आचार्य प्रशांत: इसलिए तुम्हारा दिल टूटा हुआ है, क्योंकि तुम्हें अभी भी पुराने, सामाजिक और आध्यात्मिक प्रचार में बहुत विश्वास है। तुम उस प्रोपगेंडा (झूठ जिसे सच की तरह दिखाने की कोशिश की जाए) के मारे हुए हो जिसने तुमको बता दिया है कि तुम आत्मा हो और ताऊ इंद्र हैं और चचा अग्निदेव हैं और संसार स्वर्ग है।
स्वर्ग नहीं है, क्या है? जंगल है भाई! और जंगल में जंगल का क़ायदा चलता है। बस वो जो जंगल पेड़ों का और झाड़ों का होता है वो ईमानदार होता है। वहाँ न सभ्यता है, न संस्कृति है और न ही ये झूठा नक़ाब है कि सभ्यता और संस्कृत है।
शेर सीधे बोलता है 'मुझे भूख लगेगी मैं मारूँगा' और शेर जब मार देगा तो ये नहीं कहेगा कि मैंने धर्म की ख़ातिर मारा। शेर जब मार देगा तो ये नहीं कहेगा कि ये नापाक था इसलिए मैंने इसको मार दिया, ये विधर्मी था, काफ़िर था इसलिए इसको मार दिया। वो सीधे बोलेगा मेरा स्वार्थ था इसलिए मार दिया।
आदमी भी मारता है पर साफ़-साफ़ कभी स्वीकारता नहीं है कि स्वार्थ था इसलिए मार दिया। आदमी कहेगा वो ये नियम-कायदे तोड़ रहा था इसलिए मार दिया मैंने, ये विश्व की शांति के लिए ख़तरा हो रहा था इसलिए इसको मार दिया।
तो आदमी जंगली है लेकिन जंगली होने के साथ-साथ दोगला और बेईमान भी है। जानवर भी मारता है लेकिन साफ़ बता देता है मैंने मारा अपने स्वार्थी पेट की ख़ातिर मारा। आदमी भी मारता है लेकिन आदमी साफ़-साफ़ बताएगा नहीं कि अपने स्वार्थ की ख़ातिर मारा है। आदमी ऊँचे-ऊँचे आदर्शों का नाम लेगा कि स्वाभिमान की ख़ातिर मारा है, राष्ट्र की ख़ातिर मारा है।
जानते हो जब दंगे होते हैं, सांप्रदायिक दंगे, इसमें तुम्हें क्या लग रहा है कि एक पंथ के लोग दूसरे पंथ के लोगों को यूँही मार देते हैं, ना! अगर तुम इनका अध्ययन करोगे तो पाओगे कि सबसे पहले तुम उसको मारते हो जिसकी दुकान से तुम्हारी दुकान को ख़तरा है। हाँ, कह देते हो कि मैं हिन्दू हूँ तो मैंने मुसलमान को मारा है, मुसलमान हूँ तो मैंने हिन्दू को मारा; पर मारा तुमने उसको है, जिसके कारण तुम्हारी दुकान नहीं चल रही थी।
विभाजन के समय जब दंगे हुए थे, जानते हो सबसे पहले कौन मरते थे? सुन्दर लड़कियों के घर वाले। सबसे पहले जो सुन्दर लड़कियाँ होती थी उनके घरवालों को मारा जाता था। मारा यही कह के जाता था कि ये दूसरे धर्म का है इसलिए इसको मार रहा हूँ। पर बात उसमें धर्म की होती नहीं थी, बात ये होती थी कि उसके घरवालों को साफ़ करो, लड़की को उठा कर ले जाओ क्योंकि लड़की को भोगना है। जानवर भी यही करते हैं, एक मादा के पीछे दो-तीन नर लगे होंगे, वो आपस में लड़ाई कर लेंगे। एक-दूसरे को हो सकता है मार भी दें पर वो ये नहीं कहेंगे कि ये काम हमने धर्म की ख़ातिर करा। वो साफ़-साफ़ बता देंगे ये काम हमने मादा की देह की ख़ातिर करा।
एक सामाजिक धोखा होता है, एक आध्यात्मिक धोखा होता है। एक तीसरा भी होता है — फ़िल्मी धोखा। आदमी बड़ा होनहार है उसने धोखों पर धोखे चढ़ा रखे हैं। बेवकूफ़ बनने का हमने तीसरा तल भी आविष्कृत कर लिया है। सामाजिक, आध्यात्मिक और तीसरा रुमानी तल; और रुमानी तल यह बताता है कि दुनिया रोमांस (कल्पित प्रेम लीला) के लिए है।
श्रोता: प्रेम के लिए है।
आचार्य: वो ख़ास किस्म का प्रेम जिसको रोमांस कहा जाता है। और वहाँ भी तुम्हारा बड़ा दिल टूटता है। तुम कहते हो, पिक्चरों में तो हम देखते थे कि जब उसके पीछे जाता है नायक तो उसका दुपट्टा उड़ने लगता है। और वायलिन बजने लगते हैं। और पेड़ों के पीछे से अपसराएँ निकल कर नृत्य करने लगती हैं। अब मैं पीछे जाता हूँ तो कुत्ते भौंकते हैं। फिर दिल टूट जाता है, कहते हो अरे ऐसी क्यों नहीं है जैसी मुझे बतायी गई थी।
उन्होंने जो प्रचार, प्रोपेगेंडा करा सो करा, तुमने माना क्यों? तुम्हारे पास अपना विवेक नहीं है, तुम्हारे पास अपनी आँखें नहीं हैं? तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा कि हमसे झूठ बोला जा रहा है? बोलो तुम वाक़ई माने बैठे हो गॉड हैड मेड मैन इन हिज ओन इमेज कि आदमी तो ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, तुम वाक़ई मान लिए ये सब कुछ?
तुम्हें दिख नहीं रहा कि इंसान जानवरों से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है? तुम्हें दिख नहीं रहा कि इस पृथ्वी पर इंसान ने सब जानवर ख़त्म कर दिए, एक जानवर बच रहा है अब, कौन?
श्रोता: इंसान।
आचार्य: हाँ। आज से एक लाख वर्ष पीछे जाओ तो अरबों-खरबों जानवर थे हज़ारों-लाखों प्रजातियों के, अरबो-खरबों जानवर थे। और मनुष्य थे कुछ लाख। अधिक-से-अधिक मनुष्य थे कुछ लाख। और आदमी इन चन्द सालों में ही क्या करा है? अब आदमी हो गए हैं आठ अरब और जानवर बचे हैं इतने से।
साहब जानवर भी कौन से बचे हैं बताइए? जो मनुष्य के काम के हैं। कुत्ते बचे हैं क्योंकि आदमी के काम आता है। गाय, भैंस, बकरी, भेड़ बचे हैं क्योंकि आदमी के काम आते हैं। जो भी जानवर आदमी के काम नहीं आता, वो ही विलुप्त हो रहा है। जो पेड़ आपके काम आ रहा है वो बच रहा है। जो पेड़ आपके काम नहीं आता वो देखने को नहीं मिल रहा है।
इंसान जानवरों में सबसे ख़तरनाक जानवर है, तुम्हें बात समझ में नहीं आ रही? तुम इंसानियत की हक़ीक़त से इतने नावाक़िफ़ हो? इंसान वो जानवर है जिससे पूरा जंगल थर्राता है। जंगल ही ख़त्म कर दिया आदमी ने। बाक़ी सब जानवर तो बेचारे जंगल में बैठे हैं, आदमी ने तो जंगल ही ख़त्म कर दिया पूरा।
गाँव में बोलते हैं कि जितने चौपाये हैं वो सब सुबह प्रार्थना करते हैं कि आज दोपाये के दर्शन न हों। चौपाये समझते हो, चार पाँव पर चलने वाले। चार पाँव पर चलने वाले और रेंगने वाले और उड़ने वाले और तैरने वाले, ये जितने हैं इन सबकी एक ही दुआ रहती है कि दो पाँव वाले से मुलाक़ात मत करवा देना। इतना ख़तरनाक जानवर है आदमी और तुम ताज्जुब कर रहे हो कि प्रेम, करुणा, सहिष्णुता देखने को क्यों नहीं मिलते।
प्रेम, करुणा, सहिष्णुता यूँही नहीं देखने को मिलेंगे। उसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उसके लिए किसी जीजस को अपनी जान देनी पड़ती है, उसके लिए किसी बुद्ध को, किसी महावीर को अपना जीवन देना पड़ता है। उसके लिए किसी राम को, किसी कृष्ण को अवतरित होना पड़ता है। उसके लिए न जाने कितने ऋषियों को, कितने मुनियों को, कितने ग्रंथ लिखने पड़ते हैं। बड़ी मेहनत करनी पड़ती है तब जा कर इंसान को थोड़ा सा प्रेम समझ में आता है।
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