कितना कीमती है तुम्हारा समय? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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कितना कीमती है तुम्हारा समय? || नीम लड्डू

तुम वही हो न जो रात में टिकटॉक पर बैठते हो और दो घण्टे लगा देते हो सोने से पहले? ये तुम्हारे समय की कीमत है! तुम्हारे समय की कीमत होती, तो तुम सोशल मीडिया पर इतना समय कैसे लगा रहे होते? तुम्हारे समय की कीमत होती तो तुम अपने बाबू-सोना से ‘थाना-थाना’ कैसे कर रहे होते चार-चार घण्टे तक? तुम टीवी चैनल लगा कर के व्यर्थ चीज़ें देखते रहते हो, कभी न्यूज़ चैनल लगाया, कभी नेटफ्लिक्स लगी है और उस पर एक-से-एक बेहूदगी तुम देखे जा रहे हो और यह घण्टों-घण्टों, दिनों-दिनों, हफ़्तों-हफ़्तों चल रहा है। यह तुम्हारे समय की कीमत है! लेकिन जब ट्रेन में और फ्लाइट में चुनना होता है, तुम कहते हो, “हम तो इतने बड़े आदमी हैं कि हमारे एक घण्टे की बहुत कीमत है, हमें तो फ्लाइट से जाना है!”

तुम्हारे घण्टे की अगर कीमत है, तुम्हारे समय की अगर कीमत है, तो वह बात तुम्हारी ज़िंदगी के अन्य पक्षों में क्यों नहीं दिखाई दे रही? फ्लाइट का टिकट तुम सिर्फ़ इसलिए अफ़ोर्ड कर रहे हो बेटा क्योंकि वो सस्ता है। उस पर एक ज़बरदस्त ग्रीन-टैक्स (ग्रीन-कर) लगना चाहिए, वह ग्रीन-टैक्स लग गया होता तुम फ्लाइट पर बिलकुल नहीं चलते, तब तुम बिलकुल हँसते-हँसते राज़ी-खुशी जाकर ट्रेन में या बस में बैठ जाते।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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