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जानवरों का बंध्याकरण कितना ज़रूरी है? || (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: पशुओं का परिवार नियोजन कैसे करें, और क्या नियोजन करना सही है?

आचार्य प्रशांत: प्रकृति इस बात से बिलकुल सरोकार नहीं रखती कि तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता क्या है। उसको सरोकार बस इस बात से होता है कि जीव कितने हैं। जीवन की गुणवत्ता क्या है, इससे प्रकृति को सरोकार नहीं है। उसे सरोकार है कि - जीव कितने हैं?

स्त्री हो, पुरुष हो, और क़ैद में हों, तो नपुंसक नहीं हो जाएँगे। वो जेल में भी बच्चे पैदा कर डालेंगे, भले ही जेल में जो बच्चे पैदा हुए हों उनकी ज़िन्दगी नर्क हो। बल्कि संभावना यही है कि स्त्री और पुरुष एकसाथ जेल में हों तो वह और ज़्यादा बच्चे पैदा करेंगे, करने को कुछ और तो होगा नहीं। और प्रकृति नहीं कहेगी कि - "यहाँ पर बच्चे नहीं पैदा होने चाहिए।"

लेकिन तुम तो जानते हो न कि जीवन की लंबाई और जीवों की तादाद से ज़्यादा कीमती कोई और बात होती है। क्या है वह बात? गुणवत्ता, *क्वालिटी*।

तुम अगर प्रकृति को देखोगे, तो जहाँ जितनी ज़्यादा अज्ञानता है, वहाँ उतने ज़्यादा बच्चे हैं। जहाँ आदमी जितना ज़्यादा अँधेरे में है, वहाँ वह बच्चे ज़्यादा पैदा कर रहा है। और प्रकृति यही चाह रही है — बच्चे होने चाहिए बस! किसी भी तरीके से पैदा हों। इस सब से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि जितने जीव हैं, वो बोध को प्राप्त हों। नए-नए जीवों का आगमन ज़रूरी नहीं है; जो हैं, उनको एक गरिमामयी, ऊँची, साफ़, प्रेमपूर्ण ज़िन्दगी मिले, यह ज़्यादा जरूरी है।

तुमने जो सवाल पूछा है, उस सवाल का इस उत्तर से रिश्ता समझ रहे हो न? एक कुत्ते के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह दस और पिल्ले पैदा करे, उसके लिए वास्तव में यह आवश्यक है कि वह अपना जीवन ज़रा स्वास्थ्य और गरिमा के साथ जिए। तो ठीक ही है अगर बंध्याकरण की बात हो रही है, ग़लत नहीं है।

जंगल में आवश्यकता नहीं पड़ती बंध्याकरण की, क्योंकि वहाँ तो प्राकृतिक संतुलन चलता है। पर तुम तो कुत्ते को जंगल से निकाल लाए न, बहुत-बहुत-बहुत पहले। अब उसे तुमने शहर का निवासी बना दिया है। तुम उसको निकाल लाए हो जंगल से, तो उसको एक गरिमामयी जीवन देने का धर्म भी तुम्हारा ही है। वह जंगल में रहता तो जितने भी बच्चे पैदा करता, ठीक है। कुत्ता भेड़िया है वास्तव में। भेड़ियों के झुंड होते हैं। वह जानते हैं कि कितने पैदा होंगे, कितने नहीं होंगे। उनकी जनसंख्या अपने-आप ही नियंत्रित रहती है। कुत्तों को तो तुमने अब अपना साथी बना लिया है, तो अब तुम देखो न।

अपना बंध्याकरण कराता है न इंसान? या आदमी कहता है कि - "जितने पैदा हो सकें, करते चलो"? तुम करते हो न जनसंख्या नियंत्रण की विधियों का उपयोग? परिवार नियोजन करते हो, या नहीं करते हो? तो जैसे अपना परिवार नियोजन करते हो, वैसे ही अब जिसको अपना साथी बना लिया है — चाहे वह कुत्ता हो, चाहे खरगोश हो, चाहे घरेलू पालतू बिल्ली हो, उनका भी तुम्हें नियोजन करना पड़ेगा। या फिर उनको तुम जंगल में बसने दो। कहो कि जंगल में रहो जैसे लोग लाखों साल पहले रहा करते थे।

पर आदमी ने तो कुत्ते को बहुत पहले ही जंगल से बाहर निकाल दिया। तो अब उसका ख्याल तुम्हें ही रखना है। जैसे अपने परिवार को देख समझकर बढ़ाते हो, वैसे ही आवश्यक है कि कुत्ते का परिवार भी देख समझकर बढ़े।

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