कौन अपना कौन पराया || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

7 min
175 reads
कौन अपना कौन पराया || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: अपनों से जब झगड़ा हो जाता है, तो पीड़ा या दुख क्यों होता है?

आचार्य प्रशांत: पराया कौन है? और कैसे तुमने ये अपने-पराये का भेद किया?

प्र: जो पहले से, जन्म से पास में हैं।

आचार्य: ठीक है, तुम्हें अब इसी आधार पर अगर जीना है कि अधिकांश विश्व तुम्हारे लिए पराया ही है, और दो ही चार लोग तुम्हारे अपने हैं, तो तुम्हारा खेल तो वहीं ख़त्म हो गया। आज तुम्हारा चेहरा देखा है। मैं जन्म से तुम्हारे पास था? तो फिर अपने-पराये से सम्बन्धित प्रश्न मुझसे क्यों पूछ रहे हो? तुम तो अपना मानते ही सिर्फ़ उसे हो जिसका तुमसे जन्म का और देह का रिश्ता हो। मेरा न तुमसे जन्म का रिश्ता है, न देह का रिश्ता है। मैं तुम्हारा अपना कैसे हो गया?

प्र: आचार्य जी, वो अपना मानते हैं।

आचार्य: पर अभी प्रश्न तो तुमने करा न कि अपनों को पीड़ा होती है अगर मैं सच्चाई पर चलूँ? अभी उन्होंने आकर के अपने-पराये की बात करी या तुमने करी?

प्र: मेरी वजह से पीड़ा होती है उनको।

आचार्य: उन्हें पीड़ा हो रही है, इससे तुम्हें पीड़ा हो रही है न? दुनिया में इतने लोग हैं, उन्हें पीड़ा हो रही है, उससे तुम्हें पीड़ा हो रही है?

प्र: वो मेरी वजह से नहीं हो रही…

आचार्य: अरे बाबा! तुम्हारी ही वजह से दुनिया में बहुत लोगों को पीड़ा हो रही है जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं है। इस वक्त स्थिति ये है धरती पर कि तुम्हारा होना ही अपनेआप में हिंसा है। तुम्हारे होने से तुम बिजली का उपभोग करते हो, तुम डीजल-पेट्रोल का उपयोग करते हो, तुम लोहे का उपयोग करते हो और इसकी वजह से न जाने कितनी हिंसा हो रही है।

उन सबको पीड़ा होती है, पूरी दुनिया को पीड़ा होती है, इसका तुम्हें अफ़सोस होता है क्या? तुम्हें दो-ही-चार लोगों की पीड़ा से अफ़सोस क्यों होता है? क्योंकि उनसे तुम्हारा शरीर का नाता है। अगर तुम्हें उन्हीं से नाता बनाना है जिनसे तुम्हारा शरीर का नाता है तो मुझसे क्यों बात कर रहे हो, बोलो।

प्र: मुझे लगता है कि मेरी वजह से उनको तकलीफ़ हो रही है।

आचार्य: मुद्दे पर जाओ। तुम्हारी वजह से बहुतों को तकलीफ़ होती है, तुम्हें इस बात से कष्ट क्यों नहीं है?

प्र: उसकी जानकारी मुझे नहीं है, आचार्य जी।

आचार्य: जानकारी लेना क्यों नहीं चाहते? वो जानकारी क्यों छुपाये रखना चाहते हो?

प्र: वो सामने नहीं है न।

आचार्य: वो सामने है। अगर सामने न होती तो इतने लोगों को कैसे पता होता।

प्र: बिजली के उपभोग से कैसे परेशानी होती है, वो मुझे पता नहीं है...

आचार्य: पता कर लो। बहुत लोग हैं जो भलीभाँति जानते हैं कि हर किलोवाट के तुम्हारे प्रयोग से कितने जानवर ख़त्म हो रहे हैं।

प्र: आचार्य जी, मगर वो तो उपयोग करेंगे ही।

आचार्य: तो उनको पीड़ा होगी ही, क्या फ़र्क पड़ता है फिर! जैसे यहाँ कह देते हो उपयोग तो करेंगे ही, वैसे ही वहाँ भी कह दो, ‘आपको पीड़ा होगी ही, मुझे क्या फ़र्क पड़ता है!’

मूल बात पर आओ। तुम्हें अपनी देह से बड़ा तादात्मय है। इसीलिए जो लोग तुमसे देह के माध्यम से जुड़े हुए हैं, उनको लेकर के सतर्क रहते हो — यह पहली बात। दूसरी बात, देह के रास्ते भी जिनसे सम्बन्धित हो, उनमें भी जो लोग तुम्हारे स्वार्थों पर आघात कर सकते हैं, उनको लेकर के दूने सतर्क रहते हो।

जिसको पीड़ा दी तुमने और वो पलट कर तुम्हें दूनी पीड़ा पहुँचा देगा, उसको पीड़ा देने से तुम बहुत ही घबराते हो। तो ये जो हमारी तथाकथित करुणा होती है, यह वास्तव में दो चीज़ों का मिश्रण होती है और दोनों विषैली चीज़ें हैं — पहली देहभाव और दूसरी स्वार्थ। हर आदमी करुणावान है, हर आदमी को प्रेम छलछला रहा है पर सिर्फ़ किसके प्रति? जिनसे जिस्म का नाता है।

कवि हुये हैं 'धूमिल'। उनकी पंक्तियाँ थीं, पच्चीस साल पहले पढ़ी थीं, भूलती नहीं हैं। कहते थे, "जैसे कोई मादा भेड़िया अपने छौने को दूध पिला रही हो और साथ-ही-साथ किसी मेमने का सर चबा रही हो।" ममता तो तुम्हें बहुत है पर सिर्फ़ उससे, जिससे तुम्हारा देह का नाता है; अपने छौने को तो दूध पिला रही हो और साथ-ही-साथ किसी मेमने का सर चबा रही हो। हमारी करुणा और प्रेम दो झूठे सिद्धान्तों पर खड़े हैं — पहला देहभाव और दूसरा स्वार्थ।

दस-बारह साल पहले एक लड़का था, छात्र था तब वो। उससे किसी कॉलेज के सेमिनार में मुलाकात हुई तो उसने बहुत पीड़ा के साथ बहुत ज़ोर देकर सवाल पूछा कि 'मैं कुछ करना चाहता हूँ अपनी पढ़ाई के बाद, अपनी इंजीनियरिंग के बाद, पर मेरे पिताजी मुझे करने नहीं देते। मैं क्या करूँ?' मैंने उसे कुछ उत्तर दिया होगा।

एक बात मुझे उस संवाद में साफ़-साफ़ याद है कि वो लड़का बार-बार यह कहे कि 'नहीं! पिताजी की राय महत्वपूर्ण है, मैं उनको दुख नहीं देना चाहता, मैं उनके खिलाफ़ नहीं जाना चाहता।' बड़ा पितृ-भक्त था। बड़ा प्रेम था उसमें — ऐसा लगे — पिता के प्रति।

वह लड़का मुझे दोबारा मिला दस-बारह वर्ष के बाद। स्थितियाँ बदल चुकी थीं। पिताजी रिटायर (सेवानिवृत) हो चुके थे। रिटायर ही नहीं हो चुके थे, उन्हें दिल के दो दौरे आ चुके थे। अब वो लगातार बिस्तर पर ही पड़े रहते थे। और ये लड़का, ये दस वर्ष से किसी बड़ी कंपनी में लगा हुआ था, अच्छा कमा रहा था, शादी कर चुका था, समाज में एक सशक्त जगह पर पहुँच चुका था। जब मेरी इससे दोबारा मुलाकात हुई तब ये एक कंपनी छोड़कर दूसरी कंपनी में जा रहा था।

मैंने चुटकी ली, मैंने कहा, ‘अब जब तुम एक कंपनी छोड़ करके दूसरी कंपनी में जा रहे हो तो पिताजी की सहमति ली है?’ बोला, ‘पिताजी! इन मामलों में पिताजी का क्या हस्तक्षेप? उनका क्या लेना-देना है?’ मैंने कहा, ‘नहीं, एक बार पूछ तो लो कि कंपनी बदल रहा हूँ, आपकी अनुमति है या कम-से-कम सहमति है?’ ‘पिताजी से कौन पूछता है ये सारी बातें?’

मैं मुस्कुराया। मैंने कहा, 'बारह वर्ष पहले तू ही था जो मुझसे कह रहा था कि पिता से इतना प्रेम है मुझे कि पिता मुझे जिस दिशा में कहेंगे करियर बनाने को, मैं उसी दिशा जाऊँगा। और आज तू कह रहा है कि पिता से कौन पूछता है ये सारी बातें, ये तो मैं तय करूँगा, मैं जानकार हूँ। मेरा हिसाब-किताब, मेरी ज़िन्दगी।'

मैंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि पिता के प्रति तेरा प्रेम कम हो गया है, वास्तविक बात यह है कि पिता से प्रेम कभी था ही नहीं। उस समय तू आर्थिक रूप से और मानसिक रूप से पिता पर आश्रित था तो तेरे लिए ज़रूरी था कि पिता की आज्ञा का पालन करे। वो प्रेम नहीं था, वो मजबूरी थी। आज पिता कमज़ोर हो चुके हैं, हर तरीक़े से कमज़ोर हो चुके हैं तो वही पिता जिनके नाम की तू दुहाई देता था, जिनको तू प्रातः स्मरणीय बताता था, आज उन पिता की कोई हैसियत नहीं तेरी नज़र में। ऐसा नहीं कि हैसियत कम हो गयी है, हैसियत कभी थी ही नहीं। रिश्ता स्वार्थ का था।'

ये दूसरा सिद्धान्त है जिस पर हम अपनों से जुड़े होते हैं। पहली बात तो ये कि जुड़ोगे उन्हीं से, परवाह उन्हीं की करोगे, जिनसे नाता जिस्म का हो, और दूसरी बात ये कि उनकी भी परवाह सिर्फ़ तब तक करोगे, जब तक तुम्हारा स्वार्थ सिद्ध होता है। ये आम ज़िन्दगी का चलन है। इस चलन को जो तोड़ सके, वो मुक्त है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
Comments
Categories