दूध निचोड़ो, फिर मार के माँस चबाओ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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दूध निचोड़ो, फिर मार के माँस चबाओ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी कुछ समय पहले यूनाइटेड नेशंस का एक ट्वीट आया था उसमें उन्होंने कहा था कि माँसाहार क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) के प्रमुख कारणों में से एक है इसलिए माँसाहार कम करें। तो यह ट्वीट आया और फिर कुछ घण्टों में या एक दिन के अंदर वो ट्वीट फिर से गायब हो गया। वह ट्वीट इसलिए गायब हुआ क्योंकि मीट (माँस) और डेयरी ऑर्गेनाइजेशन (दुग्ध उत्पादक संस्था) से कुछ दबाव आया था। तो इसका मतलब यह है कि जागरूकता अगर बन भी रही है तो उसको रोका जा रहा है।

आचार्य प्रशांत: साज़िश है! साज़िश है! जागरूकता है, जागरूकता दबाई जा रही है जानबूझकर के। ये साज़िश है। यूनाइटेड नेशन की ओर से ट्वीट आता है कि क्लाइमेट चेंज का प्रमुख कारण माँसाहार है लेकिन तमाम तरह की लॉबीज़ (संगठन) हैं, तमाम तरह के प्रेशर ग्रुप (दबाव समुह) हैं और तमाम तरह की संवेदनाओं को, सेंसिबिलिटी (भावनाओं) को ध्यान में रखना होता है तो फिर उन लोगों ने वो ट्वीट डिलीट कर दी। डिलीट इसलिए कर दी कि, "अरे अरे अरे कहीं मीट इंडस्ट्री (माँस उद्योग) को घाटा ना हो जाए, कहीं लोगों की धार्मिक मान्यताओं को ठेस ना लग जाए, कहीं लोगों की स्वाद लोलुपता को बुरा ना लग जाए।"

यह बात बच्चों को उनकी पाठ्य-पुस्तकों में कक्षा तीन से पढ़ाई जानी चाहिए, कि बिलकुल अगर व्यापक स्तर पर देखो तो क्लाइमेट-चेंज का मूल कारण है — आदमी की जनसंख्या और अगर हमारे कर्मों और चुनावों के तल पर देखो तो क्लाइमेट चेंज का कारण है — माँसाहार। यह बात बताई ही नहीं जा रही है। बहुत बड़ा कारण है। जैसा अभी तुमने बोला कि मीट इंडस्ट्री और डेयरी इंडस्ट्री हैं।

और यह दोनों बिलकुल आपस में जुड़ी हुई इंडस्ट्री हैं। डेयरी इंडस्ट्री हो ही नहीं सकती बिना मीट इंडस्ट्री के। बहुत लोग जो दूध पीते हैं वह सोचते हैं, "हम तो सिर्फ दूध पी रहे हैं।" नहीं साहब, आप सिर्फ दूध नहीं पी रहे, आप माँस भी तैयार कर रहे हो। जिस जानवर का आपने आज दूध पिया है उसी का माँस कल बाज़ार में आएगा।

जानवर इकोनॉमिकली सस्टेनेबल (आर्थिक रूप से फायदेमंद) ही तब हो पाता है उसको पालने वालों के लिए, जब पहले उससे दूध उगाहा जाए और फिर उससे माँस निकाला जाए।

ऐसे समझो कि जब तुम एक गाड़ी लेते हो तो तुम उस गाड़ी से दो तरह के मुनाफे लेते हो, क्योंकि तुमने उस पर पैसा खर्च किया है, तो तुम उससे दो तरह की कीमत वसूलना चाहते हो। तुम कहते हो, "जब तक यह गाड़ी चल रही है तबतक तो मैं इससे यात्रा करूँगा।" यह समझ लो तुमने गाड़ी से दूध दुह लिया, कि, "अभी चल रही है तो मैं इस से यात्रा करता हूँ।"

"और फिर जब यह चलने लायक नहीं रहेगी तब मैं इसे कहीं बेच दूँगा या जब मेरा इससे मन भर जाएगा तो मैं इसे बेच दूँगा। चाहे मैं किसी दूसरे ग्राहक को बेचूँ या कबाड़ी को बेचूँ, जिसको भी बेचूँगा कुछ रीसेल वैल्यू (पुनः विक्रय मूल्य) मिलेगी।" यह तुमने मीट इंडस्ट्री को प्रोत्साहन दे दिया।

तो जैसे तुम गाड़ी से दो-दो तरह की कीमत या फायदे वसूलते हो न, कि, "पहले चलाऊँगा और फिर रिसेल (पुनः विक्रय) से भी तो कुछ पैसा पा जाऊँगा", उसी तरीके से यह जो जानवर पाले जाते हैं वह इसी तरह से पाले जाते हैं कि पहले इनका दूध बिकेगा फिर इनका माँस बिकेगा।

जानवर पालने वाला अगर दूध को एक भाव पर बेच पा रहा है, जो भी दूध का भाव है, वह इसलिए क्योंकि पता है कि अभी आगे चलकर के इस जानवर का माँस भी बिकना है। अगर उस जानवर का माँस बिकना बंद हो जाए तो दूध महँगा हो जाएगा।

इसी तरीके से अगर दूध बिकना बंद हो जाए तो माँस इतना महँगा हो जाएगा कि फिर मीट खाने वालों की आफत आ जाएगी। तो इसीलिए जानवर की हत्या करने में दूध खाने वाले और माँस खाने वाले यह दोनों बिलकुल साथ-साथ चल रहे हैं। बस बात इतनी सी है कि दूध खाने वालों को अभी ये पता ही नहीं है अधिकांशतः कि जानवर के उत्पीड़न में वह भी उत्तरदाई हैं। उनकी भी ज़िम्मेदारी है। वह सोचते हैं, "हम तो सिर्फ दूध ले रहे हैं!"

देखिए वह ज़माने चले गए जब घर की गाय हुआ करती थी कि घर में ही जन्मती थी, घर में ही खाती-पीती थी और फिर घर में ही वह दम तोड़ देती थी। ज़्यादातर लोग जो दुग्ध पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं, मुझे बताइए क्या उनकी घर की गाय-भैंस से दूध आता है? अगर उनकी घर की गाय-भैंस से दूध आता है तो मैं उनको अलग रख रहा हूँ, फिर मैं उनकी बात नहीं कर रहा। पर निन्यानवे प्रतिशत लोगों के घर में तो बाज़ार से दूध आता है न? तो उनको पता भी है कि जिस जानवर से उनको दूध आ रहा है, वह दूध किस तरीके से आ रहा है, जानवर का कितना शोषण करके आ रहा है? और जब वह जानवर तुमको दूध देने लायक नहीं रहेगा तब उस जानवर के साथ क्या व्यवहार होने वाला है?

तो दूध को खरीद करके और दूध का लगातार उपभोग कर कर के तुमने जानवर के शोषण को ज़बरदस्त प्रोत्साहन दे दिया है। अब वह जानवर कटेगा आगे। बल्कि वह जानवर कटेगा क्या, वह तो पैदा ही इसलिए हुआ था सिर्फ ताकि तुमको दूध दे सके।

तुम्हें क्या लगता है वह जानवर प्राकृतिक तौर से पैदा हुआ था, नहीं उसको कृत्रिम तौर से ज़बरदस्ती पैदा कराया गया था। गाय का, भैंस का जबरदस्ती गर्भाधान कराया जाता है। एक तरह का बलात्कार होता है वह। ताकि तुम्हारी दुग्ध-पिपासा शांत हो सके। नहीं तो इतने सारे लोग हैं इनको दूध देने के लिए गाय थोड़े ही बहुत तत्पर हैं, कि दुनिया भर की गायों ने संकल्प उठाया है कि आदमी अपनी आबादी बढ़ाता रहे, बढ़ाता रहे — अब आठ-सौ करोड़ आदमी हो गए हैं दुनिया में — और गाय कह रही हैं कि, "इनको दूध देने की ज़िम्मेदारी हम लेते हैं न, हमारी प्रजाति तो है ही इसीलिए कि आदमी अंधाधुंध अपनी आबादी बढ़ाता रहे और हम उसको दूध पिलाती रहें।"

नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। गायों का बड़ा शोषण है। और जिन लोगों को गायों से प्रेम हो, वह पहला काम तो यह करें कि दूध पीने से दूर हो जाएँ। अनजाने में ही सही लेकिन आप पशु-पीड़न का पाप अपने सर ले रहे हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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