माफ़ करने का क्या अर्थ है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

12 min
699 reads
माफ़ करने का क्या अर्थ है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

श्रोता: सर, यह जो शब्द है क्षमा, क्या इस शब्द का कुछ अस्तित्व है?

वक्ता: क्षमा? बेटा, यह भी शब्द, क्षमा उन्हीं शब्दों में से है जिनका वास्तविक अर्थ, बहुत कम समझा गया है।

क्षमा, तो साधना का एक अंग है। क्षमा, आर्जव, सहिष्णुता, ये साधना के अंग हैं। और साधना का जो भी अंग होता है, वो इसलिए होता है कि उससे अहंकार गिर सके। समझना बात को।

साधना इसलिए होती है, ताकि मन साफ़ रहे और अहंकार गिर सके।

कम हो सके। पर जिस रूप में, हमें क्षमा से परिचित कराया गया है, उससे क्षमा अहंकार गिराती नहीं है और बड़ा देती है। कैसे? हमसे कहा गया है कि ‘क्षमा का मतलब है कि दूसरे के अपराध को भूल जाओ। माफ़ कर दो।’ पर यह तो तुमने मान ही रखा है न, कि उसने अपराध किया? क्षमा करने में, तुम और बड़े हो गए। और यही हमसे कहा भी गया है कि ‘माफ़ करने में बड़ा ही बड़प्पन है।’ बड़प्पन किसका है? कौन है जो और बड़ा अनुभव करेगा? अहंकार ही तो है, तुम्हारा।

अब क्षमा की जो पूरी परिकल्पना है, वो इसलिए है ताकि अहंकार कम हो सके। लेकिन हम जिस क्षमा को पकड़ कर बैठे हैं, वो तो अहंकार को और बड़ा देती है। हम कहते हैं, “जा तुझे माफ़ किया।” ऐसे ही कहते हैं ना? “जा, तुझे माफ़ किया।” और जब भी कहा, ‘जा तुझे माफ़ किया’, तो कौन बड़ा हो गया? ‘मैं’। अब मैं सिंहासन पर हूँ। मैं ऊँचे पायदान पर हूँ। तू टुच्चा। तू इसी काबिल, कि तुझे माफ़ किया। तेरी हैसीयत क्या है? जा तुझे माफ़ किया। अरे तूने जो किया, तू उससे बेहतर कुछ कर ही नहीं सकता था। जा तुझे माफ़ किया। तू और करेगा क्या? तू तो है ही नालायक और कमीना। जा तुझे माफ़ किया। यह क्षमा ज़हरीली है, घातक।

यहाँ तक कि हमारे कविजन भी क्या बोल गए हैं की ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल होता।’ वो नहीं जो विषहीन, दंतहीन, विनीत और सरल होता। हमसे कहा गया है कि ‘सिर्फ उस सांप को क्षमा शोभती है, जिसके पास ज़हर होता है।’ अगर सांप सीधा, सच्चा, विनीत और सरल है, तो क्षमा उसको नहीं शोभती। यह पागलपन की बात है। पर यही सब बातें, हमें हमारी पाठ्य पुस्तकों में पढाई जा रही हैं। यह कविता हज़ारों-लाखों बच्चे, अपने स्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ रहे हैं।

हमसे कहा गया है कि ‘पहले ज़हरीले बनो, फिर माफ़ करना।’ ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल होता।’ ‘गरल’ माने? ज़हर। ‘भुजंग’ माने? सांप। कि पहले ज़हरीले बनो, फिर माफ़ करना। यह बात ज़हरीली है। सांप तो कम ज़हरीला होता होगा। पर यह बात ज़हरीली है। हमसे कहा गया है कि पहले ‘किंग-कोबरा’ बनो। बिलकुल किसी की छाती पर चढ़ जाओ, कि “आज तुझे काट लूंगा”। और फिर जब वो बिलकुल झुक जाये तुम्हारे सामने, तब उससे बोलो कि “जा तुझे, माफ़ किया”। यह कौन से माफ़ी है? यह बड़ी ज़हरीली माफ़ी है। तो क्षमा का यह अर्थ, बिलकुल नहीं है।

तो सबसे पहले तो क्षमा का यह अर्थ तो बिलकुल निकाल दो कि ‘जा तुझे माफ़ किया।’ यह नहीं क्षमा का अर्थ। क्षमा का यह अर्थ नहीं है बिलकुल, कि “तू अपराधी है और तेरे अपराध को मैं क्षमा करता हूँ।” क्षमा का अर्थ बिलकुल दूसरा है। बिलकुल अत्यान्तिक है। उसको अब समझेगें।

क्षमा का अर्थ है कि ‘कहीं कोई अपराध होता ही नहीं।’ समझना। बात थोड़ी चौंकाने वाली लगेगी, कि यह कैसी बात है? ‘कहीं कोई अपराध होता ही नहीं’। क्षमा का अर्थ है कि ‘अपराध होता ही नहीं।’ ‘कहीं कोई अपराध नहीं होता।’ कैसे?

एक आदमी सो रहा है। उसके सिरहाने, एक गिलास में शरबत रखा हुआ है। और सोते-सोते उसने हाथ मार लिया, और शरबत गिर गया। तो क्या तुम उस आदमी को सज़ा दोगे? वो सपने में है। वो सपने में तैर रहा है और हाथ-पांव चला रहा है। और उसने मार दिया हाथ गिलास पर, और गिर गयी गिलास। क्या उसको सज़ा दोगे? हर गलती मात्र बेहोशी, इसी सोने से निकलती है। जो जगा है, वो गलती करेगा नहीं। जो सोया है, उसको सज़ा नहीं दी जा सकती क्योंकि वो सोया हुआ है। सोये हुए को क्या सज़ा देनी है?

बात को समझिये। जो जगा है, वो तो गलती करेगा नहीं। तो उसकी सज़ा का सवाल ही नहीं उठता। उसने कोई अपराध किया ही नहीं। जो जग गया, वो अपराध नहीं कर सकता। और जो सोया है, उससे जो कोई चूक हुई, उसे अपराध करार नहीं दे सकते क्योंकि वो सोया हुआ था। अपराध कभी होता नहीं। बस इतनी सी बात हुई थी, कि व्यक्ति अचेत था। अचेत समझते हो? चैतन्य नहीं था। कान्शियेस नहीं था। इसमें अपराध कहाँ है? अपराध नहीं हुआ है। अपराध हुआ नहीं है। उसको सज़ा की ज़रूरत ही नहीं है। किसको सज़ा दे रहे हो? सोये हुए को, ना? सज़ा तो अब तुम तब दे रहे हो, जब वो जग गया। अब जगे हुए को क्यों सज़ा दे रहे हो? जो सपना देख रहा था, उसने शरबत का गिलास गिरा दिया। तुम सज़ा अब किसको दे रहे हो? जो सपना देख रहा है, उसको? या फिर जो जग गया उसको दे रहे हो?

‘तुम तो जगा कर के सज़ा दे रहे हो।’ ये पागलपन है, ना? पागलपन है, कि नहीं? अगर वह वास्तव में जग गया है, तो क्या करेगा? “अरे यार, शरबत गिर गयी। गिलास गिर गई। लाओ पोंछ दूं। लाओ कांच के टुकड़े इक्कठा कर लूं।” उसका जगना अपने आप में सबसे बड़ा प्रायश्चित है।

जागना ही प्रायश्चित है।

और कोई प्रायश्चित होता नहीं। जग गया, तो प्रायश्चित हो गया। अब अपराध बचा नहीं, तो माफ़ी किसकी? क्षमा का सवाल ही नहीं पैदा होता। अपराध तो गया। तुम जिनको देखो कि बड़े कुकर्मों में उतरे हुए हैं। समझ लेना साफ़-साफ़ कि इन पर क्रोध करने से कोई फायदा नहीं है।

ऐसा है कि कोई आदमी सोया हुआ है और सपने में गालियाँ दे रहा है। और तुम जगे हुए हो। एक आदमी सोया हुआ है, सपने ले रहा है और सपने में गालियाँ दे रहा है और तुम जगे हुए हो और खड़े होकर के उसको गालियाँ दे रहे हो। अब पागल कौन है? वो तो सोया हुआ है। उसकी क्या चूक? और तुम अपने जगे होने पर भी क्षमा का, गाली का, और सज़ा का विचार कर रहे हो। तो पागल तो तुम हुए ना? तुम्हें अधिक-से-अधिक उसकी मदद करनी चाहिए। और तुम्हें कुछ नहीं करना। सज़ा नहीं देनी। ना माफ़ करना है।

ना सज़ा देनी है, न माफ़ करना है। मदद कर सकते हो, तो कर दो। और सोये हुए कि क्या मदद की जा सकती है? कि उसको जगा दो। कि बहुत सो लिया। उठेगा कब? कब तक सपनों में जीता रहेगा? भ्रम में कब तक तेरा मन रहेगा? आँखें खोल, हकीकत को देख। पर हम यह करते नहीं। हमारा कुछ इस तरीके से चलता है कि दो तरह के लोग होतें हैं: एक, जो सोये हुए आदमी को सौ कोड़ों की सज़ा देते हैं। और वो सो रहा है और तुम उसको कोड़े बरसा रहे हो। कि ‘इससे बड़ा नालायक नही है। शरबत का गिलास तोड़ रहा है और गालियाँ दे रहा है।’ और लोग सोये हुए बहुत काम करते हैं। गिलास ही नहीं तोड़ते। तुमने सुना है ना, सीलीप वाकरस, जो सोये हुए में ही चल ही देते हैं? वो चल के कहीं पहुँच भी जाते हैं। उनको कहीं बड़े मान-सम्मान मिल जातें है। कई लोग सोते-सोते चलते जाते हैं, और शादी करके आ जाते हैं। पूरा परिवार पैदा कर देते हैं।

तुम्हें क्या लगता है कि सोया हुआ आदमी वो ही व्यक्ति है, जिसकी आँखें बंद हैं? खोल कर सोने वालों से दुनिया भरी हुई है। तुम्हें क्या लगता है कि तुम क्या कर रहे हो? आँखें खुली हैं, तो क्या जग गए हो? दुनिया ऐसे ही लोगों से भरी हुई है, जो आँखें खोल करके सोते हैं। वो सब काम सोते-सोते मज़े में हो रहे हैं। सोते-सोते चुनाव हो जा रहे है। सोते-सोते प्रधानमंत्री बन जा रहे हैं। सोते-सोते दो देश लड़ रहे हैं? और सोते-सोते लड़ाई बंद भी हो जा रही है? आपके सोते-सोते प्रेम भी हो जाता है और सोते-सोते तलाक भी हो जाता है। बच्चे आ जातें हैं। खानदान बन जाते हैं। करियर बन जाते हैं, सब हो जाता है। बड़े-बड़े आविष्कार हो जाते हैं सोते-सोते।

तुम यह ना समझना कि सोना कोई ऐसी घटना है, जो आसानी से पकड़ में आ जाएगी। ना? सोना बड़ा सूक्ष्म है। पकड़ में नहीं आता।

सिर्फ़ एक जगा हुआ आदमी देख सकता है कि सब सोए हुए हैं।

सोया हुआ आदमी, ‘यह कैसे जानेगा कि वो सोया हुआ है या बाकि लोग सोए हुए हैं।’ जब तुम सो रहे होते हो, तो तुम्हें क्या पता होता है कि आसपास पांच-सात और भी सो रहे है? पता होता है क्या? जब तुम सो रहे होते हो, तब तुम्हें यह भी पता होता है कि तुम सो रहे हो? ध्यान से जवाब दो। जब तुम सोये हुए होते हो, तब तुम्हें यह तो नहीं ही पता होता कि तुम्हारे आस-पास पूरी दुनिया सोई हुई है। जब तुम सोये हुए होते हो, तब तुम्हें यह भी नहीं पता होता कि तुम भी तो सोए हुए हो। मात्र जग कर के ही, यह दिखाई देता है कि यह दुनिया कितनी बेहोश है। अब बेहोशी की क्या सजा?

बेहोशी का तो एक ही प्रायश्चित है, क्या? ‘होश।’ वास्तविक क्षमा का अर्थ यह है कि “मैं तेरी कही हुई बात को, या फिर तेरे करे हुए कुकर्म को, गंभीरता से ले ही नहीं रहा।” क्षमा का अर्थ तो यह हो गया, जो आम तौर पर हम ले लेते हैं कि, “तूने जो करा, उससे मुझे चोट लगी। जा तुझे माफ़ करता हूँ। तूने मुझे चोट दी। मैं तुझे माफ़ करता हूँ।” ना। समझदार आदमी कहता है कि ‘तूने मुझे चोट दी ही नहीं।’ यह हुई वास्तविक क्षमा, क्या? “तूने मुझे चोट दी ही नहीं।” नकली क्षमा क्या हुई? “हाँ, तूने गलती करी। तूने मुझे चोट दी। तू अपराधी है। पर मैं तेरे अपराध को छोड़े दे रहा हूँ। क्योंकि मैं बड़ा हूँ। यही मुझे सिखाया गया है। यही उचित नीति है।” असली क्षमा क्या है? ‘तूने मुझे चोट दी ही नहीं।’

सोये हुए के कर्मों को गंभीरता से क्या लेना? उनसे क्यों चोटिल हो जाना? और जब चोट नहीं लगी, तो माफ़ी का क्या सवाल? यह असली माफ़ी है। बात समझे? असली माफ़ी यह नहीं है कि ‘तूने मुझे चोट दी। पर मैं बड़ा हूँ, इसलिए तुझे छोड़ दिया।’ असली बात यह है कि ‘मुझे चोट लगी ही नहीं। तू तो अभी बेहोश है।’ और बेहोश आदमी की बातों का और कर्मों का बुरा नहीं मानते।

कोई पागल आकर के तुम्हें गालियाँ दे रहा है, तुम क्या कहोगे, ‘जाओ माफ़ किया?’ तब एक नहीं, दो पागल हैं। एक गलियां रहा है खूब, और दूसरा वाला माफ़ किया। बोला ‘यह दो गाली और ले गरमा-गरम।’ बोला, ‘जा माफ़ किया।’ माफ़ क्या करना। वो पागल है। माफ़ क्या करना? वो बेहोश है।

‘माफ़ क्या करना?’ यह असली माफ़ी है। असली माफ़ी कहती है की ‘माफ़ करने को है ही क्या?’

यह याद रखोगे? असली माफ़ी क्या कहती है? ‘माफ़ करने को है ही क्या?’ पहली बात “तू बेहोश है।” दूसरी बात “मुझे चोट लगी ही नहीं। तेरी इतनी हैसियत नहीं कि तू मुझ को चोट दे सके। तू तो बेहोश है, बेटा। मैं जगा हुआ हूँ। और यह बात मैं, अहंकार में नहीं, करुणा में कह रहा हूँ।” करुणा जानते हो? करुणा कहती है कि “तू बेहोश है अब मैं तेरी मदद करूँगा, होश में आने के लिए।” अहंकार कहता है, “तू बेहोश है। जा माफ़ किया। छोड़ दिया। जा माफ़ किया।”

असली माफ़ी है कि उसका ‘असली प्रायश्चित’ कराया जाये। ‘असली प्रायश्चित’ क्या है, बेहोश आदमी का? कि ‘उसकी बेहोशी तोड़ दी जाये।’ वो होश में आ जाए। आ गयी बात समझ में? ‘तुमने हमें चोट दी ही नहीं।’ काहे की माफ़ी? कोई तुम्हें गाली दे और फिर बाद में आ करके बोले “मुझे माफ़ करना।” तुम बोलना “किस बात का? तेरी गाली हमें लगी ही नहीं। लगी होती, तो हम तेरी माफ़ी को स्वीकार करते। पर तूने मुझे जो कुछ बोला, उससे मुझे कोई चोट लगी ही नहीं। कोई घाव बना ही नहीं। तो माफ़ी कैसी?” माफ़ी स्वीकार करने का यह अर्थ हुआ कि ‘उसने तुम्हें चोट दी और तुम्हें चोट लग गई।’ तुम कहो “मुझे चोट लगी ही नहीं, तो माफ़ी कैसी?” यह असली माफ़ी है।

याद रखोगे? यह असली माफ़ी है। और यह असली माफ़ी, यहाँ ख़तम नहीं होती। असली माफ़ी में याद रखना, ‘करुणा शामिल है। मदद करने का भाव शामिल है।’ याद रहेगा? चलो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories