मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? हमारा क्या होता है? || (2021)

Acharya Prashant

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मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? हमारा क्या होता है? || (2021)

प्रश्नकर्ता: आप कहते हैं कि मरने के बाद हमारा कोई पुनर्जन्म नहीं है। तो हम मरने के बाद कहाँ जाएँगे? आचार्य जी मरने के बाद हमारा क्या होगा?

आचार्य प्रशान्त: तुम्हारा कुछ नहीं होगा, तुम मिट्टी हो जाओगे। तुम्हें क्यों लग रहा है कि तुम इतनी बड़ी चीज़ हो कि तुम्हारा मरने के बाद भी कुछ होगा? मरने से पहले तो तुम्हारा कुछ हो नहीं पाया! मरने के बाद क्या होगा? अजीब ग़ुमान है। मरने से पहले तुम कोई भी बड़ी चीज़ बन पाए क्या? तो मरने के बाद भी तुम बहुत बड़े भूत कैसे बन जाओगे?

हमारा जो व्यक्तिगत अस्तित्व है न, उसे राख हो जाना है। व्यक्तिगत अस्तित्व को कहते हैं व्यष्टि। क्या कहते हैं? व्यष्टि, और प्रकृति में ये जो कुल अस्तित्व है, सब कुछ, इसे कहते हैं — समष्टि। समष्टि का पुनर्जन्म चलता रहता है लगातार। तो पुनर्जन्म झूठ नहीं है। यह मत कह देना कि मैं पुनर्जन्म से इंकार करता हूँ, नहीं। मैं व्यष्टि के पुनर्जन्म से इंकार करता हूँ। पुनर्जन्म समष्टि का होता है। समष्टि माने सब कुछ। समष्टि माने समझ लो जैसे — पहले भी मैंने यही उदाहरण देकर समझाया है, सबसे उचित उदाहरण यही है तो फिर से दिए देता हूंँ — समष्टि माने समझ लो सागर, और व्यष्टि माने समझ लो सागर की एक लहर। तो सागर बार-बार लहराता रहेगा। लहरों का बार-बार सागर में जन्म होता रहेगा। लहर उठेगी, लहर गिरेगी; लहर उठेगी, लहर गिरेगी। लेकिन जो व्यष्टि है, जो एक विशिष्ट लहर है, वह नहीं लौट कर आने वाली। वह एकदम नहीं लौटकर आने वाली।

तो अगर तुम पूछ रहे हो, मान लो तुम्हारा कुछ नाम है राजू, कि, "राजू का क्या होगा मरने के बाद?" राजू खत्म हो गया। राजू का कोई पुनर्जन्म नहीं है। हांँ, समष्टि का पुनर्जन्म ज़रूर है। मैं पुनर्जन्म से इंकार नहीं करता। मैं राजू के पुनर्जन्म से इंकार करता हूंँ। तो राजू महाराज इस धोखे में बिलकुल ना रहें कि वह कहीं लौटकर के आएँगे कि आगे कुछ होने वाला है। मैं कह रहा हूँ कि भैया जैसे जीना है अभी जी लो। तुम्हारा कुछ नहीं बचने वाला मृत्यु के बाद। पुनर्जन्म एक बहुत ऊँचे तल पर होता है, तुम्हारे तल पर नहीं होता।

तुम, जो तुम्हारी व्यक्तिगत सत्ता थी — तुम, तुम्हारा जीवन, तुम्हारे अनुभव, तुम्हारी यादें, यह सब तुम्हारे साथ ही नष्ट हो जाना है। तुम्हारा चेहरा अब लौटकर के नहीं आएगा। तुम्हारी यादें अब लौटकर के नहीं आएँगी। तुम्हारा जो व्यक्तिगत अहंकार है, वह लौटकर के नहीं आएगा। हांँ, अहं-वृत्ति अपना खेल खेलती रहेगी। उसका पुनर्जन्म बार बार होता रहेगा, अहम्-वृत्ति का तुम्हारे व्यक्तिगत अहंकार का नहीं।

अहम्- वृत्ति का पुनर्जन्म होता रहेगा माने क्या? जो अहम्-वृत्ति तुममें आज पाई जाती थी वही कल किसी और में पाई जाएगी। देखो वह फिर आ गई, वह देखो फिर आ गई, वह बार-बार आती रहेगी। लेकिन जो चीज़ तुममें थी, जो तुम बने बैठे थे वह नहीं लौटकर के आने वाली, उसका कुछ नहीं है।

हमने बड़ी भूल करी है जो पुनर्जन्म की बात को ठीक से समझे नहीं। और ठीक से ना समझने का भुगतान सनातन धर्म ने और भारत देश ने खूब चुकाया है। बहुत ऊँचा है पुनर्जन्म का सिद्धांत, बहुत गहरी बात कही गई है जब कहा जाता है कि पुनर्जन्म है। लेकिन हमने उस गहरी बात को व्यक्ति के तल पर लाकर के बिलकुल छिछला बना दिया। हमने कहना शुरू कर दिया कि राजू है, राजू का पुनर्जन्म होगा तो वह काजू बन जाएगा। वह बात बिलकुल बेकार है।

फिर इसी से संबंधित सवाल आ जाते हैं। कहते हैं — अच्छा अगर मरने के बाद हम बचेंगे ही नहीं तो फिर तो हम कैसी भी हरकतें करें ज़िन्दगी में क्या फ़र्क पड़ता है। हांँ, मरने के बाद तुम बचोगे नहीं पर जो भी तुम हरकतें करते हो उनका परिणाम तुम्हें हरकत करने के साथ ही मिल जाता है। घटिया हरकत करने के लिए तुम्हें घटिया आदमी होना पड़ता है, और यही लो तुमको मिल गई न सज़ा। तुमको इस जन्म में किए हुए पाप का परिणाम अगले जन्म में थोड़े ही भुगतना पड़ेगा। इस जन्म में पाप करते हो तो उसका तुमको दण्ड पाप करने के साथ ही बल्कि पाप करने से पहले मिल जाता है क्योंकि पाप करने के लिए तुम्हें पापी होना पड़ता है और पापी होना अपने-आपमें एक बहुत बड़ी अंदरुनी सज़ा है।

तुम कहोगे, "इतने लोग इतना पाप करते हैं लेकिन हमने तो उन्हें कभी दुःख में देखा नहीं।" तुमने उन्हें दुःख में नहीं देखा तो क्या हो गया? तुम्हें देखना आता कहांँ है। तुम्हें अपना भी दुःख कहांँ पता है। तुम्हें लग रहा है कोई आदमी हंँस रहा है इसका मतलब दुःख में नहीं है, कोई आदमी गुलछर्रे उड़ा रहा है इसका मतलब दुःख में नहीं है। नहीं साहब, हो सकता है कोई पाप करे और गुलछर्रे उड़ा रहा हो। तुम उसके आंतरिक दुःख की कल्पना नहीं कर सकते क्योंकि तुम अभी इतने सजग, इतने सचेत नहीं हो कि समझ पाओ कि गुलछर्रे उड़ाने में भी कोई आदमी भीतर से कितना कराह रहा होगा, कितना रो होगा। और उस व्यक्ति को स्वयं भी नहीं पता होगा कि वह कितना दुखी है क्योंकि वह भी इतना सचेत नहीं है। हो सकता है कि उसको स्वयं भी लग रहा हो कि, "अहा मैं तो मज़े मार रहा हूंँ।" वह मज़े नहीं मार रहा है, वह नर्क झेल रहा है।

तो यह तो कहो ही मत कि अगर पुनर्जन्म नहीं होता व्यक्ति का तो फिर पाप करे या पुण्य क्या फ़र्क पड़ता है। नहीं, पाप करते हो तो तत्क्षण सज़ा मिल जाती है क्योंकि तुम पापी बन गए, और पुण्य करते हो तो तुम्हें तत्क्षण उसका पुरस्कार मिल गया क्योंकि पुण्य करने के लिए तुमको चेतना की एक ऊँची अवस्था में होना पड़ता है। चेतना की जिस ऊँची अवस्था में जा कर जो तुमने पुण्य किया वह ऊँची अवस्था अपना पुरस्कार आप है। लो मिल तो गया तुमको पुरस्कार, और क्या इनाम चाहिए तुमको।

वैसे ही पूछते हैं फिर कि "तो मर कर तो सभी को मुक्ति मिल जाती है?" मुक्ति इसलिए नहीं है कि मर कर के मिल जाएगी। सनातन धर्म ने तुमको सिखाया है जीवन मुक्त होना, और यह जीवन मुक्ति की बात सबसे विशेष है सनातन परम्परा में। सबसे विशेष बात है जीवन मुक्ति। जीवन मुक्ति का अर्थ है — यह जीवन यह सम्भावना रखता है अपने-आपमें कि तुम जीते जी मुक्त हो जाओ। मर कर मुक्ति मिली तो काहे की मुक्ति, किस को मिली मुक्ति? कौन उस मुक्ति में आनंदित होगा? तुम तो मर गए। बात तो तब है जब जीते-जी मुक्त हो जाओ, उसे कहते हैं जीवन मुक्त, और जीवन मुक्त होना जीवन का परम् लक्ष्य है।

तो मरने पर इतना ध्यान मत दिया करो कि, "मर कर मुक्ति मिलेगी क्या? मरने के बाद क्या होता है? मरने के बाद अगला जन्म क्या होगा?" तुम अभी जो चल रहा है तुम्हारे साथ उस पर ज़रा ध्यान दो क्योंकि तुम्हारा सारा कष्ट, तुम्हारी सारी पीड़ा तुम्हारे वर्तमान में है। अपनी ज़िंदगी को, अपनी रोज़ की ज़िंदगी को ग़ौर से देखो, और वहांँ जो तुम्हारे बंधन है उनको काटो। यही तुम्हारी मुक्ति का रास्ता है। आगे-पीछे की बात इतनी करना बंद करो। तुम्हारे अगले जन्म की कल्पना तुम्हारे काम नहीं आने वाली। इस जन्म के यथार्थ पर ध्यान दो पहले।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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