एक तरफ़ा प्यार || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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एक तरफ़ा प्यार || नीम लड्डू

"हम इतना प्यार करते हैं उधर से कुछ आता नहीं।" जब यह प्रश्न उठे तो अपने-आप से पूछिए कि, "मैं माँग क्या रही हूँ?"

'आई हियर बाय रिक्वेस्ट यू टू लव मी ' (मैं तुमसे मुझे प्रेम करने की प्रार्थना करती हूँ)

"महोदय, सविनय निवेदन है कि कृपया थोड़ा प्रेम अता फ़रमाएँ।"

ऐसे थोड़े-ही, नाप-तोल थोड़े ही है प्रेम। कि, "आज एक लीटर हमने दिया है‌ तुम को। देखो, हिसाब रख लेना। बड़े दिन बीत गए वह लौटा ही नहीं रहा है‌। लिए ही जा रहा है तो बुरा लग रहा है।“

प्रेम बड़ी स्वतंत्रता की बात है। कोई नहीं रोक सकता आपको, किसी की हिम्मत नहीं। करिए और डंके की चोट पर करिए। वो दूसरा व्यक्ति बोले, "मुझे तुमसे नफ़रत है।" आप कहिए, "वो तुम्हारा निजी मसला है, तुम जानो। उसका हम से क्या लेना-देना। तुम अपने मन में क्या खिचड़ी पका रहे हो वो तुम्हारा व्यक्तिगत, पर्सनल मामला है। तुम जानो। हमें तो यह पता है हमें क्या करना है।“

तू हमें भूल ही जाए तुझे हक़ है लेकिन, हमारी बात और है हमने तो मोहब्बत की है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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