माँसाहार: ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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माँसाहार: ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता आचार्य जी, जब मैं पशु-वध के तथ्यों को देखता हूँ तो मुझे यह उम्मीद होती है कि पढ़े लिखे लोग भी इसे समझेंगे, लेकिन जब हमारे देश में कुछ समय पहले गाय के माँस पर रोक लगाने की बात की जा रही थी तो यही उच्च-मध्यम वर्गीय और पढ़े लिखे लोग इसका विरोध कर रहे थे और उनका तर्क यही था कि “मेरी थाली में क्या हो यह तो मेरी मर्ज़ी है।”

आचार्य प्रशांत: नहीं फिर तुम यह भी तो बोल सकते हो कि “मेरी गाड़ी काला धुँआ फेंकती है। मेरी मर्जी, मेरी गाड़ी क्या धुँआ फेंक रही है इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?”

तुम्हारी गाड़ी धुँआ मार रही है तो पुलिस तुम्हारा चालान काट देती है, तब तुम क्यों नहीं कहते कि “मेरी मर्ज़ी, मेरी गाड़ी, *माय पर्सनल चॉइस*। मैं ऐसी गाड़ी रखना चाहता हूँ जो धुँआ मारती है।” तब क्यों नहीं कहते?

तो यह बहुत मूर्खतापूर्ण बात है कहना कि, "मैं माँस खा रहा हूँ, मेरी मर्ज़ी!" वह तुम्हारा पर्सनल या प्राइवेट मसला थोड़े ही है। तुमने वह जो अपनी थाली पर रखा हुआ है उससे पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी है। तुम जो खा रहे हो उसका कार्बन फुटप्रिंट ज़बरदस्त है और उससे मेरे ऊपर भी असर पड़ रहा है। तो वह तुम्हारा निजी मसला नहीं है, वह मेरा भी मसला है। मैं तुमसे बात करूँगा और हस्तक्षेप करूँगा। और तुम्हें जवाब देना पड़ेगा कि तुम ऐसा काम क्यों कर रहे हो जिससे दुनिया भर में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ रही है।

भैया ऐसा थोड़े ही यह है कि तुम अपने एक बंद कमरे में सारा अपना जीवन बिता रहे हो, जहाँ जो कुछ हो रहा है उसका बाकी संसार पर कोई असर नहीं पड़ रहा, तुम जो कुछ कर रहे हो उसका असर मेरे ऊपर पड़ रहा है। ठीक वैसे ही तुम्हारी प्लेट पर रखी मीट का मुझ पर असर हो रहा है। जैसे तुम्हारी गाड़ी से निकलते काले धुँए का मुझ पर असर पड़ रहा है तो यह तुम्हारा पर्सनल मैटर नहीं है। निजी चुनाव, माय चॉइस इत्यादि जुमले उछाल करके बेवकूफी मत करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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