंड ऑफ़ कैरेक्टर असैसिनेशन (एक प्रकार का चारित्र हनन), मेरी रेपुटेशन (छवि) गिराने की कोशिश की, क्योंकि फर्स्ट ईयर में मैं टॉप कर रहा था और सबके मार्क्स सबके सामने रख दिए जाते थे। लेकिन फिर उन्होंने, क्लास के लोगों ने बोलकर वो भी रुकवा दिया कि सबके मार्क्स एक साथ न दिखें।
फिर सेकंड ईयर में मुझे टीचर से भी प्रोब्लम होने लग गई। टीचर्स भी मुझे थोड़ा इल ट्रीट (बुरा व्यवहार) करने लग गए, और सबसे पहले मुझे मेरे प्रोफ़ेसर ने ही इसके बारे में बताया कि मेरा फ़ोन हैक हो चुका है। और फिर मैंने अपने वॉलपेपर पर लिखकर उनसे बोला कि मैं एक्शन ले लूँगा लीगल (कानूनी), मुझे आकर के कनफेशन (स्वीकारोक्ति) दे दो, तो मुझे आकर के कनफेशन भी दे दिया गया।
और धीरे-धीरे, ये जो ब्रांच (शाखा) है, हमारे कॉलेज की, ये अभी बड़ी हो रही है, तो नए क्लासेज़ (छात्रों का समूह) भी आने लग गए; तो उनके सामने भी मुझे, उनसे भी आइसोलेट (अलग) करवा दिया गया। जबकि मेरा काम वैसे ही चल रहा था, इस सबके बीच में मैं अपना काम वैसे ही कर रहा था, अच्छा ही हो रहा था। लेकिन कुछ टीचर्स थे जो ज़्यादा रेशियल बायस (नस्लीय पक्षपात) था जिनमें, जो नहीं करते थे सपोर्ट, कुछ टीचर्स थे जो सपोर्ट करते हैं।
पर अभी दो साल हो चुके हैं, मैं इस सबको फेस कर रहा हूँ और अपना काम भी कर रहा हूँ। लेकिन कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि, मैं आइसोलेट (अलग-थलग) भी हो गया हूँ बहुत ज़्यादा; तो कभी-कभी मुझे बहुत खयाल आने लगते हैं कि कैसे मैं डील (सलूक) करूँ इस सबके साथ। क्योंकि अगर मेरा रेपुटेशन मेरे कॉलेज में खराब हो सकता है मिसयूज़ करके, और जब मैं एडमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) के पास जाता हूँ कि आप कोई एक्शन (कार्रवाई) लीजिए इस पर, तो वहाँ से भी कोई हेल्प नहीं मिलती है, तो आगे जाकर के मुझे जॉब मिलने में भी प्रॉब्लम हो सकती है यहाँ पर। अगले साल मैं ग्रेजुएट (स्नातक) हो रहा हूँ, और अगर मुझे जॉब नहीं मिलती है, तो मैं अपना एजुकेशन लोन (शिक्षा ऋण) नहीं चुका पाऊँगा। इंडिया आकर मैं, नहीं कर सकता हूँ इंडिया की सैलरी में, स्पेशली (खासतौर पर) एनिमेशन (अध्ययन का एक क्षेत्र) में।
तो इस सबके बीच में मुझे अपना काम भी करना है, वो भी अच्छे से करना है। अनसर्टन्टी (अनिश्चितता) है बहुत ज़्यादा और क्लास में जो चल रहा है वो तो डेली बेसिस (दैनिक आधार) पर, वर्बली अब्यूज़ (मौखिक रूप से दुर्व्यवहार) वगैरह, वो सब तो मैं फेस (सामना) कर ही रहा हूँ। उसके बीच में, इस सबके साथ कैसे डील करूँ?
आचार्य प्रशांत: रेपुटेशन (छवि, प्रसिद्धि) चाहिए क्यों? कैरेक्टर (चरित्र) क्या दूसरों की आँखों के अलावा कहीं और होता है? और जहाँ तक कैंपस प्लेसमेंट (शैक्षणिक संस्थानों के भीतर आयोजित एक कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य छात्रों को नौकरी प्रदान करना है) की बात है, जो कंपनी हायर करने (काम पर रखने) आ रही है, वो तुम्हारी रेपुटेशन को नहीं देखती, वो ये देखती है कि तुम प्रोडक्टिव (उत्पादक) हो पाओगे या नहीं उनके लिए। अगर तुम उनके लिए काम करके, पैसे बनाकर दे सकते हो तो कोई भी कंपनी ऐसे एंप्लॉई (कर्मचारी) को, रिसोर्स (संसाधन) को नहीं छोड़ेगी जो उनके लिए एबल (सक्षम) और एफिशिएंट, प्रोडक्टिव परफॉर्मर (कुशल, उत्पादक निष्पादक) हो सकता है।
हाँ, तुम कोई बहुत इललीगल (गैरकानूनी) काम करके बैठे हो और अभी तुम पर कोई ओपन केस (खुला मामला) चल रहा हो, वो फिर एक अति की बात होती है, एक्सट्रीम (चरम)। पर वैसा तो कुछ है नहीं। यहाँ तो जो बात हो रही है वो रियूमर (अफ़वाह), गॉसिप मोंगरिंग (गपशप फ़ैलाना) के तल की है, कि तुम्हारे फ़ोन में से कुछ निकाल लिया। क्या कैरेक्टर असेसिनेशन (चरित्र हनन) निकाल लेंगे? तुम किसी राष्ट्राध्यक्ष पर हमले का तो कोई कार्यक्रम बना नहीं रहे हो। तुम एलियंस के साथ मिलकर के प्लेनेट अर्थ (पृथ्वी ग्रह) को सबोटेज (जान-बूझकर तोड़-फोड़ करने) करने की योजना भी नहीं बना रहे हो।
अधिक-से-अधिक क्या होगा। तुम्हारी निजी ज़िंदगी की कुछ बातें होंगी, तुम्हारे सेक्शूअल अफेयर्स (यौन संबंध) की कुछ बातें होंगी, इससे अधिक तो कुछ भी नहीं होता जिसको आप कैरेक्टर असेसिनेशन (चारित्र हनन) बोलते हो। तो तुमको ऐसा कैरेक्टर रखना किसलिए है।
रेपुटेशन एक तरीके का अग्रेशन (आक्रामकता) और एक तरह का डर होती है, होती है कि नहीं? मैं कहीं पर जा रहा हूँ, मैं वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ के लोगों को प्रभावित, इंप्रेस कर देना चाहता हूँ। जैसे कि कोई कहे कि मैं कहीं पहुँचूँ, उससे पहले ही उस जगह पर मैं अपना कब्ज़ा जमा लूँ।
इसलिए कह रहा हूँ, रेपुटेशन एक तरह का अग्रेशन होती है और रेपुटेशन इस बात का डर होती है कि बिना रेपुटेशन के तो मेरी पोल खुल जाएगी। ‘मैं पहले ही बता देता हूँ साहब! मेरी रेपुटेशन ये है कि मैं बड़ा आदमी हूँ,’ ताकि आप मुझसे ज़रा ढंग से व्यवहार करें। भाई, तुमसे मुझे कैसा व्यवहार करना है, ये बात तुम्हारी रेपुटेशन से क्यों तय हो? ये बात तुम्हारी हस्ती से तय होनी चाहिए न। तुम कैसे हो, तुम्हें देखकर के तुमसे व्यवहार कर लेंगे।
मुझे मेरे अभिभावकों ने और कुछ मौकों पर शिक्षकों ने भी बोला, मैं बचपन में थोड़ा ठीक-ठाक था पढ़ने पर; तो जहाँ कहीं वो देखें कि मेरे व्यवहार में ऊँच-नीच हो रही है, तो जानते हो किन शब्दों में बोलते थे? मेरी माँ बोलती थीं कि दुनिया में निकलोगे तो माथे पर चिपकाकर नहीं चलोगे कि टॉपर हो। ये उनका बोलने का तरीका था। वो बोलती थीं, ‘दुनिया में बाहर निकलोगे तो यहाँ पर (माथे पर) चिपकाकर नहीं चलोगे कि टॉपर हो।’
तुम्हारी हस्ती ऐसी होनी चाहिए कि लोगों से तुम्हारे मधुर, सीधे, सरल, आत्मीय संबंध बन सकें। या यहाँ (माथे पर) चिपकाकर चलोगे कि मैं पढ़ने में अच्छा हूँ, मैं बोर्ड का टॉपर हूँ, या यहाँ-यहाँ से, ये कॉलेज, ये यूनिवर्सिटी, ये सब यहाँ चिपकाकर चलोगे। और अगर चिपकाकर चलोगे तो उससे तुम्हारा डर भी पता चलता है और तुम्हारी हिंसात्मकता भी पता चलती है। तुम इतने डरे हुए हो कि सामने वाले को पहले ही दिखा देना चाहते हो, ‘ऐ! मुझसे मिसबिहेव (दुर्व्यवहार) मत करना, मैं टॉपर हूँ। ये देख! यहाँ (माथे पर) क्या लिखा हुआ है, इधर इच, मैं टॉपर हूँ।’
मेरी माँ मुझसे बोलती थीं कि अपनी हस्ती ऐसी रखो कि माथे पर खुदवाना न पड़े कि मेरे अतीत की उपलब्धियाँ क्या हैं, या कि मेरा कैरेक्टर, मेरी 'रेपुटेशन'। ये कैरेक्टर, रेपुटेशन क्या होते हैं। बात होती है तुम्हारी हस्ती की, तुम हो कौन। उसको ठीक रखो न।
जो कैरेक्टर की जितनी परवाह करेगा वो समाज का उतना गुलाम हो जाएगा क्योंकि कैरेक्टर सर्टिफिकेट (चरित्र प्रमाणपत्र) तो तुमको समाज ही देता है न! जो तुम्हें वो सर्टिफिकेट दे सकता है, तुमसे वापस भी ले सकता है, तुम डरकर रहोगे। और सर्टिफिकेट अगर कोई तुम्हें देगा तो तुमसे कुछ वसूलकर ही देगा, तुम्हें किन्हीं शर्तों पर ही देगा।
जिन्होंने तुम्हारा फ़ोन हैक किया वो तो सफल हो गए। वो तुम्हें डराना चाहते थे, चिंतित, परेशान करना चाहते थे, वो तुम हो गए हो। फ़ोन में ऐसा क्या हो सकता है कि आदमी इतना पागल हो जाए कि अरे! ये मेरा क्या होगा, ऐसा-वैसा, इतना क्या हो सकता है। क्या देख लिया उन्होंने तुम्हारे फोन में? तुम अपने गर्लफ्रेंड से कुछ बातचीत करोगे, वो देख लिया होगा या माँ-बाप से बात कर रहे होगे, वो देख लिया होगा। शायद तुम पॉर्न (अश्लील वीडियो) आदि देख रहे होगे, तो वो तुम्हारी ब्राउज़िंग हिस्ट्री (खोजी गई विषयों की सूची) में आ गया होगा।
मैं इसके आगे का समझ नहीं पा रहा हूँ कि एक जवान आदमी किन बातों से अपना कैरेक्टर निर्धारित करता है, भारत में। बाहर तो इन बातों को बहुत ज़्यादा कैरेक्टर या रेपुटेशन का इंडिकेटर (सूचक) माना भी नहीं जाता। इंडिया में यही सबसे बड़ी बात होती है कि प्राइवेट चैट (निजी बातचीत) थीं, वो जो चैट, पूरी चैट ट्रेल थी, चैट हिस्ट्री थी, वो लीक (रहस्योद्घाटित) हो गई। अब वो चैट आ गई है तो लोग देख रहे हैं और मज़े ले रहे हैं। ये परवर्स प्लेज़र्स (विकृत आनंद) हैं, ये वॉयरिज़म (दृश्यरतिकता) कहलाता है। इन चीज़ों पर तो सज़ा देने का लीगल प्रावधान भी होता है। जैसा कि तुमने कहा न कि तुमने अपने वॉलपेपर पर लिख दिया था कि मैं लीगल केस कर लूँगा, तो उन्होंने खुद आकर के फिर कन्फेस किया, अपोलोजाइज़ (क्षमा माँगना) किया। ये चीज़ें तो कानूनन भी गलत हैं।
पर मैं तुमसे कह रहा हूँ कि कानून इनको सही माने, गलत माने, तुम पर फ़र्क पड़ना क्यों चाहिए। क्या हो गया ऐसा? बहुत हो जाएगा अधिक-से-अधिक क्या बुरे-से-बुरा हो जाएगा? तुम्हारी न्यूड पिक्स (नग्न तस्वीरें) लीक हो गईं? तो? सब वैसे ही होते हैं, तुम कुछ अलग नहीं हो। और अलग भी हो तो लोग अलग भी होते हैं। ऐसा क्या हो गया? जैसा तुम्हारा शरीर है वैसा ही तुम्हारी फ़ोटोज़ लीक करने वालों का भी शरीर होगा, उसमें ऐसा तुम, तुम्हारे शरीर में तुमने क्या खास दिखा दिया? और जो तुम्हारी तस्वीरें देख रहे हैं, उनसे बोलो, ‘अपनी ही देख लो। या जाकर आईने के सामने खड़े हो जाओ बेटा! तुम भी मेरे ही जैसे हो।’ इसमें इतना घबराने की बात क्या है?
पर विशेषकर भारत में हमारे लिए बहुत बड़ी बात होती है - चरित्र, कैरेक्टर। और ये अजीब बात है, अब हम इक्कीसवीं शताब्दी का भी चौथाई, क्वार्टर पास करने वाले हैं। तो एक तो ये शताब्दी, दूसरे तुम फ्रांस में पढ़ रहे हो, और तीसरी बात, तुम फीमेल (स्त्री) नहीं मेल (पुरुष) हो। तुम्हारी अगर कैरेक्टर और रेपुटेशन को लेकर के ये हालत है फ्रांस में होते हुए भी, आज की पीढ़ी का होते हुए भी, तो फिर भारत की महिलाओं के लिए क्या उम्मीद है। उनको तो बात-बात में यही कहकर के ब्लैकमेल करा जाएगा, बाँह मरोड़ी जाएगी कि देखो, तेरा हम कैरेक्टर जो है न वो खराब कर देंगे। हम दुनियाभर में तेरी इज़्ज़त उछाल देंगे, तेरी रेपुटेशन बर्बाद कर देंगे।
गुलामी में सबसे बड़ी गुलामी है रेपुटेशन की गुलामी। बार-बार कहता हूँ, ‘किसी के द्वारा दी गई इज़्ज़त के भूखे मत रहो! मत रहो!’ मैं तो यहाँ तक कहता हूँ, ‘बेइज़्ज़ती दूर की बात है, कोई इज़्ज़त दे रहा हो, इज़्ज़त लेने से इंकार कर दो क्योंकि जो आज तुम्हें इज़्ज़त दे सकता है, कल को तुम्हारी इज़्ज़त छीन भी सकता है, मत लो किसी से इज़्ज़त।
कई बार तो तुमको इज़्ज़त दी ही इसीलिए जाती है ताकि तुम इज़्ज़त देने वाले के गुलाम बन जाओ। और फिर एक दिन वो आकर तुमसे कहेगा, ‘जो मैंने तुझे इतनी इज़्ज़त दे दी न, दुनिया के सामने इतना इज़्ज़तदार बना दिया न, अब मैं तेरी सारी इज़्ज़त उतार दूँगा, नहीं तो मेरी गुलामी कर, जैसा मैं कहता हूँ वैसा कर।’ ये ब्लैकमेलिंग है। अपनी ब्लैकमेलिंग नहीं करानी हो, तो इज़्ज़तदार मत बनो।
पर हम भारतीय, हमें घुट्टी इस बात की पिला दी गई है कि सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत बड़ी बात है। कोई नहीं बड़ी बात है। कोई दूसरा तुम्हारी इज़्ज़त छीने, इससे पहले खुद ही अपनी इज़्ज़त तार-तार कर दो। खुद ही सबको बोल दो, ‘भैया! मुझमें ऐसा कुछ नहीं है कि तुम मुझे आदर-सम्मान दो। मैं बहुत साधारण आदमी हूँ, मैं साधारण से भी गिरा हुआ आदमी हूँ।’ वो आजकल चलता है न, ”मैं गिरा हुआ बंदा।” वो “गिरा हुआ बंदा” की यहाँ पर टीशर्ट पहन लो, लिख लो कि तू मुझे क्या गिराएगा, मैं तो पहले से ही गिरा हुआ हूँ।
हम छोटे थे, ननिहाल जाते थे। मेरी नानी महादेव की बड़ी भक्त थी और मुझको जब वो देखें, तो उनकी महादेव भक्ति एकदम ही परवान चढ़ जाती थी। उन्होंने एक कथा बना रखी थी, वो कथा वो सबको सुनाती थीं, वो कहती थीं कि जब हमने शिव जी से बहुत पूजा-प्रार्थना करी, वरदान माँगा, तो ये लड़का पैदा हुआ।
बात समझ रहे हैं?
तो उनके देखे कि मैं आया ही हूँ, तो जब हम पहुँच जाएँ तो और ज़्यादा शिव भक्ति के कार्यक्रम हुआ करें। तो एक वो कैसेट लगाकर के सुना करती थीं और उनकी ये मान्यता इस बात से और दृढ़ हो गई थी कि जो भी उन्होंने भगवान शिव से माँगा होगा, तो मेरा जन्म भी महाशिवरात्रि को हुआ। तो उनको लगे कि अरे, ये तो (भगवान शिव का ही वरदान है।)
तो एक कैसेट था वो शिव विवाह का, वो सुना करती थीं, वो रोज़ ही लगा दें। जिन दिनों मैं वहाँ रहूँ, लगभग रोज़ ही उसको लगा दें, और वो लगाना भूल जाएँ तो फिर सब जो बच्चे थे घर के वो समझ गए थे कि ये लगाना ही होता है सुबह-सुबह, तो वो लगा दिया करें। तो उसमें वो बीच में एक पंक्ति आती है कि “ऊँचा जो उड़ता है वो निश्चय ही नीचे आएगा और जो बैठा है धरती पर उसे नीचे कौन गिराएगा।” “ऊँचा जो उड़ता है वो निश्चय ही नीचे आएगा और जो बैठा है धरती पर उसे नीचे कौन गिराएगा।”
बात समझ रहे हैं?
असल में वो पूरी कथा ये थी कि विवाह के लिए राजा भेजते हैं पंडित को क्योंकि जो बालिका हैं पार्वती, जब उन्होंने जन्म लिया है दोबारा, तो उन्होंने हठ कर लिया है कि मैं तो शिव जी से ही, ये पौराणिक कथा है कि शिव जी से ही विवाह करूँगी; तो उनको भेजा जाता है, तो वो पंडित कहता है, ‘अरे महाराज! आप ये पहाड़ पर काहे को बैठते हो, पत्थर पर। और ये आपने भूत-प्रेत की सेना इकट्ठा कर रखी है।’ पंडित कहता है शिव जी से कि ये तो...।
उसमें ऐसे ही एक और बड़ी पंक्ति ऐसी आती थी, मैं हँसता था, खूब खिलखिलाता था, मैं बच्चा था। कि पंडित एकदम ही पगला जाता है, तो देखता है जब वहाँ पर जाकर हाल शिव जी का, तो बोलता है, ‘मेरी गौरा पाँच बरस की, मर बुढ्ढा हज़ार बरस का।’ वो शिव जी के लिए बोल रहा है कि हमारी जो गौरा है, वो छोटी सी बच्ची है, वो पाँच साल की है और ये जो हैं शिव जी, उनको बोल रहा है, ‘मर बुढ्ढा हज़ार बरस का।’ बोल रहा है, ‘ये कैसा रिश्ता करवा रहे हो?’ (हँसते हुए) कैसेट की बातें हैं। तो मैं उसको, वो मुझे एक समय पर पूरा रट गया था, पूरा वृतांत ही शिव विवाह का। तो ”आ गई लहर शिवा के मन में” ऐसे करके अपना वो रहता था। तो बाकी सब बातें तो चलो जैसी थीं वैसी थीं, पर ये बात मेरे मन में बैठ गई कि ”ऊँचा जो उड़ता है वो निश्चय ही नीचे आएगा और जो बैठा है धरती पर उसे नीचे कौन गिराएगा।”
अब जीवन की यात्रा, समय का पहिया, हम आगे बढ़े और जीवन ने हमें बहुत मौके दिए ऊपर उठने के, उठे भी। शिक्षा में, अपने सब कामकाज में और फिर और आगे बढ़ते गए तो फिर दुनिया में थोड़ा नाम भी फैल गया, ये सब होता रहा एक के बाद एक करके। लेकिन एक बात मैंने अच्छे से याद रखी, ‘बाहर-बाहर से कोई मुझे उठा ले कितना भी, भीतर से मैं ज़मीन पर ही बैठा रहूँगा, मैं नहीं उठने वाला।’ क्योंकि ”जो बैठा है धरती पर...” ये महादेव मुझे बता गए थे। ये मेरी नानी का आशीर्वाद, उनके हिसाब से मैं महादेव का भेजा हुआ पार्सल हूँ। (हँसते हुए) तो ये महादेव की सीख कि ”जो बैठा है धरती पर, उसे नीचे कौन गिराएगा।” तो मैंने कभी अपने आप को ऊपर नहीं उठने दिया। आप मुझे कितना ऊपर उठा लो, मैं अपनी नज़रों में गिरा हुआ ही रहता हूँ। धन्यवाद! (हाथ जोड़कर व्यंग्य में हँसते हुए)
समझ रहे हो?
अपनी नज़रों में गिरे हुए रहो। अरे, इससे मतलब ये नहीं है कि अपनी नज़रों में तुम अपने आप को हीन वगैरह समझो, माने ज़मीन पर रहो। दुनिया तुम्हें ऊँचे-से-ऊँचे मंच पर खड़ा कर दे, तुम अपने पाँव ज़मीन पर रखना, तुम आसमान में मत उड़ने लग जाना। ये जो तुम्हें उड़ाते हैं न, यही फिर गिराते हैं। भीतर से तुम बिलकुल ग्राउंडेड रहना, ग्राउंडेड। बाहर से उड़ने की नौबत आए तो उड़ लिए। बाहर से बहुत पाताल में धँसना पड़े तो बाहर तो कई बार दुनिया बड़ी बेइज़्ज़ती करती है, पाताल में धँसा देती है; दुनिया तुम्हें आकाश में टाँग दे, दुनिया तुम्हें पाताल में दफ़न कर दे, तुम यथार्थ की ज़मीन पर रहना, ”जो बैठा है धरती पर, उसे नीचे कौन गिराएगा।”
आ रही है बात समझ में?
जो तुम्हें गिरा पाते हैं न, वो इसीलिए गिरा पाते हैं क्योंकि तुमने उन्हें कभी मौका दिया था तुम्हें उठाने का। क्योंकि तुम उनके द्वारा दी गई प्रशंसा बहुत तत्परता से स्वीकार करते हो इसीलिए फिर जब वो तुम्हारी निंदा करते हैं तो तुम्हें निंदा भी स्वीकार करनी पड़ती है। ‘न तुमसे हम स्तुति-श्लाघा लेंगे और न तुमसे निंदा-आलोचना लेंगे। हम तुमसे कुछ नहीं लेंगे। आइ डू नॉट एग्जिस्ट इन योर आइज़ (मेरा अस्तित्व तुम्हारी नज़रों में नहीं है)। मेरी हस्ती, मेरा वजूद स्वतंत्र है। मेरी हस्ती तुम्हारी आँखों की गुलाम नहीं है। मैं वो नहीं हूँ जो आश्रित है कि तुम्हारी आँखें उसे कैसे देखती हैं। तुम्हारी आँखों में मैं जैसा हूँ, सो हूँ। तुम्हारी नज़रों में मैं कुछ भी हो सकता हूँ, उससे फ़र्क नहीं पड़ता। मैं जो हूँ, मैं जानता हूँ।’
रेपुटेशन को बड़ी बात मत मानना क्योंकि रेपुटेशन हमेशा दूसरों की आँखों में होती है। और दूसरों की आँखों पर तुम्हारा कोई बस नहीं है। बड़ी तुम दयनीय, विवशता की हालत में पहुँच जाओगे। बल्कि जब कोई बहुत तुम्हारा मान-सम्मान बढ़ा-चढ़ा रहा हो न, तब और याद रखा करो कि मुझे ऊपर नहीं चढ़ जाना है। अपने आप को चुटकुला बना लिया करो।
मैंने बहुत मंचों से कई बार ये किया, ये मेरे लिए एक आत्म अनुशासन की बात है। जब कोई मेरी बहुत तारीफ़ कर रहा होता है, ठीक उसी वक्त मैं अपने ऊपर चुटकुला मार देता हूँ, इसलिए नहीं कि मुझे जान-बूझकर के थोड़ा सा विनम्र बनना है। क्योंकि सच्चाई यही है कि मैं चुटकुला हूँ। और तुम भी चुटकुले हो (श्रोतागण की ओर इशारा करते हुए) और तुम भी चुटकुले हो, और तुम भी चुटकुले हो। हम कैसे अपना यथार्थ भुला दें। कोई कह रहा है, ‘अरे! ये हैं, महान हैं, भारत की शान हैं, पहलवान हैं।’ भग! कुछ नहीं।
आ रही है बात समझ में कुछ?
कोई दूसरा तुम्हारा मज़ाक उड़ाए, उससे पहले तुम खुद अपना मज़ाक उड़ा लिया करो। और रेपुटेशन नहीं रियलिटी (सच्चाई) की ज़मीन पर जीना सीखो। भिखारी हो क्या कि दूसरे से इज़्ज़त की भीख माँगोगे बार-बार, ‘मुझे इज़्ज़त दे दो, इज़्ज़त दे दो।’ हम सब भिखारी होते हैं, हमें सिखाया भी यही जाता है, ‘बेटा! इज़्ज़तदार बनकर जीना।’ माने भीख माँगना इज़्ज़त की। ‘नहीं, नहीं, नहीं! बेटा काम ऐसे करो कि दुनिया इज़्ज़त दे।’
जो सबसे अच्छे काम होते हैं उस पर दुनिया कभी इज़्ज़त नहीं देती। दुनिया इज़्ज़त बस उन कामों को देती है जो दुनियादारी के होते हैं। दुनिया जैसे ही काम करो, दुनिया द्वारा स्वीकृत काम करो, दुनियादारी में ही तुम भी लोटने लग जाओ, तो दुनिया इज़्ज़त देगी। सचमुच जो ऊँचे काम होते हैं, उसकी तो कभी इज़्ज़त मिलेगी ही नहीं। तो जो इज़्ज़त के बहुत प्यासे हैं वो फिर कभी सचमुच ऊँचे और अच्छे काम कर भी नहीं पाएँगे। ज़िंदगी में सचमुच अगर कोई काबिल-ए-तारीफ़ काम करना है, कोई ग्राउंड ब्रेकिंग (अभूतपूर्व) काम करना है, कोई मौलिक काम करना है, तो इज़्ज़त की चाह के साथ नहीं करा जा सकता। इज़्ज़त की चाह तुम्हें मजबूर कर देगी सदा छोटे-छोटे काम करने के लिए, वही काम करने के लिए जो समाज स्वीकृत हैं।
कुछ आ रही है बात समझ में? अपने आप को इतना गंभीरता से नहीं लेते कि मैं द रिस्पेकटेबल वन, ओ माय गॉड! (परम आदरणीय, हे भगवान!) मेरे बारे में गंदी बात बोल दिया, गंदी बात बोल दिया। कोई तुम्हारे बारे में गंदी बात बोले, तो उसको बुलाओ। बोलो — ‘बेटा, गंदी बात ऐसे नहीं बोली जाती, अब मैं तुझे बताता हूँ गंदी बात कैसे बोली जाती है। ऐसे बोल, ऐसे! अब बोल। क्योंकि मैं कितना गिरा हुआ हूँ, तुझसे ज़्यादा तो मैं जानता हूँ न। तू तो मेरे बारे में अगर उल्टी-पुल्टी बातें बोलेगा भी तो वही बोलेगा जो दो-चार बातें तूने सोच लीं या देख लीं। अरे! आदमी के मन में तो हज़ार खाईयाँ होती हैं। हमारी कौनसी खाईयाँ हैं, हमसे ज़्यादा तुम थोड़े ही वाकिफ़ हो। हम जानते हैं न, आओ! तुम हमें बुरा ही बोलना चाहते हो तो हम तुम्हें अपनी सारी बुराइयाँ बताते हैं।’
और आमतौर पर किसी को बुला लो और उसे अपनी अच्छाइयाँ नहीं बुराइयाँ बताना शुरू कर दो तो डरकर भग जाता है। लोग युजुअली (आमतौर पर) किसी को पकड़ते हैं बताने के लिए कि आओ, सुनो, बैठो, हम तुम्हें बताते हैं हम कितने महान आदमी हैं। उल्टा किया करो। बैठाया करो, ‘आओ बैठो! आओ, हम तुम्हें बताते हैं हम कितने गलीच आदमी हैं, जलील, जाहिल, बदकार, बदजात, ये हैं हम।’ देखो कैसे भगेगा!
ये दुनिया चीज़ ऐसी है, उल्टी। तो इसके साथ रिश्ता भी ऐसे ही रखना चाहिए, उल्टा। इन्हें पता चल गया न कि तुम प्रसिद्धि और प्रशंसा के प्यासे हो, तो ये तुमको प्यासा ही मार डालेंगे। और जिनको कोई कद्र नहीं रह जाती प्रशंसा की, प्रशस्ति की, जो कहते हैं, ‘भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी इज़्ज़त और तुम्हारी तारीफ़ें।’ विचित्र बात है ये, दुनिया फिर सचमुच उनकी इज़्ज़त करना शुरू कर देती है। माने क्या? माने ये कि असली इज़्ज़त मिलती भी उसको है जिसे इज़्ज़त चाहिए नहीं। जिसे बहुत इज़्ज़त चाहिए, उसे बस मिलता है भयादोहन। भयादोहन जानते हो क्या होता है? ब्लैकमेलिंग। भय दिखा-दिखाकर दुह लिया, भयादोहन। जो इज़्ज़त के बहुत प्यासे होते हैं, उनको मिलती है ब्लैकमेलिंग। और सचमुच अगर इस दुनिया ने, इतिहास ने भी अगर किसी को इज़्ज़त दी है, तो उनको दी है जो इज़्ज़त की दो रत्ती की परवाह नहीं करते थे, उनको सचमुच इज़्ज़त मिलती है।
आ रही है बात समझ में?
नंगे खेलना सीखो, बेधड़क जीना सीखो! इज़्ज़त वाला कोट नहीं डालने का। ‘भैया हमारी इज़्ज़त है ही नहीं, तुम हमें बेइज़्ज़त क्या करोगे।’ ”जो बैठा है धरती पर, उसे नीचे कौन गिराएगा, ऊँचा जो उड़ता है, वो निश्चय ही नीचे आएगा।” कुछ बन रही है बात, या बस...?
प्रश्नकर्ता: जी, बन रही है। और आज मेरा बर्थडे भी है सर और मेरा यहाँ पर अभी तो कोई दोस्त नहीं बचा है, तो मुझे बहुत अच्छा गिफ्ट मिल गया। (आचार्य जी हाथ ऊपर करके प्रश्नकर्ता को बधाई देते हुए) दो साल से आप ही हो सर। (हँसते हुए)
आचार्य प्रशांत: बधाई हो! उसकी नहीं जो तुम लगते हो, उसकी जो तुम हो। उसकी नहीं जिसका जन्म हुआ है, उसकी जिसका कोई जन्म नहीं है; बधाई हो। रेपुटेशन की नहीं, रियलिटी की; बधाई हो।
प्रश्नकर्ता: जी। धन्यवाद सर।