आचार्य प्रशांत: बहुत लोगों ने इस प्रश्न का धंधा ही बना लिया है। वो यही — मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? पूछेंगे पहले मैं कौन हूँ और फिर आँखें चौड़ी करके आसमान की ओर देखेंगे। मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ?
तुम इस वक़्त मूर्ख हो।(श्रोता हँसते हैं) और कौन हो तुम? जो तुम हो वो प्रतिपल बदल रहा है क्योंकि तुम्हारा तो पूरा तादात्म्य मन के साथ है। और “मन के बहुतक रंग हैं, प्रति पल-पल बदले सोय।”
तुम्हारा पूरा तादात्म्य किसके साथ है? मन की अवस्था के साथ है। मन क्रोधित है, तुम क्रोधित हो। यही हाल है न तुम्हारा? और मन का रंग प्रतिपल बदल रहा है, तो तुम्हारा नाम भी प्रतिपल बदल रहा है।
जिस तरीके से इस प्रश्न का उपयोग अध्यात्म में किया जाता है; वो तरीका ही बहुत गलत है, झूठा है, भ्रामक है। वहाँ तुमसे कहा जाता है, ‘जाओ विचारो तुम कौन हो।’ और चुपके से पहले ही तुमको उत्तर बता दिया जाता है कि विचारना आधे-पौने घंटे और अंत में उत्तर ये लेकर आना कि मैं तो मौन, शून्य, अनंत, अविनाशी, आत्मा हूँ।
तो तुम जाते हो। आधे-पौने घंटे इधर-उधर करते हो। फिर जेब से पर्चा निकालते हो। उसमें लिखा हुआ है मैं मौन, शून्य, अनंत, अखंड, अविनाशी, आत्मा हूँ। और कहते हो, ‘देखो, मैंने पैंतालीस मिनट ध्यान करके बिलकुल अभी-अभी खुद…।’
प्रश्नकर्ता: पता किया है।
आचार्य प्रशांत: पता करा है कि मैं आत्मा हूँ। तो जितने घूम रहे हैं, सबको एक ही उत्तर मिलता है मैं कौन हूँ का। मैं तो महाशून्य हूँ।
प्रश्नकर्ता: मेरा नाम आत्मा है।
आचार्य प्रशांत: और मेरा नाम आत्मा है। ये क्या आत्मप्रवंचना है? खुद को ही छला जा रहा है कि पहले झूठ-मूठ का सवाल पूछो और फिर उस झूठ-मूठ के सवाल का एक तयशुदा उत्तर लाकर के बता दो।
इसे रिगिंग (हेराफेरी) कहते हैं। ये स्पिरिचुअल रिगिंग (आध्यात्मिक हेराफेरी) है। मैच फ़िक्सिंग है। पहले ही नतीजा तय है, मैं कौन हूँ। पहले जाओ। इधर-उधर कोई झूठ-मूठ की कोशिश करो कि अभी तो मैं खोज रहा हूँ। पता नहीं चल रहा है। क्योंकि अगर तत्काल ही बोल दिया मैं कौन हूँ, तो ज़ाहिर हो जाएगा कि मैच फ़िक्स था।
तो पहले झूठ-मूठ इधर-उधर जाकर के अनुसंधान करो, खोजबीन करो। अरे! मैं कौन हूँ? अरे! मैं कौन हूँ? अरे! मैं कौन हूँ? और जब आधा घंटा, पैंतालीस मिनट बीत जाऍं तो कहो, ‘अरे! पता चल गया। अभी-अभी नीली रोशनी उतरी है। अभी-अभी एक गहन शून्य और मौन अवतरित हुआ है। और मुझे अभी-अभी एक मौलिक ज्ञान हुआ है कि मैं आत्मा मात्र हूँ।’
बुद्धू बना रहे हो खुद को ही। असली जवाब क्या है? असली जवाब ये है। क्या?
प्रश्नकर्ता: मुझे पता नहीं।
आचार्य प्रशांत: मैं कचौड़ीबाज़ हूँ। ठीक है? मैं दोगला हूँ। मैं झेंपू हूँ। मैं लपेटू हूँ।
प्रश्नकर्ता: डरपोक हूॅं।
आचार्य प्रशांत: मैं डरपोक हूँ।
प्रश्नकर्ता: सही बात है।
आचार्य प्रशांत: कोहम् के उपयोगी उत्तर यही हैं। कौन हूँ मैं?
प्रश्नकर्ता: डरपोक, चोर हूॅं।
आचार्य प्रशांत: चोर हूँ। कौन हूँ मैं? भूतग्रस्त हूँ। कौन हूँ मैं? जो खरगोश से डरता है वो हूँ मैं। (श्रोता हँसते हैं)
प्रश्नकर्ता: भयस्त।
आचार्य प्रशांत: भयस्त हूँ। ये असली उत्तर हैं कोहम् के। ऋषियों-महार्षियों ने जो उत्तर बड़ी साधना और बड़ी ईमानदारी से प्राप्त किया, उसको तुम चुराकर के जल्दी से यूँही बोल देते हो। मैं आत्मा हूँ। बिरयानी और लाना ज़रा। (श्रोता हँसते हैं) मैं आत्मा हूँ।
आत्मा तो अनंत होती है। बिरयानी भी अनंत होनी चाहिए। अनंत शांत से कैसे भर सकता है? ये छोटी प्लेट क्या ला रहे हो जी? अनंत बिरयानी लाओ क्योंकि हम अनंत आत्मा हैं। बकरे वाली लाना, बकरे वाली।