धर्म नशा कैसे? || आचार्य प्रशांत, कार्ल मार्क्स पर (2013)

Acharya Prashant

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प्रसंग:

  • धर्म का सही अर्थ क्या है?
  • धर्म क्या है?
  • क्या होश में जीना ही एक मात्र धर्म है?
  • धर्म की प्रासंगिकता क्या है?
  • इंसान को धर्म की आवश्यकता क्यों है?
  • आज के मानव के लिए सच्चे अर्थों में धार्मिक होने के क्या मायने हैं?
  • धर्म को कैसे समझें?
  • कार्ल मार्क्स ने धर्म को लोगों का नशा क्यों कहा है? (Why Karl Marx has said Religion to be opium of the masses?)

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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