HIDP है खुद को देखने के लिए || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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HIDP है खुद को देखने के लिए || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता : ये आपके लिए एक पूरा प्रमाण है कि आपका जीवन कैसे बीतता है| जो आपको परेशान कर दे वो आपका मित्र नहीं हो सकता| हमारे दुश्मन आकर हमें अव्यवस्थित नहीं कर पाते| हमारे बगल में तो हमारे दोस्त ही बैठते हैं| वही हैं जो हमारे वास्तविक दुश्मन हैं क्योंकि दुश्मन तो दूर है, वो कितना नुकसान कर लेगा| हमारा असली नुक्सान वो करते हैं जिनसे हमारा मोह है| जो हमारे घरों में हैं, जो हमारे बगल में बैठे हुए हैं|

ज़हर पर लिखा हो कि ज़हर है तो वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता| दिक्कत तब होती है कि ज़हर पर लिख दिया जाए कि दवाई है, अब मरोगे| ऐसे ही बीतता है हमारा जीवन| जिन लोगो से हमने सम्बन्ध बना रखे हैं , जिन लोगो के साथ हमारा समय बीतता है, वही हमारा सर्वनाश करते हैं| क्योंकि जिससे मोह नहीं वो हमसे दूर रहेगा, वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा| जिनको हमने पनाह दे दी है, जिनके लिए हमने दरवाज़े खोल रखे हैं कि तुम आओ और बैठ जाओ वही हैं जिन्होंने सब गुड गोबर कर रखा है| ये बात समझ में आ रही है ? ध्यान से देखो कि मन में किन धारणाओं को बैठा रखा है तुमने| और उनकी पड़ताल करो, उनको ध्यान से देखो |

यही है पूरा एच. आई. डी. पी., इसके अलावा कुछ नहीं है कि मन की प्रक्रियाओं को समझना है| विज्ञान कहता हैं कि इस पंखे को देखो ,इस गाड़ी को देखो , इस लाइट को देखो| एच. आई. डी. पी. भी एक विज्ञान है, ये कहती है इसको तो देखो पर साथ में उसको भी देखो जो उसको देख रहा है |

उस गाड़ी को, उस इंजन को यही देखता है न, यही समझता है| इस समझने वाले को समझो कि ये क्या कर रहा है ? क्या चलता रहता है इसके भीतर ? क्या है ये ? और इसको समझना उसको समझने के बजाय ज़्यादा महत्वपूर्ण है| क्योंकि तुम्हारा सारा जीवन इसी में बीतता है| यहीं है वो सबकुछ जो तुम्हें परेशान रखता है , उलझन में डाले रखता है| इसको समझना ज्यादा आवश्यक है , इसी का नाम एच. आई. डी. पी. है|

और तुम्हारा सौभाग्य है ये कि प्रथम वर्ष में ही एच. आई. डी. पी. शुरू हो गया| तुम्हारे सीनियर्स को नही मिला था एच. आई. डी. पी.| बहुत अच्छा मौका है, इसको छोड़ना नहीं| एक भी सेशन खाली नहीं जाना चाहिए| और ये भी नहीं कि सिर्फ देह को लेकर के आ गये , सिर्फ देह को लाने का कोई फायदा नहीं है ,इसको लाकर कर भी क्या लोगे ? जो तुम हो वही लेकर आना|

अगर तुम शरीर रख कर बैठे हो, समझ में कुछ नहीं आ रहा तो आना निरर्थक ही रहा| बैठो तो पूरे तरीके से बैठो ताकि समझ जागृत रह सके| सोये सोये मत बैठो| गिरे पड़े है, झूले जा रहे हैं पड़ोसी के ऊपर| तुम्हारी ये चतुर टिप्पणी है जो इधर उधर विचलित कर रही है|

इतने बेहोश हो कि तुम्हे पता नहीं चल रहा कि ये सब विचलन पैदा करते हैं| ये सब बातें तुम्हें तुम्हारे तकनीकी कोर्स नहीं सिखायेंगे| ये तुम्हें एच. आई. डी. पी. ही सिखाएगा कि इंसान बन सको| बात समझ में आ रही है| इंजीनियर बनना तो एक व्यवसाय हो सकता है, जीवन ज्यादा ज़रूरी है जानना क्योंकि वो प्रतिपल है|

नदियों के बारे में पढ़ लिया, पहाडों के बारे में पढ़ लिया, राजाओं के बारे में पढ़ लिया| गणित पढ़ ली, हारमोनिक मोशन के बारे में जान लिया| ये सब बाहरी चीज़े है, जो तुमसे अलग कुछ हैं | आज तक तुमने अपने बारे में कुछ नहीं पढ़ा|

ये पहली बार है कि कुछ ऐसा होगा जो तुम्हारा ध्यान तुम्हारे ऊपर लाएगा| ठीक है और ये तुम्हे शुरू में थोडा अजीब लग सकता है कि बार बार ये क्यों कहा जा रहा है कि मन को समझो , देखो , इसकी प्रक्रियाओं को समझो| देखो यहाँ क्या बैठा रहता है ? देखो विचार कहाँ से आता है ? देखो संकोच कहाँ से आता है ? देखो डर कहाँ से आ रहा है?

तुम्हे लगेगा कि ये क्या बातें हो रही हैं, डर तो डर है क्योंकि तुम्हारा मन एक तरीके का हो गया है| भीतर जाने की उसकी शक्ति करीब करीब खो गयी है| पर ये बहुत महत्वपूर्ण है| तुम्हे मिल रहा है, सौभाग्य की बात है| इसको दोनों हाथो से बटोरना, पूरे ध्यान से रहना |

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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