मानव की प्रकृति नहीं माँसाहार || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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मानव की प्रकृति नहीं माँसाहार || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: अगर एक गाय के सामने माँस रख दिया जाए तो वह तो नहीं खाएगी पर अगर एक शेर या इंसान के सामने रख दिया जाए तो वह खा लेते हैं, इसका मतलब यह है कि माँस खाना इंसान की कुदरती फितरत है।

आचार्य प्रशांत: नहीं साहब, आप जो उदाहरण दे रहे हैं वह कहीं से भी जायज़ नहीं है। गाय के सामने माँस रखेंगे वह नहीं खाएगी यहाँ तक बात ठीक है, शेर के सामने माँस रखेंगे वह खा लेगा यह बात भी ठीक है लेकिन इंसान के सामने रखेंगे तो वह खा लेगा यह बात ज़रा ठीक नहीं है।

आप किस इंसान की बात कर रहे हैं? एक जैन के सामने माँस रख कर देखिए कि वह माँस को खाएगा या आपको घूरने लग जाएगा। और कोई ऐसा जिसे माँस खाने की खूब शिक्षा मिली हो, खूब उसकी आदत लगी हो, संस्कार हो उसके माँस खाने के, उसके सामने आप माँस रख कर देखिए तो वह आपको धन्यवाद दे देगा।

तो इंसान इंसान में अंतर है, गाय गाय में अंतर नहीं है। कोई गाय माँस नहीं खाएगी। शेर शेर में भी अंतर नहीं है, सब शेर माँस खाते हैं। पर इंसान इंसान में अंतर है। इंसान इंसान में क्या अंतर है? इंसान इंसान में संस्कारों का अंतर है, कंडीशनिंग का अंतर है। उसके दिमाग में क्या बात भर दी गई है, इस बात का अंतर है।

गाय के दिमाग में आप कोई बात भर नहीं सकते, शेर के भी दिमाग में आप कोई बात नहीं भर सकते। इंसान अलग होता है हर जानवर से। इंसान के पास चेतना होती है। और उस चेतना को और शुद्ध किया जा सकता है या फिर उस चेतना को और अशुद्ध किया जा सकता है। सब इस पर निर्भर करता कि आपने इंसान के दिमाग में क्या बातें डाल दी हैं, उसी को कहते हैं ज्ञान या अज्ञान। समझ रहे हैं?

तो इंसान माँस खाएगा या नहीं खाएगा, इंसान प्राकृतिक तौर पर माँसाहारी है या नहीं है, यही अगर जाँचना है तो उसका ज़्यादा अच्छा तरीका है कि किसी वयस्क इंसान की जगह किसी छोटे बच्चे के सामने माँस रख कर देखिए, बिलकुल छोटा होना चाहिए बच्चा। और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस तरह के बहुत प्रयोग किए जा चुके हैं। आप चाहें तो अपने घर में भी कर सकते हैं। बिलकुल छोटे बच्चे के सामने माँस रख कर देखिए। वह बिलकुल दूर भागेगा, रोने लगेगा, खाना नहीं चाहेगा।

छोटे बच्चे के सामने आप माँस रख दीजिए और सेब रख दीजिए और देखिए वह किस तरफ को लपकता है। छोटे बच्चे के सामने आप अंगूर रखिए, केला रखिए, तोता रखिए और खरगोश रखिए और फिर देखिए कि क्या वह आपके घर का छोटा सा बच्चा लपक करके तोते की गर्दन मरोड़ देता है, खरगोश की खाल फाड़ देता है या खरगोश के साथ खेलने लग जाता है, तोते को देखकर हँसने लगता है और केले को खा लेता है, अंगूर को खा लेता है।

मैं बहुत छोटे बच्चे की बात कर रहा हूँ। बच्चा एक साल-दो साल का होना चाहिए। ऐसे बच्चे की बात नहीं कर रहा हूँ जिसके मुँह में आपने माँस और शोरबा डाल-डाल कर उसे माँसाहारी बना ही दिया है पहले ही। ऐसे बच्चे की बात नहीं कर रहा हूँ। तो बच्चों पर प्रयोग करके देख लीजिए, आपको पता चल जाएगा कि इंसान भी कुदरती तौर पर माँसाहारी है या शाकाहारी है। गलत तर्क ना दें।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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