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हर कदम, पहला कदम || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2017)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

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हर कदम, पहला कदम || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2017)

नानक निर्गुणी गुण करे गुणवतीय: गुण देह

~ गुरु ननक

आचार्य प्रशांत: बात बहुत सीधी है, गुण वह सब कुछ है जो किसी भी चीज़ के बारे में, घटना के बारे में, इंसान के बारे में कहा जा सकता है, वह गुण है׀

जिस किसी वस्तु, व्यक्ति के साथ आप जो कोई भी विशेषण उपाधि लगा सकते है, वह गुण है׀ जिस किसी चीज़ का जो भी वर्णन किया जा सकता है, वह पूरा विवरण उसका का गुण है׀

भक्त के लिए यही विस्मय कि विनय कि बात होती है कि यह जो सब कुछ है, यही विस्मय है। जिसे जो दिख रहा है, वह है और उसका विपरीत है, वह सब कुछ किसी एक बिंदु से ही पैदा हुआ है׀ इसीलिए जब भक्त देखेगा तो कहेगा कि वह पूर्ण है क्योंकि उससे पूर्ण का जन्म हो रहा है׀ सब कुछ उसी से आ रहा है׀ ठीक इसी तथ्य को ज्ञानी उलट देता है׀

ज्ञानी कहता है कि यह जो सब कुछ है, यह कुछ है ही नहीं क्योंकि एक बिंदु से आ रहा है, जो शून्य है׀ भक्त कहता है वह बिंदु है जिससे सब कुछ आ रहा है׀ एक बिंदु है, जहाँ दूसरा कुछ नहीं है׀ जहाँ अद्वैत है और उससे दुनिया भर के द्वैत निकल रहे है׀ पूर्ण द्वैत, समस्त द्वैत उसी से निकल रहे है, तो वह पूर्ण है׀

उसके देखने कि दिशा नीचे से ऊपर को है कि किससे क्या निकल रहा है? बीज से शाख की ओर है׀ ज्ञानी इसी बात को देखता है, वह ऊपर से नीचे जाकर देखता है ׀ वह कहता है यह जो सब कुछ इतना फैला हुआ दिखाई दे रहा है, यह कुछ है ही नहीं क्योंकि यह नाकुछ से उद्धत हुआ है׀

*नानक* के देखने कि दिशा भक्त की है, नीचे से ऊपर की ׀ बीज से वृक्ष तक की ׀

कहते हैं, “नानक निर्गुणी गुण करे” नानक वह है जो कुछ नहीं से सारे गुणों को पैदा कर रहा है और वह इस बात को ले करके गहरे अचरज में डूब जाते हैं, यही काफी होता है उन्हें ध्यान में ले जाने के लिए׀ यही काफी होता है उनके मन में उसकी महिमा बैठने के लिए कि कुछ नहीं से इतना कुछ ले आ दिया׀

ज्ञानी उल्टी राह पकड़ता है। वो यह नहीं कहता कि कुछ नहीं से इतना कुछ ला दिया׀ वह कहता है कि यह जो इतना कुछ हैना यह कुछ नहीं है׀ दोनों बात एक ही कह रहे है पर दिशाओं में इतना भेद है कि मनोदशा पूरी बदल जाती है׀ भक्त की मनोदशा हो जाती है उसकी, जो पूरी तरह भर गया है, जिसे बहुत कुछ मिल गया है क्योंकि उसकी नज़र पेड़ पर, उसकी फैली हुई शाखाओं पर है कि इतना कुछ ले आ दिया׀

ज्ञानी की नज़र उस शून्यता पर है जहाँ से पेड़ आया है ׀ वह कहता है कि इतना सब कुछ जो दिख रहा है यह एक न-कुछ जैसे बिंदु से आया है, सो शून्य है׀

नानक निर्गुणी गुण करे

नानक कहते हैं कि जहाँ कुछ नही वहाँ तू सब कुछ ला देता है׀ गुणवतीय: गुण देह जितने गुण दिखाई पड़ रहे है और जहाँ कही भी गुण होता है वहाँ उसके पीछे कोई होता है, आधार रूप में, वस्तु रूप में, ‘जिसका’ गुण होता है׀

कह रहे हैं जहाँ कहीं जो भी कोई चीज़, इंसान दिखाई दे रहा है, जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि उसमें कुछ भी है, वह ‘उसी’ का दिया हुआ है׀

कैसे दिया हुआ है? थोड़ा इसको समझेंगे׀

कोई भी वस्तु, व्यक्ति और उसका गुण अलग-अलग नहीं है׀

आग और गर्मी अलग-अलग नहीं हो सकते। बर्फ और ठंडक अलग-अलग नहीं है׀ वह एक ही है। ठंडी आग या गर्म बर्फ जैसा कुछ नहीं होता, वह एक ही है׀

हमें यह धोका रहता है कि हम हैं तो कुछ और, लेकिन भूल से, भ्रम से, किसी मौके पर हमने कोई और गुण प्रदर्शित कर दिया ׀ बहुत गुस्सा आ गया, आग कि तरह जले ׀ हमें यह कहते देर नहीं लगती है कि हम है तो बर्फ, भूल से गर्म हो गये थे ׀ अगर लपट थी, अगर आग थी तो आप बर्फ हो नहीं सकते ׀ आप आग ही थे ׀

‘चीज़’ और ‘उसकी’ विशेषता कभी अलग या अलग नहीं होती है।

हम लेकिन अपनी छवि को कायम रखने के लिए यह झूठ भी पाल लेते है कि हूँ तो कुछ और׀ व्यव्हार, गुण, धोके से कुछ और प्रदर्शित हो गया है׀

मैं ऐसा हूँ नहीं, मै तो बर्फ हूँ पता नहीं तब कैसे लपट उठ गयी मुझसे ?

अरे! अगर तुम बर्फ होते तो तुमसे लपट कैसे उठ जाती?

जब नानक कह रहे हैं, गुणवतीय: गुण देह

तो बस यही छोटी सी बात कह रहे है कि जो भी कुछ है उसको उसका होना ‘उसी’ ने दिया है।

याद रखियेगा हम नहीं कह रहे हैं कि जो भी कुछ है उसे उसके गुण उसने दिये हैं ׀ जो भी कुछ है उसे उसका होना ही उसने दिया है क्योंकि वस्तु, व्यक्ति अपने गुणों से अलग है ही नहीं ׀

वस्तु क्या है? व्यक्ति क्या है? वह जिसे देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है׀ हम हमारे गुण मात्र ही हैं और कुछ नहीं है हम׀ तो किसी को यह मुगालता न रहे कि मैं हूँ तो कुछ और लेकिन अभी प्रदर्शित बस किसी और रूप में हो रहा हूँ׀ वही बर्फ और आग वाली बात ׀

आप गुण मात्र ही है, और जो भी गुण आप दर्शा रहे है, बस वही अपने आप को जान लीजिए। उसके अलावा अपनी कोई छवि बनाने कि जरूरत है ही नहीं׀

आप कौन है? आप ध्यान में है, आप ध्यानी है ׀ आप नींद में है, आप निंदासे हैं ׀ उसके अलावा आपका उससे भिन्न आपका कोई अस्तित्व है ही नहीं ׀ उससे हटके आपके पास जो कुछ भी है, वह आपकी कल्पना है और पूरा संसार, पूरा अस्तित्व, याद रखियेगा आपकी कल्पना के अलावा, पूरा संसार, पूरा अस्तित्व आपसे व्यवहार भी ठीक वही करता है जब आप किसी पल में होते हैं׀ वह आपका ना भूत देखता है ना भविष्य देखता है׀ आप किसी पल में जब है, आपने जो गुण प्रदर्शित किया है, उसी के अनुरूप आपको प्रतिकार भी मिल जाता है׀

एक प्रकार की गूँज, प्रतिउत्तर आप हैं। बड़े ध्यानी हैं और आधे घंटे से ध्यान में बैठे हैं और बैठे-बैठे ध्यान में आप ऊब गये और आप कितनी देर के लिए ऊँघ गये? क्षण भर के लिए ऊब गये और ऊँघते-ऊँघते आपका सर आकर दीवार से लगा׀ दीवार बिलकुल आपको बक्शेगी नहीं, नहीं कहेगी कि यह इंसान पिछले एक घंटे से ध्यान में बैठा था और अब एक पल के लिए ऊँघ गया तो इसके सर पर चोट क्यों लगे? उस क्षण में आप निंदासे हैं और यही आप हैंऔर निंदासे के साथ यही होना चाहिए कि जब उसका सर झूमे, जोर से चोट लगे׀ चोट लगेगी׀ चोट लगेगी׀ समझ में आ रही है बात?

इससे दोनों बातें आप ख्याल में रख लीजियेगा। जब भक्त जैसी भाव-दशा हो, तब वाह-वाह कर उठिए कि अपार है तेरी महिमा׀

थोड़ी ही देर पहले गहरा ध्यान भी दिखा दिया और थोड़ी ही देर बाद नींद का झोंका भी दिला दिया और अगर चोट ज़्यादा लग रही हो, समझने में उत्सुक हो गये हो, ज्ञानी जैसे हो गये हो तो भी समझ लीजिये, कहिये कि ना इससे इतना ही पता चलता है कि ना भूत है ना भविष्य, सब शून्य है ׀

हम जिसको जीवन कहते है, जिसको संसार कहते है, वह पूरा समय में है׀ वह सब शून्य है׀ उसका कोई अर्थ ही नहीं है׀ जो है वह यही पल है और इस पल की अपने आप में कोई सत्ता नहीं है׀ जो है वह सामने ही है׀

निर्गुणी गुण करे

दोनों ही बातों, दोनों ही दिशाओं से देखना, दोनों का ही स्मरण रखना आवश्यक है׀ जो सब कुछ प्रतीत होता है, वह कुछ नहीं से आया है׀ कोई एक बिंदु है, इतना तेजपूर्ण कि उससे सब कुछ प्रकट हो गया है और दूसरी बात कि यह जो सब कुछ सा जो दिख रहा है इसकी अपनी कोई सत्ता है ही नहीं, कुछ भी नहीं है यह׀

सब कुछ जो हमें दिखता है वह क्या है? टाइम-स्पेस, वह कुछ है ही नहीं, शून्य है׀ उसकी अपनी कोई हैसियत होती, कोई औकात होती, तो कल जो मैं था, उससे आज कुछ तो अंतर पड़ना था ना׀

कल जो मैं था उससे आज में कोई अंतर नहीं पड़ना है׀ अभी में अंतर बस अभी से पड़ना है, यही अर्थ है शून्यता का׀

समय शून्य है׀ संसार शून्य है׀ अस्तित्व तुम्हें कोई फायदा नहीं देता है इस बात का कि तुम पिछले पाँच मिनट में क्या कर रहे थे׀ इस क्षण में तो तुम्हारे काम, इसी क्षण का ध्यान आयेगा तुम गहरे ध्यान में थे पिछले पांच मिनट में और अगर तुम ऊँघ गये तो मौका तुमने गँवा दिया׀

तुम्हारी पिछली उपलब्धियाँ तुम्हारे किसी काम नहीं आएँगी क्योंकि अस्तित्व के लिए अगला-पिछला कुछ होता ही नहीं है,शून्य है׀ उनकी क्या कीमत है? *शून्य*׀ उनकी कोई कीमत नहीं है׀

तुम गाड़ी चला रहे हो और १००० किलोमीटर कि यात्रा है। तुमने ९९९ किलोमीटर बहुत अच्छे से गाड़ी चलाई है, तुम्हे इस बात का कोई श्रेय नहीं मिलना है। आखिरी किलोमीटर में घर के, तुम्हारे घर के ठीक सामने तुम्हारा ध्यान भंग होगा अगर, तो दुर्घटना हो जानी है׀

तुम यह शिकायत नहीं कर पाओगे कि जब ९९.९ प्रतिशत यात्रा मैंने इतना संभाल-संभाल कर तय कर दी तो अब छोड़ ही देते ׀ अभी आखिरी कदम पर क्यों भिड़ा दिया मुझे? तुम्हारे उन ९९९ कदमों का अस्तित्व का कोई अर्थ है ही नहीं, वह शून्य है।

कोई फर्क पड़ता ही नहीं कि तुमने क्या किया? हाँ, जब तुम अपनी छवि बनाते हो, तब वह आधारित होती है इन सभी १००० क़दमों पर क्योंकि तुम समय को मान्यता देते हो׀ तुम सब देखना चाहते हो और उस सबका एक औसत निकलते हो और तुम उससे अपने बारे में एक छविय धारणा बना लेते हो। अस्तित्व ऐसा करता ही नहीं ׀ अस्तित्व के लिए जीवन जैसी कोई चीज़ नहीं है ׀ अस्तित्व के लिए बस पल होता है और तुम जीवन को देखते हो।

समझने वालों ने यही समझा है कि जीवन होता ही नहीं ׀ तुम किस जीवन की बात कर रहे हो? ९९९ किलोमीटर की कोई यात्रा तुमने कभी करी ही नहीं׀ वह यात्रा शून्य है ׀ अर्थ सिर्फ उस कदम का है जिसे तुम अभी रख रहे हो ׀ ठीक से रखोगे तो ठीक ׀ गलत रखोगे तो फिसलोगे ׀

कोई बिल्कुल नौसिखिया है वह ग़लत कदम रख रहा है, वह भी फिसलेगा और तुम होंगे बड़े धुरंदर, बड़े उस्ताद, बड़े निपुण, तुम ग़लत कदम रख रहे हो तो तुम भी फिसलोगे ׀ तुम्हें इस बात से कोई रियायत नही मिल जानी है कि आज से पहले तुमने जो एक लाख कदम सही रखे थे׀ रखे होंगे एक लाख कदम सही पर आज तो गलत रखा ना। तो सजा लो׀

श्रोता: इस कदम में कर्मफल का योगदान नहीं है?

आचार्य जी: इस कदम में कर्मफल का योगदान सिर्फ तब है जब तुम अपनी धारणाओं में जकड़े हुए हो׀ जब तुम समय को मान्यता देते हो׀ जब तुम्हें अस्तित्व का काम करना समझ में ही नहीं आया है׀

कर्मफल का अर्थ है समय। तुम्हारी चूँक ही यही है कि तुम सोचते हो कि पुराना किया तुम्हारे काम आ जायेगा। तुम्हारी चूँक ही यही है कि तुम सोचते हो कि मैं जो हूँ उससे जीवन चल सकता है׀ तुम सोचते हो कि ९९९ कदम जो ठीक रखे थे तो १००० वाँ अपने आप ही ठीक हो जायेगा।

तुम भूल जाते हो कि चेतना प्रतिपल की है। तुम अतीत के सहारे पर वर्तमान को जीना चाहते हो और जो कोई अतीत को वर्तमान में लेकर आता है, वही कर्मफल को भुगतता है। कर्मफल किसके लिए है? कर्मफल उसी के लिए है जो अभी अतीत का कचरा ढो रहा हो और जो अतीत का कचरा ढोयेगा, उसी को अस्तित्व झटका दे देगा।

जो भी कोई अतीत का कचरा ढोयेगा, उसको अस्तित्व झटका देगा ही देगा क्योंकि अस्तित्व अतीत को मान्यता ही नहीं देता׀ अस्तित्व के लिए अतीत भी शून्य है और भविष्य भी शून्य है׀ तुम मान्यता देते हो इसीलिए कर्मफल भुगतते हो ׀

जो आदमी ९९९ कदम चलकर आखिरी कदम पर होश खोता है, वह निश्चित रूप स यही सोच रहा है कि जब इतनी यात्रा कर ली है तो आखिरी कदम पर थोड़ी ही ना फिसलेंगे। मतलब समझिये।

उसके मन पर अतीत हावी हो गया है। वह इस आखिरी कदम को पहले कदम की तरह नहीं देख रहा है। वह इस आखिरी कदम को एक कदम की तरह नही देख रहा है ׀ वह इस आखिरी कदम को, अभी लिए हुए कदम की तरह नही देख रहा है׀ वह इस आखिरी कदम को देख रहा है ९९९ क़दमों के बाद के १००० वें कदम की तरह। अतीत हावी है उसके ऊपर। अतीत हावी है तो सज़ा मिलेगी और वह सज़ा उस पल से आगे नहीं जा पायेगी।

याद रखियेगा अगर आप अभी पुनिंदे हुए, तब आपका सर एक ही बार टकरायेगा। अस्तित्व यह भी नही करता है कि आपको दस-बारह बार पटक दे कि हो गया। मिल गयी। अब अगले पल में क्या होगा? जैसे तुम अगले पल में हो। जो अगले पल में हो उसका अगले पल में हिसाब किताब मिल जाना है। तभी का तभी निर्धारण हो जाना है ׀

श्रोता: उनके कर्मफल का सिद्धांत जब तक नहीं मिलता है जब तक हमने कुछ किया न हो

आचार्य जी: आगे और पीछे बस मन जाता है। जो है वह न आगे जाता है न पीछे जाता है। वह बस अभी है और अभी में कोई कर्मफल होता ही नहीं है। अभी में तो जो कर्म है वही फल है। जब आप कर्मफल की बात करते हो तब कर्म और फल के बीच में तो हमेशा समय बैठा रहता है। अभी में तो जो कर्म है वही आप अपना फल है। वहाँ कोई कर्मफल नहीं है।

तो कर्मफल किनके लिए है? मात्र नासमझों के लिए है। जिन्होंने अस्तित्व को जाना वे अच्छे से समझ जाएँगे कि कर्मफल जैसी चीज़ नहीं होती।

जो नासमझ होगा, वह कहेगा कि अच्छा, अच्छा, अच्छा, तुमसे चूँक हुई इसलिए इसकी सज़ा मिल गयी। जो नासमझ होगा वह कहेगा कि मुझसे चूँक हुई तो मुझे सज़ा मिली। जिसने समझा है वह कहेगा चूँक की सज़ा नही मिली है।

यही घटना घटी क्योंकि अगर कहूँगा कि चूँक की सज़ा मिली तो मैं आग और बर्फ के जैसी बात कर रहा हूँ।मुझसे चूँक नहीं हुई है, मुझे जिसकी सज़ा मिली है। मैं यही था। आग चूँक से ठंडी नहीं हो गयी। बर्फ चूँक से गर्म नहीं हो गयी। मैं यही था।

आप चूँक की बात कब करते हो जब आप अतीत को ले आते हो बीच में और तुलना करते हो ׀ आप कहते हो कि ९९९ कदम ठीक चलाये थे १००० वें कदम पर फिसला, चूँक हुई। चूँक सिर्फ इस कारण कह रहे हो क्योंकि इतिहास से तुलना कर रहे हो׀ कह रहे हो कि पहले नहीं करता था, अब हुई है तो चूँक होगी׀ वह चूँक नहीं है। तुलना करो ही मत׀ तुम उस गलती के अलावा कुछ और नहीं हो। अपने आप को बचाने की कोशिश मत करो। अपने इतिहास को गवाह की तरह मत खड़ा करो।

तुम अभी क्या हो? गलती हो। जो तुम अभी हो, वही तुम हो, उसके अलावा न तुम्हारा कोई परिचय है न पहचान है।

अपने आप को लगातार देखना ही भ्रम है। मुझमें कोई निरन्तरता है, यही गहरा भ्रम है।

श्रोता: जैसे कह रहे है कि ९९ कदम सही लिए है तो पीछे पास्ट को देखकर सोच रहा है कि १०० कदम सही जाना चाहिए, इसलिए चूँक हुई। लेकिन चूँक हुई क्यों? इसका भी तो कारण है पिछले बहुत सारे कदम भाग्यवश गलत गये होंगे, इसीलिए चूँक हुई है ׀

आचार्य जी: चूँक का जो कारण है वह ठीक यही है कि तुम उन ९९ कदमों के साथ अभी भी जुड़े हुए थे। हम बात कर चुके है। ज़्यादातर दुर्घटनाएँ मज्ज़िल के पास पहुँचकर करके होती है। क्यों? क्या मंजिल के पास ज्यादा खतरे होते है? नहीं मंज़िल के पास ज्यादा खतरे नहीं होते। मंजिल के पास बहुत सारा अतीत आ जाता है।मंजिल के पास पहुँचते ही यह स्मृति हावी हो जाती है कि मैंने सारी यात्रा कर तो ली और जो कोई उस कदम को नही देखेगा, पीछे के सारे कदमों में खोया रहेगा तो दुर्घटना हो जाएगी।

चूँक हुई ही इसलिए है क्योंकि तुमने पिछले सारे कदमों को शून्य नही किया। तुम अभी उन्हें ढो रहे हो। तुम अभी उन्हें मान्यता दे रहे हो। यही तो कर्मफल है ना। कर्मफल है ही उन्हीं के लिए जो पिछले को जलाना नहीं जानते। जो अभी पिछले को लेकर चल रहे है, जो पिछले को जला देना जनता है उसके लिए कैसा कर्मफल ?

इन्होंने कहा कर्मफल , तुम कह रहे हो कारण। कर्मफल और कारण एक ही बात है और भूलना नहीं कि कारण उसी पर चलते है जो कारणों से बंधे। जो समय से बंधे। इस पल में कोई कारण नहीं होते। इस पल तो में जो है सो है।

इतना छोटा है यह पल कि इसमें कार्य के लिए और समय के लिए और फिर कार्य के पीछे के कारण के लिए कोई जगह ही नहीं है ׀ इस पल में इतनी जगह ही नहीं है कि उसमें दो-तीन चीजें समा सकें ׀ इस पल में तो केवल एक ही सत्ता होती है, होने की, अस्तित्व की, अस्ति(है)। क्या है? जो है वह एक इकाई है। उसमें कारण, समय, कार्य तीन नहीं है׀ यह तो बस है, अभी(तत्क्षण)। जो कारणों में गया उसकी दुर्घटना तय है।

कारण में जाने का अर्थ है, अतीत में जाना। जो कारणों में जिएगा उसकी दुर्घटना होनी तय है।

श्रोता: आचार्य जी, कदम हैं और ९९९ बेहोशी के कदम है और ९९९ ही होश में कदम लिये है तो क्या उनका कोई भी असर १००० पर नहीं होता?

आचार्य जी: नहीं कोई भी नहीं होता, बिल्कुल नहीं होता׀ आपको जगना तो प्रतिपल ही पड़ेगा। सच तो यह है कि हज़ारवाँ, हज़ारवाँ है ही नहीं, हज़ारवाँ पहला है׀

९९९ कदमों में से हर कदम पहला कदम है׀ जब आप कहते हो १००० कदम, तब आपने चूँक तभी कर दी है क्योंकि आपने यह मान लिया है कि कोई एकलगातार सत्ता है जो १००० कदम ले रही है। लेकिन नहीं, कोई निरंतरता नहीं है। प्रतिपल नया अस्तित्व है और प्रतिपल मात्र एक कदम लिया जा रहा है, तो एक ही कदम है जो आप लेते है। पीछे देखना ही चूँक है׀

श्रोता: आचार्य जी, लर्निंग , सीखना, वह भी तो पीछे से ही आएगा׀

आचार्य जी: ज्ञान आता है इसलिए ज्ञान से जुड़ना ही चूँक है׀ ज्ञान से जुड़ोगे तो चूँक हो ही जाएगी׀ ज्ञान का तो अर्थ ही अतीत है׀ लर्निंग, ज्ञान नहीं है׀ लर्निंग होती है *बोध*׀ लर्निंग का अर्थ है जगा हुआ होना׀ लर्निंग, नॉलेज नहीं है।

श्रोता: योग्यता भी पीछे से ही आएंगे।

आचार्य जी: तो?

श्रोता१: आचार्य जी, योग्यता, ज्ञान और समय ही तो हमारा है। क्योंकि ज्ञान भूत से आता है और योग्यता भी।

श्रोता२: (दूसरे श्रोता से पूछते हुए) तो फिर आप कैसे सृजनात्मक हो सकते हैं योग्यता में, जब वो भूत से ही आ रही होती है? योग्यता भूत से आ रही होती है बार-बार करने पर।

आचार्य जी: क्या बोल रहे हो?

नहीं, पहले तो तुमये मान रहे हो कि योग्यता और सर्जनात्मकता में कोई सम्बन्ध है׀ पहले तो तुमने तय कर लिया है की योग्यता ही सर्जनात्मकता को बढ़ावा देती है। फिर मुझसे पूछ रहे हो कि कैसे करें? पहले यह भी तो देखो कि उसका कोई संबंध है भी कि नही है।

श्रोता: मैं कुछ योग्यताएँ सर्जन करना चाहता हूँ।

आचार्य जी: क्या तुम? क्या यही है सर्जनात्मकता ?

देखिये एक बात समझिये׀ हममें से कई लोग कल रात को भी इसी पर चर्चा कर रहे थे׀ हममें से कई लोग यह कह रहे है कि जो बात समझ में आती है वह समझ में तो आ गयी है पर जिंदगी में नहीं उतर रही है और सभी की वही कहानी है कि बात समझ में तो आ गयी है पर जिंदगी में नही उतर रही है ׀

कोई कहता है कि याद रहता है पर फिर फिसल जाते है׀ कोई कहता है कि सत्र तो बहुत ही अच्छा चल रहा था, बहुत ही बढ़िया सेशन था पर हम सो गये थेहम बीच का थोड़ा सा, आधे-एक घंटे के लिए बस हर रविवार को׀ यह सारी बातें बोल करके हम वही आग और बर्फ वाली बेवाकूफी करते हैं।

ऐसा नहीं हो सकता कि समझा है और फिर फिसल गये׀ अपने आपको ये भ्रम मत दीजिये कि मैं हूँ तो बर्फ, पर मुझसे चूँक से लपटें उठ गयी। अगर लपट उठ गयी है तो बर्फ नहीं हो भाई׀ क्यों अपने आपको एक छवि में कैद करके, एक छवि का दिलासा दे रहे हो? अगर तुम बार-बार फिसल रहे हो तो यह वक्तव्य मत दो कि वैसे तो मैं चलना और दोड़ना सब जनता हूँ, बस अभी फिसल रहा हूँ।

साफ़-साफ़ समझो कि तुम्हें चलना आता नहीं है׀

यह मत कहो कि तुम्हे समझ में तो आता है, पर ज़िन्दगी में नही उतार पाता हूँ। सीधे कहो कि मुझे समझ में ही नही आता है׀ जो समझ में आया है वह ज़िन्दगी में उतरने के लिए समय का इंतजार नही करता, वह ततिक्ष्ण उतरता है।

जो अनुभूत किया जाता है, वो प्रत्यारोपित है।

वहाँ यह नहीं होगा कि एहसास तो है पर लागू नहीं हो पा रहा है। जैसे कि अनुभूति करने वाली और लागू करने वाली सत्ता अलग-अलग है׀ अलग नहीं है, वह एक है।

हमने कहा न कि यह पल इतना छोटा होता है कि इसमें दो के लिए जगह नही होती है कि अनुभूति है फिर उसका समावेश है और फिर उसका परिपालन है ׀ यह सब, इतनी जगह ही नहीं है इस पल में ׀

भूलना नहीं जो कर रहे हो, वही हो। अपने गुणों से हटके कोई वस्तु कुछ भी नहीं है।

वस्तु है क्या? व्यक्ति है क्या? जो उसके गुण है वह वही है, उसके अलावा वह कुछ भी नही है ׀ इस चूँक में मत रहना कि गुण तो अलग है पर इन गुणों से हट करके मेरा कोई और अस्तित्व भी है, नहीं है, बिल्कुल नहीं है।

अगर दिन-रात फिसलते पाते हो अपने आप को तो यह दिलासा मत दो कि हूँ तो मैं बड़ा होशियार, अरे! धोखे से फिसल जाता हूँ और जिस दिन चाहेंगे, उस दिन फिसलना बंद कर देंगे क्योंकि वास्तव में तो हम होशियार है ׀

किसको तुम धोखा दे रहे हो? सीधे स्वीकार करो कि नहीं समझा हूँ। नहीं समझा हूँ, फिसला हूँ।

जहाँ ना समझी है वहाँ फिसलना पक्का है। फिसलने और नासमझी में दूरी, कोई अंतर, है ही नहीं। वह एक ही घटना के दो नाम है। उनके बीच में समय भी नहीं है।यह भी दिलासा मत दो कि अरे! बड़ी ना समझी करी अब फिसलूँगा। नासमझी करके तुम फिसलोगे नहीं, फिसल गए।

शब्द-योग सत्र से उद्धरण। स्पष्टता के लिए सम्पादित।

YouTube Link: https://youtu.be/XuuiTURYus8

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