प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी, मेरी उम्र चौबीस वर्ष है और मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। मैं एक साथी महिला सहकर्मी के संग प्रेम प्रसंग में हूँ। मैं दलित वर्ग से आता हूँ और वह मुझसे ऊँची जाति की हैं। पर उन्हें शादी से कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब उन्होंने शादी की बात अपने घर में की तो उनके घर वालों ने साफ़ मना कर दिया और कहा कि किसी से भी शादी कर देंगे पर किसी एससी एसटी से नहीं।
आचार्य जी, मेरा प्रश्न है कि हम इतना आगे बढ़ चुके हैं शिक्षा में, विज्ञान में और समाज आगे बढ़ रहा है, जीवन स्तर सुधर रहा है फिर भी जाति को इतना महत्व क्यों?
आचार्य प्रशांत: उनके मम्मी पापा ने कहा, ‘हम शादी नहीं करेंगे।’
प्रश्नकर्ता: हॉं, जी।
आचार्य प्रशांत: तो आपने उनकी मम्मी को प्रपोज क्यों किया था? (श्रोता हॅंसते हैं।)
प्रश्नकर्ता: जी नहीं। मतलब हम देह बनकर ही जी रहे हैं। मतलब लोग बस यही चाहते हैं।
आचार्य प्रशांत: अरे! तो देह तो ठीक है पर मम्मी की देह क्यों? या पापा की देह? (श्रोता हँसते हैं।) पापा आकर बोल रहे हैं, ‘हम शादी नहीं करेंगे,’ माने आपने पापा से बोला होगा कि मुझसे शादी कर लो। बंधू, मैं सिर्फ़ ये नहीं कर रहा कि सबको हँसा रहा हूँ, बात का मर्म समझो। उनसे ब्याह करना था क्या तुमको? उनसे क्या पूछ रहे थे कि शादी कर लो कि नहीं कर लो?
प्रश्नकर्ता: नहीं। मुझे लगता है मैं ढ़ंग से बता नहीं पाया। मैं बात नहीं करने गया था, उन्होंने ही बात की थी।
आचार्य प्रशांत: जिन्होंने बात करी थी उन्हें मम्मी से करनी थी शादी? बिटिया को मॉं से शादी करनी थी, मॉं ने कहा हम शादी नहीं करेंगे, ऐसा था? तो ये तो टू टाइमिंग (दोहरा व्यवहार) हो गई न। प्यार तुमसे करती हैं, शादी अपनी मॉं से करना चाहती हैं।
प्रश्नकर्ता: और…
आचार्य प्रशांत: नहीं, तुम पहले समझो, और अभी कुछ नहीं। अगर वो प्यार तुमसे करती हैं तुम्हारे हिसाब से, तो मॉं से क्या बात करने गई थी?
प्रश्नकर्ता: मतलब जब उन्हें लगा कि मैं मतलब… मतलब मैंने उन्हें बता रखा था कि मैं नीचे समाज से हूँ, लेकिन उन्होंने कभी पूछा नहीं था इस बात को।
आचार्य प्रशांत: आपको बुरा नहीं लगा ये बोलते हुए कि आप नीचे समाज से हो? आप अभी मेरे साथ बैठे हो, आप जिस समाज से हो मैं भी उसी समाज का हूँ। आप कैसे किसी नीचे समाज से हो? कौन-सा समाज ऊॅंचा हो गया और किस आधार पर ऊॅंचा हो गया? और आप किस तरीके से आप नीचे समाज के हो गए?
मुझे ये सुनने में बुरा लग रहा है, आपको बोलते हुए बुरा नहीं लग रहा? आप पढ़े-लिखे सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हो, आप किस आधार पर किसी नीचे समाज से हो? आप भी मन में कहीं-न-कहीं कोई कैद लेकर बैठे हुए हो। आप जिनसे प्रेम करते हो वो भी कोई कैद लेकर बैठी हैं। आपके ऊपर कैद सामाजिक है, आप बोल रहे हो आप निचले वर्ग से हो। जिनसे आप प्रेम करते हो उनके ऊपर कैद पारिवारिक है, वो जाकर मम्मी और पापा को प्रपोज कर रही हैं। आप भी पढ़े-लिखे हो वयस्क हो, जिनसे आपका प्रेम है वो भी पढ़ी-लिखी हैं। इसमें समाज और वर्ग और जाति और परिवार ये सब कहाँ से आ गया? ये कौन-सा प्यार है?
मैं बहुत अव्यावहारिक बात कर रहा हूँ? मैं बहुत अव्यावहारिक बात नहीं कर रहा, मैं इंसान जैसी बात कर रहा हूँ। मैं कोई बहुत साहस की नहीं बात कर रहा हूँ, मैं सीधी-साधी, सरल, सहज बात कर रहा हूँ। मैं स्त्री-पुरुष की भी नहीं बात कर रहा, मैं दो इंसानों की बात कर रहा हूँ। एक इंसान आप हो, एक इंसान वो महिला होंगी, आप दोनों को आपस में क्या रिश्ता रखना है इसमें समाज कहाँ से आ गया? कोई भी और कहाँ से आ गया? भले ही मॉं-बाप हों, कोई हो।
मॉं-बाप ने आपसे पूछकर शादी की थी? तो आप भी अब एडल्ट हो वो भी एडल्ट हैं, एक एडल्ट दूसरे एडल्ट से क्या पूछने जा रहा है? क्यों पूछने जा रहा है? हॉं, मित्रवत सलाह माँगे तो अलग बात होती है। मॉं-बाप का और औलादों का इतना अच्छा रिश्ता हो कि औलाद खुद जाकर के माँ-बाप से कहे कि मुझे आपसे बैठना है, बात करनी है, सलाह दीजिए। सलाह अलग बात होती है। चौबीस-साल, बाईस-साल, तीस-साल, पैंतीस-साल की औलादों की ज़िंदगी पर चढ़कर उनकी गर्दन थोड़े ही दबाई जाती है। चौबीस-पचीस साल की लड़की को ये थोड़े ही बोलोगे कि वो जो लड़का है वो किस वर्ण का है, जात का है, ये देखकर के तुम उससे रिश्ता रखो। तो पढ़ाया किसलिए था फिर लड़की को?
गलती ये माँ-बाप की नहीं है। आप भीतर क्यों डर लेकर के बैठे हुए हो? और आपने एक डरी हुई ही लड़की भी पकड़ी है। आशिकी करो तो इश्क में थोड़ी मज़बूती रखो। फिर ये सब रोना-धोना नहीं होना चाहिए कि मम्मी प्रपोजल नहीं मान रही है।
प्रश्नकर्ता: और उनकी तरफ़ से तर्क ये आता है कि… मतलब ये मम्मी-पापा का कुछ भी नहीं, ये उनका तर्क है कि अगर रहेंगे तो भारत के बाहर रहेंगे। मैंने उनसे कहा कि भारत के बाहर भी यही चीज़ें आपको अगर झेलनी पड़ी, उस केस में आप क्या करेंगे? मतलब ऐसा तो है नहीं कि आप भारत से निकल गए तो सब सही हो गया।
आचार्य प्रशांत: अरे! अंदर-बाहर तो तब होगा न बेटा जब पहले तुम उसके साथ रह पाओगे। ये तो तुम और वो देवी जी और जिस देश में जाना चाहते हो उनका दूतावास, उनकी वीज़ा प्रक्रिया ये सब लोग मिलकर तय करेंगे कि किसी देश में बाहर रह पाते हो कि नहीं। वो तो बहुत बाद की बात है।
जो अभी की बात है वो तो ये है कि तुम्हारा तो रिश्ता ही टूट रहा है। और कितने हल्के आधार पर टूट रहा है, जैसे हवा का झोंका आए और तुम कहो कि मेरी बड़ी मज़बूत चट्टान है, उसमें दरार पड़ जाए। कोई बाल-विवाह करने जा रहे हो? चौबीस-साल के तुम, ऐसे ही वो भी होंगी चौबीस, बाईस, पचीस कुछ उम्र होगी। इतने बड़े-बड़े हो गए और ये कैसे मुद्दे पकड़कर बैठे हो? और इतनी शिक्षा है। कह रहे हो कि वो कलीग (सहकर्मी) है लड़की, तो वो भी कुछ इंजीनियर होगी, कुछ करके डिप्लोमा, एमबीए कुछ कर रखा होगा।
प्रश्नकर्ता: मतलब मैं उनको यही समझाता हूँ कि हम सब मिट्टी से ही उठे हैं और मिट्टी में ही मिल जाएँगे। लेकिन, मतलब ये बात लोग समझते नहीं हैं। समझते क्यों नहीं हैं, मतलब ये मैं उनके पर्सपेक्टिव (दृष्टिकोण)...
आचार्य प्रशांत: बेटा, ये बातें आशिकी इनीशिएट (शुरू) करने से पहले क्यों नहीं करी? जब लड़की अपने लिए चुनते हो, ये सब जवान लड़कों से बोल रहा हूँ, तब पहले क्यों नहीं थोड़ा सा बोध की, विज्डम की, गहराई और समझदारी की बातें कर लेते?
शुरू में ये बातें कर लो तो जो फिज़ूल की आशिकी है, हो सकता है वो परवान ही न चढ़े। तब तो जाकर के बोलते हो, ‘वाह'। वो ख़खार रही है, ‘खु-खु,’ और आप कहते हो, ‘आपका हैंकरचीफ़ कितना सुंदर है! मैं चूम सकता हूँ?’ बालों में जुऍं होंगे, ‘क्या मैं आपका रिबन सूॅंघ सकता हूँ?’
तब तो आशिकी की शुरुआत तो इन बातों में करते हो, ‘रूमाल और रिबन, मोजे।’ देखो, सीधे सिर से मैं पाँव पर आ गया, बीच का कुछ नहीं बोल रहा। (एक श्रोता हँसने लगता है) दाॅंत मत दिखाओ। जब लड़की दिखती है और लड़कियों से बोल रहा हूँ, जब लड़के दिखते हैं तो कभी कोई ढ़ंग की बात करते हो?
ढ़ंग की बात कर लो तो बोल तो रहा हूँ, ज़्यादातर रिश्ते शुरू ही न होने पाएँ। दोनों पढ़े-लिखे हो, दोनों सॉफ़्टवेयर में हो, थोड़ी कोडिंग की ही बात कर लेते। संभावना तो ये है कि जिस पर तुम्हारा दिल आ गया उसको कोई कोड नहीं आता। उसकी सारी डिकोडिंग हो जाती तुम्हारे सामने। अब समझाने से क्या होगा! हम सब मिट्टी हैं, लो शून्यवाद पढ़ो, आचार्य नागार्जुन का माध्यमिक मार्ग। यहाँ पता ये चल रहा है कि वो जाकर मम्मी को प्रपोज कर रही है।
अरे! आशिक छोड़ दो ग्राहक भी इतनी समझदारी जानता है कि जिस चीज़ की ओर आकर्षित हो रहा है, पहले उसको थोड़ा परखता है। या ज़िंदगी और आशिकी और रिश्ते इतनी सस्ती बात होते हैं कि कहीं भी जाकर के बंध जाओगे? थोड़ा भी प्रयोग, परीक्षण नहीं करोगे?
ये अच्छे से समझ लो। आपका किसी से प्यार का दावा हो और वो व्यक्ति अभी भी दुनिया की ओर देखता हो, आज्ञा, अनुमति, इज़ाजत लेने के लिए, तो ये प्यार-व्यार कुछ नहीं है। ये तो सहूलियत का सौदा है। ‘पप्पा एलाऊ कर देंगे तो मैं यस बोल दूँगी। पप्पा की प्रॉपर्टी भी तो है।’
पप्पा भी जब रोकना चाहते हैं तो यही तो बोलते हैं, ‘हॉं, जा कर लो उस लड़की से शादी, पर आज के बाद इस घर में कदम मत रखना।’ जहॉं उन्होंने बोल दिया कि मैं तुम्हें अपनी ज़ायदाद से बेदखल करता हूँ तहाँ लड़की-बड़की सब हेरा जाती है। एकदम भूत दिमाग से उतर जाता है। होता है कि नहीं?
पप्पाओं के पास भी यही पारंपरिक नुस्खा है। बेटे पर आशिकी चढ़ी हो, बस इतना बोल दो कि तुझे अपने घर और ज़ायदाद से निष्कासित करता हूँ, वो तुरंत लड़की को बोलेगा, ‘यू सी, यू बेटर नो, वी शुड लुक फॉर आवर सेपरेट वेस। लेट्स मूव ऑन।’ (देखो, तुम्हें अच्छे से पता है हमें अपने अपने रास्ते अलग देख लेने चाहिए। हम अलग हो जाते हैं।)
पचास तरफ़ का बटा हुआ प्यार करोगे तो धोखा नहीं खाओगे तो क्या खाओगे? वो आपको मुँह कैसे दिखाती होगी, ऑफ़िस में तो मिलती होगी? आपके सामने खड़ी होकर बोले, ‘यू नो पप्पा आज भी नहीं मान रहे।’ शर्मिंदगी की बात नहीं है?
तुम जिन लबों से आज ये बात कर रही हो उन्हीं से कभी तुमने आशिकी के खूबसूरत अल्फाज़ बहाए थे। और उन्हीं होंठों से आज क्या बोल रही हो? ‘यू सी पप्पा नहीं मान रहे।’ उन्हीं होंठों को चूमने को एक दिन तुम बेताब हो रहे थे, उन्हीं होंठों से आज वो बोल रही है, ‘यू नो मेरे पप्पा को तुम्हारी कास्ट पसंद नहीं है।’ और तुम कह रहे थे, ‘ये होंठ नहीं हैं शहद के प्याले हैं।’ और शहद के प्यालों से आज गू झर रहा है।
मैं आहत हुआ हूँ, इस बात से कि आपने बोल दिया कि नीचा समाज। हम कौन-सी शताब्दी में जी रहे हैं? और भेदभाव सबसे बुरा तब हो जाता है जब आत्मसात कर लिया जाता है।
कोई दूसरा आकर आपको नीचा बोल जाए ये बुरी बात है, उससे ज़्यादा बुरी बात तब है जब आप अपने दिल में इस ख़याल को पकड़ लें कि आप नीचे हैं।
कैसे नीचे हो गए? आप बोध श्रृंखला में हमारे साथ हैं। ज्ञानियों ने, संतों ने देह के जन्म के आधार पर कभी किसी को नीचा-ऊँचा माना है क्या? तो फिर!
प्रश्नकर्ता: जी, वो एक उनकी तरफ़ से तर्क था, उसको मैं बोल रहा था मैं ये अपने…,
आचार्य प्रशांत: जो लड़की ऐसा तर्क बोल भी सकती हो, वो आपके लायक नहीं है फिर। आप बच गए।
भला हुआ मोरी गगरी फूटी, मैं पनिया भरन से छूटी।।
जो लड़की अपने प्रेमी से जाकर ये बोल सकती हो कि मेरे पिताजी तुम्हारी जात को पसंद नहीं करते, वो लड़की क्या किसी की जीवनसाथी बनेगी। या वो लड़का, कोई भी।
दोनों तरफ़ की बात है।
ये जो जात वाले होते हैं इनके तो बहुत तरह के तर्क होते हैं। ये तो ये भी बोलते हैं कि खून नीचा है, ये तो ये भी बोलते हैं कि शरीर से गंध आती है। जिसका खून ही मिश्रित हो, जिसके शरीर से गंध आती हो, फिर उनकी लड़की उस लड़के के साथ कैसे सो लेगी? बच्चे कहाॅं से आ जाऍंगे फिर? बच्चों में तो खून-वून सब मिक्स ही हो जाता है, क्रोमोजोम ही मिक्स हो रहे हैं। और बात मात्र स्वाभिमान की नहीं है, बात सत्य की है। क्या आप जानते नहीं कि ये सब मूर्खता की बातें हैं? शारीरिक और जन्मगत उच्चता या श्रेष्ठता एकदम व्यर्थ की बात है, आप जानते हो न।
ये बहुत सीधी-साधी बात है न, वैज्ञानिक बात है न। तो अगर कोई लड़का या लड़की इन सीधी-साधी वैज्ञानिक बातों को भी पर्याप्त सम्मान न देता हो, तो आप उसके साथ ज़िंदगी बिताना ही क्यों चाहते हो?
प्रश्नकर्ता: जी, इसमें एक प्रश्न और है मेरा। जैसे कि वो लोग काफ़ी ज़्यादा पूजा-पाठ भी करते हैं। मतलब, दे आर लाइक पूरा हर दिन उनके घर में पूजा-पाठ होता है, मंत्र का उच्चारण होता है, सब होता है। लेकिन पूजा का मतलब तो ये है न कि हम खुद को, अपने ईगो को कम करें। मतलब धर्म का मतलब यही है। आप कोई संसार में कोई वो नहीं हो कि आप भेजे गए हो।
आचार्य प्रशांत: आप सब जानते हो। आप बहुत समझदार हो, ये समझदारी तब कहाँ गई थी जब उस लड़की के साथ प्रेम-प्रसंग शुरू कर रहे थे? तब ये बातें क्यों नहीं करी?
प्रश्नकर्ता: जी, मैंने की थी। उनकी तरफ़ से आया था कि मुझे कोई दिक्कत नहीं है।
आचार्य प्रशांत: अब कोई दिक्कत नहीं है तो माॅं-बाप बीच में कहाँ से आ गए? ये बात भी क्यों नहीं करी तब कि माॅं-बाप अगर बीच में आएँगे तो बोलो क्या करोगी? ये बात करी थी? क्यों नहीं करी थी? कितने साल का अफेयर है?
प्रश्नकर्ता: एक साल।
आचार्य प्रशांत: एक साल समय लगाया, मन लगाया, विचार लगाया शायद कुछ पैसा भी लगाया हो, सब व्यर्थ गया न? जिस रास्ते पर चल रहे हो, थोड़ा सा टटोल लेना चाहिए। आकस्मिक आवेग में किसी के ऊपर निवेशित नहीं हो जाना चाहिए। और इसको अपनी गरिमा की बात समझो। यहाँ जवाब देना सीखो। महाज्ञानी थे अष्टावक्र। पर उनके ऊपर भी जब लोग हँस पड़े थे उनके शरीर को देखकर के, तो उन्होंने भी एकदम व्यंग्यात्मक जवाब दिया था। उन्होंने ये नहीं कह दिया था कि छोड़ो, माफ़ कर दो इनको।
द्वेष मत रखो, हिंसा मत करो लेकिन कुछ बातें गरिमा की हैं, उनको नहीं बर्दाश्त किया जाता।
हर बात को बर्दाश्त कर लेना और कहना, ‘नहीं छोड़ दो, नादान है। इसको कुछ नहीं बोलो। जो भी बोल रहा है बोलने दो।’ ये तुम्हारे डर का भी तो सूचक हो सकता है न। या ये कहोगे कि अष्टावक्र ने जवाब दे दिया था तो ये तो उनका इमोशनल रिएक्शन था।
मैं किस प्रकरण की बात कर रहा हूँ याद है न? राजा जनक की सभा में गए थे। और शरीर से टेढ़े-टपरे थे। कुछ जन्मगत दोष था उनमें, ठीक वैसे जैसे जाति जन्मगत होती है। जैसे जाति जन्मगत होती है न, वैसे ही उनके कुछ दोष था। तो वहाँ पर गए और वो ज्ञानियों की सभा थी वहाँ।
एक तो इनकी उम्र कम थी और ऊपर से शरीर उल्टा-पुल्टा था, चाल टेढ़ी-मेढ़ी थी। वहाँ जो बैठे थे इनको देखकर लगे हँसने कि ये आया है। तो अष्टावक्र और ज़ोर से हँसे। वो सब हँस रहे थे, वो और ज़ोर से हँसे। और वापस मुड़कर जाने लगे, तो सभा में बिल्कुल सन्नाटा खिंच गया। जनक ने पूछा, ‘अरे! क्या, कैसे आए कैसे चले?’ बोले, ‘नहीं, मुझसे गलती हो गई थी इसलिए वापस जा रहा हूँ। आया, यही गलती कर दी।’ सन्नाटा और गहरा। जनक ने पूछा, ‘मतलब?’ बोले, ‘मतलब ये कि मुझे लगा कि ये सूक्ष्म ज्ञानियों की सभा है। पर ये तो स्थूल खाल के सौदागरों की सभा है। मेरी गलती कि मैं आ गया यहाँ पर। मैं ज्ञानी सोचकर आया था, ये तो चर्म के सौदागर हैं।’
अष्टावक्र जैसे ज्ञानी ने भी जवाब दे दिया। बोले, ‘कुछ बातों को बर्दाश्त नहीं किया जाता, गरिमा की बात है। जवाब दूँगा और फिर छोड़कर वापस जाऊॅंगा। लेकिन वापस जाने से पहले तुम्हारे मुँह पर तुमको सच्चाई बताकर जाऊॅंगा। बदला नहीं ले रहा हूँ पर हक़ीकत को छुपाऊॅं भी क्यों? जो सच्चाई है वो बोलकर जाऊॅंगा।’
चौबीस के ही हो, पहली बात तो तुम्हें करना क्या है अभी से ब्याह करके? अच्छा है तुम्हारे विचार आ रहा है। तुम्हारे तो आ नहीं रहा उसके आ रहा है, भारत से बाहर जाने का। करना तो बाहर ही चले जाना, मुझे इस देश की आबादी नहीं और बढ़वानी है। चौबीस के हो, अभी तो ठीक तरीके से शरीर भी नहीं विकसित हुआ है। दुनिया देखो, समझो, खेलो-कूदो, जिम जाओ, पढ़ो-लिखो; किन चक्करों में पड़ रहे हो? आशिकी! वो भी किससे? पता नहीं।
ये चौबीस में ही अपने आप को एडल्ट मान रहे हैं, हमारे यहाँ चौंतीस-चौंतीस वाले बच्चे मेरी गोद में बैठते हैं, बताओ। हैं भाई! उम्र बताओ अपनी? (स्वयंसेवी से)
श्रोता: बत्तीस।
आचार्य प्रशांत: बताओ! अभी सत्र खत्म होगा, एकदम खट से गोद में बैठेगा। तुम चौबीस में ही शदिआने निकल पड़े। विज्डम लिट्रेचर पढ़ा? कुछ भारत भ्रमण करा? कुछ विश्व भ्रमण करा? वो भी कंपनी ने भेज दिया होगा इसलिए चले गए होगे।
प्रश्नकर्ता: नहीं, मतलब मैं खुद से भी घूमा हूँ।
आचार्य प्रशांत: कहाँ गए थे?
प्रश्नकर्ता: हिमालय एरिया में थोड़ा ज़्यादा अच्छा लगता है मुझे।
आचार्य प्रशांत: अरे यार! ये नैनीताल चले आए, बता रहे हिमालय घूमे। वो हिमालय नहीं होता।
प्रश्नकर्ता: जी।
आचार्य प्रशांत: जाओ दुनिया देखो अच्छे से, कम-से-कम बीस साल (श्रोता हँसते हैं)। उसके बाद भी अगर मन करे और तन कहे तो कर लेना शादी। मैं, मैं तो शादी के खिलाफ़ हूँ ही नहीं, सब जानते हैं। मैं बस इतना कहता हूँ कि पहले पर्याप्त अनुभव ले लो।
प्रश्नकर्ता: जी।
आचार्य प्रशांत: देखो, फिर बात सिर्फ़ हँसने की नहीं है सच पूछ रहा हूँ, चौबीस की उम्र में तुम्हें क्या पता है ऐसा कि तुम ज़िंदगी के अहम फ़ैसले लेने जा रहे हो?
प्रश्नकर्ता: फ़ैसला नहीं ले रहे थे। मतलब, उनको जब थोड़ा सा एहसास पता नहीं कैसे हुआ, तो उन्होंने ये बात स्टार्ट की। हमारा प्लान तो अभी चार साल तक तो नहीं था।
आचार्य प्रशांत: बीच में भांजी किसने मारी?
प्रश्नकर्ता: उन्होंने।
आचार्य प्रशांत: चार साल बाद क्या करना है इसकी तैयारी तुमने बाईस-तेईस की उम्र में ही शुरू कर दी? इतने में तो तुम इंटीग्रेटेड मास्टर्स या पीएचडी कर लो। बुरा मत मानो। भावनाओं को नहीं आहत कर रहा हूँ। तुम्हें लग रहा हो कि मेरा लव अफेयर है न, इसलिए सब हँस रहे हैं। बात उसकी नहीं है। पाँच साल बाद तुम खुद हँसोगे अपने ऊपर। थोड़ा ज़िंदगी को देखोगे, किताबों को पढ़ोगे, दुनिया घूमोगे, तो खुद कहोगे कि ये मैं क्या करने जा रहा था? मैं कहाँ फँसने जा रहा था?
ये सब बेटा, ये उम्र के, शरीर के संयोग होते हैं, खेल होते हैं। इनको इतनी गंभीरता से नहीं लेते। और खेल को खेल जैसा रखते हैं, खेल अगर हमारी गरिमा और मर्यादा ही भंग करने लग जाए तो खेल चालू थोड़े ही रखेंगे।
किसी के साथ खेलने गए हो और वो तुम्हें गाली पर गाली दिए जा रहा है, तो क्या खेलते रहोगे उसके साथ? मैं नहीं कह रहा तुम भी पलटकर गाली दो, पर कम-से-कम उस खेल को छोड़ दो। ठीक है?
प्रश्नकर्ता: जी।
आचार्य प्रशांत: पढ़िए, लिखिए, ज़िंदगी को समझिए, मस्त रहिए। ज़िम जाइए, शरीर बनाइए, दुनिया घूमिए। तरह-तरह के लोगों से मिलिए। इतना कुछ है सुंदर दुनिया में जानने को, समझने को, जीवन को समृद्ध बनाइए। ठीक है?
ये लड़का-लड़की ये सब तो शरीर की बातें हैं, ये लगा ही रहता है। इन पचड़ों में फँसोगे तो सारी ऊर्जा, सारा समय यही खा जाएँगे। और कभी कोई मिल गई ऐसी जो योग्य हो, तुम्हारी गरिमा भी रखती हो, प्रेम के लायक भी हो, तो उसके साथ बंध जाना फिर।
उसमें कोई हर्ज़ नहीं। हड़बड़ी मत करो।