प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। मैं ताहिर और मेरा भी यही एक प्रश्न था आपसे कि हर रिलीजन में शुद्धिकरण हुआ है। जैसे हिंदूइज़्म में हुआ है। बुद्ध के टाइम पर फिर महावीर लॉर्ड महावीर उसके बाद गुरु नानक फिर राजा राममोहन रॉय, गांधी जी ऐसे क्रिश्चियनिटी में मार्टिन लूथर किंग जर्मनी में और इस्लाम में ऐसा कुछ हुआ नहीं है। तो मैंने उसके ऊपर थोड़ा रिसर्च किया और पढ़ना स्टार्ट किया तो उसमें पता चला कि ये इसलिए हुआ क्योंकि क्रिश्चियनिटी मोस्टली क्योंकि सेंट्रलाइज्ड रिलजन थी। उधर चर्च था तो उसको रिवॉल्व करना इजी था।
इस्लाम सब जगह फैला हुआ है और दूसरे हर धर्म शिया में सेक्स है, सुन्नी में सेक्स है, काफी है। उसमें बदलाव लाना बहुत डिफिकल्ट है। सोफिज्म ने ट्राई किया वो मगर उतना बदलाव लाया नहीं। और आज के जब आपने बात की कि वो दुख का साइकिल चलता रहता है। लिबरलिज्म फिर बाद में लोक धर्म। तो मेरा प्रश्न है कि फिर उससे बाहर निकलने के लिए खुद अपना ही रिलीजन लाना पड़ता है। जैसे हिंदूइज़्म में बुद्धिज्म आया। वो शायद बुद्धा ने भी ट्राई किया रहेगा कि हिंदूइज़्म में चेंज लाने के लिए मगर वो नहीं ला पाए इसलिए उन्होंने अलग से अपना रिलजन बनाया महावीर ने भी सेम, गुरु नानक और फिर अंबेडकर जी ने भी ट्राई किया बहुत ट्राई किया बाद में उन्होंने बोला कि अभी मुझे बुद्धिज्म में *कन्वर्ट*करना पड़ेगा तो आपकी प्रक्रिया जानना चाहता हूँ इस पर।
आचार्य प्रशांत: देखो जो इस तरह से धाराएँ निकलती भी है ना सफाई की पूरी प्रक्रिया में वो ऐसा नहीं है कि वो धाराएँ बिल्कुल अलग जाती हैं। बुद्ध के बाद जो उपनिषद आते हैं उनमें बुद्ध की सफाई परिलक्षित होती है। बुद्ध और महावीर के काल के बाद जो वैदिक साहित्य भी है उसमें अहिंसा एक महत्वपूर्ण शब्द हो जाता है। तो ऐसा नहीं है कि भगवान बुद्ध भगवान महावीर है तो वो अपनी-अपनी धारा लेकर के अलग निकल लिए। नहीं, उनके होने से जो मेन स्ट्रीम रिलीजन था, जो मुख्य धारा थी सनातन या हिंदू धर्म की, उसका भी शुद्धिकरण हुआ और यही बात फिर सिख पंथ पर भी लागू होती है।
आप अगर जाएँगे तो पंजाब में, हरियाणा में जो हिंदू भी हैं वो भी गुरुद्वारे जाते हैं। और जो निर्गुणी भक्ति है सिख मत की उसका हिंदुओं पर भी पूरा प्रभाव है। एक परंपरा ऐसी होती थी कि हिंदू घरों का जो सबसे बड़ा लड़का होता था वो सिख बन जाता था। पंजाब के हिंदुओं में भी अगर आप देखेंगे चरित्रगत दृष्टि से तो तो सिखों की तलवार की खनक सुनाई देती है वहाँ भी। तो वहाँ भी ऐसा नहीं हुआ है कि सिख धारा अलग निकल गई और जो अह हिंदू धर्म की मुख्यधारा थी वो पहले की तरह रह गई। नहीं, वो ठीक है अपने आप में अलग पंथ बन रहा है। लेकिन उसके होने से जो मुख्यधारा है उसको भी बहुत लाभ होता है। समझ रहे हो।
तो जब भी कोई रिफॉर्मर आता है तो भले ही ऐसा लगे कि उसने अपना कुछ अलग बना लिया और कई उसकी मजबूरी होती है कि उसको थोड़ा अलग चलना पड़ता है। जैसे आपने अभी डॉ. अंबेडकर का नाम लिया। पूरी ज़िन्दगी प्रयास करने के बाद जब नहीं सुन रहे हो मेरी बात तो अंत में जाकर के बोले कि भाई हम अपने अनुयायियों को लेके बहुत धो रहे हैं। लेकिन उसका नतीजा यह भी है ना फिर कि जो मेन स्ट्रीम हिंदू समाज है उसके भी थोड़े कान खड़े हुए। उसने कहा कि देखो ये जो व्यवस्था है जिसमें शोषण है, उत्पीड़न है ये नहीं चलेगा।
तो उस रिफॉर्मर को आना होता है। चाहे वो अपने आप में कोई खुद नई धारा ही शुरू कर दे जैसे बौद्ध या जैन धारा या फिर वो जाकर के किसी धारा का हिस्सा बन जाए जैसे डॉ. अंबेडकर कि पहले से बौद्ध धारा थी वो उसमें आकर शामिल हो गए। लेकिन उसके होने से ही शुद्धि होती है। और ये बड़ा इंडिविजुअल काम होता है। ये किसी एक आदमी कि अपनी पहल से शुरू किया हुआ काम होता है। महात्मा बुद्ध से पहले बौद्ध होते थे क्या? अकेले एक आदमी ने शुरू करा। अब ठीक है, भगवान महावीर तीर्थंकरों की पूरी श्रंखला है वहाँ पर।
लेकिन फिर भी उनसे पहले के जो तीर्थंकर हैं, उनको आप नहीं जानते हो। इसी तरह गुरु नानक देव आ जाते हैं स्वयं शुरू कर रहे हैं कुछ। इसी तरीके से पिछले 200 साल में जो सुधार कार्यक्रमों की पूरी श्रृंखला रही है वो सब लोग एज इंडिविजुअल्स व्यक्ति के तौर पर निकले थे सुधारने के लिए क्योंकि उनके अपने हृदय अपने जमीर की बात थी — कि मैं कुछ देख रहा हूँ जो मेरे धर्म पंथ मज़हब में गलत है और मैं उसको स्वीकार नहीं करता। मैं उसको ठीक करने निकला हूं। उसमें कई लोगों ने कुछ ऐसा भी कर लिया जो ऐसा लगता है कि यह तो एक नई शाखा ही निकाल दी। चाहे वो ब्रह्म समाज हो, आर्य समाज हो।
लेकिन उन नई शाखाओं के बावजूद जो जो जो मुख्य धारा है उसको शुद्धि ही मिली। उन शाखाओं से जो मुख्य धारा है वो कमजोर नहीं हो गई, साफ हो गई। अब और मैं कह रहा हूँ ये बहुत इंडिविजुअल बात होती है। तो ये तो मुस्लिमों को स्वयं ही देखना पड़ेगा। नहीं तो यह बड़ी बेतुकी एब्सर्ड स्थिति हो जाएगी कि इस्लाम में सुधार के लिए कोई बौद्ध, कोई हिंदू, कोई ईसाई या कोई सिख खड़ा हो। कितनी अजीब बात हो जाएगी ना। हाँ, प्रेरणा आप ले सकते हो। बिल्कुल प्रेरणा ले सकते हो। राजा राममोहन रॉय ने मार्टिन लूथर से प्रेरणा ली है। बिल्कुल ली है। महात्मा गांधी ने दोस्तोवस्की से लेके टॉलस्टॉय तक सबसे प्रेरणा ली है। फिर नेल्सन मंडेला ने महात्मा गांधी से प्रेरणा ली है। प्रेरणा आप किसी से ले सकते हो। पर अपने देश का और अपने धर्म का काम तो उसी देश के लोगों को और उसी धर्म या उसी मज़हब के लोगों को खुद ही करना पड़ता है। हाँ, प्रेरणा आप ले लो किसी से। वो अलग बात है।
तो ये काम तो मुसलमानों को खुद ही करना पड़ेगा। अपने घर में सफाई सबको खुद ही करनी पड़ती है। कोई दूसरा आकर के समझा सकता है, बता सकता है, उदाहरण दे सकता है, प्रेरणा दे सकता है, उत्साह बढ़ा सकता है, हौसला भी दे सकता है। लेकिन अस्तित्व में ऐसा चलता नहीं है कि रहना आपको है और कोई और आकर के झाड़ू मारे। तो वो हौसला तो मुस्लिमों को स्वयं ही दिखाना पड़ेगा।
आते हैं ना लोग कितने तो होते हैं। सबसे बड़ी मुझसे शिकायत ही बहुत लोगों को ये है। कि आप सनातन के बारे में इतनी गलतियाँ निकालते हो। हिम्मत हो तो इस्लाम के बारे में बोल के दिखाओ। हिम्मत की क्या बात है? और मैं बिल्कुल कह रहा हूँ मैं मुसलमान होता तो मैं इस्लाम के बारे में बोलता और आज भी यहाँ अभी स्क्रीन पर मुस्लिम थी, आप भी मुस्लिम हो आज भी कोई मुस्लिम आकर बात करे तो मैं इस्लाम के बारे में बोलूँगा पर ना मैं मुस्लिम ना मुझसे बात करने वाला मुस्लिम और मैं बोलने लग जाऊँ इस्लाम के बारे में तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना मैं पागल हुआ हूँ?
ना मैं मुस्लिम ना मुझसे सवाल करने वाला मुस्लिम और में लगा हुआ हूँ इस्लाम के बारे में बोलने में कोई तुक है? पर मुझ पर आक्षेप करने वालों की ये बड़ा दर्द है उनको खरे इस्लाम पे क्यों नहीं बोलते? तुम आओ सामने बैठो करो बात तो बोल लेंगे। मुझसे ये पूछने से पहले मैं इस्लाम पर क्यों नहीं बोलता तुम ये बताओ कि तुम सिर्फ इस्लाम पर ही क्यों बोलते हो? इस देश में कई लोगों का ये पूर्ण कालीन पेशा है, कि वो अपने घर के अलावा बाकी सबके घरों पर फफ्तियाँ कसते रहते हैं। अपने दामन में झाँकने की बजाय वह दूसरों को बताते रहते हैं कि तेरी शर्ट गंदी है, तेरा यह है, तेरा वो है। दूसरों का क्या है, कैसा है, मुझे भी दिख रहा है। और मुझे भी दिखता है कि गंदगी है दूसरों में।
पर एक साधारण सी बात है कि दूसरों की गंदगी बताने से पहले अपनी गंदगी तो साफ करूँ और मेरी गंदगी साफ होगी। उसके बाद कोई आकर के मुझसे बात करना चाहेगा उसके घर की गंदगी के बारे में। तो मैं प्रस्तुत हूँ। भई आखिरकार तो आप इंसान हो और हर इंसान से आपका सरोकार है। बात पंथ, मज़हब, संप्रदाय की तो नहीं होती है। कोई भी आकर आपसे बात करेगा और वो साफ होना चाहता है। बेहतर होना चाहता है तो आप बिल्कुल खुलकर बात करोगे। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सबसे पहले तो आप अपनी बात करोगे ना। अपना भीतर झाँक कर देखोगे।
कितनी अजीब बात है। है। मेरा पूरा घर सो चुका है। एकदम गंदा पड़ा हुआ है और मैं छत पर खड़ा हो गया हूँ। और वहाँ उधर दूर मोहल्ला है। एकदम दूर है। उनको दूरबीन लगा के देख रहा हूँ। और बहुत खुश हो रहा हूँ कि देखो वो मुझसे भी ज़्यादा गंदे हैं। ये कैसी खुशी है? ये काहे की खुशी है? पूछने वाले आए हैं। कई तरफ से आए हैं। जितनी धाराएँ हो सकती हैं और कई देश हैं। कई देशों से आए हैं। उन्होंने पूछा है तो हमने बोला है। क़ुरान की आयतों को लेके भी सवाल आए हैं उन पर भी बात हुई है।
लेकिन पहली बात तो अपना धर्म अपना फ़र्ज़, है ना? खुद ही करना पड़ेगा कि नहीं? और ये भी पूरी तरह सही नहीं है कि इस्लाम में रिफॉर्म मूवमेंट्स नहीं रहे हैं। आप जाकर के खोजो पूरा जो सूफी सिलसिला है वही क्या है? वही एक तरह का रिफॉर्म मूवमेंट है। और उसके अलावा भी आप जाकर के देखोगे तो भारत ही नहीं ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान क्या थे? उन्हें सीमांत गांधी क्यों बोलते थे? आज चाहे जो हालत कर ली हो एएमयू की पर एएमयू की स्थापना किस लिए हुई थी? हाँ वो भी रिफॉर्मशन ही था। क्योंकि जो पूरी मुस्लिम कौम थी वो बुरी तरह पिछड़ी हुई थी अंधविश्वास में घिरी हुई थी, उनको उबारने के लिए।
आगे भी होने चाहिए और ये जिम्मेदारी तो मुसलमानों को खुद ही उठानी पड़ेगी।
प्रश्नकर्ता: सर उसमें मैंने देखा है कि जिन्होंने ट्राई किया है जैसे मैं दाऊदी बोरा कम्युनिटी से हूँ। तो एक अली असगर इंजीनियर थे जिन्होंने ट्राई किया कि शुद्धिकरण करें। तो उन्हें फिर काफ़िर कह के उनको हटा दिया गया और उन्हें..
आचार्य प्रशांत: आज भी किसी की मौत हुई है। कहीं के थे जिन्होंने जो पहले इस्लाम के भीतर से धार्मिक शख्सियत थे जिन्होंने खुलकर के जो अपना नॉन मेन स्ट्रीम सेक्चुअल ओरिएंटेशन था वो घोषित कर दिया तो शायद उनको आज गोली वग़ैरह मार दी है। तो देखो भाई मुश्किल काम करने में फिर सुकून भी गहरा मिलता है।
इस्लाम में सुधार करना मुश्किल काम है टेढ़ी खीर है और फिर जो कर पाएँगे उनको सुकून भी ज्यादा मिलेगा।
ये गोलीबाजी ज़्यादा चलती है। चार्ली हेबड्डो पकड़ लिया उनको मार दिया, सलमान रशदी।
प्रश्नकर्ता: एंबेसडर एंबेसी में किसको मार दिया उसका नाम याद नहीं आ रहा।
आचार्य प्रशांत: हर महीने ही ये खबर में रहता है। जो आम मुसलमान है इतनी दहशत में रहता है। कहता है कुछ बोलो नहीं तो लेकिन फिर कह रहा हूँ जो काम मुश्किल होता है वो करने में फिर फक्र भी बड़ा होता है। सुकून भी ज़्यादा होता है। और इस काम की जरूरत बहुत है।
और जरूरत एक वजह से और भी बताता हूँ — इस्लाम अगर इतना ही कट्टर रह गया तो उसकी प्रतिक्रिया में दुनिया भर के बाकी लोग कट्टर हुए जा रहे हैं। दुनिया भर में जो ये राइट विंगज्म इतना प्रबल हो रहा है इसका बड़ा कारण जो है वो एंटी इस्लामिज़्म है। क्योंकि रिफ्यूजीस दुनिया भर के सब देशों में पहुँचे हुए हैं, यूरोप में भरे हुए हैं। अमेरिका में भी पहुँचे हुए हैं, अमेरिका में रिफ्यूजी इतने नहीं इमीग्रेंट्स हैं। पर यूरोप में तो रिफ्यूजी है, यूरोप में आप चारों तरफ जो आप देख रहे हो ना राइट विंग गवर्नमेंट्स आ रही है। उसका बड़ा रीजन ये है। ये रिफ्यूजीस वहाँ पहुँचते हैं और अपनी कट्टरता दिखाते हैं। और जब कट्टरता दिखाते हैं तो आम जनता कहती है कि हम ही क्यों लिबरल बने रहे? यह कट्टर बनके हमारा इतना नुकसान कर रहे हैं। तो फिर एक हार्डनिंग ऑफ एटीट्यूड हो जाता है। तो इस्लाम का सुधरना जरूरी है नहीं तो बाकी सारे धर्म भी बराबर के कट्टर हो जाएँगे।