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इस उम्र में ये गलतियाँ मत कर लेना || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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आचार्य प्रशांत: आप अभी जीवन के जिस पड़ाव पर हैं, शिक्षा के भी, उम्र के भी; बहुत सारे कचरे होते हैं जो मन को और ज़िन्दगी को भरने के लिए आतुर होते हैं। अगर तुमने अपनेआप को खाली छोड़ा तो कुछ दिनों तक तो निराश रह लोगे। कुछ दिनों तक तो एक बोरियत रहेगी जीवन से, निराशा रहेगी, सूनापन, खालीपन रहेगा। लेकिन बहुत दिनों तक तुम निराशा और खालीपन बर्दाश्त करोगे नहीं। तो फिर क्या करोगे? तुम जाकर के किसी हैंडसम (आकर्षक) कचरे को आमन्त्रित कर लाओगे। और वो तुम्हारी ज़िन्दगी के सूनेपन को और निराशा को बिलकुल उम्मीद से भर देगा।

बहुत पुरानी कहानी है यह, आज की नहीं है। यह लाखों साल पुरानी कहानी है। सबकी ज़िन्दगियाँ ऐसे ही भरी जाती हैं। अभी तो फिर भी ठीक है। जिस दिन कैंपस से पास आउट हो जाओगे। मान लो किसी जॉब (नौकरी) में चले गए। तो कैंपस में तो फिर भी ठीक था, बहुत बड़ा कैंपस है और फैसिलिटीज़ (सुविधाएँ) हैं और साथ के लोग हैं। जब जॉब वगैरह में जाते हो तो वहाँ और सूनापन लगता है। ख़ासतौर पर जो लोग कैंपस से निकलकर जॉब में जाते हैं और पहली जॉब में जाते हैं तो और ज़्यादा परेशान हो जाते हैं।

हिंदुस्तान है तो हिंदुस्तानी लड़की तो और ज़्यादा परेशान हो जाती है। परेशानी और ज़्यादा बढ़ जाती है, जब पता लगता है कि सिर्फ़ हम ही निराश बच रहे हैं। बाकी सब को आशाऍं मिलती जा रही हैं, एक-एक करके। शहनाईयाँ बजती जा रही हैं, कुछ ये हो रहा है, कुछ वो हो रहा है। फिर जल्दी से हम भी कोई ढूॅंढ़ लाते हैं, आशा देने के लिए।

अपनेआप को खाली मत छोड़ना! सुन्दर-से-सुन्दर और ऊँचे-से-ऊँचे तरीक़े से अपनी ज़िन्दगी को भर लो।

म्युज़िक (संगीत) सीखो, स्पोर्ट्स ( खेलकूद) में एक्टिव (सक्रिय) हो जाओ। अपने क्षेत्र में जितना तुमको मिनिमम कम्पल्सरी (न्यूनतम अनिवार्य) काम है उससे आगे जाकर के प्रोजेक्ट्स (कार्यभार) उठाओ। “एक-एक क्षण को लाद दो काम से।"

प्रश्नकर्ता: शुरुआत में, मैं ये सब करती थी।

आचार्य: बेटा! आप समझ भी रहे हो कि कौन है जो आपको शुरुआत के बाद रोक रहा है? आप समझ ही नहीं रहे हैं न? कौन है जो आपका मन किसी भी ढंग के काम में नहीं लगने दे रहा, आप समझ ही नहीं रहे हैं न? कौन है जो आपको खाली समय इतना दे रहा है? जानते हो कौन है वो? उसी का नाम रानी है। आप अगर महिला हैं तो मैं कहूँगा, उसका नाम है रानी। सिंगल सेल्ड (एककोशिकीय) रानी है वो। और आप अगर पुरुष हैं तो मैं कहूँगा उसका नाम बादशाह है। वह भी सिंगल सेल्ड बादशाह है।

वह अपने मतलब के लिए आपके पूरे मानसिक माहौल को बदले दे रहा है। मैनिपुलेट (चालाकी से काम निकालना) कर रहा है। और उसका इरादा पर एक है वो जो सिंगल सेल है वो डबल हो जाए। हमारी ये जो पूरी व्यवस्था है। ये नौकर है उस रानी की। उस रानी का क्या नाम है? ‘अण्डाणु’। और अगर आप पुरुष हैं तो आपकी ये जो पूरी व्यवस्था है वो नौकर है किसकी? ‘शुक्राणु’ की। अब उसके पास मुँह तो है नहीं कि वो आपसे आकर के बोले कि, ‘मुझे फ़र्टिलाइज़ (पैदा होना) होना है, मुझे फ़र्टिलाइज़ होना है।’

वो आकर के सीधे नहीं बोलेगा कि मैं फ़र्टिलाइज़ होना चाहता हूँ या मैं फ़र्टिलाइज़ करना चाहता हूँ। वह ये सब तरीक़े निकालता है। वो आपके भीतर एक उदासी भर देगा, वो आपके भीतर एक सूनापन, अकेलापन भर देगा। और ख़ासतौर पर जवान लोगों में। शामें वीरान हो जाऍंगी, रातें तन्हा हो जाऍंगी। और आपको लगेगा ये सब तो कुछ ऊँचे तल का काम हो रहा है, ये तो कुछ शायराना काम हो रहा है।

आप गज़ल वगैरह सुनोगे। हो सकता है लिखने भी लग जाओ कुछ कविता, गज़ल लिख डालो। आपको लगेगा यह तो कुछ उस तल का काम हो रहा है न। ‘मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते है।’ अरे! ये तन्हाई का काम नहीं है। ये किसका काम है? ये एक बहुत छोटे से उपद्रवी का काम है। बहुत छोटा सा उपद्रवी है, वो ये सब करवा रहा है। उसी का नाम प्रकृति है।

प्रकृति का बस यही इरादा है कि आपका शरीर किसी ऊँचे काम में न लगे। बस बच्चा पैदा करने कि मशीन बना रहे।

प्रकृति को आपकी पीएचडी में कोई रुचि नहीं है, देवी जी! प्रकृति को कोई समस्या नहीं होगी अगर आप अपना एमटेक भी छोड़ दो। आप आईआईटी से आज बाहर निकल जाओ, प्रकृति ताली बजाकर हॅंसेगी। उसे कोई समस्या नहीं है। खुश हो जाएगी बल्कि। प्रकृति माने समझ रहे हो न? ये जो देह लेकर के बैठे हो। और उस दिन के भीतर जो अण्डाणु लेकर बैठे हो। वो चाहते ही यही हैं कि तुम आईआईटी भी छोड़ दो।

प्रकृति के लिए तो ये बहुत तकलीफ़ की बात हो जाती है अगर तुम ज्ञान की सेवा में निकल जाओ। और प्रकृति को ख़ासतौर पर तकलीफ़ होती है, जब कोई महिला ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ती है। महिलाओं को तो प्रकृति ने पूरी व्यवस्था कर रखी है, अज्ञानी ही रखने की। इसीलिए देखा नहीं है महिलाएँ कितनी भावुक होती है? ये भावनात्मकता और क्या है? ‘ये बस प्रकृति के मिशन को आगे बढ़ाने का औज़ार है।’

और उसी भावुकता की एक अभिव्यक्ति ये सूनापन है। शाम सुनसान है और रातें तन्हा है। फिर रातों में आदमी गज़ल सुनता है। और उसमें वो एफएम में भी आ जाते है दो-चार। जब वो रातों में बोलते हैं, तब वो ज़ुबान से नही बोलते; फिर कंठ से बोलते हैं। ‘रात का वक़्त है, सब तन्हा आशिकों को इस बेबस मुसाफ़िर का सलाम। (श्रोतागण हॅंसते हैं)

फिर एक-से-एक बढ़कर वो आपके लिए ऐसे गाने चलाते हैं कि आप बह निकलते हो बिलकुल। और फिर सोने से पहले आप कहते हो, अब थोड़ा नौकरी डॉटकॉम छोड़कर शादी डॉटकॉम देख लिया जाए। नही तो फ र पॉर्न। और क्या करोगे!

फिर कह रहा हूँ—

ज़िन्दगी को जो भी तुम्हें ऊँचे-से-ऊँचा उद्देश्य नज़र आता है, उसमें डुबो दो।

नहीं तो तत्काल और घातक अंजाम होते हैं। ऐसी राहों पर निकल पड़ते हो कि फिर वापस नहीं लौट पाते। ख़ासतौर पर हिंदुस्तान में। यहाँ पर लौटने की गुंजाइश बड़ी कम होती है। ग़लतियाँ अगर कर दी जवानी में तो उम्रभर के लिए हो जाती हैं। और सब ग़लतियाँ शुरू यहीं से होती हैं, जहाँ पर आप बैठे हो अभी।

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