इक ज़रा सी बात याद रखो || (2019)

Acharya Prashant

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इक ज़रा सी बात याद रखो || (2019)

प्रश्नकर्ता: क्या याद रखना ज़रूरी है?

आचार्य प्रशांत: सब भूल जाइए, एकदम भूल जाइए। जो न्यूनतम हो, बस उसे याद रखिए।

बहुत सारा जो याद रखे हुए हैं, समझ लीजिए वो सब कुछ भूले हुए हैं। जो जितना ज़्यादा याद रख रहा है, वो उतना ज़्यादा भूला हुआ है।

जिसके पास याद रखने को पूरा एक भण्डार है – ‘क’ से लेकर ‘ज्ञ’ तक, ‘ए’ से लेकर ‘ज़ेड’ तक – जिसके पास याद रखने को पूरा एक भण्डार है, अखिल संसार है, समझ लो उसे कुछ भी याद नहीं।

(तीन दिवसीय शिविर में होने वाले प्रवचन, व शास्त्रों व संतों के वचनों के अध्ययन का उल्लेख करते हुए)

और यहाँ तो तीन दिन में बहुत सारी बातें हुईं। कैसे याद रख लेंगे आप? मैं आपको इतनी आश्वस्ति दे देता हूँ कि जितनी बातें हुईं, ये मुझे तो याद नहीं रहेंगी। उसमें से मुझे कुछ भी याद नहीं रहेगा। तो मेरी सलाह क्या है आपको? न्यूनतम को याद रखिए।

जिसने ‘उसको’ याद रख लिया जो छोटे-से-छोटा है, वो सब कुछ याद रख लेगा। वो जो छोटे-से-छोटा है न, वो महल की चाबी की तरह है। चाबी कितनी बड़ी होती है? छोटी। महल कितना बड़ा होता है? बहुत बड़ा। चाबी है तो महल है। वो जो छोटे-से-छोटा है, उसे याद कर लीजिए। उसके माध्यम से पूरा महल आपका है।

हमारे बाबाजी हैं, बुल्ले शाह। वो कहते हैं, “एक अलफ़ पढ़ो छुटकारा है।” वो कहते, “तुम क्या सब कुछ याद कर रहे हो भाई?” क्या याद रखना है बस? न्यूनतम। अलफ़ याद रख लो बस – ‘अ’। कहाँ तुम पूरी कहानी याद रख रहे हो? ‘अ’ याद रख लो बस।

तो यहाँ से भी जो कुछ जाना है, सुना है, सब भूल जाइए, बस एक चीज़ याद रखकर जाइएगा; जो ज़रा-सी चीज़ है, छोटी-से-छोटी, वो याद रखिएगा। वो चीज़ अगर बड़ी हो गई, तो बेकार हो जाएगी। और वो अगर इतनी-सी है, वो आपके काम की रहेगी।

‘आत्मा’ को लेकर उपनिषद् कहते हैं, “अङ्गुष्ठमात्रः।” अँगूठे जितनी छोटी है। अँगूठा भी बड़ा बता दिया। अँगूठे जितनी अगर हो गई, तो बेचारी चींटी का क्या होगा?

(कठोपनिषदत्/प्रथमोध्यायः/द्वितीयवल्ली/ श्लोक २०):

"अणोरणीयान्महतो महीयानात्माऽस्य।"

और कहते हैं उपनिषद् – “अणोः अणीयान्।” वो अणु से भी छोटा है। और कहते हैं, “महतो महीयान।” वो बड़े से भी बड़ा है। अब बड़े-से-बड़ा आप भूल जाइए, आप छोटे-से-छोटा याद रख लीजिए। क्योंकि बहुत बड़ा है, तो इस छोटे से मस्तिष्क में आएगा कैसे? इतनी-सी बात याद रख सकते हैं? कोई एक बात, छोटी-से-छोटी; ‘अ’ बराबर।

दस-बीस, पचास बातें नहीं, कोई एक बात याद रख सकते हैं? पूरा वाक्य भी नहीं, एक शब्द, आधा शब्द, ढाई आखर! बस कुछ ऐसा हो कि उसकी स्मृति आते ही मन का पूरा माहौल बदल जाए। चीज़ ज़रा-सी है; वो याद है बस। गुनगुना रहे हैं बस; वो गूँज रही है भीतर।

"ह्म्म्म...हम्म..." जैसा! "ह्म्म्म......"

एक ज़रा-सा जैसे ज्योतिर्पुंज हो, वो भीतर टिमटिमाता रहे बस।

रोशनी बनी रहेगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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