मैं चुप हूँ,
वे सब बोल रहे हैं;
क्या बोल रहे हैं?
हह! अब बोल रहे हैं तो बस –
बोल रहे हैं।
पुरुषार्थ को अकड़, भावना को दुर्बलता
तथा चरित्र को फिज़ूल बता,
क्या,
वे अपनी पोल भी नहीं खोल रहे हैं?
~ आचार्य प्रशांत (1995)