मैं मैं बड़ी बलाय || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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मैं मैं बड़ी बलाय || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: अंकित कह रहे हैं कि अगर मैं कहूँ ‘भूख लगी है’ या ‘दर्द हो रहा है’, तो क्या उसमें भी अहंकार है?

बात बड़ी सूक्ष्म है, ध्यान दोगे तो ही समझ में आएगी ।

जब तुम ये कहते हो, ‘मैं भूखा हूँ’ और तुम ये नहीं कहते कि ‘पेट भूखा है’ तो तुमने अपनी पहचान पेट के साथ बांध दी, अब तुम वही बोलोगे क्योंकि अंततः भूख तुम्हें नहीं पेट को लगी है । तुमने अपनी पहचान पेट के साथ बांध दी है, और एक बार तुमने अपनी पहचान शरीर के साथ बांध दी तो तुम्हें वही करना पड़ेगा जो शरीर तुमसे कहेगा, और तुम्हें वही वहम रहेगा कि ये तो मैं कर रहा हूँ । तुम भूल ही जाओगे कि ये तुमसे शरीर कह रहा है ।

तुमको पता है कि भूख का अर्थ क्या है? भूख का अर्थ है कि पेट इंधन की मांग कर रहा है । इस कारण कुछ रसायन(केमिकल्स) रिलीज़ हुए हैं और उन्होंने संदेश दिया है मस्तिष्क को । ये पुरे तरीके से एक मेकनिकल प्रक्रिया है जो एक मशीन के भीतर चल रही है । ऐसे समझ लो कि एक कार होती है, जब उसमें ईंधन कम होने लगता है तो उसमें एक बत्ती जल जाती है, उसी बत्ती के जलने का नाम है भूख । कि अब ईंधन कम हो गया है। ये पूरे तरीके से एक मेकनिकल प्रक्रिया है लेकिन तुमने इसे अपनी पहचान बना लिया है । तुमने अपने आप को इससे जोड़ लिया, तुमने ये नही कहा कि पेट में ईंधन की कमी है। नतीजा क्या हुआ ? नतीजा ये हुआ कि तुम शरीर के साथ अपने आप को पूरे तरीके से एक ही मानोगे । और क्या होगा? शरीर जो भी करेगा तुम्हें लगेगा कि तुम ही कर रहे हो । जिस तरह शरीर में कुछ केमिकल्स होते हैं जिनसे तुम्हें भूख लगती है, उसी तरह शरीर में कुछ और केमिकल्स होते हैं जिन्हें कहते हैं हॉर्मोन्स । एक उम्र आती है जब ये हॉर्मोन्स एक्टिव हो जाते हैं और तुम ये नहीं कहोगे कि अरे! ये तो कोई केमिकल प्रोसेस चल रहा है । तुम कहोगे कि मुझे प्रेम हो गया है । हुआ कुछ नही हैं, हुआ बस इतना ही है कि जैसे लोहा चुम्बक से आकर्षित होता है, जिसको विज्ञान अच्छे तरीके से समझा सकता है, उसी तरीके से तुम्हारे शरीर में भी पूर्णतया शारीरिक काम चल रहा है । कुछ रसायन(केमिकल्स) स्रावित(सिक्रीट) होते हैं जिनकी वजह से तुम विपरीत लिंग से आकर्षित होते हो, अगर लड़का है तो लड़की से और अगर लड़की है तो लड़के से ।

पर तुम तो ये समझ ही नहीं पाओगे कि ये एक आतंरिक प्रक्रिया है । तुम कहोगे कि मुझे तो प्यार हो गया है, ये सिर्फ रसायनों (केमिकल्स) का काम है । अगर ये रसायन(केमिकल्स) मेरे शरीर से निकाल दिए जाएँ तो ये प्रेम ही गायब हो जायेगा । अगर उन्हीं हॉर्मोन्स का एक इंजेक्शन तुम्हें लगा दिया जाये तो ऐसे दौड़ोगे जैसे सांड दौड़ता है न सड़क पर, गाय के पीछे । तुम्हें अंतर ही नहीं करना आता, स्वयं में और शरीर में । और अगर हॉर्मोन्स की सक्रियता ही प्रेम है तो वो सांड तो परम प्रेमी है । ये सारी दुर्घटनायें हमारे साथ होती ही इसलिए हैं क्योंकि हमें ये कहना ही नहीं आता कि ‘शरीर उत्तेजित हो रहा है’ । हमें ये कहना ही नहीं आता कि ‘पाँव में दर्द हो रहा है’ । हम कहते हैं, ‘मुझे दर्द हो रहा है’ । तुमने उसके साथ एक तादात्मय बना लिया, उसके साथ एक पहचान बना ली । करेगा शरीर और भुगतोगे तुम । समझ रहे हो ये बात? ये अहंकार है और हर प्रकार का अहंकार तुम्हें नर्क में ले जाता है।

अब ये जो शरीर है इसके अपने कुछ नियम हैं। जो समझदार व्यक्ति होता है वो जनता ही है कि मस्तिष्क का तो स्वभाव ही ऐसा है । मस्तिष्क का एक काम है कि वो हमेशा विचारों में रहेगा और भटकता रहेगा । पर तुम ये नहीं कहोगे कि ‘अरे! ये तो मस्तिष्क है जो भटक रहा है’, तुम कहोगे, ‘ये तो मैं हूँ जो बड़ा चिंतित हूँ’ । अब भटक मस्तिष्क रहा है और चिंता तुमने अपने ऊपर ले ली। ठीक है? अब मरो ।

जब भी तुम ‘मैं’ लगाओगे तो समझ जाओ कि तुमने कष्ट का आयोजन कर लिया । अपने ही पाँव पर मार ली कुल्हाड़ी । किसी भी व्यक्ति, विचार या धातु के साथ ‘मैं’ को सम्बद्ध कर लेना ही अहंकार है । कुछ भी तुमने उसके साथ जोड़ दिया, ‘मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ’, ‘आई ऍम’, उस के साथ तुमने कुछ भी लगा दिया तो यही अहंकार है, और यह अहंकार तुम्हें कष्ट देगा । ज़िन्दगी बेवक़ूफ़ तरीक़े से बिताओगे ।

ये ‘मैं’, ‘मैं’ ही सबसे बड़ी बला है। यही अहंकार है।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

संवाद देखें: https://www.youtube.com/watch?v=tZhMgOP53os

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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