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जब गुरु के प्रति कृतज्ञता काम होने लगे || महाभारत पर (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, गुरु के प्रति कृतज्ञता अगर कम होने लगे तो क्या करना चाहिए? कृपया मार्गदर्शन करने की अनुकंपा करें।

आचार्य प्रशांत: अपनी ओर देख लेना चाहिए। गुरु के प्रति यदि कृतज्ञता अगर कम होने लगे तो अपनी हालत को देख लेना चाहिए। जैसे कोई ऊपर से लेकर नीचे तक कीचड़ में लिपटा हुआ हो और वो जाए धोवनहार के पास कि, "धो दो मुझे।" और धोने वाले ने अभी एक ही उँगली धोई कि हमारे भाई को लगने लगा कि, "मैं तो हो गया पाक-साफ़ और उँगली मेरी ठीक है। और इतनी बड़ी क्या बात है, ये तो मैं ख़ुद भी धो लेता। और अब जब कीचड़ हटा है तो भीतर से देखो न कितनी सुंदर, प्यारी, रूपवती उँगली निकल करके आयी है। अहा! मैं कितना प्यारा हूँ!"

जब भी इस प्रकार के विचार उठने लगें, उसे अपने-आपको देख लेना चाहिए।

अभी बहुत गंदे हो, बेटा। तुम इतने सस्ते में मान गए? ज़रा महत्वाकांक्षी रहो। तुमने तो अभी कुछ लिया ही नहीं, और तुम्हारा पेट भर गया? एक उँगली धुली है और ये हमाम से निकल भागने को तैयार हैं। “हमारा हो गया।” और दुनिया भर को उँगली दिखा रहे हैं कि, "देखो!"

मैं कह रहा हूँ, अपने-आपको देखो। गुरु को मत देखो कि उसके प्रति कितनी कृतज्ञता रखनी है या नहीं। गुरु के प्रति कृतज्ञता तुम्हारे मन में उसी अनुपात में होगी जिस अनुपात में तुम्हारे मन में अपनी वास्तविक स्थिति का संज्ञान होगा। जिसको पता होता कि कितने कीचड़ से लिपटा हुआ है, वह उतना ही ज़्यादा विह्वल हो करके, उतना ही ज़्यादा आतुर हो करके धोने वाले की तरफ़ भागता है।

जिसको ये पता ही नहीं है कि उसमें कितनी गन्दगी है, उसको क्यों बड़ी क़ीमत लगेगी धोनेवाले की? आइना देखना आवश्यक है। गुरु और थोड़े ही कोई है? शिष्य हटा दो तो गुरु की क्या सत्ता? शिष्य के लिए तो गुरु उसकी स्थिति से संबंधित ही कोई हस्ती है।

चिकित्सक के पास कब भागते हो? जब यह पता चलता है न कि कुछ गड़बड़ है। अपने ही दर्द का अनुभव होता है, जब अपनी ही स्थिति के प्रति थोड़े संवेदनशील हो जाते हो, अन्यथा चिकित्सक की क्या हैसियत? अगर किसी को अपने दर्द का संज्ञान ही न हो, तो उसमें चिकित्सक के लिए कोई कृतज्ञता होगी क्या? बोलो। बल्कि उसे तो अगर दवा दी जाएगी, गोलियाँ दी जाएँगी, तो वो कहेगा, "हम अच्छे-ख़ासे हैं, हट्टे-कट्टे हैं, भले-चंगे हैं। हमें व्यर्थ की गोलियाँ खिलाई जा रही हैं, उपचार दिया जा रहा है।"

चिकित्सक के प्रति कृतज्ञता तो तब होगी जब पहले यह पता हो कि मैं कितना बीमार हूँ। तो मैं कह रहा हूँ कि अपनी ओर देखो। भूल जाओ चिकित्सक को। जितना तुम्हें तुम्हारी बीमारी पता चलेगी, उतना ज़्यादा तुम चिकित्सक के प्रति अनुगृहीत रहोगे। और यदि वो दिन आ गया हो जब बहुत देखते हो अपनी ओर और कुछ भी दिखाई न देता हो, न बीमारी दिखाई देती हो, न स्वास्थ्य दिखाई देता हो, 'मैं' का नाम-ओ-निशान न दिखाई देता हो, तो फिर गुरु के प्रति कृतज्ञता की कोई ज़रूरत ही नहीं, क्योंकि अब तुम न कृतज्ञ हो सकते हो, न कृतघ्न हो सकते हो।

तुम मिट गए हो। जो मिट गया, वह कैसे कृतज्ञ हो जाएगा? जो मिट गया, वो तो अब स्वयं गुरु हो गया। उसे अब कैसी कृतज्ञता?

जब तक तुम हो, तब तक तो कृतज्ञता रखो और ज्ञापित करते रहो। जब मिट जाना, तब बचा ही कौन कृतज्ञ होने के लिए?

कीचड़ मिटाते रहो। अभी बाकी है बहुत।

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