जिस आदमी के पास स्वार्थ नहीं है वो बहुत ख़तरनाक हो जाता है, क्योंकि अब उसे मजबूर किया नहीं जा सकता; तुम उसकी जान ले सकते हो, उसे मजबूर नहीं कर सकते हो। जिसे मजबूर किया जा सकता हो, जिसे ग़ुलाम बनाया जा सकता हो; जान लो कि ऐसे ही छोटा, टुच्चा, स्वार्थवश चलता है।
जिससे हमें कुछ ना मिलता हो उससे हम दो पल रुक कर बात भी करना पसंद करते हैं क्या? बोलिए! बात भी किसी से हम तभी करते हैं, जब या तो कुछ मिल रहा हो या भविष्य में मिलने की उम्मीद हो या बात ना करने से कुछ नुक़सान होने की आशंका हो; तब हम किसी को अपने ३० सेकंड भी देते हैं। ऐसा ही है कि नहीं है?