प्रश्नकर्ता: सर जैसे मैं और मेरी वाइफ (पत्नी) हैं, अगर मैं मेडिटेेशन (ध्यान) की भाषा में उन्हें डिस्क्राइब (वर्णन) करूँ तो शी इज़ अ काइंड ऑफ पर्सन हू लिव्स इन द मूमेंट (वह एक ऐसी इंसान हैं जो वर्तमान में जीती हैं)। मतलब वो हर एक पल से पूरी तरह जुड़ी होती हैं। शी इन्जॉय एव्रीथिंग, द वैदर, फूड, सन, प्लान्ट्स, एव्रीथिंग, विदआउट नोइंग एनीथिंग अबाउट स्पिरिचुएलिटी (वह आध्यात्मिकता के बारे में कुछ भी जाने बिना, हर चीज़ का आनंद लेती है, मौसम, भोजन, सूरज, पौधे, सबकुछ।)
लेकिन फिर उनमें इमोशन्स (भावनाओं) के वेरीएशन्स (विविधता) भी बहुत हैं। बहुत ज़्यादा खुश हो जाती हैं, कभी बहुत ज़्यादा दुखी भी हो जाती हैं। मुझमें उतने वैरीएशन्स नहीं हैं। आइ एम ट्राइंग टू अंडर्स्टेंड स्पिरिचुएलिटी (मैं अध्यात्म समझने की कोशिश कर रहा हूँ)। बहुत खुशी के पल में भी आइ डोंट फील वेरी हैप्पी (बहुत ज़्यादा खुश नहीं होता), बहुत दुख के मूमेंट में आइ डोंट फील वेरी सैड (बहुत ज़्यादा दुखी नहीं होता)। तो मुझे समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों है?
आचार्य प्रशांत: इसका क्या अर्थ है लिविंग इन द प्रेज़ेंट मूमेंट (वर्तमान क्षण में जीना)? क्या, मतलब क्या है इसका?
प्रश्नकर्ता: कि जैसे मैं हूँ जिस मूमेंट पर, आई एम इन टू इट (मैं पूरी तरह इसमें हूँ)।
आचार्य प्रशांत: इन टू इट हाउ? व्हॉट? एव्रीबडी इज़ इन टू इट (इसमें कैसे हो? क्या? सभी उसी क्षण में हैं) आप जहाँ हो वहीं तो हो और कहाँ हो?
प्रश्नकर्ता: एक फीलिंग कि मैं पूरी तरह उस मूमेंट में मौजूद हूँ।
आचार्य प्रशांत: यू हैव फीलिंग विथ़ रेस्पेक्ट टू दैट मूमेंट (आपका वो अहसास उस पल के सन्दर्भ में है न)?
प्रश्नकर्ता: यस (हाँ)।
आचार्य प्रशांत: फीलिंग विद रेस्पेक्ट टू दैट मूमेंट, इसको आप कह रहे हैं बीइंग इन दैट मूमेंट।
प्रश्नकर्ता: ध्यान वही है जो आप कर रहे हो। अवर फीलिंग्स वैरी (हमारी भावनाओं में अंतर है), मेरी इमोशंस कम हैं, मतलब ऐसा नहीं कि मैं बहुत ज़्यादा खुश हो जाऊँगा या बहुत ज़्यादा दुखी हो जाऊँगा।
आचार्य प्रशांत: कोई इतिहासकार है, उसका काम ही है इतिहास के बारे में सोचना, विश्लेषण करना, तो उसके लिए बीइंग इन द मूमेंट का क्या अर्थ हुआ? कि वो पीछे के बारे में सोचे ही नहीं?
प्रश्नकर्ता: नहीं-नहीं, सोचे।
आचार्य प्रशांत: फिर, बीइंग इन द मूमेंट का अर्थ क्या है?
प्रश्नकर्ता: जिस काम में लगा हुआ है उसमें सचेत रहे। उसको पता हो कि वो क्यों कर रहा है, क्या कर रहा है। कोई बाहरी विचार न हों।
आचार्य प्रशांत: आपका यहाँ सत्र चल रहा हो और भीतर बैठे आप पकौड़े खा रहे हों, और आप बिल्कुल मनोयोग से पकौड़े खा रहे हैं, कुछ और आपको ख़याल ही नहीं है कि सत्र बीत गया, तो ये बीइंग इन दिस मूमेंट ही हुआ कि भाई, जो कर रहे हो वही करो और कुछ सोचो ही मत। आपकी परिभाषा के अनुसार तो ये बिल्कुल ठीक है। बीइंग इन द मूमेंट , इधर-उधर की बात सोचो ही मत, जो कर रहे हो वही करे जाओ।
प्रश्नकर्ता: तो येे होता है कि क्यों कर रहे हो, क्या कर रहे हो।
आचार्य प्रशांत: तो सोचना तो पड़ेगा। इधर-उधर का सोचना पड़ेगा, तो बीइंग इन द मूमेंट में थॉटलेसनेस (निर्विचार) तो नहीं हो सकती।
प्रश्नकर्ता: हाँ, थॉटलेसनेस नहीं हो सकती, *यस*। मूमेंट में रहेंगे तो देयर शुड नॉट बी एनी थॉट।
आचार्य प्रशांत: देयर शुड नॉट बी एनी थॉट्स, सो यू विल एन्जॉय द पकोड़ा (कोई विचार नहीं आना चाहिए, तो पकौड़े का आनंद लोगे)।
प्रश्नकर्ता: यस, आइ एम ईटिंग पकोड़ा, दैन आइ एम, आइ एम फुली इन टू इट (हाँ, मैं पकौड़े खा रहा हूँ, तो मैं, मैं इसमें पूरी तरह शामिल हूँ)।
आचार्य प्रशांत: यू आर फुली इन टू इट, राइट? एंड आफ्टर इटिंग पकोड़ा, यू स्लीप, यू शुड बी फुली इन टू इट, एंड दैन यू फील भाई! फीलिंग पर ही तो चलना है, (आप पूरी तरह से इसमें, है न? पकौड़ा खाने का बाद आप सो जाते हो, आपको पूरी तरह से उसमें होना चाहिए, और फिर आप महसूस करते हो) *देन यू फील लाइक वॉचिंग टीवी, यू शुड बी फुली इनटू वॉचिंग द टीवी, देन यू फील लाइक रेपिंग समवन एंड यू शुड बी फुली इनटू रेपिंग।
डोन्ट यू सी दिस इज़ अ वैरी नॉनसेन्सिकल प्रोपेगैंडा, ‘बी फुली इनटू व्हॉटएवर यू आर डूइंग?’ डोन्ट यू सी देयर इज़ ओनली वन इंपोर्टेंट थिंग, विच इज़ टू नो, हू यू आर एंड हेन्स, व्हाट योर एक्शन मस्ट बी? एंड फीलिंग्स टू आर एक्शन्स, इफ यू डू नॉट नो, हू यू आर, योर फीलिंग विल बी टोटली मिसप्लेस्ड*
(फिर आपको टीवी देखने का मन हो तो आपको पूरी तरह से टीवी देखने में लग जाना चाहिए। उसके बाद आपको किसी के साथ बलात्कार करने का मन होता है, तो आपको पूरी तरह से बलात्कार में लग जाना चाहिए। क्या आप नहीं देख रहे हैं कि यह एक बहुत ही निरर्थक प्रचार है, 'आप जो भी कर रहे हैं उसमें पूरी तरह से लगे रहें', क्या आप नहीं देखते कि केवल एक ही महत्वपूर्ण बात है, वह ये जानना कि आप कौन हैं और इसलिए आपके कार्य क्या होने चाहिए। और भावनाएँ भी क्रियाएँ हैं, यदि आप नहीं जानते कि आप कौन हैं, तो आपकी भावनाएँ पूरी तरह से गलत हो जाएँगी)।
अब (खरगोश) अंदर चला गया है, तो फील (महसूस होना) का अंदर मूवमेंट (गति) हुआ ही नहीं। मैं तो खरगोश देख रहा हूँ अंदर कैसे चला गया। सत्संग के बीच में खरगोश कैसे देखा मैंने? मैं जो कर रहा हूँ, पूरी तरह कर ही नहीं रहा हूँ, मेरा ध्यान खरगोश पर कैसे चला गया? ये आ कहाँ से रहा है? ये सब प्रचार हैं, प्रचलित हैं, बीइंग इन द मूमेंट, दिस एंड दैट (ये और वो)।
आप उपनिषदों को खोलेंगे, आप शास्त्रों को खोलेंगे, उनमें बीइंग इन द मूमेंट जैसी कोई बात नहीं है। ये बीइंग इन द मूमेंट कंज़म्प्शन (उपभोग) को बढ़ावा देता है। इसीलिए एक इंडस्ट्रियल एज (औद्योगिक युग) में ये बहुत प्रचलित मुहावरा है— ‘खा रहे हो तो खाओ न, क्यों विचार करते हो कि क्या आगे होगा, क्या पीछे होगा?’ भले ही उधार लेकर खाना पड़े। क्रेडिट कार्ड पर पिज्ज़ा ऑर्डर करो।
पेप्सी या किसी के विज्ञापन में आता तो था डू इट नाउ (ये अभी करो), डू इट (ये करो) अभी। क्या आता था? उनका एक था, कुछ ऐसा ही था वो, डू इट अभी, यही तो है डू इट इन दिस मूमेंट (इसे इसी क्षण में करो)। वास्तव में वर्तमान क्या है? इसको समझिएगा, वर्तमान में जीना। वर्तमान में जीना माने उसमें जीना माने जो वास्तव में है। वर्तता है जो, वर्तमान, वर्तमान, विद्यमान, जो है।
उसमें मत जिओ जो नहीं है। सबसे पहले तो तुम जानो कि क्या है जो आवश्यक है और उसी में जिओ। ये है लिविंग इन द प्रेज़ेंट (वर्तमान में जीना)। सबसे पहले तो तुम्हें ये पता होना चाहिए कि सार-असार में भेद क्या है, मूर्खता कहाँ है और प्रज्ञा कहाँ है। उसके बाद तुम मूर्खता में नहीं जी रहे, ये है *लिविंग इन द मूमेंट*।
लिविंग इन द मूमेंट का ये बिल्कुल भी अर्थ नहीं है कि जो कर रहे हो वही पूरे तरीके से करो। आपकी फ्लाइट है, आपको पता है आज सोने के तीन घंटे ही मिलेंगे और आप कह रहे हैं, ‘सो रहा हूँ तो पूरे तरीके से सोऊँगा, आठ घंटे की तो लूँगा-ही-लूँगा।’ तो हो गया काम! पूरे तरीके से नहीं सोया जाता। अब समझो बात को। पूरा होकर सोया जाता है। इन दोनों में बहुत अंतर है। एक बात है कि कंज्यूम फुली (पूरी तरह भोगो) और दूसरी बात है बी फुल एंड कंज्यूम (पहले पूरे हो जाओ फिर भोगो)। दूसरे में तुम कंज्यूम करते ही जाओगे, करते जाओगे। पहले वाली स्थिति में तुम कंज्यूम करते ही जाओगे, करते... और दूसरी स्थिति में क्या होगा?
श्रोता: समझ के करना चाहिए।
आचार्य प्रशांत: तुम कह रहे हो बी फुल एंड देन कंज्यूम , अब कितना कंज़म्प्शन होगा?
श्रोता: जितना चाहिए।
आचार्य प्रशांत: जितना चाहिए। बिकॉज़ यू आर नॉट अननेसेसरिली ट्राइंग टू फिलअप अ वॉयड थ्रू कंजम्प्शन (क्योंकि आप अनावश्यक रूप से उपभोग के माध्यम से शून्य को भरने की कोशिश नहीं कर रहे हैं)।
प्रश्नकर्ता: बी फुल से क्या मतलब हुआ?
आचार्य प्रशांत: बी मेंटली फुल, डोंट ट्राइ टू सेटिएट अ मेंटल हंगर थ्रू फिज़िकल फूड (मानसिक रूप से पूर्ण रहें. शारीरिक भोजन से मानसिक भूख मिटाने का प्रयास न करें)। हममें से ज़्यादातर लोग पेट की मिटाने भूख के लिए नहीं खाते, मन की भूख के लिए खाते हैं। सो बी फुल एंड दैन ईट, दैट इज़ कॉल्ड ईटिंग फुली, दैट इज़ कॉल्ड ईटिंग फुली (तो पहले पूरे भर जाओ, फिर खाओ, इसे कहते हैं भरपेट खाना. इसे कहते हैं भरपेट खाना)। तो बीइंग इन द मूमेंट वैसे ही समझिए मतलब, बीइंग इन द मूमेंट जैसी कोई चीज़ नहीं होती। जब आप जान रहे हो कि आपके लिए क्या उचित है और उसी में पूरे तरीके से समर्पित हो तो आप कह सकते हो कि आइ एम इन द ..
श्रोता: *मूमेंट*।
आचार्य प्रशांत: प्रेज़ेंट , मूमेंट तो फिर भी नहीं। *आई एम इन द प्रेज़ेंट*। द प्रेज़ेंट इज़ नॉट अ मूमेंट, मूमेंट इज़ अ पार्ट ऑफ टाइम, द प्रेज़ेंट इज़ नॉट ए मूमेंट , तो दैन यू आर इन द प्रेज़ेंट (वर्तमान क्षण नहीं है, क्षण समय का हिस्सा है। वर्तमान कोई क्षण नहीं है. फिर, आप वर्तमान में हैं.)
श्रोता: सर, प्रेज़ेंट इज़ पार्ट ऑफ द टाइम (क्या वर्तमान समय का हिस्सा है)?
आचार्य प्रशांत: नो, प्रेज़ेंट इज़ द वास्ट स्पेस इन विच ऑल टाइम फ्लोज़। प्रेज़ेंट इन्कैपिसुलेट्स ऑल टाइम। (नहीं, वर्तमान वह विशाल स्थान है जिसमें सारा समय प्रवाहित होता है। वर्तमान हर समय समाहित रहता है)। प्रेज़ेंट में पास्ट (इतिहास), फ्यूचर (भविष्य) और जिसे आप कहते हैं दिस मूमेंट (ये क्षण) वो तीनों मौजूद होते हैं। प्रेज़ेंट इज़ नॉट ए पार्ट ऑफ़ टाइम, प्रेज़ेंट इज द एनवलेप ऑफ टाइम (वर्तमान समय का हिस्सा नहीं है, वर्तमान समय का आवरण है।)। टाइम प्रेज़ेंट के भीतर है, पास्ट भी प्रेज़ेंट में है, फ्यूचर भी प्रेज़ेंट में हैं और आपका दिस मूमेंट वर्तमान क्षण, वो भी प्रेज़ेंट में है। सब प्रेज़ेंट में है।
लेकिन प्रेज़ेंट इन तीनों में से किसी में नहीं समा सकता। पास्ट और फ्यूचर में तो नहीं ही समा सकता। प्रेज़ेंट दिस मूमेंट में भी नहीं समा सकता। इट इज़ बियॉन्ड टाइम (यह समय के परे है)।
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैंने अपने स्कूल में पढ़ा था कि प्लान मतलब जितना ज़्यादा प्लानिंग करेंगे, उतना ज़्यादा प्रेज़ेंट में नहीं हैं हम। तो लेकिन प्लानिंग भी तो इम्पोर्टेंट (महत्वपूर्ण) है, प्लान (योजना) नहीं करेंगे तो एक्शंस कैसे करेंगे? लाइक अगर जैसे सोचा कि मॉर्निंग वॉक करेंगे या एक्सरसाइज़ करेंगे तो वो प्लान भी करना पड़ा, हुआ न। अभी तुरन्त तो नहीं कर सकते।
आचार्य प्रशांत: आपको ये पता होना चाहिए कि प्लानिंग किस चीज़ की करनी है और क्या है जिसकी प्लानिंग न होनी चाहिए, न की जा सकती है। आप यहाँ आये हैं, उसकी प्लानिंग ठीक है। आप करा लीजिए, आपने रेलवे का टिकट बुक करा लिया, वगैरह, वगैरह। पर आप यहाँ आए हैं, बैठे हैं, मुझे सुन रहे हैं, वो भी प्लान्ड तरीके से सुन रहे हैं तो गड़बड़ हो जाएगी।
जो कुछ भी मटीरियल (भौतिक) है, उसकी प्लानिंग हो सकती है। और जो कुछ भी रियल बियॉन्ड मटीरियल (भौतिक से परे वास्तविक) है, वो, वो प्लानिंग (योजना) में नहीं आता। उसकी प्लानिंग नहीं हो सकती। उसकी प्लानिंग जिसने कर ली वो फिर परेशान रह जाता है।
प्रश्नकर्ता: एग्ज़ाम्पल (उदाहरण)।
आचार्य प्रशांत: अभी दिया।
प्रश्नकर्ता: सर, वो बात होती है न कि सही जो है, हम वो करें, तो समझ नहीं आता है कि सही क्या है। मोटीवेशन की भी जो बातें किताबें करती हैं, वो भी पढते हैं, लेकिन एक बिंदु के बाद ये समझ आ जाता है कि मोटिवेशन बहुत बाहरी और सतही है। तो फिर एक यू टर्न लेते हैं। उसके बाद दोबारा कोई मोटिवेशन ढूँढने की कोशिश चलती रहेगी। आपको सुनते हैं तो उससे इन्फ्लुएंस होते हैं। पर वो भी एक स्तर तक होता है। जब तक सुन रहे हैं ठीक है, कभी ऐसा भी होता है कि नहीं सुन रहे होते तो वो इन्फ्लुएंस भी नहीं रहता। उसके बाद फिर से आपको सुनने लगते हैं तो फिर से इन्फ्लुएंस्ड होते हैं। तो हैं सब इन्फ्लुएंसेस ही।
आचार्य प्रशांत: ये इन्फ्लूएन्स सिर्फ़ तब बनेगा जब तुम ठीक से नहीं सुन रहे हो, वरना ये इन्फ्लुएन्स नहीं बनेगा। ये इन्फ्लूएन्स सिर्फ़ तब बनेगा जब तुम इससे इन्फ्लुएन्स्ड होने को तैयार नहीं हो। समझो बात को। तुम इससे पूरे तरीके से अगर इन्फ्लुएन्स्ड हो गए तो फिर इन्फ्लुएन्स होने के लिए कुछ बचेगा नहीं। लेकिन तुमने अगर इसको ठीक से सुना नहीं, और इसे पूरे तरीके से ग्रहण नहीं किया तो तुम बच जाओगे। और इन्फ्लूएन्स होने के लिए तैयार रहोगे, तुम्हारी सत्ता बची रहेगी।
दो तरह के शब्द होते हैं। एक वो होते हैं जो होते ही इसीलिए हैं कि वो तुम्हें और ज़्यादा संस्कारित कर दें, तुम्हारे मन में खलबली मचा दें, तुममें कामना जगा दें। और एक शब्द होते हैं जो होते ही इसीलिए हैं कि वो तुम्हें शांत कर दें, तुम्हारी वासना मिटा दें। इन दूसरे शब्दों के बाद भी अगर तुममें बेचैनी है और तमाम तरह की इच्छाएँ हैं तो इसका मतलब यही है कि तुमने इन्हें सुना नहीं।
सुना नहीं तो फिर आधा-अधूरा असर होगा, उसके बाद भी बीमारी बची रहेगी। वो बीमारी ये शब्द लेकर के नहीं आए हैं। वो बीमारी इन शब्दों के बावजूद बची रह गई है क्योंकि तुम पूरी तरह नहीं सुन पाए। उपनिषद हैं, उपनिषद तुम्हें पचास बातें बताते हैं, पर तुमने पूरा नहीं पढ़ा। वो तुमसे कह रहे हैं— इसकी भी नेति-नेति करो, उसकी भी नेति-नेति करो। ये भी भूलो, वो भी भूलो। और अंत में कह रहे हैं कि अगर सबकुछ समझ गए हो तो इन शब्दों को भी भूलो। पूरा तुमने पढ़ा नहीं, आधा पढ़कर के छोड़ दिया तो क्या नतीजा निकलेगा?
बाकी सब कुछ भुलाओगे और उपनिषदों को रटते रह जाओगे। तो उपनिषदों को भूलने का एक ही तरीका है कि उनको पूरी तरह पढ़ो। पूरी तरह पढ़ो, पूरी तरह डूबो, पूरी तरह समझो। फिर भूल जाओगे। दुश्मनों से नुकसान तब हो जाता है जब उनके बहुत करीब चले जाओ, और संतों से नुकसान तब हो जाता है जब उनके करीब जाओ पर पूरी तरह करीब न जाओ। फिर होता ये है कि तुम्हें थोड़ा मिल गया और थोड़े तुम बचे रह गये, तो एक बेकार का मिश्रण तैयार हो जाता है। कुछ तो कर दी संत ने सफाई और बाकी तुम बचा ले गए।
श्रोता: कुश्ती चलती रहती है।
आचार्य प्रशांत: कुश्ती भी चलेगी और वो एक बड़ा विचित्र जोड़ तैयार होता है, कि जैसे कोई गंदी कड़ाही में पानी उबाले, साफ़ पानी, क्या होगा? सफाई पूरी होने दो। अगर अभी तुम पर गुरु या ग्रन्थ प्रभाव डाल रहे हैं तो इसका मतलब कि तुम हो अभी प्रभावित होने के लिए। अगर वो तुम पर प्रभाव डाल रहे हैं तो उनसे दूर मत भागो, उनके और करीब जाओ, ताकि वो तुम्हें पूरा मिटा दें। फिर कौन प्रभाव डालेगा? फिर वो भी नहीं डाल सकते प्रभाव।
कुछ बचा हुआ है न प्रभावित होने के लिए? और करीब जाओगे वो भी मिट जाएगा। उसके बाद कौन तुम्हें प्रभावित करेगा? शक्कर का ढेला हो और तुम उस पर चित्रकारी कर रहे हो, कितनी देर तक कर पाओगे? उस चित्रकार को चित्रकारी करने की पूरी अनुमति दी जानी चाहिए, क्यों?
श्रोता: समझने के लिए।
आचार्य प्रशांत: चित्रकारी कर रहा है। उसकी कूची में रंग तो है, पानी भी है। तुम्हें ये लग रहा है कि तुम्हारे ऊपर चित्र बनाया जा रहा है, वास्तव में क्या हो रहा है? तुम्हें गलाया जा रहा है। तुम्हें ये लग रहा है कि तुमको एक नया चेहरा दिया जा रहा है, तुम पर एक नया चित्र उकेरा जा रहा है, ऐसा तो कुछ है ऊपर-ऊपर।
वास्तव में क्या हो रहा है? कि चित्र बनाने की प्रक्रिया में शक्कर घुल रही है और कुछ ही देर में पूरी घुल जाएगी, उसके बाद कौन उस पर चित्र बना सकता है? कौन अब उसे प्रभावित कर सकता है? कौन उसे अब नया रंग दे सकता है? वो गई। गुरु भी ऐसा तुम्हें लगेगा कि जैसे तुम्हें नये चेहरे, नये चित्र, नये विचार दे रहा है। वैसा यदि हो भी रहा है तो नहीं हो रहा है। जो भी कुछ कर रहा है उस प्रक्रिया में तुमको मिटा रहा है।
डर कर भाग मत जाना कि पहले तो बाहर प्रभावित होते थे अब यहाँ प्रभावित होने लगे। पहले तो बाहर मुझ पर चित्र बनते थे, अब यहाँ चित्र बनने लगे। बाहर वाले सूखे चित्र बनाते थे तुम पर। उनका स्वार्थ था कि तुम पर सूखा चित्र बनाया जाए ताकि तुम बने रहो। पहले एक चित्र बना दिया तुम पर, फिर दूसरा बना दिया। पहले चित्र में तुम बेटे हो, दूसरे चित्र में तुम पति हो, तीसरे चित्र में तुम कुछ और हो, चौथे चित्र में तुम कुछ और हो। ये सब सूखा-सूखा तुम पर बनाया जा रहा है।
गुरु भी हो सकता है तुम्हें कुछ बना रहा हो। मान लो उसने तुम्हें शिष्य बना दिया, वो भी एक किरदार ही है जो तुम्हें दे दिया गया, कि जैसे एक किरदार पहले मिला था कि तुम पति हो या कहीं पर तुम मुलाज़िम हो, कार्यकर्ता, वैसे ही तुम्हें एक नया किरदार दिया गया है, कौन-सा? कि तुम शिष्य हो, पर ये नया किरदार, किरदार तो है, पर ये कुछ और भी कर रहा है, क्या कर रहा है?
श्रोता: पिघला रहा है।
आचार्य प्रशांत: ये तुम्हें पिघला रहा है। तो एक बार तुमने ये किरदार ले लिया, उसके बाद फिर कोई और किरदार नहीं लोगे और अन्ततः ये किरदार भी नहीं बचेगा। शक्कर के ढेले पर जो आखिरी चित्र बनाया जाएगा वो है शिष्य का, कि वो चित्र तो बना दिया और उसके बाद अब कुछ और नहीं बनेगा, क्यों?
श्रोता: है ही नहीं, बचा नहीं।
आचार्य प्रशांत: गया। तुम्हें गुरु की कूची का रंग दिखता है, ये नहीं दिखता कि रंग के साथ पानी भी है। तो वो तुम्हें रंग तो रहा है, पिघला भी रहा है, गला भी रहा है, मिटा भी रहा है।