आस पास जोधा खड़े, सबै बजावे गाल। मंझ महल से ले चला, ऐसा परबल काल॥
~ कबीर
वक्ता: तुम्हारे ये जितने खड़े हैं, ये सिर्फ़ शब्द के खिलाड़ी हैं। बोलने को कह दो, तो ये ख़ूब बोल लेंगे। “हमारा जन्म-जन्म का साथ है, तुम्हें बड़ा प्यार करते हैं।” क़ीमत वसूलने को कह दो, तो ये कर देंगे। लेकिन वास्तव में इनमें से कोई तुम्हारा सहारा नहीं बन सकता।
कबीर यहाँ रुक नहीं जाते हैं, कि, “तुम्हें काल ले जाएगा,” कबीर अमर होने की बात भी करते हैं। पर जब अमर होने की बात है, तब ये गाल बजइये काम नहीं आएँगे। तब जो काम आएगा, वो ‘राम’ है। और ‘राम’ की तुम्हें कोई सुध नहीं रहेगी।
तो इसलिए तुम्हें कबीर बस इतना ही कह रहे हैं कि आसपास वाले जो हैं, ये यमराज से नहीं बचा पाएँगे। ये गाल ही बजाते रह जाएँगे, वो तुम्हें उठाते ले चलेगा। दावे इनके बहुत हैं। दावे तो इनके ये हैं कि, “भगवान को छोड़ो, हम ज़्यादा प्यारे हैं तुम्हारे। अस्तित्व को छोड़ो, हम तुम्हारे लिए ज़्यादा बड़े हैं।”
उस दिन मैं कह रहा था ना, कि माँओं को गुरु से बड़ी कोफ़्त होती है। उनका दवा ही यही है, “गुरु से बड़े हम हैं।” इससे ज़्यादा बड़ी बेवकूफ़ी की बात हो नहीं सकती। माँओं को कोफ़्त होकर रहेगी, क्योंकि उन्हें साफ़-साफ़ दिखाई देगा कि गुरु के पास जाने का मतलब है – असली माँ को पा लेना।
और ‘असली’ हो अगर तुम, तो फ़िर काल से बचाकर दिखाओ अपने बच्चे को। काल से तुम नहीं बचा पाओगी, वास्तविक रूप से तो तुम किसी काम नहीं आ पाओगी। हाँ, ज़िंदगी ख़राब करने के लिए तुम उद्यत हो, उतना तुम कर सकते हो। उतना तुम कर लोगे।
दुनिया की कोई ही माँ होगी, गौर करियेगा, जिसे ये भा कि उसका बेटा भक्त गया है। क्योंकि ‘भक्त’ होने का मतलब ही है – शरीर धारणा से थोड़ा ऊपर उठना। और माँ, ‘माँ’ है ही उसी दिन तक, जिस दिन तक बच्चा अपनेआप को शरीर समझता है। माँ का पूरा स्वार्थ ही इसी में है, कि बेटा अपनेआप को, मात्र शरीर जाने रहे। “क्योंकि अगर बेटा ‘शरीर’ है, तो मैं माँ हूँ। शरीर तो मैंने ही दिया है उसको।”
जिस दिन उसने अपनेआप शरीर से कुछ अलग मान लिया, उस दिन माँ के लिए बड़ा ख़तरा पैदा हो जाता है। माँओं की पूरी साज़िश ही यही रहती है कि किसी भी तरीके से, बेटा अनाड़ी बना रहे। ज्ञानी बेटा किसी माँ पसंद नहीं आएगा।
मैं उस ज्ञान की बात नहीं कर रहा हूँ, कि शेयर मार्किट में क्या भाव चल रहे हैं। मैं ‘आत्म-ज्ञान’ की बात कर रहा हूँ। आत्म-ज्ञानी बेटा किसी माँ को नहीं सुहाएगा। बल्कि जहाँ माँ देखेगी कि बेटा आत्म-ज्ञान की बात कर रहा है, तुरंत कहेगी, “ज़्यादा समझदार हो रहा है। क्या फ़िज़ूल बातें कर रहा है। क्या आवश्यकता है ये सब करने की?”ये गाल बजाती रह जाएँगी। कोई माँ नहीं मरी अपने बेटे के साथ। रो लेगी, मरोगे तो।
ठीक है?
~ ‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।