Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
इच्छा क्या है?
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
10 min
408 reads

कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्।

जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सोपशमं गताः॥९- २॥

~ अष्टावक्र गीता

हे पुत्र! इस संसार की (व्यर्थ) चेष्टा को देखकर किसी धन्य पुरुष की ही जीने की इच्छा, भोगों के उपभोग की इच्छा और भोजन की इच्छा शांत हो पाती है।

आचार्य प्रशांत: इच्छा को शांत करना कोई उद्देश्य हो भी नहीं सकता। शुरुआत यहाँ से हो ही ना कि यह इच्छा शांत हो जाये, वह इच्छा शांत हो जाये। शुरुआत अनुसन्धान से होगी। देखिए, इस बात को थोड़ा समझिएगा, ध्यान दीजिएगा। कहीं कुछ ऐसा हो जो बेचैनी दे रहा हो, जो कष्ट दे रहा हो, इस पर दो तरीके से आगे बढ़ा जा सकता है। पहला यह है -- जो हो रहा है, गलत हो रहा है, इसको खत्म करना है, और तुरंत मैं खत्म करने की दिशा में कूदने लग जाता हूँ। ठीक है? इस दुनिया में लड़ाई बहुत है, मुझे लड़ाई खत्म कर देनी है, शांति चाहिये।

दिल्ली महिलाओं के लिए बड़ी असुरक्षित हो गयी है, दिल्ली को सुरक्षित शहर बनाना है। जो हो रहा है, गलत है, उसे ठीक करना है। और यह बड़ा आसान है कि तुरंत ही एक समाधान को लागू करने निकल पड़ना। एक दूसरा तरीका भी होता है, जब समस्या सामने आये, जब कुछ बेचैन करने वाला सामने आये तो दूसरा तरीका क्या होता है? कि मुझे यह जानना है कि यह सब है क्या? इससे पहले कि मैं विश्व-शांति का मसीहा बनने की कोशिश करूँ, इससे पहले कि मैं एक संस्था ही बना दूँ जो इसीलिए काम करती है कि चारों तरफ शांति हो सके, मैं पहले यह जानू तो सही कि युद्ध आता कहाँ से है? इससे पहले कि मैं एक आंदोलन शुरु कर दूँ।

अब दाढ़ी साफ करने के औजार बनाने वाली एक कंपनी है, उसने एक अभियान शुरू किया है कि मैं एक सिपाही हूँ और मैं महिलाओं की रक्षा करूंगा। ठीक है? अब यह समझ भी नहीं रहे हैं कि सिपाही होने के इस भाव में ही वह आक्रमण छुपा है जिससे बलात्कार निकलता है। तो आप जो कर रहे हो यह बलात्कार को ही प्रोत्साहन देगा क्योंकि आप लोगों की मर्दानगी चमका रहे हो, और यह मर्दानगी ही तो बलात्कार करती है। और क्या है?

यह जो अतिरंजित मर्दानगी है, यही तो बलात्कार के रूप में सामने आती है। तो मैंने समझा नहीं है कि बात क्या थी? पर बात ने मुझे थोड़ा विकल किया है तो मैं सीधे-सीधे उसका उन्मूलन करने निकल पड़ा। मैंने बीमारी को समझा नहीं है। मैंने बीमारी को समझा नहीं है, मैं सीधे ही बीमारी का इलाज करने निकल पड़ा।

यह वैसे ही है कि जैसे कोई अनाड़ी चालक हो और गर्मी के दिन चल रहे हों, गाड़ी लेकर के निकले और गाड़ी गर्म हो जाए तो अक्सर आपने देखा होगा कि चालक एक शॉर्टकट निकालते हैं कि वे कहीं ऐसी जगह पर रुकते हैं गाड़ी को जहाँ पर कोई ट्यूबवेल हो और पानी ला-लाकर इंजन के ऊपर डालना शुरू कर देते हैं। कभी देखा है कि गाड़ी गर्म हो जाए तो सीधे लाकर के बाल्टी भर का पानी डाल देगा रेडिएटर के ऊपर। यह वही है कि मुझे पता भी नहीं है कि क्या हो रहा है पर मुझे समाधान करना है।

और दूसरा तरीका होता है कि समस्या सामने आयी तो मैं मूल रूप से समझूंगा कि बात क्या है? मैं मूल रूप से समझूंगा कि बात क्या है? यह गाड़ी क्यों गर्म होती है? दुनिया में युद्ध होते क्यों हैं? आदमी क्यों बलात्कारी बनता है? मैं मूल रूप से समझूंगा और जब मूल रूप से समझ लिया तब उसमें से कोई अलग ही समाधान निकलेगा। यह जो 'नी ज़र्क रिएक्शन' है, 'क्विक फिक्स सलूशन' है, फिर मैं उस पर नहीं आगे बढूंगा।

प्रश्नकर्ता: समझने से सुधार कैसे होगा जब तक आप उसमें शामिल नहीं होते?

आचार्य: अगर आप इससे यही समझ गये कि इसमें एक ही तरीका है -- सबको सुधारना। तो आप आगे बढ़ोगे सबको सुधारने के लिये।

प्र: जैसे वो एक समस्या देख रहा था कि इंजन गर्म हो रहा है अब हो सकता है कि उसको एसी कोई बात पता लग जाये जिससे गाड़ी का एसी काम नहीं कर रहा था वो भी ठीक हो जाये। तो वो एक ही हिस्से को ठीक कर रहा था पर जड़ को ठीक करने से उसके सारे हिस्से ठीक हो गए।

आचार्य: हम जीते भी इच्छा कर-कर के हैं इसलिए। ध्यान से आप देखिए तो जीने के लिए किसी इच्छा की ज़रूरत नहीं है। जीवन तो है पर हम उसमें भी कर्ताभाव डाल देते हैं ना। आप अपनी भाषा को ही देखिए ना, "मैं साँस ले रहा हूँ"। स्पष्ट है कि मन क्या सोच रहा है? कि मैं ना लूँ साँस तो साँस चलेगी नहीं। हमारे लिए तो जीवन भी इच्छा का ही परिणाम है। है नहीं पर मन तो इसी में जीता है ना।

जीने की इच्छा शांत हो जाने का मतलब यह नहीं है कि आप मर जाओगे, इसका मतलब है कि फिर आप इच्छा के बिना भी जिओगे, इसका मतलब यह है कि आप जान जाओगे कि मेरी इच्छा का इससे कोई लेना-देना नहीं है।

अब जीवनमुक्त का क्या मतलब है? मर गया? जीवनमुक्त वेदांत का सबसे ऊँचा आदर्श है। तो जीवनमुक्त का क्या अर्थ है? कि मर गया? क्या अर्थ है? कि जीवन चल रहा है अपने हिसाब से, हम मुक्त हैं उससे। जीवन अपने हिसाब से चल रहा है, हम उससे बँधे हुये नहीं हैं। जीवन अपने हिसाब से चल रहा है, चलने दे रहे हैं। हम यह जान गये हैं कि उसमें हमारे कर्तृत्व की कोई ज़रूरत ही नहीं है। हम फालतू ही टेंशन लिए बैठे थे। जीवन चल रहा है अपने हिसाब से।

अब दूसरा आदर्श आता है जीवन मुक्त से थोड़ा नीचे का है, विदेहमुक्त। तो विदेहमुक्त का क्या मतलब है? कि हाथ-पांव कटा दिये हैं, मुंडी कटा दी है और घूम रहे हैं। शरीर छोड़ कर हम कहीं घूम रहे हैं। भूत बन गये हैं। क्या मतलब उसका? पिशाचों में शामिल हो गये हैं? विदेहमुक्त माने क्या? कि देह में जो चल रहा है सो चल रहा है, हम उससे सम्प्रक्त नहीं हो गए हैं। एड्रेनालाईन बढ़ रहा है, गुस्सा आ रहा है पर देह को आ रहा है; हमें नहीं आ रहा है। हार्मोन उछल रहे हैं, लालसा पैदा हो रही है, देह को पैदा हो रही है; हमें नहीं हो रही है। भूख लग रही है, देह को लग रही है, पीड़ा हो रही है, देह को हो रही है। समझ रहे हैं बात को?

प्र: मुमुक्षा शब्द का जो अर्थ लिखा है वो भी तो यही है कि किसी भी प्रकार की भूख हो।

आचार्य: भूख। भूख हर तरह की होती है। जीवित रहने की इच्छा छूट जाये तो क्या मर जाओगे? तब सहज रूप में जीवित रहोगे। अभी इच्छा कर-करके जीवित हो। जीवितेक्षा शब्द का इस्तेमाल हुआ है, हालांकि हम इस रूप में कहते हैं कि क्यों मर गये वो? उनके जीवित रहने की इच्छा ही छूट गयी थी। बड़ी उलटी बात कर रहे हैं हम। अरे! इच्छा से तुम जीवित हो। इच्छा से इच्छा होती है, जीवन नहीं होता। जीवन अपनी जगह है। जीवितेच्छा का अर्थ है यह जान जाना कि मैं जीवन से, इस जीवन से, मानसिक जीवन से हटकर हूँ, परे हूँ।

प्र: जिस क्षण हम हस्तक्षेप करेंगे तो हम तो बीमारी में ही करेंगे। आप स्वास्थ्य में योगदान नहीं दे सकते, जिस क्षण आप हस्तक्षेप करेंगे, वह बीमारी में ही करेंगे।

आचार्य: जिस क्षण आप हस्तक्षेप करते हैं, आप बीमारी ही पैदा करते हैं। वास्तव में बीमारी कुछ नहीं है सिवाय आपके स्वास्थ्य में हस्तक्षेप के।

प्र: आचार्य जी, अपने में स्थित होने और स्वस्थ होने में कोई अन्तर्सम्बन्ध होगा?

आचार्य: जहाँ स्व के अतिरिक्त कुछ और घुसा, वहीं बीमारी, अस्वास्थ्य है। 'स्व' माने अपना, 'पर' मारे पराया। पराये का आना ही बीमारी है।

प्र: आचार्य जी, एक बात आयी थी कि इसमें आपका कुछ नहीं होगा। यह होगा ही होगा।

आचार्य: वह है।

प्र: तो क्या हमें आलसी हो जाना चाहिये? आलस करना भी बहुत बड़ा कर्म हो गया।

आचार्य: और जो आप हो, वह तो वैसे भी विश्राम में है। और जो मन है, उसका काम नहीं है आलसपन। उसको अपना काम करने दो। ''क्या मुझे आलसी हो जाना चाहिये?'' माने क्या? मैं माने क्या? मन को पूछ रहे हो कि मन को आलसी बैठा दो? मन का आलसपन भी आलसपन कहाँ है?

आलस्य का अर्थ यह है कि तब ना करना जब करने की ज़रूरत हो। जब आप नहीं ही कर रहे हो, जब नहीं ही करना चाहिए तो उसे आलस नहीं, विश्राम बोलते हैं। सोने के समय ही अगर सो रहे हो तो उसका नाम आलस थोड़ी है, फिर वह विश्राम है, राहत है। आलस का अर्थ है - तब सोना जब सोना सम्यक नहीं है। समझ रहे हो ना बात को? तो 'आप' अगर विश्राम कर रहे हो तो वह आलस नहीं है। 'आप' माने कौन? मूल, जड़। मूल अगर विश्राम कर रहा है तो अच्छा है। सोचो ना, जड़ कूद-फाँद करना शुरू कर दे तो क्या होगा? आप विश्राम कर रहे हो तो बहुत अच्छा है। वह आपका स्वभाव ही है, करो विश्राम। "पाछे-पाछे हरि फिरे, हम करत विश्राम।" आपका तो काम ही है विश्राम करना।

प्र: अगर कुछ खाने-पीने से मन प्रफुल्लित हो रहा है तो क्या वह भी ना हो? गति के लिए केंद्र का, धुरी का स्थिर होना आवश्यक है।

आचार्य: वह स्थिर ही है। आपको उसे स्थिर करना नहीं है। आपको केवल जानना भर है कि वह स्थिर है। आपके कुछ करने से वह स्थिर नहीं होगा। उसका स्वभाव है स्थिर होना। आपको पाना नहीं है उसको, वह है। वह है।

आप अपने साथ हैं। जो जहाँ है वो वहीं पर है, इसी का नाम स्वास्थ्य है। मन अपने साथ है, आप अपने साथ हैं। यही स्वास्थ्य है। और परम स्वास्थ्य है मन का भी अपने स्रोत में आ जाना। अब मन भी 'स्व' में स्थित हो गया पर वह दूर की बात है, काल्पनिक बात है।

अस्वस्थ का मतलब है दूसरे में भागते रहना, अपने से बाहर सुख की तलाश करना, ऐसा सोचना कि अपने से बाहर कहीं भी मुझे ठिकाना मिल सकता है। कोई भी वस्तु या व्यक्ति ऐसा है जो मुझे आनंद दे सकता है, प्रेम दे सकता है, यही बीमारी है। स्व के बाहर गमन, यही बीमारी है। स्व से बाहर भागना, यही बीमारी है। और मन हमेशा यह करेगा ही करेगा। शुरुआत इसमें है कि आप यह ना करें। मन तो यह करेगा ही करेगा। हो सकता है कि एक समय ऐसा आए जब मन भी यह करना कम कर दे। वह समय जब आएगा, तब आएगा। अभी आप ना करिए।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles