ग़लती कर बैठे? तो ये सुनो! || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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ग़लती कर बैठे? तो ये सुनो! || नीम लड्डू

कोई तुम्हें तुम्हारी ग़लती दिखाए और बुरा अगर तुम्हें लगता है, तो तुम जवान कभी-भी होने से रहे। जिसे जवान होना होता है वो अपनी ग़लतियों का सामना करता है। बहुत होते हैं मोटी खाल के बेशर्म टट्टू, उन्हें कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता। उन्हें दिख रहा होगा कि ज़िंदगी बिलकुल दुर्गंध, मवाद से भरी हुई है तो भी वो बिलकुल चौड़ में, ठसक में घूमते हैं। "हाँ, हम हैं चौधरी!" उनको बताओ कि, "तू ग़लत कह रहा है", वो बोलेंगे, "तो?" उनको बताओ कि, "तू घटिया आदमी है" वो कहेंगे, "हाँ, तो?" जो स्वयं को देखते हों और लजा जाते हों फिर उनके भीतर की जवानी कहती है कि, “ऐसे जी नहीं सकते, लजाए, लजाए। हमें बेहतर होना होगा, हमें ऊपर उठना होगा, हमें बाहर निकलना होगा। ये कोई तरीक़ा नहीं जीने का।“

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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