इसलिए होता है डिप्रेशन || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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इसलिए होता है डिप्रेशन || नीम लड्डू

डिप्रेशन तब तक नहीं हो सकता जब तक अपने-आप को बहुत मजबूर अनुभव ना करो । और मजबूर हम नहीं होते, मजबूर हमें हमारी अंधी कामनाएँ बनाती हैं। अन्यथा कोई मजबूर नहीं है। कामनाओं में भी कोई दिक़्क़त नहीं है, अगर वो अंधी ना हों। कुछ ऐसा माँग रहे हो किसी जगह पर जहाँ वो मिल सकता ही नहीं। फिर जब पाओ कि वो मिल नहीं रहा है, तो डिप्रेस्ड हो जाओ, ये कहाँ की समझदारी है बताओ?

डिप्रेशन कोई चोट तो होती नहीं कि बाहर से किसी ने हाथ पर आ के मार दिया और तुम कहो, “ये डिप्रेशन है।“ डिप्रेशन तो एक मानसिक घटना होती है न। उस घटना के केंद्र पर बैठा होता है अज्ञान, और अज्ञान जनित कामना। तुम कुछ ऐसा चाह रहे होते हो जो हो सकता ही नहीं है। तुम आधी रात में सूरज की माँग कर रहे होते हो। तुम शराब पीकर होश चाह रहे होते हो – वो हो नहीं सकता। फिर जब वो होता नहीं है तो बुरा लगता है, बार-बार बुरा लगता है। तो इस स्थिति को तुम नाम दे देते हो अवसाद का।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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