जीवन का सीमित ईंधन कामनाओं-वासनाओं में मत जलाओ || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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जीवन का सीमित ईंधन कामनाओं-वासनाओं में मत जलाओ || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपको सादर प्रणाम। पिछले छः माह से आपको सुन रहा हूँ और जीवन को नये स्वरूप में देखने की नज़र मिली है। बचपन से ही कामवासना के सामने लाचार महसूस करता रहा हूँ, लेकिन अभी आपको लगातार सुनने के बाद विगत दो माह से ऐसा लगता है कि शारीरिक और मानसिक दोनों ही तलों पर कामवासना अब हावी नहीं हो रही है।

बहुत बार मैंने काम आदि विषयों पर विजय प्राप्त करने की बात आपसे सुनी है। विजय प्राप्त करने से, आचार्य जी, कृपया स्पष्ट करें आपका क्या आशय है और पूर्णतः यह अनुभव मुझे कैसे हो सकता है?

आचार्य प्रशांत: तुम्हें जाना है अपनी मंज़िल की ओर, और समय और ऊर्जा तुम्हारे पास सीमित हैं। तुम बढ़ रहे हो लक्ष्य की तरफ़ और बीच में कई तरह के दुश्मन आ जाते हैं। उनका इरादा है तुम्हें रोक देने का या तुम्हारा समय नष्ट कर देने का या तुम्हारी ऊर्जा, तुम्हारा ईंधन नष्ट कर देने का, क्योंकि यात्रा लम्बी है उसमें समय भी खूब लगना है और ईंधन भी खूब लगना है। और समय और ईंधन दोनों तुम्हारे पास सीमित हैं।

तो तुम्हारे शत्रु के लिए आवश्यक नहीं है कि वह तुम्हें ख़त्म ही कर दे तभी वह जीतेगा, उसके लिए यह भी आवश्यक नहीं है कि वह तुम्हें बहुत लम्बे समय तक या लगातार हराकर और दबाकर ही रखे तभी वह जीतेगा; उसे बस इतना करना है कि तुम्हारी ऊर्जा कम कर दे, तुम्हारा समय आंशिक तौर पर ख़राब और बर्बाद कर दे — वो जीत जाएगा।

एक विमान चलता है मुंबई से दिल्ली के लिए, यात्रा दो घंटे की है और उसमें ईंधन है ढाई घंटे का। (दोहराते हुए) विमान मुंबई से दिल्ली की ओर चला है, यात्रा दो घंटे की है, ईंधन है विमान में ढाई घंटे का। अब अगर तुम विमान के दुश्मन हो तो तुम कई तरीक़े लगा सकते हो — तुम विमान के भीतर बम रख सकते हो, तुम कोई लड़ाकू विमान ले जाकर इस मुंबई-दिल्ली की उड़ान पर मिसाइल फ़ायर (प्रक्षेपास्त्र दाग़ना) कर सकते हो। यह सब बड़े सक्रिय, बड़े खुले, बड़े प्रत्यक्ष तरीक़े हो गये। एक धमाके के साथ विमान में विस्फ़ोट होगा, उस पर मिसाइल आकर लगी है, उस के भीतर बम फटा है और साफ़ दिख जाएगा कि दुश्मन ने विमान को ख़त्म कर दिया।

एक अन्य तरीक़ा भी है जिसमें पता भी नहीं चलेगा कि दुश्मन क्या कर गुज़रा। मुंबई से चली है फ़्लाइट (उड़ान) और आधे रास्ते में उसे आसमान में ही अद्भुत नज़ारे दिख गये और विमान लगा नज़ारों के साथ अठखेलियाँ करने। कहीं आकाशकमल है, कहीं इंद्रधनुष है, कहीं अप्सराओं के गीत और नृत्य हैं, कहीं बहुत ही अलौकिक दृश्यों की झाँकियाँ हैं; और यह सब करके इकत्तीस मिनट विमान ने ख़राब कर दिये।

कितने मिनट? इकत्तीस मिनट। बहुत कुछ नहीं करना है, बस उसके इकत्तीस मिनट ख़राब कराने हैं और इकत्तीस मिनट ख़राब करके वह दिल्ली की ओर बढ़ निकला। अब क्या होगा? उतरने से बस एक मिनट पहले विमान का ईंधन ख़त्म हो जाएगा और वह विमान क्रैश (टकरायेगा) कर जाएगा।

ये करती है विषय वासना हमारे साथ। दो घंटे की यात्रा में तुम्हारे पास आधे घंटे का ईंधन हो; तो भी तुम डूबोगे, एक घंटे का ईंधन हो; तो भी डूबोगे, डेढ़ घंटे का ईंधन हो; तो भी डूबोगे — अंजाम बिल्कुल बराबर रहेगा। चाहे तुम्हारे पास ईंधन कुल तीस मिनट का हो और चाहे एक घंटे-अट्ठावन मिनट का हो, अंजाम में कोई फ़र्क नहीं आने वाला कि आएगा? बिलकुल एक अंजाम होगा न?

तो विषयों के साथ लिप्तता — चाहे वह कामवासना हो, चाहे अन्य किसी तरह की कामना, इच्छा इत्यादि हो — एक ही असर डालती है हम पर। जो हमें ईंधन मिला था यात्रा पूरी करने के लिए वह उस ईंधन को जला डालती है, समय नष्ट कर देती है। ऊर्जा नष्ट कर देती है और लैंड (उतरने) करने से बस थोड़ी देर पहले तुम पाते हो कि तुम्हारे पास अब कुछ शेष नहीं है। कश्ती किनारे पर आते-आते डूब जाती है।

अब विमान चाहे नदी-पहाड़ में क्रैश हो, चाहे किसी खेत में जाकर गिरे और चाहे रनवे पर ही क्रैश हो जाए, अंजाम तो एक ही होना है न। ईंधन हमें बस उतना ही मिला है जितना हमें मंज़िल तक ले जा सकता है। उसको अगर थोड़ा भी बर्बाद किया तो ‘क्रैश'।

और कोई यह न कहे कि मैंने ज़्यादा थोड़ी बर्बाद किया। ढाई घंटे का, एक-सौ-पचास मिनट का ईंधन मिला था, और मैंने उसमें से कुल इकत्तीस मिनट का ही तो ख़राब करा है। एक-सौ-पचास में इकत्तीस, बहुत ज़्यादा नहीं होता, बीस प्रतिशत। अस्सी प्रतिशत तो हमने काम सही किया न, डिस्टिंक्शन (विशेष योग्यता)। तुम्हारे अस्सी प्रतिशत का अंजाम मौत है।

अस्सी प्रतिशत वाले को भी वही मिलनी है, बीस प्रतिशत वाले को भी वही मिलनी है और पचास वाले को भी वही मिलनी है। मंज़िल पर तो वही पहुँचेगा जो करीब-करीब शत-प्रतिशत अपना समय और अपनी ऊर्जा बचा ले गया। जो बीच में ज़रा भी भटका, जिसने बीच में ज़रा भी खेल-तमाशे शुरू किये, वह लैंड नहीं कर पाएगा — यह बात याद रखना।

चूके, तो चूके। और इस बात में कोई सांत्वना, कोई बड़ाई नहीं है कि हम तो बस थोड़ा सा चूक गये। अगर थोड़ा ही चूके हो तो दिल और जलेगा, घाव और गहरा लगेगा, अपमान और तीव्र होगा, कसक और गहरी रहेगी। हममें से ज़्यादातर लोग बस थोड़े ही चूकते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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