ऑनर किलिंग’ क्या है ?
वक्ता: ‘ऑनर किलिंग’ क्या है? यही है ऑनर किलिंग *(हँसते हुए)*।
शचि पूछ रही है, ‘क्या है ये ‘ऑनर किलिंग’?’ यही दो चीज़ें होती है उसमें। ‘ऑनर’ होता है और ‘किलिंग’ होती है। और तुमसे एक बात कहता हूँ कि जहाँ कहीं ‘ऑनर’ होगा वहाँ ‘किलिंग’ होगी ही होगी। बस कुछ ”किलिंग’ ऐसी होती हैं कि दिख जाती हैं, कि काट ही दी गर्दन, खून निकल ही आया और जान चली ही गयी, तो दिख गया कि हत्या हुई है। और बहुत सारी ‘किलिंग’ ऐसी होती हैं जो दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि खून ही नहीं निकला। लेकिन जान तो चली ही गयी। जीवन तो नष्ट हो ही गया। और ये सब कुछ होता है ‘ऑनर’ के नाम पर, या इज्ज़त के नाम पर। इज्ज़त से ज्यादा बेहूदा विचार आदमी के ज़हन ने कभी बनाया नहीं। इज्ज़त और शर्म, इन दोनों से ज़्यादा फालतू विचार आदमी की ख़ुराफ़ात ने पैदा नहीं किये। जिसको तुम इज्ज़त बोलते हो, जिसको तुम ‘ऑनर’ बोलते हो, वो अहँकार के अलावा कुछ नहीं है। और वो ऐसा अहँकार है जो जान लेने को तैयार हो जाता है। वो ऐसा अहँकार है जो इतना प्रेम-शून्य है कि अपने ही बेटे या बेटी को मार देता है।
इज्ज़त अहँकार है और अहँकार का अर्थ है, प्रेम का सर्वथा अभाव। जहाँ इज्ज़त की बात चल रही हो वहाँ प्रेम नहीं हो सकता। और इज्ज़त से ही जुड़ा हुआ कांसेप्ट है शर्म। जहाँ ये दोनों शब्द हों- इज्जत और शर्म- वहाँ प्रेम नहीं हो सकता। वहाँ हत्या होगी, लहु बहेगा पर प्रेम नहीं होगा। और भला हुआ कि मार ही डाला, कि बीस साल (की) लड़की थी उसको मार ही डाला बाप ने, क्योंकि जीती रहती तो पता नहीं कैसा नरक जैसा जीवन उसका कर देता। ज़्यादा बड़ी त्रासदी ये नहीं है कि मार डाला। तुम ये बताओ कि ऐसे बाप ने बीस साल तक उसको पाल भी कैसे होगा ? जिस बाप का मन प्रेम से इतना खाली है, उसने उसे पाला भी किस तरह से होगा? अहँकार के साथ ही। और अहँकार सिर्फ अपना स्वार्थ देखता है। अहँकार सिर्फ स्वार्थ देखता है।
हमें ये तो दिख जाता है जिस दिन अखबार में छप जाता है कि आज मार दिया। हम ये विचार नहीं करते हैं कि मारने से पहले बीस साल तक वो क्या कर रहा होगा। उसके एक-एक शब्द ने, एक-एक कृत्य ने अपने ही बच्चों को कितनी यातना दी होगी। ये विचार हम नहीं कर पाते। और वो यातना एक घर में नहीं चल रही है, वो हर घर में चल रही है क्योंकि हर माँ-बाप ने अपनी इज्ज़त का दारोमदार बच्चों पर छोड़ रखा है। ‘तुम मेरी इज्ज़त ऊँची करो, तुम मेरी शान बढ़ाओ। तुम हमारी नाक के रखवाले हो’। और जहाँ कहीं ये भाव है, वहाँ प्रेम नहीं हो सकता, वहाँ ‘किलिंग’ ही है।
एक बात तुम और समझना, ‘ऑनर किलिंग’ में सिर्फ दूसरे को ही नहीं मारा जाता। ‘ऑनर किलिंग’ में आदमी सबसे पहले अपने आप को ही मारता है। तुम देखो ना ‘ऑनर’ के लिए, सम्मान के लिए, इज्ज़त के लिए, अहँकार के लिए, आदमी कैसे लगातार अपने आप को मारे रहता है। ‘बस दूसरों की (नज़रों) में मेरी इज्ज़त बनी रहे’, इसके लिए हम अपने आप को ही कितने धोखे और कितनी सज़ाएँ देते हैं। ये ‘ऑनर किलिंग’ ही तो है। हम खुद भी तो अपनी ‘ऑनर किलिंग’ करते ही रहते हैं ना हर समय? दूसरों की नज़रों में तुम श्रेष्ठ बने रहो इसके लिए तुमने क्या-क्या नहीं कर डाला है? हम में से बहुत सारे लोग तो पढ़ाई भी इसलिए करते हैं ताकि हमारा ‘ऑनर’ बना रहे। ठीक कह रहा हूँ? जीवन में कुछ ऐसा है जो हम अहँकार के कारण ना करते हों? और अगर जीवन में सब कुछ अहँकार के कारण ही हो रहा है तो प्रतिपल हम अपनी हत्या ही कर रहे हैं, आत्महत्या।
जीवन में जिस क्षण कुछ भी ऐसा होगा जो हमारी अहंता के बाहर होगा, तब तो तुमने जिया। और जीवन में जब तक वही सब कुछ कर रहे हो जो अहँकार करवा रहा है,तो मर ही रहे हो, ‘किलिंग’ ही चल रही है लगातार। ख़त्म ही तो कर रहे हो अपने आप को। जीवन का अर्थ है संपृक्त होना, जुड़ा हुआ होना। जीवन का अर्थ होता है अपने आप को पूरा पाना और दूसरों से फिर प्रेमपूर्ण तरीके से सम्बंधित हो जाना। अहँकार कहता है, ‘काटो,तुम तुम हो, दूसरा दूसरा है, अपने हितों की परवाह करो’। अहँकार तुमको सिखाता है, ‘दुनिया बड़ी खराब जगह है। यहाँ चोर, लुटेरे, बलात्कारी घूम रहे हैं, बचो’। अहँकार कहता है, कि ‘इज्ज़त बड़ी बात। इज्ज़त मत गंवा देना’।
तुम देखो हमारे घरों में आमातौर पर इज्ज़त का कितना पाठ पढ़ाया जाता है और प्रेम की कितनी बात की जाती है और उसी से तुम समझ जाओगे कि हम कैसी दुनिया में जी रहे हैं। तुम्हारा जीवन प्रेम से खाली है, कोई आपत्ति करने नहीं आएगा। कोई पूछने नहीं आएगा कि कितने लोगों से तुम्हारे प्रेमपूर्ण सम्बन्ध हैं। तुमने कोई स्वाद चखा है, तुमसे कोई नहीं पूछेगा। पर हाँ, तुमको आ कर के कोई दो-चार बातें बोल दे, थोड़ा असम्मान कर दे, तो ये बात सबकी निगाह में आ जायेगी कि इसकी इज्ज़त चली गयी। ‘आज इसको सरे-बाज़ार दो लोगों ने ऐसा-ऐसा बोल दिया’। ये बात सबकी निगाह में आ जायेगी और बड़े हितैषी जमा हो जायेंगे। अरे! बड़ी’ बेइज़्ज़ती हुई आपकी। हम चलेंगे, बदला लेना है क्या?’
पर तुम्हारी ज़िन्दगी सुनसान रहे शमशान की तरह, तुम्हारे अपने माँ-बाप से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध नहीं, बीवी से नहीं, बच्चे से नही, एम्प्लायर से नहीं, पूरी दुनिया से नहीं, तुम कटे-कटे जी रहे हो, लगातार असुरक्षा में तुम्हारा मन घिरा रहता है- कोई तुम्हारे पास नहीं आएगा कहने के लिए कि क्या हाल बना रखा है, क्यों ज़िन्दगी को नष्ट कर रहे हो। हाँ, बेइज़्ज़ती हो तो, ‘अरे! हमारे कुनबे के हो, चलो दंगा करते हैं, मार देंगे’। जब हम कहते हैं ‘ऑनर किलिंग’, तो हमें जो शब्द उत्तेजित करता है वो है‘किलिंग’। तुम्हें भी उसी शब्द ने ये सवाल पूछने को विवश किया- ‘किलिंग’। ‘किलिंग’ ना हुई होती तो तुम सवाल ही ना पूछतीं। मैं कह रहा हूँ, ‘किलिंग’ को छोड़ो, ‘ऑनर’ पर ध्यान दो। वो है असली हत्यारा। ‘किलिंग’ को छोड़ो, ‘ऑनर’ पर ध्यान दो। इस ‘ऑनर’ ने ही बड़ी सारी लाशें बिछा रखी हैं। हमारे, तुम्हारे जैसी, चलती-फिरती लाशें। जो चल फिर तो रही हैं, पर सब मुर्दा हैं। तुम्हें क्या लग रहा है कि ये जो अशिक्षित लोग होते हैं वही कर रहे हैं ‘ऑनर किलिंग’?और ये जो देश आपस में लड़े जा रहे हैं, ये ऐसे ही लड़ जाते हैं? खेल के मैदान पर दो देशों के खिलाड़ी खेल रहे हों, तो अनके समर्थक लड़ने, मारने को तैयार हो जाते हैं ‘ऑनर’ के नाम पर। और ये जो भारत पकिस्तान के मैच पर तुम लड़ जाते हो कि भारत को जितना ही है – ये क्या है? तो किलर कितने हैं?)
कई श्रोता (एक साथ) :सारे हैं।
वक्ता: जहाँ‘ऑनर’ है, वहाँ ‘किलिंग’ ही होगी।