यह जगत तो लाभ का सौदागर है। वो आप से नहीं प्रेम करता; आपसे जो मिल रहा है उसे से प्रेम करता है। और इस बात का बड़ा कड़वा अनुभव आपको तब होता है जब आप देना बंद कर देते हैं। आप तो यही सोचते रह गए कि उस व्यक्ति को आप से प्रेम है। यह देखा ही नहीं कि आप से उसको मिल क्या-क्या रहा है।
और फिर ज़रा उम्र बड़ी, ज़रा आय घटी, दे पाने की क्षमता घटी, तो तिरस्कृत हो गए वृद्धाश्रम पहुँच गए। तब समझ में आया कि, ‘हम से नहीं प्यार था किसी को। सुविधाओं से प्यार था।‘