जीवन में ऊपर उठने की विधि

Acharya Prashant

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जीवन में ऊपर उठने की विधि

प्रश्नकर्ता: संसार में फैलने की उक्तियाँ और विधियाँ तो हमें पता पड़ जाती हैं पर ऊपर उठने की कौन सी विधियाँ हैं? वो कौन से प्रैक्टिसेस हैं जिनसे हम अपने को ऊँचा उठा सकें ?

आचार्य प्रशांत: नहीं, प्रैक्टिसेस कोई नहीं है। अपने दर्द का पता होना चाहिए। जब आप कहते हो कि प्रैक्टिसेस क्या हैं ऊपर उठने की तो आप क्या चाह रहे हो मैं समझता हूँ। क्या चाह रहे हो आप? वो विधियाँ किस तरह की? ‘दूध में एक छटाँक शहद घोल कर दोपहर दो बजे पीने से आदमी ऊपर उठ जाता है!’ मैं बहुत ज़ोर से हँसता इस पर अगर ये बात इतनी खतरनाक ना होती तो। खेद की बात ये है कि टुच्ची बातें खतरनाक बहुत ज़्यादा होती हैं, वरना तो वो चुटकुला होतीं।

विधि और किसी तरीके की होती हो तो मुझे बता दीजिये, मेरा अज्ञान है। “फलानी चीज़ का बीज खा लें, फलाने तरह की माला फेर लें, फलानी अंगूठी पहन लें, फलानी दिशा में फलाने पर्वत पर फलानी तारीख़ को बैठ कर के आँखें मूँद कर के फलाने देवता का स्मरण कर लें।” ये सब करके हँस ही क्यों नहीं लेते अपने ऊपर? और कुछ नहीं तो कम-से-कम मनोरंजन मिलेगा। दिक्कत ये है कि हम इसको मनोरंजन की तरह नहीं लेते, हम गंभीर हो जाते हैं, हमें लगता है इससे वास्तव में कुछ हो जाएगा।

आपको वाकई लगता है ये सब कर के कुछ हो सकता है आपके साथ? “अमावस्या की रात ताम्बे के कटोरे में दूध भर कर घोड़े को पिलाओ, इस से फलानी चीज़ हो जाएगी!” पर न हम खुद को जानते हैं, न अपनी वास्तविक तकलीफ को जानते हैं। न हम घोड़े को जानते हैं, न हम गाय को जानते हैं जिसका दूध ले आए। तो ये सब चलता रहता है। नहीं तो विधि की आवश्यकता नहीं है, ईमानदारी की ज़रुरत है।

ऊपर उठने का क्या अर्थ है? ऊपर उठने का अर्थ है तुम नीचे किन्हीं बेड़ियों में फँसे हुए हो। तुम वास्तव में गैस के एक विशाल गुब्बारे हो; पेट वाली गैस नहीं, मन के ऊपर उठने की लालसा वाली गैस। लेकिन तुमको हर दिशा से, आठ-दस-आठसौ-हज़ार बेड़ियों ने ज़मीन से बाँध रखा है। अब बोलो कैसे ऊपर उठना है, क्या विधि बताएँ? एक ही विधि है, बेड़िओं को पहचानो, निर्मम हो कर काटते चलो।

और क्या विधि बताई जाए? ताम्बे के घोड़े उड़ा कर किसी को मुक्ति नहीं मिली आज तक, घोड़े को भी नहीं। वो उड़ा ही नहीं, तुम उड़ा दो वो गिर जाएगा। लेकिन ये करना हमें बड़ी दिक्कत देता है। हम चाहते हैं हमारी बेड़ियाँ यथावत रहें और साथ-ही-साथ हम ऊपरी तल पर कुछ विधियाँ आदि, प्रैक्टिसेस आदि करते चलें और अपने आपको फुसलाए रखें कि हम धीरे-धीरे मुक्ति की ओर बढ़ रहे हैं। फुसलाए रहो अपने आपको, नहीं होना। और मैं साफ़ जानता हूँ यहाँ कोई ऐसा नहीं बैठा हुआ जो नहीं जानता कि वो ज़िन्दगी में कहाँ पर फँसा हुआ है।

आपको यहाँ बुलाने का मेरा उद्देश्य ये नहीं है कि मैं आपको कोई जादुई तरीके बता दूँगा आज़ादी के। मेरा उद्देश्य है ये बताना कि कोई जादुई तरीका नहीं होता। कोई जादुई तरीका नहीं है मुक्ति का। बस सीधा जो तरीका है उस पर चलो, सीधे-साधे सरल तरीके से। और सीधा-साधा सरल तरीका यही है कि जो सामने है उसकी अनदेखी मत करो। जो जानते ही हो उस से क्यों अनजान बन रहे हो? ये स्वांग, ये नाटक किस के साथ?

कोई बहुत दबी-छुपी हमारी बेड़ियाँ होती भी नहीं हैं। दुनिया को पता चल जाता है हम किस फेर में हैं, हमें खुद कैसे नहीं पता होता? दुनिया को पता होता है फलाना अपनी बीवी से डरता है, फलानी अपने पति से मार खाती है। तुम्हें ही नहीं पता कि तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या बंधन हैं? पड़ोसी को भी पता है तुम्हारे। और तुम कह रहे हो, "नहीं वैसे तो मुझे कुछ पता नहीं पर मुझे न, वो कुछ थोड़ा सा स्पिरिचुअल डवलपमेंट (आध्यात्मिक विकास) करना है, उसके लिए कोई टेक्निक (तकनीक) बताइए।"

टेक्नीक ये है कि सैंडल खाना छोड़ो। ये जो चाँटें खाते हो गाल पर अभी भी उकरे हुए हैं, तुम्हें विधि क्या बताएँ! तुम्हें नहीं पता तुम्हारी तकलीफ क्या है? और इससे हट कर क्या तकलीफ होती है, कोई नौकरी में परेशान है, कोई व्यापार में परेशान है। किसी का बेटा अपनी पसंद का कुछ करना चाहता है वो उसको छूट नहीं देना चाहता, वहाँ ये परेशानी चल रही है। इस से गहरी कोई परेशानियाँ होती हैं क्या हमारी? हम क्यों इधर-उधर जादुई, तिलस्मी, गुप्त, गोपनीय बात करना चाहते हैं? ज़िन्दगी के सीधे मुद्दों पर क्यों नहीं बात करना चाहते?

मुझे इसीलिए उपनिषद बहुत प्रिय हैं और कबीर साहब, बहुत सीधी बात। कि टेढ़ी-तिरछी बात हमेशा सीधी बात से मुँह चुराने का बहाना होती है और कुछ नहीं। कोई डरा हुआ है, कि फलाना मेरे पैसे ले लेगा, अब तुमको विधि क्या बताएँ? तुम्हारा जो मूल डर है वो यही है कि, "गुप्ता मेरे पैसे ले कर भाग जाएगा।" उसमें अमावस्या की रात का ध्यान क्या काम आएगा तुम्हारे? गुप्ता भी वही धयान कर रहा है बगल में बैठ कर, दोनों। ग़लत बोल रहा हूँ?

किसी का सर दर्द ये है कि लड़की चौबीस की हो गई है, उसको ब्याहना है। अरे छोड़ दो, काहे पीछे पड़े हो उसके। लड़की भी कल ही मिल कर गई है, तुम उसका सर दर्द हो। और बातें लम्बी-चौड़ी: ये, वो, फलाना, फलानी मुद्रा, फलानी क्रिया, फलाना ये, फलाना वो। ले दे कर बात कुल इतनी सी है कि, "लड़की का ब्याह मुझे अपने हिसाब से करना है!" ये इनकी ज़िन्दगी का केंद्रीय मुद्दा है। और बाते कर रहे हैं ये फलाने पुराण की, और मरने के बाद कौन सी नदी पार करती है आत्मा कहाँ जाने के लिए। हटाओ न ये, थोड़ी तो ईमानदारी दिखा दो। सीधे क्यों नहीं बताते कि दिन-रात तुम्हारे दिमाग़ में एक ही चीज़ चल रही है, "लड़की का ब्याह!" क्यों इधर-उधर की बातें?

अभी जो मैं बातें बोल रहा हूँ बिलकुल आध्यात्मिक नहीं लग रहीं न? कोई मंत्र नहीं बोल रहा, कोई श्लोक नहीं बोल रहा, हू-हा नहीं कर रहा। कोई दिव्य चमत्कार नहीं दिखा रहा, न बता रहा हूँ कि मेरा आठवाँ जन्म कैसा था। ये तो बातें ही बड़ी अनाकर्षक लग रही हैं।

शॉर्टकट (छोटा रास्ता) नहीं है बाबा, नहीं है। कोई मंत्र ऐसा नहीं है जिसको तुम चार बार मारोगे तो तुम्हारा दुश्मन मर जाएगा, नहीं है। निराशा हो रही है? कोई बहुत निराश हो कर बोल सकता है कि, "नहीं, हमने जो अनुदान दिया और हमारे आने-जाने के जितने पैसे लगे थे, सब लौटा दो।" ले लो भई, ऊपर से दो-चार सौ ले लो हम से, वापस जाओ, पर जादू नहीं होता। ईमानदारी से मेहनत करनी पड़ेगी, दर्द झेलना पड़ेगा इसके अलावा कोई तरीका नहीं है। ये झाड़-फूँक, ये टोना-टोटका, ये तिलिस्म, इनसे नहीं होता, ये कुछ नहीं है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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