किस पर भरोसा करें, किस पर नहीं?

Acharya Prashant

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किस पर भरोसा करें, किस पर नहीं?

प्रश्नकर्ता: सर नमस्ते, मुझे ये समझने में बड़ी समस्या होती है कि किस पर भरोसा करूँ और किस पर न करूँ।

आचार्य प्रशांत: किसी पर भी भरोसा करने का निर्णय तुम ही करोगे न? और भरोसा नहीं करने का भी निर्णय तुम ही करोगे। तो अंततः तुमने भरोसा किस पर किया? अपने आप पर ही करा न। अपने आप पर इतना भरोसा क्यों करना चाहते हो, ज़रुरत क्या है? ज़रुरत क्या है बार-बार सुरक्षा की माँग करने की? भरोसा सुरक्षा का आश्वासन होता है।

भरोसे का यही मतलब होता है कि, "इस व्यक्ति के साथ या इस स्थिति में या इस वस्तु के साथ मुझे पुनर्विचार नहीं करना पड़ेगा। मैं आश्वस्त हो गया, मेरी खोज का अंत हो गया। मुझे शंका नहीं करनी पड़ेगी, मुझे कई तरह के विकल्पों को तौलना नहीं पड़ेगा।" ये बात भरोसा कहलाती है। भरोसा ऐसा है जैसे कोई बोले कि, "मुझे आख़िरी चीज़ मिल गई है, सत्य मिल गया है।" बात समझ में आ रही है?

भरोसे की ज़रुरत है किसलिए? लोग कैसे भी हो सकते हैं, उनको तुमने इतनी ताक़त क्यों दे दी कि उनसे तुम्हें डरना पड़े या उनसे माँग रखनी पड़े या उनको लेकर के कई तरीके के हिसाब-किताब गणित करने पड़ें? कोई बहुत कमज़ोर आदमी होता है उसको भरोसा चाहिए होता है कि कल मौसम ठीक रहेगा। ताकतवर आदमी को क्यों भरोसा चाहिए कल के मौसम के बारे में?

मौसम जैसा भी होगा देखा जाएगा। सर्दी भी हो सकती है, गर्मी भी हो सकती है, धूप-छाँव कुछ भी हो सकती है। भरोसे की बात ही बहुत अर्थ रखती नहीं है इन दुनिया में। फिर से मूल बात पर वापस जाओ — किसी पर भी भरोसा तुम करोगे तो वास्तव में अपने भरोसा करने की क्षमता पर ही तुम भरोसा कर रहे हो। और वो चीज़ भरोसे लायक है नहीं। क्योंकि कोई आदमी किसी आदमी के बारे में कितना जान सकता है? और किसी के बारे में अभी तुम जान भी गए शत-प्रतिशत तो तुम्हें कैसे पता है कि वो आदमी कल नहीं बदल जाएगा?

तो तुम भरोसे के भरोसे रहो ही मत, तुम राम भरोसे रहो। वो अच्छा भी हो सकता है बुरा भी हो सकता है, तुम ऐसे हो जाओ कि न उसकी अच्छाई तुम्हें प्रभावित कर पाए न उसकी बुराई तुम्हें प्रभावित कर पाए। वो काला भी हो सकता है, वो गोरा भी हो सकता है। वो सही भी हो सकता है, वो ग़लत भी हो सकता है। वो ठंडा भी हो सकता है वो गरम भी हो सकता है। तुम ऐसे हो जाओ कि दुनिया में जो कुछ भी चल रहा हो वो तुम पर एक सीमा से आगे प्रभाव डाले ही नहीं।

ये दो बहुत अलग-अलग बातें हैं। एक बात ये है कि, "मैं बिलकुल जान गया हूँ कि वो इंसान कैसा है। और चूँकि मैं जान गया हूँ कि वो इंसान कैसा है तो इसीलिए अब मैं उसके चाल-चलन और बर्ताव के ख़िलाफ़ अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर सकता हूँ।" एक ये बात है कि, "मैंने जान लिया है कि ये आदमी भरोसे के काबिल है या नहीं, मैंने बिलकुल इस आदमी को पढ़ लिया है, मैं इसके मन के अंदर घुस गया हूँ, मैंने इसकी कुंडली पूरी पकड़ ली है।" एक ये बात है।

और दूसरी बात ये है, "मैं कुछ नहीं जानता इसके बारे में। जो थोड़ा-बहुत मुझे पता भी है इसके बारे में उसका भी कोई ठिकाना नहीं क्या पता कल को वो चीज़ बदल ही जाए। लेकिन मुझे एक बात पता है कि ये आदमी जैसा भी है मुझे अंतर क्या पड़ना है! मुझे इस दुनिया से इतना सरोकार ही नहीं है कि इस दुनिया की ऊँच-नीच, धूप-छाँव किसी भी चीज़ से मुझे बहुत अंतर पड़ता हो।"

"मैं क्या अपना खोपड़ा घुमाता रहूँ, मैं क्या विचार चक्र में फँसा रहूँ! मैं क्या खुफ़िया जाँच पड़ताल करता रहूँ कि ये आदमी कैसा है, अच्छा है कि बुरा है, विश्वसनीय है कि अविश्वसनीय है। वामपंथी है कि दक्षिणपंथी है, सामने के मोहल्ले से आ रहा है कि पीछे के शहर से आ रहा है। मैं क्या ये सब पता करता रहूँ।" और सूचना क्या कभी पूरी पड़ी है? ज्ञान क्या कभी किसी को पूरा पड़ा है? आदमी अपने को ही कितना जानता है कि दूसरे को पूरा जान लेगा? और जो लोग दावा करते हैं कि एक-दूसरे को पूरा जानते हैं क्या उन्हें सबसे ज़्यादा धोखे नहीं मिलते उन लोगों से जिनके विषय में उनका दावा है कि वो जानते हैं?

तो जान जान कर तुम क्या जान पाओगे? सुरक्षा ज्ञान में नहीं है। सुरक्षा ज्ञान के अतीत चले जाने में है, सुरक्षा का अर्थ है दुनिया अपने तरीके से चलेगी, दुनिया को हक़ है अपने तरीके से चलने का और हमें भी पूरा हक़ है दुनिया से प्रभावित न हो जाने का। दुनिया को दुनिया के तरीके मुबारक, हम तो हम हैं। कभी अचानक धूप हो जाती है, कभी फुहार पड़ जाती है। जहाँ अभी खुशियाँ बरस रही होती हैं वहाँ थोड़ी देर में ग़म का माहौल हो जाता है। क्या भरोसा है?

हाँ एक बात भरोसे की हो सकती है — बाहर-बाहर जो कुछ चल रहा हो, हम अब ऐसे हो गए हैं कि हमें बहुत फ़र्क नहीं पड़ता। सिर्फ़ इस बात पर भरोसा कर सकते हो तुम। इसी बात पर भरोसा करना सीखो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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