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घटिया फ़िल्में देखने वालों || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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एक-से-एक पिक्चरें रिलीज़ होती हैं; दो-सौ, चार-सौ, छः-सौ करोड़ जा रही हैं, वो तुम्हारी जेब से ही तो जा रहा है। वो छः-सौ करोड़ का बिज़नेस कैसे किया पिक्चर ने? पिक्चरें जो इतना पैसा बनाती हैं उनको देखने फोर्ब्स पाँच-सौ वाले तो आते नहीं, या आते हैं? रेस चार, गोलमाल छः और घपला आठ, कमांडो पौने बारह, ये सब जो पिक्चरें रिलीज़ हो रही हैं, और चार-सौ करोड़ बटोर रही हैं, ये मध्यम वर्ग ही तो खर्च कर रहा है न। ईमानदारी से बताना, या अंबानी अदानी आते हैं इनको देखने सिनेमा हॉल में छः-सौ का टिकट ले कर? वो तो आते नहीं। ये जो पिक्चरें इतना पैसा बनाती हैं, किसकी जेब से जा रहा है? तुम्हारी जेब से आ रहा है। घटिया पिक्चर का जो टिकट खरीदते हो, जानते हो न उसी टिकट के पैसे से दुनिया में घटियापन और बढ़ता है? जब तुम एक घटिया पिक्चर को चार-सौ करोड़ का बिज़नेस दे देते हो, तो क्या नतीजा निकलेगा? वैसी पिक्चरें और बनेंगी और जिन घटिया लोगों ने वो पिक्चरें बनायी थीं उन्हें प्रोत्साहन मिल रहा है।

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