किसी को सभी मूर्ख बनाते हों तो? || (2018)

Acharya Prashant

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किसी को सभी मूर्ख बनाते हों तो? || (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक महिला ने आपसे कुछ दिनों पहले प्रश्न किया था कि – “मेरे घर के लोग मुझे परेशान करते हैं, क्या करूँ?” आपने उन महिला को जवाब दिया था कि – “और भी लोग हैं, आपको ही परेशान करने क्यों आते हैं?”

हमारे जीवन में भी कई बार ऐसे पल आते हैं जहाँ लोग परेशान करने आते हैं। क्या ये मौका हम ही उन्हें दे देते हैं, जिससे उनमें ये हिम्मत आ जाती है?

आचार्य प्रशांत: बात हिम्मत की भी नहीं है। बात मुनाफ़े की है।

सड़क पर एक हॉकर घूम रहा है, खुदरा, छोटी चीज़ों का विक्रेता। और सड़क पर बहुत लोग आ-जा रहे हैं। वो किसको पकड़ता है? वो किसके पीछे-पीछे दौड़ता है? मान लीजिए उसके पास जो माल है, वो सस्ता है, नकली है, घटिया है, पर फिर भी वो तो बेचने की ही कोशिश कर रहा है। उसे तो अपना सीमित, व्यक्तिगत स्वार्थ ही दिख रहा है। पर अपनी उस नकली चीज़ को बेचने के लिए, वो किसके पास जाकर के ललचाता है? वो किसको झाँसा देते हैं? क्या सबको? नहीं। वो भी परख रहा है कि यहाँ पर कौन है जो बुद्धू बन जाएगा।

तो अगर आप ये कहते हैं कि लोग आपको बार-बार आकर बुद्धू बना जाते हैं, तो आप साफ़-साफ़ समझ लीजिए कि आप कुछ ऐसा कर रहे हैं, आप कुछ ऐसा जी रहे हैं, जिससे पूरे ज़माने को खबर लग रही है कि आपको बुद्धू बनाया जा सकता है।

देखा है न, खिलौने बेचने वाला होगा, बिंदिया बेचने वाला होगा, चश्मे बेचने वाला होगा, ये सब अपना सामान बेचने के लिये सड़क पर घूमते रहते हैं, पर ये सबके पास नहीं जाते। ये भी ख़ूब जानते हैं कि किसको झाँसा दे सकते हैं, उसी के पास जाते हैं। तो ऐसा नहीं है कि बाकियों से ये डर गए।

तो बात हिम्मत की नहीं है, कि वो उनसे डर गए इसीलिए उनके निकट नहीं गए।

वो उनके निकट इसीलिए नहीं जाएँगे क्योंकि वो उनको समझदार देखेंगे, होशियार देखेंगे।

वो उनके निकट इसीलिए नहीं जाएँगे क्योंकि उनको पता है कि वहाँ उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा।

उनको पता है कि उनके पास जाकर वो बेवक़ूफ़ नहीं बना पाएँगे।

तो उनके पास जाकर वो व्यर्थ की बात करेंगे ही नहीं।

इसी तरीके से, अगर आपको बहुत सारे ऐसे सन्देश आते हों, फ़ोन कॉल आते हों, कि बहुत सारे लोग आपके द्वार पर दस्तक देते हों, जो आपको पता है कि यूँही हैं, सतही, निकृष्ट कोटि के, व्यर्थ का वार्तालाप, व्यर्थ का प्रपंच करने वाले, तो आपको अपने आप से ये प्रश्न पूछना चाहिए, “उन्हें मुझमें ऐसा क्या लगता है कि वो मेरी ओर खिंचे चले आते हैं?” क्योंकि बुद्धों की ओर तो वो जाएँगे नहीं।

और ऐसा नहीं है कि उन्हें कबीर से डर लगता है। वो कबीर की ओर इसलिए नहीं जाएँगे क्योंकि उन्हें पता है कि यहाँ मेरी दाल नहीं गलेगी। कबीर के पास गए, तो पता है कि यहाँ दाल नहीं गलेगी। और आपकी ओर आ जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि दाल भी गलेगी, और छौंक भी लगेगा।

एक कहानी है।

एक आदमी की आँख में कुछ तकलीफ़ हुई, तो वो जानवरों के चिकित्सक के पास चला गया। वो जो चिकित्सक था, उसने आँख में गधे की दवाई डाल दी। क्या किया? गधे की दवाई जो होती है, तगड़ी खुराक वाली, वो डाल दी। तो जो होना लाज़िमी था, वही हुआ। आँख गई फूट। जो थोड़ा बहुत दिखाई देता था, वो भी दिखना बंद हो गया।

ये भागे-भागे गए नगर के न्यायाधीश के पास, और उससे कहा, “देखिए बड़ा अन्याय हुआ।” न्यायाधीश ने फ़ैसला सुनाया। उसने कहा, “तुम्हें इस अदालत की ओर से कोई राहत नहीं दी जाएगी।” तो वो आदमी बोला, “क्यों? मेरे साथ अन्याय हुआ है। मेरा नुक़सान हुआ है।”

न्यायाधीश ने जवाब दिया, “तुम्हें राहत इसलिए नहीं दी जाएगी, क्योंकि ये अदालत इंसानों के लिए है, पशुओं के लिए नहीं। तुम गधे के चिकित्सक के पास गए, क्या गधे के चिकित्सक ने तुम्हें न्यौता भेजा था? गधे के चिकित्सक के पास जाकर तुमने पहले ही दिखा दिया कि इंसान तो तुम हो ही नहीं। तुम क्या हो? गधे!"

“और तुम गधे के चिकित्सक के पास यदि गए, तो उसमें उस चिकित्सक की कोई ग़लती है ही नहीं। तुम गए थे। तुम्हारी ऐसी हालत है कि तुम वहाँ खिंचे चले गए। तुम गधे के चिकित्सक के पास गए, तो उसने तुम्हें गधा ही समझा। क्योंकि उसके पास कौन आने चाहिए? गधे ही आने चाहिए। तो उसने तुम्हें गधा जानकर, तुम्हारी आँख में गधे की दवाई डाल दी। तो उसने इसमें क्या ग़लत किया?”

तो हम ये कहें कि ज़माने ने हमारे साथ बुरा किया, उससे पहले हमें ये भी तो देखना होगा कि हम कैसे हैं। क्योंकि ज़माना सबका तो बुरा नहीं कर रहा।

वो जो पशु चिकित्सक था, क्या वो सबकी आँख फोड़ रहा था? वो सबकी तो आँख नहीं फोड़ रहा न। सवाल यह है कि तुम ऐसे क्यों हो जो वहाँ जाकर फँसे? वो तुम्हारे घर में घुसकर तो तुम्हारी आँख नहीं फोड़ रहा था। तुम ऐसे क्यों हो जो वहाँ जाकर फँस गए?

तो न्याय की दृष्टि से कहानी को मत देखिए। कहानी का मर्म समझिए।

बड़ी मज़ेदार कहानी है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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