प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, मेरा नाम मयंक है मैं एक स्टूडेंट हूं। सर इमोशंस जब आते हैं जैसे एक डाइट कर रहा है कोई इंसान, कोई इंसान डाइट कर रहा है और कोई खुशबू आई फिर उसको पता है, कि वो जा के खाएगा और इस बात पे वो हंस रहा है। लेकिन अब मैंने डिसाइड कर लिया कि मैं एक काम करने वाला हूं। और मेरे सामने फोन रखा हुआ है। और फोन पे नोटिफिकेशन आ रही है। मुझे पता है कि मैं अभी जाके खोलने वाला हूं। खोलने के बाद पहली शॉट आएगी। शॉट देखने के बाद मेरा हाथ अपने आप जाएगा। दूसरी शॉट तक मैं अवेयर होता हूं कि मैं देख पा रहा हूं कि हां, मैं नेक्स्ट शॉट यहां पे रुक सकता हूं या फिर नहीं रुक सकता हूं। थोड़ी सी होती है मेरे पास चॉइस।
लेकिन जैसे ही तीसरी, चौथी पता ही नहीं चलता तीसरी - 30 कब निकल गई। वहां पर भी चॉइस ऑलमोस्ट चली जाती है। फिर वहां से एक गिल्ट भी आता है कि क्यों इतना टाइम वेस्ट कर दिया। फिर उसके बाद मतलब फ्रस्ट्रेशन बहुत ज्यादा आती है, कि काम भी नहीं हुआ और इतना टाइम भी खराब हो गया। इसका कुछ निकला भी नहीं। और इससे कंट्रोल नहीं कर पाता फिर अपने आप। फिर एक दिन खराब हुआ फिर अगले दिन सेम वही चीज क्योंकि इस बार अब वो पीक पर है। फिर अगले दिन वो और बढ़ता है। तो इस चीज से कैसे छुटकारा पाया जाए?
आचार्य प्रशांत: मुझे जिस चीज के बारे में ये भी पता है कि वो अनकंट्रोल्ड है। तो मुझे कुछ पता है कि नहीं पता है? कुछ तो पता है ना? मुझे अगर पता चल जाए कि एक पॉइंट ऑफ नो रिटर्न होता है। उसके बाद मैं कंट्रोल खो देता हूँ। तो बताओ मेरे पास कंट्रोल करने का कोई तरीका है या नहीं है। मुझे पता है।
इन्होंने कहा कि ये बैठ के कुछ कर रहे हैं, काम कर रहे हैं, पढ़ाई कर रहे हैं। फोन सामने रखा है। नोटिफिकेशन आई। बोलते हैं, अभी तक तो मेरा आत्मनियंत्रण रहता है। कि नोटिफिकेशन आई है। मैं हो सकता है इग्नोर भी कर दूं। फिर कई नोटिफिकेशन आती हैं। तो फिर मैं थोड़ा बहकता हूं। मैं नोटिफिकेशन को खोलता हूं। तो उसमें पहला शॉट आता है। बोलते पहला शॉट आया। अभी भी कुछ चेतना है। फिर स्क्रॉल कर दिया तो अगला आ गया। बोले अब कम हो गई। कम हो गई। बोले तीसरे चौथे तक पहुंचते-पहुंचते अब कुछ याद नहीं रह जाता। अब एंडलेस स्क्रोलिंग शुरू हो जाती है। ये तो ऐसे बता रहे हो जैसे मामला मजबूरी का हो।
अभी यहां खड़े हो। तुमने ये पूरी जो बात है जो पूरी प्रक्रिया है ये इतने विस्तार में बता दी जब बता दी तो अब जब नोटिफिकेशन आएगी तो काहे को खोलोगे। जब तुमको पता ही है कि ये पूरा प्रोसेस कैसे काम करता है तुमको ये भी पता है कि इस प्रोसेस में पॉइंट ऑफ नो रिटर्न क्या होता है तो तुम सब कुछ तो जानते ही हो ना पहले से तो तुम क्यों इस प्रोसेस को इनिशिएट कर रहे हो इनिशिएशन का फिर मतलब ही क्या हुआ।
आप लोगों से पूछ रहा हूं, बहुत सारे टेक्नोलॉजी के स्टूडेंट्स हो । बहुत बेसिक बात है। मुझे पता है कि एक चीज अगर इनिशिएट हो गई तो वो अब चेन रिएक्शन की तरह आगे बढ़ेगी। ठीक है? मान लो जैसे न्यूक्लियर एक्सप्लोजन है। और उसके बाद भी मैं इनिशिएट कर दूं। तो मैं क्या चाह रहा हूं? मैं चाह ही रहा हूं ना चेन रिएक्शन। मेरी नियत ही यही है कि अब तो चेन रिएक्शन होने दो।
पर मैं प्रदर्शित ऐसे कर रहा हूं जैसे मैं कितना बड़ा मजबूर हूं कि मैंने तो सिर्फ बटन दबाया था। ये हिरोशिमा क्यों उड़ गया? मैंने थोड़ी कुछ करा था। मैंने तो सिर्फ एक छोटा सा नुनू सा ऐसे बटन चुप। अरे! ये क्या हो गया? इतने लाख लोग मर गए। भाई तुम्हें अभी से पता है। तुम्हें पहले से पता है अंजाम क्या होगा। तुम पूरे प्रोसेस से वाकिफ हो। और जब इतने परिचित हो, इतने वाकिफ हो पूरी प्रक्रिया से तो शुरू ही क्यों कर रहे हो? मैं बताता हूँ क्यों शुरू कर रहे हो।
माया का उपकरण होता है झूठा आत्मविश्वास। और आत्मविश्वास होता झूठा ही है। मालूम है तुम अपने आप को क्या आत्मविश्वास बताते हो? तुम खुद से बोलते हो अच्छा ठीक है, दो शॉट देख के रुक जाऊंगा। बोलते हो ना? नोटिफिकेशन खोलते वक्त दो देखूंगा बस दो उपनिषद हमें बोलते हैं कृतोस्मर कृतम स्मर कहते हैं तुम भी वही हो और माहौल भी वही है जो आज से पहले हजार बार हो चुका है राह वही है राही भी वही है तो बताओ मंजिल अंजाम दूसरा कैसे हो जाएगा ये जो तुम्हारे साथ आज हो रहा है ये तुम्हारे साथ 100 बार पहले भी हो चुका है तो तुम्हें अब इतना भरोसा कहां से आ गया कि इस बार तुम दो शॉट्स पे रुक जाओगे। पहले कभी रुके हो? पहले कभी रुके हो क्या? नहीं रुके हो तो आज ये भरोसा कहां से आ गया? कोई भरोसा नहीं है। कोई भरोसा नहीं है।
आगे बढ़ रहे हैं हम समझने के लिए। मालूम है तुम क्या खेल खेल रहे हो? तुम अपनी नजरों में नैतिक बने रहना चाहते हो। नैतिक माने मोरल। अच्छा आदमी। तुम कह रहे हो देखो भाई लोग। मेरा इरादा तो यह था कि दो शॉट्स देखूंगा फिर पढ़ाई करूंगा। और मैंने पहले ही सबको बोल दिया था। यहां आईना था। आईने को बोला था देखो नोटिफिकेशन आई है। बहुत आकर्षक लग रही है। लेकिन हमें देखने तो बस दो शॉट्स हैं। तो हम आदमी तो बुरे नहीं हुए। आदमी बुरे हैं क्या? मेरा इरादा क्या था? बस दो शॉट्स देखूंगा। तो मैं आदमी अच्छा हूं। तो तुमने अपने आप को सर्टिफिकेट दे दिया कि मैं आदमी अच्छा हूं। मैं तो बस दो शॉट्स देखने के लिए शुरू कर रहा था। जानते खुद अच्छे तरीके से हो भीतर ही भीतर कि दो पे तो गाड़ी रुकेगी नहीं।
पर अपने आप को एक झूठे आत्मविश्वास की सांत्वना दे रहे हो और उसके पीछे क्या है बदनियति खूब पता है नहीं रुकोगे नहीं रुकोगे आज तक नहीं रुके आज कैसे रुक जाओगे तुम में क्या बदल गया है ऐसा भीतर से कि जो पहले नहीं हुआ वो आज कर डालोगे तुम तो क्यों शुरू कर रहे हो जब आदमी को अच्छे से पता होता है कि उसका स्वयं के प्रति आत्मविश्वास झूठा है खोखला है तो फिर अगर वह शुरू करता भी है तो कुछ सेफ गार्ड्स के साथ कुछ सावधानियों के साथ करता है।
वो कहता है अच्छा ठीक है। मुझे 9:00 बजे कहीं पहुंचना है। तो मुझे ये जो भी करनी है स्क्रॉलिंग वगैरह ये मैं शुरू ही 8:50 पे करूंगा। शुरू ही 8:50 पे करूंगा। 8:50 पे करूंगा। 9:00 बजे अपने आप रुकना पड़ेगा। मैं कहता हूं बार-बार आजादी चाहिए हो तो सही बंधन चुनना सीखो। ये तुमने अपने ऊपर बंधन डाल लिया। बोले हां ठीक है। ठीक है। मैं बहुत अच्छा आदमी हूं। मुझे शॉर्ट देखने हैं, मैं दो ही शॉर्ट देखूंगा। जब बेटा तुझे दो ही शॉर्ट देखने हैं, तो 850 पे देख ले। तुझे दो ही देखने हैं ना? 200 तो देखने हैं नहीं, नहीं देखने है ना 200? अब वो तो अच्छा आदमी बन के बैठा हुआ है भीतर। नहीं नहीं मुझे 200 नहीं देखने। दो ही देखने हैं वो ऐसे कर रहा है। शिट।
जब तुझे दो ही देखने हैं, तो 10 मिनट बहुत हैं। 10 मिनट बहुत हैं। तो, 9:00 बजे कहीं पहुंचना है और देखने का बहुत मन भी कर रहा है। तो 8:50 पर शुरू करेंगे। झक मार के 9:00 बजे रुकोगे। कहीं पहुंचना है। और अगर पता चला कि 9:00 बजे जहां पहुंचना था वहां पहुंचना छोड़ के शॉट्स ही देख रहे हो। तो यह भी जाहिर हो जाएगा खुद को बिल्कुल प्रकट हो जाएगा कि कितने बड़े हवसी हो।
अब कम से कम अपनी नजरों में नैतिक और सज्जन बन के तो नहीं घूम पाओगे। दिख जाएगा कि 9:00 बजे मुझे फ्लाइट पकड़नी थी। मैंने वो भी छोड़ दी। क्योंकि रंगारंग शॉट्स चल रहे थे। उनकी खातिर मैंने सब छोड़ दिया। अब कम से कम ये तो नहीं कह पाओगे अपने आप को ना कि नहीं नहीं आदमी तो मैं बहुत अच्छा हूं। और मैं तो बस दो शॉट्स देखना शुरू करता हूं। वो तो मजबूरी में फिसल जाता है। पता नहीं कैसे हो जाता है। हमें तो पता ही नहीं। धोखे से हो जाता है। गलती से मिस्टेक।
गलती से नहीं है साजिश है। नियत की खराबी है। खुद का खुद को धोखा है। सबसे ज्यादा हम धोखा किसको देते हैं? खुद को। वो देना बंद कर दो। कोई समस्या नहीं है। सबको पता होना चाहिए वो कितने पानी में है। बहुत खुद पर भरोसा करना नहीं चाहिए। कॉन्फिडेंस की जो घुट्टी पीकर बैठे हो यह तुम्हारी समस्या है। इतने कॉन्फिडेंट मत रहा करो।
प्रश्नकर्ता: सर एट द टाइम ऑफ जो नो रिटर्न आ जाता है वहां से फिर कैसे निकलें?
आचार्य प्रशांत: वो फिर कुछ नहीं हो सकता। अब हो लो बर्बाद। अब तो यही हो सकता है कि कोई बाहर वाली ताकत आए और फोन खींच के ले जाए। अब यही हो सकता है। अब तो तुम पे छा गया नशा। अब तुम पूछ रहे हो ये ऐसा सा है कि मैं इतनी देर से समझा रहा था कि दिल को स्वस्थ कैसे रखें? तो मैंने कहा दौड़ा करो, खेला करो, तनाव कम लिया करो, गंदा खाना मत खाया करो। तो ये सब करोगे तो दिल स्वस्थ रहेगा। पूरा समझा लिया।
और जब पूरी रामायण खत्म हो गई तो सवाल ये आ रहा है। अच्छा ये बताइए जब हार्ट अटैक आ जाए उसके बाद क्या करना है? अब इस प्रश्न के पीछे भी जो मान्यता है, जो एजम्पशन है वो देख रहे हो क्या है?
वो ये है कि आपने अभी तक जो बोला मुझे मानना तो है नहीं। तो हार्ट अटैक तो आएगा ही आएगा। माने कि नोटिफिकेशन अगली बार जब आएगी तो आप बोलो कि चाहे कोई बोले मुझे सुनना तो है नहीं। मैं तो वो शुरू करूंगा ही एंडलेस लूप। तो ये बताइए वो एंडलेस लूप जब मैं शुरू कर ही दूं और खूब भोग लूं आधा पौन घंटा तो उसके बाद बाहर कैसे निकलूं? अब मत निकलो बाहर। इंतजार करो डिस्चार्ज होने का बैटरी।
अपने आप बाहर आ जाओगे। अब तो मैंने सुना इंस्टाग्राम में ये हो गया है। उनके ऊपर भी शायद कोई कोर्ट केस वगैरह चला था। कर दिया है कि एक नंबर है उसके बाद आप स्क्रॉलिंग अलाउड ही नहीं है।
श्रोता: यू हैव टू गो टू अदर फील्ड।
आचार्य प्रशांत: अलाउड है अभी भी। पर उन्होंने कुछ ऐसा करा है जिससे आप अपनी तंद्रा से बाहर आ जाओ। तंद्रा समझते हो? एक एक भीतरी नींद, एक भीतरी बेहोशी जिसमें आंखें तो खुली हैं पर भीतर अब सो चुके हो। तो उसके लिए उन्होंने ये करा है। शायद वो काम आ जाए।
बेटा ये शुरू मत होने दो। हार्ट अटैक आने के बाद क्या करना है? अब तुम्हें कुछ नहीं करना। अब किसी और को कुछ करना है। कोशिश करो हार्ट अटैक आए नहीं। ज्यादातर हमारे सवाल यही होते हैं। जब बहुत गुस्सा आ जाए तब क्या करें? या तो किसी को पीट दो या खुद पिट लो। इसके अलावा अब कुछ होना नहीं है।
ये जब बर्बादी हो ही जाए तब क्या करें? अब अब क्या करोगे? अब तुम्हारे हाथ से बात निकल चुकी है। अब क्या करोगे? मैंने कहा जॉगिंग करना अच्छी बात है। उससे हार्ट अटैक नहीं आता। बोला अच्छा ठीक है जब हार्ट अटैक आ गया हो तब जॉगिंग शुरू कर दें। क्या मिलेगा? समझ रहे हो बात को? तुम्हें बताया तो 8:50 पे शुरू किया करो ना।
8:50 पे शुरू करो। या बहुत भूख लग रही हो जब बहुत भूख लग रही है। पता है कि अब एक तरफ सांपनाथ, एक तरफ नागनाथ, एक तरफ पेट की भूख, एक तरफ मन की भूख। तो कह रहे बहुत भूख लग रही है। कितनी देर तक देखोगे? थोड़ी देर में रख के खाना खाने भागोगे? नहीं तुम लेके खाना खाने। माने कोई नहाना सोच लो कि नहाने से पहले। नहाने से पहले तो मिनट देखूंगा। अब नहा लेके नहाओगे तो नहीं।
प्रश्नकर्ता: खराब हो जाएगा।
आचार्य प्रशांत: नहा भी लोगे?
प्रश्नकर्ता: नहीं खराब हो जाएगा।
आचार्य प्रशांत: हां, तो बस ऐसा कि अब पता है कि नहाने में तो इसे रखना पड़ेगा ना। तो बस नहाने से 10 मिनट पहले शुरू किया करो।
प्रश्नकर्ता: नहीं सर। जैसे अब ये तो ठीक है समझ में आ गया। लेकिन जहां पे आदत लगी हुई है। आदत लगी हुई है कि जैसे खाना खा रहा हूं तो एक थॉट तुरंत ही आ जाएगा। थॉट आए फिर वहां से फिर एक्शन पे जाएगा वो। हाथ जाएगा।
आचार्य प्रशांत: खाना खाते हुए देखना तो, एक दृष्टि से देखा जाए ना तो समय का सबसे कम नुकसान है।
प्रश्नकर्ता: नहीं फिर वो तो स्टार्ट हो गया ना फिर वो वही साइकिल स्टार्ट।
आचार्य प्रशांत: हाथ धोते हो ना खाना खाने के बाद तो रुक जाएगा टूटेगा वहां साइकिल तुम्हें कोई चाहिए होता है सर्किट ब्रेकर कि वो जो एक सर्किट अब शुरू हो गया उसे कुछ ब्रेक करे तो हाथ धोने जाओगे तो मोबाइल इधर रख दोगे कुछ सोचना पड़ेगा यार जुगत लगाओ क्या बताऊं टेक्नोलॉजी है टेक्नोलॉजी का मतलब ही यही होता है कुछ ऐसा जिससे तुम्हारे उद्देश्य की पूर्ति हो सके। खुद को जितना ज्यादा जानते हो उतनी बेहतरीन टेक्नोलॉजी अपने लिए ही बना लेते हो। सबसे अच्छा ये है जब दिखाई दे 4% बैटरी बची है तब देखना शुरू करो।
श्रोता: बिना चार्जिंग।
आचार्य प्रशांत: हां और चार्जिंग से कहीं दूर चले जाओ। सड़क पर चले जाओ। बोलो सड़क पे स्क्रॉलिंग करूंगा। और 4% बैटरी लेके जाओ बस। ये सब मजाकिया सुझाव हैं।
असली बात तो ये है कि जिंदगी ऐसी जियो जिसमें फालतू काम की फुर्सत ना बचे।
प्रश्नकर्ता: सर इसी में जैसे मैंने डिसाइड कर लिया है कि मैं ये काम करने जा रहा हूं। और उसके अंदर ही ये सब डिसाइड करने के बाद मैं डिसाइड करता हूं कि ये एक बहुत ही अच्छी मतलब जानी जा रही है कि वर्ल्ड के अंदर सबसे बेस्ट मूवी है। बेस्ट वेब सीरीज है। ये मतलब देखा है। लग रहा है कि इससे कुछ सीखने को मिलेगा। मैंने फर्स्ट एपिसोड लगाया। अब वो पॉइंट ऑफ नो रिटर्न आ चुका है उसी के अंदर। देखिए कि अब ऐसी जो अच्छी है जो सिखा भी रही हैं वो एंटरटेनमेंट के बेस पे ही बनाई जाती है बहुत सारी।
आचार्य प्रशांत: दुनिया में बहुत सारे आर्टिस्ट्स हैं, राइटर्स हैं, ऑथर्स हैं और बहुत अच्छा-अच्छा अपना कृतित्व सामने लाते हैं। उन्होंने तो अपना काम करा और उन्होंने एक बेहतरीन वेब सीरीज बना दी या किताब लिख दी या कुछ और कर दिया। उन्होंने अपना काम करा तो उन्होंने वो सब पैदा करा और तुम्हारा काम यही है कि उनके काम को निहारते रहो।
भई बहुत अच्छी-अच्छी मैं यह नहीं कह रहा फिल्में घटिया उनकी तो अभी हम बात ही नहीं कर रहे जो घटिया फिल्में घटिया किताबें या घटिया कुछ और है। जो अच्छी वाली भी हैं मैं सवाल पूछ रहा हूं सब देखनी जरूरी क्यों है? उनके पास एक अच्छा काम था। उन्होंने एक अच्छी मूवी बनाई।
तुम्हारे पास जिंदगी में अपने लिए कोई अच्छा काम क्यों नहीं है? वो तुम्हारा काम देखने आ रहे हैं क्या? तो तुम्हारे पास फालतू समय क्यों है कि तुम उनका काम देख रहे हो? देखो मैं मना नहीं कर रहा हूं अच्छी किताबें पढ़ने से, अच्छी मूवीज देखने से। पर बहुत लोग जो ऐसा करते हैं ना कि हम तो अच्छी-अच्छी चीजें देखा और पढ़ा करते हैं। मैं कह रहा हूं वो भी अपना समय बर्बाद ही कर रहे हैं। ये क्या अच्छी-अच्छी चीजें देखा करते हैं, पढ़ा करते हैं।
तुम्हारी जिंदगी किस काम आएगी? दूसरे ने कुछ भी करा है। उसकी उपयोगिता बस उस सीमा तक है जिस सीमा तक वो मुझे मेरी जिंदगी में बेहतर बनाता हो। दूसरे ने बहुत अच्छी मूवी बनाई और मैं शुक्रगुजार हूं उसने बनाई। बहुत अच्छी किताब लिखी। थैंक यू सो मच, टू द एक्सटेंट इट अपलिफ्ट्स मी एंड अपलिफ्ट्स मी टू व्हाट एंड।
कुछ मुझे भी तो करके दिखाना है ना। मेरे पास भी जिंदगी है मेरी। प्यार है मेरा, काम है मेरा। मुझे भी करना है। तो ठीक है। कुछ बातें हमने आपकी देख ली। बहुत अच्छी आपने किताब लिखी थी। हमने आपकी किताब पढ़ ली। पर अब ये थोड़ी करेंगे कि आपने 40 किताब लिखी है। 40 से ही 40। भाई उस किताब का भी यही उद्देश्य था कि वो तुम्हें प्रेरणा दे। कि तुम अपनी जिंदगी को एक अच्छी किताब बना पाओ।
किसी ने 40 किताब लिखी है, 400 किताब लिखी हैं। सच पूछो वो भी यह नहीं चाहेगा कभी कि तुम उसकी 400 किताबें बैठकर पढ़ रहे हो। तुम कैसे आदमी हो? क्योंकि लिखने को बहुत सारी बातें तो होती नहीं। किताबें 40 हो सकती हैं। बात तो एक ही कही जाती है। मैं अच्छी किताबों की बात कर रहा हूं।
जो भी ऊंची किताब होगी वो ऊंची बात ही करेगी और ऊंची बात एक ही होती है।
वो तुम्हें जल्दी से जल्दी समझ में आ जानी चाहिए। सबसे जो जो बड़ा कवच होता है ना जिंदगी में जो हर प्रकार की नालायकी से बचा कर रखता है वो किसी दूसरे का काम भी नहीं होता। एक तो यह होता है कि दुनिया दुनिया की गंदगी से बचने के लिए दुनिया में ही कोई साफ ठिकाना ढूंढ लो। वो अच्छा है कि घटिया किताबों की जगह अच्छी किताब पढ़ ली वो अच्छी बात है। पर वो आखिरी बात नहीं है।
आखिरी बात तो यही है कि मुझे ही कुछ बहुत अच्छा सुंदर सार्थक आत्मिक मैंने ऐसा खोज निकाला है कि अब मेरे पास कुछ भी देखने सुनने की फुर्सत नहीं है। हां कुछ किसी ने बहुत ही अच्छा पैदा कर दिया, निर्मित कर दिया, रच दिया तो मैं कोशिश करके समय निकाल करके उसको देख लूंगा।
मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं। मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं। मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने पिछले साल भर में मूवीज कितनी देखी हैं। बहुत अच्छी मूवीज हैं। मूवीस में कोई बुराई नहीं है। पर वो जितनी अच्छी हैं उससे ज्यादा अच्छा मेरा अपना काम है। मैं यह करूंगा। लोग मुझे आकर के बोलते हैं ये किताब आई है बहुत अच्छी है। लोग किताबें भेंट में देते हैं। मैं कहता हूं मेरे पास अपनी किताब तक तो पढ़ने का समय है नहीं।
मेरी ही किताबें होती हैं। मैं उनकी प्रूफ रीडिंग नहीं कर पाता। मैं कहता हूं मैं किसी और की किताब कैसे पढ़ लूंगा। क्यों पढ़ लूंगा? और इसका मतलब ये नहीं है कि इतना अहंकार आ गया है कि किसी और की पढ़ना नहीं चाहते। किसी और की सुनना नहीं चाहते। अहंकार नहीं प्यार है।
और दूसरों को मैंने बहुत पढ़ा है, बहुत जाना है, बहुत सुना है। उनके कदमों में बैठकर के उनसे सुना है। जब तक कि मुझे मेरी आंतरिक स्पष्टता नहीं मिल गई। दूसरों को सुनने भी गया था तो उसमें भी एक पर्पसफुलनेस थी। अब एक मूवी तुम जाकर के देख रहे हो। सत्यजीत रे की, एक टैरेंटिनो की देख रहे हो। अब है तो दोनों ही क्लासिक्स पर तुम चाहते क्या हो भाई? क्लासिक्स भी इतनी है कि तुम देखोगे तो तुम्हारी पूरी जिंदगी में खत्म ना हो।
तुम्हारी जिंदगी बस इसलिए है कि दूसरों की बनाई क्लासिक्स देखते रहो। तुम्हारी जिंदगी बस इसलिए है कि दूसरों की बनाई क्लासिक्स देखते रहो। क्लासिक्स छोड़ो। महाभारत तो एपिक है। किसी ने महाभारत की कोई पूरी प्रति देखी है? सालों लग जाएंगे उसको पढ़ने में। तुम्हारी जिंदगी इसलिए थोड़ी है कि सब कुछ जो बहुत अच्छा है तुम एक-एक चीज छांट छांट के देखते रहो, पढ़ते रहो। वो अच्छा काम है। मैं उसकी निंदा नहीं कर रहा हूं। उसकी उपयोगिता है। दूसरे ने कुछ बहुत अच्छा करा, रचा, बनाया, लिखा उसकी उपयोगिता है। उपयोगिता क्या है?
उपयोगिता यह है कि उससे तुम्हें हौसला मिलता है, प्रेरणा मिलती है कि उसने इतना अच्छा करा तो मैं भी कुछ इतना अच्छा करके दिखाऊंगा। पर उसने जो करा ले दे के आखिरी बात यह उसका है। तुम्हारा नहीं हो गया। तुम्हें अपना भी कुछ करके दिखाना होगा।
ये भी कोई बहुत अच्छी बात नहीं है कि मैं तो दुनिया की सारी अच्छी किताबें पढूंगा। आ रही बात समझ में? अब ये नहीं मतलब होना चाहिए कि लोग कहें कि अब हम किताबें पढ़ेंगे ही नहीं। मैं एक एक्सट्रीम एक अति के विरुद्ध सावधान कर रहा हूं। अच्छी किताबें इसीलिए होती हैं कि उनको पढ़ो। बेशक पढ़ो। मैं सावधान बस यह कर रहा हूं कि माया इतनी जबरदस्त होती है कि वह अच्छी किताब को भी अपना साधन अपना जरिया बना सकती है।
ये भी एक मायावी बात ही है कि मैं दुनिया में जो कुछ अच्छा है सब देख रहा हूं। दुनिया में इतने अच्छे-अच्छे शहर हैं। कह रहे हैं मेरे जीवन का उद्देश्य है हर अच्छे शहर को घूमना। ये कोई बहुत सार्थक बात नहीं है। दुनिया में इतने अच्छे-अच्छे मोन्यूमेंट्स हैं। मैं सबको देखूंगा। क्या कर रहे हो? तुम मोन्यूमेंट कब बनाओगे?
प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।
प्रश्नकर्ता : नमस्ते सर। सर मेरी एज अभी 18 इयर्स है और आपको मैं बहुत टाइम से सुन रहा हूं। तो मतलब बहुत टाइम से मतलब एक दो साल से तो सुन ही रहा हूं। तो मेरे को ऐसा लगता है कि जो पॉपुलर कंडीशनिंग थी जिसकी आप बात करते हैं मतलब मेरे को ऐसा लगता है कि थोड़ा-थोड़ा मैं उसको छोड़ पाया हूं क्वेशनिंग करके।
अब मेरा क्वेश्चन यह है कि मैं जो नए जो मतलब कभी-कभी ऐसा लगता है कि और बॉन्डेजेस को कैसे पहचानूं? और दूसरा यह था कि मतलब और क्या कोई प्रिकॉशन ले लूं कि अब आगे मतलब मैं सोचता हूं कि जैसे 45 इयर्स का हो जाऊं तभी भी ऐसा ही रहूं और मतलब गंदा ना हो जाऊं। उस टाइप में कि मतलब
आचार्य प्रशांत: मैं 18 का हूं। मैंने बहुत लंबी यात्रा कर ली है। अब मैं और आगे कैसे बढूं? 2000 क्या ईयर ऑफ़ बर्थ ?
प्रश्नकर्ता : सिक्स।
आचार्य प्रशांत: मैं ऐसे ही मंचों पे 2003 से पढ़ा रहा हूं।
प्रश्नकर्ता : सर , जैसे एक्टिविटीज के थ्रू तो बहुत कुछ समझ।
आचार्य प्रशांत: अरे, तुम पूछ रहे हो और आगे कैसे जाना है, मैं पूछ रहा हूं आए कि इतना आगे हो और की तो बात बाद में आती है ना तुम्हें ये क्यों लग रहा है कि तुमने 18 साल में ये कर लिया ये जान लिया वो जान लिया क्या जान लिया?
प्रश्नकर्ता : नहीं जो पॉपुलर कंडीशनिंग वगैरह होती है वो शायद इसलिए क्योंकि मेरे को अभी सिर्फ उतनी कंडीशनिंग के बारे में पता है
आचार्य प्रशांत: हाँ तो और पता करो ना।
प्रश्नकर्ता : वही समझ में नहीं आ रहा है कि
आचार्य प्रशांत: क्या समझ में नहीं आ रहा?
प्रश्नकर्ता : कि मतलब और कैसे पता करूं कि अब और क्या-क्या खामियां।
आचार्य प्रशांत: ये रही दुनिया देखो।
प्रश्नकर्ता : जैसे एक्टिविटीज करते हैं हम उसमें आती है उससे तो बहुत कुछ जैसे मनुस्मृति वाली अभी थी। इनसे समझ में आता है। एक तो
आचार्य प्रशांत: अरे भई! ये चारों तरफ दुनिया है और दुनिया की एक-एक सांस, एक-एक कदम, एक-एक धड़कन कंडीशंड है। जहां कहीं भी देखते हो क्या वहां कंडीशनिंग का खेल देख पा रहे हो? और ये सिर्फ पहला कदम है। अपने भीतर भी जो कुछ चल रहा है, वो भी पूरे तरीके से इधर से उधर से आया हुआ प्रभाव ही है। क्या वो देख पा रहे हो? वो देखने लग जाओ तो हम बात करेंगे। कि और आगे क्या करना है? असल में उसके बाद और आगे कुछ करने की बात बचती नहीं है।
बाहर भी वही खेल चल रहा है जो भीतर चल रहा है। इस बाहर भीतर के खेल को अच्छे से समझना शुरू करो।
किसी भी बात को सामान्य नॉर्मल मत मान लिया करो। उससे इंक्वायरी मर जाती है। जो चल रहा है देखो पूछो। ये क्यों है ऐसा? बात क्या है? ये ऐसे क्यों है? ये जो वेल फॉर्मेशन है क्यों? अच्छा बताओ क्यों है? ये सीढ़ियों के साथ-साथ ये एलिवेशन क्यों हो रहा है? क्या देख पाओ? क्या देख पाओ?
इससे तुम्हें समझ में आएगा कि लोकधर्म में दर्शन का मतलब इतना गलत क्यों हो गया? दर्शन का मतलब हो गया किसी का मुंह देखना। समझ में आ रही है बात? हमने उसको भी शारीरिक बना दिया है। ये गलत नहीं है। पर इससे बस पता पता चलता है कि हमारे लिए बात से ज्यादा महत्व हो जाता है उस चेहरे का जिस चेहरे से बात आ रही है। तो चेहरा इतना जरूरी है कि उसके लिए कुर्सियों को ऐसे रखना जरूरी है। इसको नॉर्मल मत मान लो। इसमें कोई राज छुपा है। उस राज को पकड़ो। हर चीज के पीछे कुछ राज है। उससे हमारी किसी मान्यता का पता चलता है।
ये गलत नहीं है। ऐसा ही होना चाहिए भाई। ये मत सोचना कि मैं इसकी निंदा कर रहा हूं। यह ऐसा ही होना चाहिए। पर ये ऐसा क्यों होना चाहिए? वो पूछो। बस ये मत कह दो कि जो पीछे रहे ताकि उसको फेस दिखे। क्यों? फेस में क्या है? फेस क्यों दिखे? फेस क्यों दिखे? ऐसे ही जब हर चीज में दिखाई देने लगे कि बाहर बिल्कुल वही है जो भीतर है। तब पूछना आगे क्या करें? अभी नहीं अभी बहुत है।
प्रश्नकर्ता: थैंक यू सर।
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। मेरा नाम आदर्श है। मैं अभी पॉलिसी रिस्चर हूं पार्लियामेंट में। एमपी के साथ में काम करता हूं। सर मुझे सारे काम फ्यूटाइल लगते हैं। दुनिया के जो कर रहा हूं सारे काम दुनिया के फ्यूटाइल लगते हैं। सिर्फ संस्था का काम ऐसा है जो करने लायक है। पर संस्था में काम करने के लिए मेरे पास स्किल नहीं है।
तो क्या करें समझ में नहीं आता। कोई भी अब पॉलिसी में हूँ तो मुझे समझ में आता है कि लोगों के पास में पॉलिसी का एडवोकेसी कर सकते हैं। उनके पास में जानकारी नहीं है। पर फिर ये आता है कि अब अगर उनके पास में आचार्य जी की टीचिंग्स नहीं है तो उनको कुछ समझ में नहीं आएगा। तो क्या करें? फंसा हूं बीच में कुछ समझ नहीं आ रहा है।
आचार्य प्रशांत: फँसे हैं ही नहीं। आप सब समझ गए। हैं। आप बस यह चाह रहे हैं कि जो आपका वर्तमान स्किल सेट है उसी में रहते हुए आप कुछ कर जाएं।
प्रश्नकर्ता: हाँ।
आचार्य प्रशांत: तो ठीक है। ऐसे नहीं होता है। आईआईटी ने मुझे ये स्किल थोड़ी दी थी कि ये करूं जो यहां कर रहा हूं। दी थी क्या? तो जो काम जरूरी होता है उसकी स्किल पैदा की जाती है। इसको प्यार कहते हैं। ये थोड़ी कह दूंगा कि मेरा तो टेक और मैनेजमेंट बैकग्राउंड है तो मैं यह क्यों कर रहा हूं? क्योंकि यह जरूरी है इसलिए कर रहा हूं। तो जो जरूरी है उसकी स्किल पैदा करो ना।