प्रश्न: अभी सभी ने बहुत सारी बातें कीं, और (पास बैठी एक महोदया को संबोधित करते हुए), मैडम ने आख़िर में कहा कि इन शब्दों में पूर्णता है। बिल्कुल ठीक बोला मैडम ने कि शब्दों में पूर्णता है। लेकिन मेरे अंदर कोई पूर्णता नहीं है। मैं अगर अपनी बात करूँ तो, इस गाने का अभ्यास करते हुए मुझे लगा कि जैसे मेरे अहंकार को चोट लग रही हो। अपनी पहचान खो जाने का डर महसूस हो रहा था। (अभ्यास के दौरान हुई एक छोटी-सी बहस का ज़िक्र करते हुए) सर आये थे और उन्होंने कहा कि उस बहस का समाधान कर आगे बढ़ो।
वक्ता: कहाँ समाधान हुआ? अभी तो वो चल ही रहा है। मैं तो ये देख रहा हूँ कि ये सब कुछ जो हो रहा है, ये कहीं से भी बेमौका, आउट ऑफ़ प्लेस, नहीं है। संध्या का समय है, सूरज शान्ति से जा चुका है, चाँद निकल रहा है, उसका बिल्कुल हल्का-सा रेखाचित्र दिख रहा है, वो निकल रहा है, सब कुछ अपनी जगह और समय के अनुसार हो रहा है। पाँच ग्रुप थे, पाँचों ग्रुप अपनी प्रेजेंटेशन कर चुके हैं, और पाँचो ग्रुप में किसी को समझ में आया, किसी को नहीं आया। पर दुखी कोई नहीं है इस प्रक्रिया में। कोई समझ रहा है, कोई नहीं समझ रहा है। जो समझ रहा है, उसे बोध का आनंद है। जो नहीं समझ रहा है, वो थोड़ा-सा चकित हो सकता है, सरप्राईज़ड हो सकता है। पर दुःख कहीं नहीं है इस पूरी प्रक्रिया में, माहौल में, वातावरण में।
(ऋभु गीता के संदर्भ में कहते हुए) ऋभु साथ हैं, ऊँची से ऊँची जो बात कही जा सकती है, वो हमारे साथ है। दुःख कहाँ है? दुःख कहाँ है? तेईस लोग हैं, पाँच ग्रुप हैं। चार ग्रुप आये, चले गये। पाँचवा भी आया, उसमें भी छः लोग बैठे हुए हैं, वहाँ भी दुःख नहीं है। पर अंततः दुःख अपनी झलक दिखा जाता है।
दुःख कहाँ है? कहीं नहीं। कहाँ है? अगर अस्तित्व में होता, तो सब में दिखाई पड़ता। अगर इस प्रक्रिया में होता, तो कम से कम इन तेईस लोगों ने महसूस किया होता। अगर अस्तित्व में होता, तो चाँद, तारे, घास, पेड़, सब में दिखाई देता। तुम अभी पिछले तीन घंटे से जिस प्रक्रिया से गुज़र रहे हो, अगर उसमें होता, तो इन तेईस के तेईस लोगों में दिखाई देता। ना चाँद, तारे, पेड़-पौधे, ना उनमें कहीं दुःख दिखाई देता है, ना इन बाईस लोगो में कहीं दुःख दिखाई देता है, और अगर फिर भी एक व्यक्ति को दुःख की अनुभूति होती है, तो दुःख कहाँ है? जहाँ है, वहीं उसका इलाज होगा।
दुःख की यही परिभाषा है। जो चीज़ अस्तित्व में आउट ऑफ़ प्लेस हो, अपने स्थान पर न हो – उसको दुःख कहते हैं। द ऑड थिंग, आउट ऑफ़ प्लेस – जो कायदा नहीं है, जो अस्तित्व का रिवाज़ नहीं है, जो ‘होने’ का हिस्सा नहीं है। स्वास्थ्य को आप कह सकते हो- “मेरे होने का हिस्सा है”। आप हो, तो स्वास्थ्य है। वो आपके होने का अविभाज्य हिस्सा है। आप हो, तो सेहत है। आप हो, तो स्वास्थ्य है। बीमारी क्या है? जो आउट ऑफ़ प्लेस है। उसे होना नहीं चाहिये, फ़िर भी पता नहीं कहाँ से आ गयी है। बीमारी की परिभाषा ही यही है – जिसे नहीं होना चाहिये, फिर भी मौजूद है। दुःख वैसा ही है – जिसे होना नहीं चाहिये, पर आ गया।
अब मैंने एक बात कही – कि अगर अस्तित्व को देखो तो जो आउट ऑफ़ प्लेस है, द ऑड थिंग, वो दुःख है। और तो जो दुखी है, वो ऑड मैन आउट है, क्योंकि और कुछ दुखी दिख नहीं रहा मुझे। छोटे से छोटे लेकर, बड़े से बड़े तक, कुछ दुखी दिख नहीं रहा है, प्रसन्नता है, मग्नता है। लेकिन अब दूसरे छोर से देखो तो कुछ और दिखाई दे रहा है। अस्तित्व के लिये दुःख, ‘द ऑड थिंग’ है, लेकिन जो दुखी है, उसके लिये दुःख के अलावा और कुछ नहीं है। और उसके लिये दुःख कोई एक आकस्मिक, अनायास घटना नहीं है, जो घट गयी है। वो आज भी दुखी है, वो कल भी दुखी था, वो परसों भी दुखी था। बस कारण बदलते रहे। कारण बदलते रहे, दुःख कायम रहा। तो दुःख कहाँ है? क्या दुःख अस्तित्व में है? दुःख घटना में है, कि कोई घटना हो गयी, दुर्घटना हो गयी, कोई बात हो गयी? अगर दुःख अस्तित्व में होता, तो सब रो रहे होते। अगर दुःख, आज जो हमने प्रक्रिया की उसमें होता, तो ये जो बाईस-तेईस लोग हैं, ये रो रहे होते।
और अगर दुःख कहीं और है, अगर दुःख के कारण आंतिरक हैं, तो तुम पाओगे कि तुम घटनाएँ खोज लेते हो। आज एक घटना है, कल कोई और घटना, परसों कोई और घटना। घटनाएँ बन जायेंगी, ताकि दुःख बचा रह सके। दुःख को तुम्हारा समर्थन है। तुम वजह निकाल लोगे दुखी होने की।
आज एक व्यक्ति से तुम्हारा घर्षण हो सकता है, कल किसी और से हुआ था, परसों किसी और से हुआ था, पर होगा ज़रुर। (हँसते हुए) और अगर कोई ना मिले घर्षण के लिये, तो तुम्हें इसी बात का दुःख हो जायेगा कि आज कोई मिला नहीं। दुःख कहाँ है? खोजो, खोजो दुःख कहाँ है? बच्चों का एक खेल होता है – ट्रेज़र हंट , खजाने की खोज। मैं चाहता हूँ हम ‘सफरिंग हंट’ करें, दुःख की खोज करें। हम खोज के लाएँ कि दुःख कहाँ है।
आज किसी ने एक पोस्टर बनाया था – “ब्लेमिश ऑन द फेस ऑफ़ द ट्रुथ (सत्य के चेहरे पर दाग)”। कि जो कायदा नहीं है, वो ऐसा है जैसे चाँद पर धब्बा। दुःख ऐसा ही है – अस्तित्व पर दाग – होना नहीं चाहिये, पता नहीं क्यों आ गया। कुछ नहीं है दुनिया में जो कि जुटा हो कि हम दुखी हों। किसी ने प्रण नहीं कर रखा है। बनाने वाले ने तो बिल्कुल नहीं किया। और क्योंकि संसार उसी ने बनाया है, तो उसका बनाया संसार ऐसा कैसे हो सकता है जो हमें दुखी करे?
किसी ने ये कसम नहीं खा रखी है कि आपको दुःख पहुँचाए। कृपा करके ये बात अपने दिल से निकालें, कि दुनिया जुटी है आपको दुखी करने में। लेकिन आपका अनुभव ऐसा ही है, क्योंकि आप पाते हो कि आप जिसके भी पास जाते हो, वही आपको दुखी कर देता है। दुश्मन तो आपको दुखी करता ही है, आपके गहरे से गहरे दोस्त भी आपको दुखी कर रहे हैं। यही पाया है ना? जिससे घृणा है, वो तो आपको दुखी करता ही है। जो आपका प्रेमी है, वो भी आपको दुख ही दे रहा है। तो आपको संशय क्या है? आपको ये संशय है कि – “दुनिया बनाई ही इस तरीके की गयी है कि मुझे दुःख दे। क्योंकि इधर जाऊँ, या उधर जाऊँ, कहीं जाऊँ, पाता तो दुःख ही हूँ”।
नहीं, ऐसा नहीं है। किसी को नफ़रत नहीं है आपसे। अगर आप हर मोड़ पर दुःख पाते हो, दुःख के नए-नए कारण आपके जीवन में प्रविष्ट होते जाते हैं, तो आपको तलाश करनी पड़ेगी ईमानदारी से कि – “दुःख कहाँ है?” अन्यथा आप झूठे कारणों को निपटाते जाओगे, उनका निवारण करते जाओगे, हटाते जाओगे, और रोज़ पाओगे कि कोई नया कारण, कोई नई घटना, कोई नया व्यक्ति आ गया है, जिसके कारण आपको दुःख मिल रहा है। घटनाएँ बदलती रहेंगी, व्यक्ति बदलते रहेंगे, कायम क्या रहेगा? दुःख कायम रहेगा। और आपके भीतर एक ऐसा भाव बैठ जायेगा कि दुनिया, अस्तित्व, समाज, सब आपके विरोधी हैं, आपके दुश्मन हैं।
कोई आपका विरोधी नहीं है। कोई आपका दुश्मन नहीं है, आपके अलावा। अपने दुश्मनों की गिनती में पहला नंबर अपना रखना, और उसके बाद किसी का नाम मत लिखना। अपने दुश्मनों की एक लंबी फेहरिस्त बनाओ, और उसमें केवल एक नाम लिखो, किसका? अपना।
बड़ा मज़ा है ना ये कहने में कि- “मेरे साथ कुछ गलत हो गया है, और रोज़ होता है”? बड़ा मज़ा है ना? इल्ज़ाम किसी इंसान पर लगाते, तो इंसान को सज़ा दे देते। तुम तो प्रभु पर ही इल्ज़ाम लगा रहे हो। “उसको किस कटघरे में खड़ा करें?” तुम्हारा दावा ये है कि दुनिया ऐसी है कि दुःख से भरी हुई है, नहीं ऐसा है नहीं। तुम्हारा दावा ये है कि “मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट (निर्माण दोष) है यहाँ कहीं”, नहीं ऐसा है नहीं।
ब्रह्म को आप ना खोजें, उसमें तो वैसे भी आपकी आस्था नहीं है। निवेदन कर रहा हूँ कि आप खोजें दुःख को, कि – “दुःख कहाँ है?” करेंगे इतना? ब्रह्म को छोड़िये, वो तो वैसे ही बेचारा है। दुःख को खोजिये। जानते हो मज़ेदार बात क्या है? कई बार जिन लोगों की वजह से तुम दुखी होते हो, उनको पता भी नहीं चलता कि उनकी वजह से तुम दुखी हो गये। वो बेचारे तो अपना काम कर रहे हैं। उनको पता भी नहीं है कि उनकी किसी बात से, किसी हरकत से, तुम दुखी हो गये हो। उनका कोई इरादा नहीं तुम्हें दुखी करने का, और ना कोई तुम्हारे प्रति इर्ष्या रखता है।
और अगर तुम्हें चोट पहुँचाने का कुछ लोगों का इरादा है, तो उससे ज़्यादा कई लोग हैं जो चाहते हैं कि तुम्हें चोट ना पहुँचे, तुम सेहतमंद रहो, तुम अच्छे रहो, तुम आनंद में रहो। कुछ लोग हो सकते हैं, मानता हूँ, बेशक। उनकी तुम्हें कोई गिनती नहीं, उनके प्रति तुम्हारा कोई अनुग्रह नहीं।
चोट पहुँचाने का इरादा तो किसी-किसी का होता है, कभी-कभार। वो भी किसका होता है? जो खुद दुखी है। उसी का इरादा होता है। अन्यथा आमतौर पर दुखी आदमी जिन लोगों से चोट पाता है, उन्हें खुद नहीं पता कि उन्होंने चोट दे दी। और ये आपकी बड़ी गहरी सज़ा है, आप कलप जाते हो। वो जो दूसरा है, वो तो मौज में अपनी चाल चल रहा है। उसे पता भी नहीं कि आप कलप गये।
आपको जिन पर शक है कि वो आपकी ख़ुशी छीनने आये हैं, उनका छीनने का कोई इरादा नहीं। वो बिल्कुल नहीं चाहते हैं कि आपकी खुशियों को, या आपके संबंधों को छीन लें। वो तो मौज में अपनी चाल चल रहे हैं। भाई इंसान हैं, उनकी भी हंसी-बोली है, बातचीत है, किसी से कुछ कह दिया, किसी को छेड़ दिया, किसी से दो बातें कर लीं। उनका कोई इरादा नहीं है कि वो आपसे कुछ छीन लें। पर क्योंकि हमने दुखी रहने का व्रत ही उठा लिया है, तो हमें तो दुखी फिर होना है। वहाँ कारण ढूँढना है, जहाँ कारण कोई है नहीं।
(आसपास के वातावरण की ओर इंगित करते हुए) एक बार को साफ़ नज़र से देखो, चारों तरफ, और पूछो, “दुःख कहाँ है?” इन लोगों के चेहरों की तरफ देखो, पेड़ की, फूलों की, चाँद की, आसमान की ओर देखो, और पूछो, “दुःख कहाँ है? दुःख कहाँ है?”
~ ‘शब्द-योग सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।