जन्माष्टमी कैसे मनाएँ? || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण पर (2016)

Acharya Prashant

5 min
207 reads
जन्माष्टमी कैसे मनाएँ? || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण पर (2016)

प्रश्नकर्ता: बासठ साल हो गए मुझे जन्माष्टमी मनाते हुए, आज आप उपलब्ध हैं यहाँ तो ये सवाल है मेरा कि जन्माष्टमी उत्सव का क्या अर्थ है और इसे कैसे मनाएँ?

आचार्य प्रशांत: दो तरीके से देख सकते हैं: एक तो ये कि कृष्ण-पक्ष के आठवें दिन जन्म हुआ था इतिहास में एक बच्चे का और वो बच्चा कौन था? वासुदेव का और देवकी का आठवाँ पुत्र और उसके साथ आप जितनी ऐतिहासिक बातें जोड़ सकते हैं, जोड़ दीजिए कि चढ़ी हुईं थीं यमुना, और उस बालक को एक टोकरी में रखकर, सर पर ले गए, और फिर यशोदा मैया हैं और पूरा बाल्यकाल है — या तो ऐसे देख लीजिए।

या ये कह दीजिए कि ये जो हमारा पूरा वर्ष रहता है, इसमें हम लगातार समय में ही जीते हैं, और समय बड़ा बंधन है हमारा, तो देने वालों ने हमको एक तोहफा दिया है ऐसा जो समय में होकर भी समय से आगे की याद दिलाएगा।

जन्माष्टमी को कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में न मनाएँ, बड़ी फज़ीहत की बात है क्योंकि कृष्ण तो वो हैं जो अर्जुन को बता गए हैं कि, “आत्मा न तो जन्म लेती है न मरती है; सत्य न तो आता है न जाता है।” जो कृष्ण समझा गए हों कि जन्म-मृत्यु कुछ होता ही नहीं, उनका जन्मदिवस मनाना बड़ी गड़बड़ बात है। तो इस रूप में तो बिलकुल मना मत लीजिएगा कि आज कोई बच्चा पैदा हुआ था।

जन्माष्टमी को मनाने का जो सुन्दर तरीका है वो यही है कि इसे कृष्ण का नहीं अपना जन्म दिवस मानें।

“मैं जैसे साल भर जीता आ रहा हूँ अब वैसे नहीं जियूँगा, आज पुनः जन्म होगा मेरा।”

कृष्ण का तो कोई जन्म होता नहीं क्योंकि कृष्ण कभी मरे ही नहीं; हम हैं जिन्हें जन्म की आवश्यकता है क्योंकि हम कभी पैदा हुए नहीं।

जन्माष्टमी को ऐसे ही मनाइये कि साल भर की हबड़-दबड़ में एक दिन का आपको मौका मिला है ठहर जाने का। ये ठहरना ही नया जन्म है क्योंकि हम जो चल रहे हैं वो अपने बन्धनों के कारण चल रहे हैं। ठहरने का मतलब हो जाएगा कि बन्धनों पर नहीं चल रहे हैं; आज़ादी हुई, ये आज़ादी ही नया जन्म है।

कृष्ण की ओर न देखें, अपनी ओर देखें। कृष्ण की ओर देखेंगे तो अपने-आपको देखने से फ़िर चूक जाएँगे और कृष्ण के नाम पर आप देखेंगे किसको? आप कृष्ण की छवियों को ही देखेंगे, और वो छवियाँ किसने बनाईं? आपने। तो बड़ी गड़बड़ हो जानी हैं, एक अच्छा अवसर फ़िर चूक जाना है, आप वो सब कुछ करते जाएँगे जो आपके साल भर के व्यवहार का हिस्सा है; जन्माष्टमी पर भी आप वही करते जाएँगे।

आपको खीर खाना अच्छा लगता है साल भर? लगता है या नहीं? तो आप जन्माष्टमी पर भी क्या करेंगे? कृष्ण को खीर चटा देंगे। ये आपको क्या लगता है कि कुछ नया हो गया? नाम बस नया है कि आज जैसे कोई विशेष उत्सव हो पर हो सब कुछ वही रहा है जो वर्ष पर्यन्त होता है।

आपको अच्छा लगता है न नए कपड़े पहनना? आप जन्माष्टमी को नए कपड़े धारण कर लोगे। आपको अच्छा लगता है न सुख मनाना, उत्सव मनाना? आप जन्माष्टमी को उत्सव मना लोगे। आपको नाचना अच्छा लगता है न? आप जन्माष्टमी को नाच लोगे, मिड-नाईट पार्टीज़ का तो वैसे ही बड़ा प्रचलन है।

(श्रोतागण हँसते हैं)

तो बारह बजे तक जगोगे और कहोगे, "देखो हुआ जन्म!" क्या हुआ है? कुछ नहीं हुआ, इतना ही हुआ है कि तीन-सौ-चौसठ दिनों ने तीन-सौ-पैंसठवें दिन को भी अपनी चपेट में ले लिया, जो एक दिन का सुनहरा मौका मिला था वो भी चूक गया।

इस तीन-सौ-पैंसठवें को बाकी के तीन-सौ-चौसठ दिनों की तरह मत होने दीजिए। भारत जो उत्सवों का देश रहा है कि हर चौथे दिन कुछ-न-कुछ आ जाता है वो इसलिए ही रहा कि जल्दी-जल्दी मौके दिए जाते हैं। पिछला चूका तो अब ये ले लो, साल भर क्यों खराब करना, क्यों इंतज़ार करना अगली जन्माष्टमी का।

हर पर्व आपको यही बताने के लिए आता है कि बदलो, रुको, देखो कि तुम ज़िंदा नहीं हो; उठ जाओ, जियो।

कृष्ण का भी सन्देश यही है, कृपा करके कृष्ण को न झुलाएँ, उनके लिए पालना न बनाएँ, न उनको वो कपड़े पहनाना। अरे कृष्ण को नहीं आवश्यकता है इन सब चीज़ों की। अपनी ओर देखिए कि ‘हम कैसे हैं।’

और जब आप अपनी ओर देखते हैं तब आपकी आँखों के पीछे जो होता है उसे कृष्ण कहते हैं। कृष्ण वो स्रोत हैं जो आपको ताकत देते हैं कि आप बिना डरे देख पाएँ। आप एक बार फैसला तो कीजिए कि सच्चाई में जीना है, फिर जो ताकत अपने-आप उभरती है उस ताकत का नाम कृष्ण है।

कृष्ण आँखों के आगे कम आँखों के पीछे ज़्यादा होते हैं। आँखों के आगे तो आपकी बनाई मूर्तियाँ होंगी, उन मूर्तियों में कोई दम नहीं है। आँखों के आगे तो आपका बनाया मंदिर होगा, झाँकियाँ होंगी।

न उन मन्दिरों में कोई दम है न उन झाँकियों में। कृष्ण आत्मा हैं, कृष्ण सत्य हैं। वो आँखों के पीछे बैठते हैं, उनपर ज़रा भरोसा रखिए, श्रद्धा रखिए और अपनी ओर मुड़िए, क्या पता बासठवें वर्ष में ही जन्म हो जाए। लाओ-तज़ु के लिए कहते थे कि वो चौहत्तरवें साल में पैदा हुए थे, इतना लम्बा गर्भाधान। देर कभी नहीं होती है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories