Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
गुरु क्या चाहता है शिष्य से? || महाभारत पर (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
3 min
79 reads

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बहुत दिनों से आपको सुन रहा हूँ। आपके बताए गए उपाय भी मालूम हैं, पर फिर भी मन सत्य से दूर भागता है, गुरु से मुँह चुराता है। कोई उपाय बताएँ कि सत्य और गुरु से प्यार हो जाए।

आचार्य प्रशांत: ये वो लोग हैं जो प्यार भी उपाय से करते हैं, चालाकी से। प्यार क्या है? अरेंज्ड मैरिज (पूर्व-नियोजित विवाह) है कि उपाय से करी जाएगी? उपाय माने तो धोखा होता है, युक्ति, चालाकी। तुम्हें प्यार भी चालाकी से करना है? कहाँ हो! इनको चालाकी से प्यार चाहिए, कि, "कोई तरीका लगाइए कि हमें प्यार हो जाए।"

जिसका प्यार तरीके से पैदा हो सकता है, कोई दूसरा तरीका लगाया जाएगा तो वो प्यार ख़त्म भी हो जाएगा। प्यार अकारण होता है, तरीकों से नहीं होता। और ये जितनी बातें लिख रहे हो, झूठ हैं, खुला झूठ बोल रहे हैं आप। "आपके बताए गए उपाय भी मालूम हैं, काफ़ी दिनों से आपको सुन रहा हूँ।" आज तक सुना है?

हम कह रहे थे न धर्म और अज्ञान का बड़ा सम्बन्ध है, ये देखो ज्ञाता, "आपके बताए गए उपाय मालूम हैं।” मैं आज तक किसी को कोई उपाय बताता हूँ? और इनको मेरे बताए गए उपाय मालूम हैं।

सत्य निरुपायता में होता है। जब बिलकुल निरुपाय हो जाओ, बिलकुल असहाय हो जाओ, तब सत्य उतरता है।

और इनको उपाय मालूम हैं, और वो भी जो मैंने बताए ही नहीं। ऊपर लिख दोगे, "आचार्य जी, प्रणाम", इतने भर से आचार्य जी ख़ुश हो जाएँगे और उसके बाद खुला झूठ बोलोगे!

प्र२: आचार्य जी, सादर चरण-स्पर्श। क्या शिष्य की योग्यता का कोई निर्धारण होता है? आपकी आपके शिष्यों से क्या अपेक्षा रहती है?

आचार्य: “शिष्यों से क्या अपेक्षा रहती है?”

यही कि कम-से-कम अपना भला चाहो, और कुछ नहीं।

सारा खेल इस बात पर निर्भर करता है कि तुम अपने शुभाकांक्षी हो। अगर तुमको मुक्ति चाहिए ही नहीं, अगर तुमको शुभता चाहिए ही नहीं, तो कोई गुरु कुछ नहीं कर सकता। सबसे पहले तुममें प्यास होनी चाहिए, सबसे पहले तुममें एक लालसा होनी चाहिए कि, "मुझे बेहतर होना है, मुझे बीमार नहीं रहना।" सबसे पहले तुममें अपने मंगल की इच्छा होनी चाहिए। अब वो इच्छा ही अगर तुमने दमित कर रखी है, तो फिर गुरु कुछ नहीं कर सकता।

कबीर कह गए हैं, “पहले दाता शिष्य भया।” पहला काम तुम्हें करना पड़ता है, गुरु का काम उसके बाद का है न। परमात्मा भी प्रतीक्षा करता है तुम्हारी कि पहला काम तुम करो। और क्या है पहला काम? कि तुम स्वीकारो कि तुम्हें आज़ादी चाहिए, मुक्ति चाहिए, कल्याण चाहिए, तरना है तुमको। तुम्हें तरना ही नहीं, तो ये ऐसी-सी बात है कि कोई पानी पीना नहीं चाहता, और कोई उसके पीछे पानी लेकर दौड़े कि, "पी लो, पी लो!" वो उससे कहेगा, “धत! चाहिए ही नहीं हमें, और तू पिलाए पड़ा है।”

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles