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जानवरों के प्रति व्यवहार, और आपके मन की स्थिति || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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जानवरों के प्रति व्यवहार, और आपके मन की स्थिति || आचार्य प्रशांत (2014)

प्रश्न: आचार्य जी, रमण महर्षि की एक डॉक्यूमेंटरी (वृत्त चित्र) देख रही थी। उसमें दिखाया था कि जब भी वह कुछ बोलते थे, तो एक गाय सामने आकर खड़ी हो जाती थी। जब उसकी मृत्यु हुई, तो उस दिन सामने नहीं आई, फिर रमण महर्षि ख़ुद उसे देखने गए थे।

आचार्य प्रशांत: वो ठीक है। लेकिन रमण का और गाय का क्या संबंध है? रमण क्या कर रहे हैं ये उनको ही जानने दीजिए। हमारे लिए वो सिर्फ़ अंधविश्वास बन जाएगा।

भारत ने ख़ूब भुगता है ये सब करके। हम ख़ुद को नहीं जानते, गाय और बंदर को क्या जान जाएँगे? भारत ने गाय और बंदर की ख़ूब कहानियाँ बनाई हैं, पर अपनी ज़िंदगी की कहानी का पता नहीं है।

प्रश्नकर्ता: सर, बुल्लेशाह के गानों में कौवों की काफ़ी बातें हैं, लेकिन वो इतने प्रसिद्ध नहीं हुए, वरना तो फिर उनको भी माला-वाला चढ़ा देते।

आचार्य प्रशांत: यकीन जानिए, कोई गाय खुश नहीं होती है आदमी के संपर्क में आकर; भले ही वो आदमी उसका मालिक हो, चारा-भूसी देता हो। अभागी ही गाय होगी जो आदमी के संपर्क में आ जाए। पूरे अस्तित्व में कोई नहीं है जो आदमी के संपर्क में आना चाहता हो।

प्रश्नकर्ता: कुत्ता भी नहीं?

आचार्य प्रशांत: कोई नहीं, बेटा। कोई नहीं है जिसकी ये इच्छा हो कि आदमी से वास्ता पड़े किसी भी तरह का। आदमी अस्तित्व की खाज है। उसको हर समय बेचैनी है, खुजली है, बाकी सब कुछ अपनी जगह ठीक है। जैसे अच्छा-खासा एक स्वस्थ शरीर हो, उसमें एक जगह पर खाज हो गई हो; आदमी वो है — बीमारी। और कहानियाँ बनी हैं कि जानवरों की सभा हो रही है, वो कह रहे हैं — "और किसी के पास चले आना, दो-पाए के पास मत जाना। ये अकेला है, बिलकुल विक्षिप्त है।"

प्रश्नकर्ता: आपने एक शिविर में कहा था कि जब जानवर से प्यार कर सको तो समझ लेना कि सही में प्यार करने के क़ाबिल हुए हो।

आचार्य प्रशांत: जानवर से प्यार तो तब होगा न जब पहले आप ज़रा यहाँ (मन की और इशारा करते हुए) साफ़ हों। हम तो ख़ूब जानवरों से प्यार करते हैं! अभी-अभी सुबह, हम जा रहे थे, तो एक मकान के सामने रुके, वहाँ एक आदमी था, उसे अपने कुत्ते से बहुत प्यार था। तो हम जिसको प्यार करते हैं उसके साथ क्या करते हैं?

प्रश्नकर्ता: बाँध देते हैं।

आचार्य प्रशांत: उसके गले में पट्टा बाँध देते हैं। आपको जिससे जितना प्यार होगा, आपने उसको उतना बड़ा कुत्ता बनाया होगा। और 'कुत्ते' से मेरा अर्थ वो कुत्ता नहीं, 'कुत्ते' से अर्थ है, जो हम उसे बना देते हैं — इसके गले में पट्टा डालो, चेन डालो, बाँध दो। मैंने उससे पहला सवाल यही पूछा। मैंने कहा, “ऐसे ही बाँध रहता है?” बोला, “हाँ।” पत्नियों से पूछो, “पति क्या ऐसे ही बाँधकर रखती हो?”, “हाँ।” माँओं से पूछो, “बेटी?”, “हाँ।”

तो आदमी के प्रेम का मतलब क्या है? भगवान बचाए आपके प्रेम से! आपके पास कोई आए और बोले, “तुमसे नफ़रत है,” तो कहिएगा, “ठीक है, झेल लेंगे,ख़ुदा हमारे साथ है।” पर आपके पास कोई आए और कहे, “प्यार हो गया है तुमसे,” सर पर पाँव रखकर भागिएगा, और मुड़कर मत देखिएगा। मुड़कर मत देखिएगा! उसके पास पट्टा और ज़ंज़ीर है। तो मत कहिए कि आदमी को जब जानवरों से प्यार हो जाए — हमारा तो प्यार बड़ा ही बदबूदार प्यार है।

तोप की मार में, तीर में न तलवार में, सारे वार सह लिए, मारे गए प्यार में।

ये सब जो सूरमा फिरते रहते हैं मुँह लटकाए, उनसे पूछो कि - "पूरी दुनिया से तो लड़े रहते हो, मारे कहाँ गए हो?" वो बता देंगे।

तोप की मार में, बड़े-बड़े हथियार में, ऐसे भागे थे हम, मारे गए प्यार में।

देखो, दुनिया में एक ही बीमारी है जो अभी भी लाइलाज है, उसका कोई इलाज नहीं है, और वो — प्यार से फैलती है। उसी को तो प्यार बोलते हो तुम, और क्या बोलते हो? जैसे अभी बहुत बड़ी गाड़ी हो और उसका भोपु, हॉर्न, तो उसको तुम बोल, " प्यार है इसका। जब हॉर्नी हो गई तो प्यार है।"

प्रश्नकर्ता: एक मूवी थी जिसमें नौ साल तक एक कुत्ता इंतज़ार करता रहा अपने मालिक का।

आचार्य प्रशांत: कुत्ते ने बनाई थी? बेवक़ूफ़ी की बातें करते हो। जिस दिन कोई कुत्ता ऐसी मूवी बनाए, उस दिन बात करना न। तुम तो पता नहीं क्या-क्या मूवी बना सकते हो, तुम तो कहते हो कि - "ये सारे जानवर जिनको हम क़त्ल करने जा रहे हैं ये ख़ुद अल्लाह के लिए अपनी गर्दन कटवा रहे हैं।" तुम तो मूवी यही बनाओगे कि - “हम थोड़े ही क़त्ल कर रहे हैं, ये तो अल्लाह के रास्ते में फ़ना होने को हाज़िर हैं।” ज़रा बकरे से भी तो पूछ लो! हमारी मूवीज़ में क्या रखा है?

प्रश्नकर्ता: हमारे घर पर कुत्ता था, तो उसने साँप को घर में घुसने ही नहीं दिया था।

आचार्य प्रशांत: तो तुम्हारे घर में घुसने नहीं दे रहा था, या अपने पास नहीं आने दे रहा था?

प्रश्नकर्ता: सर, शायद कुत्ता इंसान के साथ इसलिए रह लेता है क्योंकि उसको पता है कि उसको उससे खाना मिलता है।

आचार्य प्रशांत: हाँ, वो ठीक है, उस हद तक ठीक है।

प्रश्नकर्ता: आप ये सोचोगे कि हम खाना-वाना देते हैं, और घुमाने लेकर जाते हैं, तो कुत्ते को हम पाल रहे हैं, जबकि असल में हम उसकी नौकरी कर रहे हैं एक तरह से।

आचार्य प्रशांत: भाई, तुम उसे पाल लो, कुछ कर लो, कैसा कर लो, उसको बचपन से ही पकड़-पकड़ कर ख़ुद पर निर्भर बना लो, ये सब कर लो, लेकिन तुम्हारे साथ रहकर के वो कभी वो नहीं पा सकता, जो वो अन्यथा पाता। तुम्हारे साथ हमेशा उसका एक सब-ऑप्टीमल एग्जिस्टेंस (उपेष्‍टतम अस्तित्व) रहेगा।

तुम उसे अपनी ओर से जो चीज़ें देना चाहते हो, दे दो। तुम उसको महंगे वाले कुत्तों के कोट होते हैं, वो लाकर पहना दो, लेकिन उसके बाद भी जो ज़िंदगी उसकी प्रकृति के साथ बीतती, वो कहीं ज़्यादा बेहतर होती। हो सकता है फिर उसे फ़ैक्टरी में बना खाना खाने को ना मिलता, और तुम जो उसे पोषक पदार्थ खाने को दे,ते वो उसे ना मिलते, हो सकता है मर भी जल्दी जाता, लेकिन फिर भी तुम्हारे संपर्क में नहीं आता तो उसके लिए अच्छा रहता।

तुम्हारे लिए बुरा रहता, तुम्हारा मनोरंजन कम हो जाता, पर उसके लिए अच्छा रहता।

प्रश्नकर्ता: सर, फिर तो हम जिन जानवरों को पाल रहे हैं, वो भी हिंसक मन से आ रहा है?

आचार्य प्रशांत: तो और क्या है?

प्रश्नकर्ता: और हमेशा देखा जाए हर वक़्त तो पाप ही कर रहे हैं फिर।

आचार्य प्रशांत: और क्या कर रहे हो? तुम्हें क्या लगता है कि तुम्हारी सफरिंग बेफ़िज़ूल है? जो कष्ट दिन-रात भुगत रहे हो, कुछ पाप कर रहे होंगे, तभी तो भुगत रहे हो। और बेवक़ूफ़ी का आलम ये है कि कष्ट भी भुगत रहे हैं और जान भी नहीं रहे हैं कि पाप हो कहाँ रहा है।

और कौन-से पाप होते हैं?

प्रश्नकर्ता: सर, ओशो ने तो कहा है कि बच्चा पालना हिंसा है, क्योंकि हम बच्चों में अपने विकार भेजते हैं।

आचार्य प्रशांत: तुम्हें सुनने में बात अजीब लगेगी लेकिन ध्यान से देखना - कुत्ते को पालने में, बच्चे को पालने में और गाय को पालने में कोई विशेष अंतर थोड़े ही है। तुम गाय को पालते हो, तुम्हारी उससे अपेक्षा होती है कि ये बछड़ा पैदा करेगी, दूध देगी। तुम बेटी को पालते हो, उससे भी तुम यहीं कराना चाहते हो, कि - बच्चा पैदा करेगी। जो गाय बछड़ा ना दे, उसे तुम कितने दिन पालोगे? जो गाय दूध ना दे, उसे कितने दिन रखोगे?

प्रश्नकर्ता: उसे तो फिर तुरंत सोचते हैं कि कोई सस्ते दाम में ख़रीदकर ले जाए।

आचार्य प्रशांत: हाँ, तो बस ठीक। बेटे को पालते हो, उससे भी तुम्हारी उम्मीदें रहती हैं; गाय को पालते हो, उससे भी तुम्हारी उम्मीदें रहती हैं। बछड़ा पालते हो कि बैल बनेगा, बैल बनता नहीं है। वो तो साँड है, तुम उसे बैल बनाते है — पहले उसका पूरा पुरुषत्व है, उसे दबा-दबा के, दबा-दबा के बैल बनाते हो। बच्चे तो सारे साँड ही होने के लिए पैदा होते हैं, माँ-बाप का पहला काम होता है कि इनके भीतर का पुरुष तोड़ दो —उनको बैल बना दो। अब जब बैल बन जाएगा, तो फिर तुम्हारे लिए काम करेगा। तुमने जो पाला-पोसा, उसी अनुरूप तुम्हारे लिए अब वो काम करके देगा। साँड थोड़े ही तुम्हारे लिए काम करेगा। साँड को खेत में डालकर देखो, और हल लगाओ उसके पीछे, फिर देखो।

तुम जिसको भी पाल रहे हो, तुम पहला काम ये करोगे कि उसको निर्बल करो। जिसको ही तुमने पाला है, चाहे बेटा-बेटी, चाहे कुत्ता, तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है कि वो पुरुषार्थ-हीन हो जाए, निर्बल हो जाए। और पालतू होने को समाज बड़ी इज़्ज़त की नज़र से देखता है।

प्रश्नकर्ता: सर, अभी आपने बोला था मुझे कि तुम कष्ट में हो ही इसलिए क्योंकि तुम कहीं-न-कहीं किसी और के लिए कष्ट का कारण हो। ऐसे तो हमारे कारण हर जगह ही हिंसा हो रही है। फिर तो पूरी सामाजिक संरचना ही हटानी होगी।

आचार्य प्रशांत: सामाजिक संरचना बाहर नहीं होती, तुम्हारे खोपड़े में होती है, और तुम्हारे खोपड़े की गन्दगी पर ही पलती है। तुम्हें सामाजिक संरचना नहीं गिरानी है, तुम्हें अपने खोपड़े की गन्दगी साफ़ करनी है। वो साफ़ हो जाएगी तो सामाजिक संरचना किसपर पलेगी?

दुनिया में क्रांति नहीं करनी है, मन की सफ़ाई करनी है। मन की सफ़ाई कर लो, ये बाहर का जितना चक्र है, व्यवस्था है, ये अपनेआप गिर जाएगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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