धर्म को नशा क्यों कहा गया है? || आचार्य प्रशांत (2015)

Acharya Prashant

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धर्म को नशा क्यों कहा गया है? || आचार्य प्रशांत (2015)

आचार्य प्रशांत: मार्क्स ने कहा था “रिलीजन इज़ द ओपियम ऑफ़ द मासेज़ ”। समझ में आ रहा है क्यों कहा था? क्यों कहा होगा? क्यों कहा होगा? ओपियम माने? नशा, गाँजा। क्यों कहा होगा?

प्रश्नकर्ता: सर, मास फिनोमेना नहीं।

प्र२: सर, लगता है कि जानते नहीं हैं।

आचार्य: नशे का क्या अर्थ होता है?

प्र१: तुम झुक सकते हो इसके पीछे।

प्र२: सर, समझ नहीं आया।

प्र३: अपनी असल ज़िंदगी को भूल जाते हैं इसमें।

आचार्य: अपनी ज़िंदगी को भुलाने के लिए धर्म का सहारा लेते हैं हम। कि ज़िंदगी सड़ी-गली है तो आकर चलो सत्संग कर लेते हैं। जैसे दिन भर कोई परेशान रहे और शाम को जाकर के अड्डे पर बैठ जाए।

रिलीजन इज़ द ओपियम ऑफ़ द मासेज़

आज से नहीं, हमेशा से ही। और ऐसा ही हुआ है। उन सभी कारणों में एक कारण यह भी रहा है कि भारत ने बहुत कम प्रतिरोध किया है ग़ुलाम हो जाने ले लिए या बहुत कम प्रोद्योगिकी विकास किया है क्योंकि उसके पास पहले से ही इतने धर्म मौजूद हैं। तुम्हारी पूरे दिन मार पड़ सकती है या पूरे दिन ज़िंदगी तुम्हारी पिटाई कर सकती है और शाम में तुम कहोगे–राम भजो! राम भजो! राम भजो! और यह वो संस्करण है धर्म का जिसका मैं सच में तिरस्कार करता हूँ। धर्म क्या डरपोकों और भगौड़ों के लिए है! क्या धर्म इसलिए है जिससे तुम भूल जाओ अपनी ज़िंदगी का भद्दापन और फिर उसी को चलाए रखो?

यार आप छोटे बदलाव लाओ पर बात असली होनी चाहिए न। नहीं तो मुझे लगता है कि मैं एक जानबूझकर किए हुए धोखे का हिस्सा हूँ। कि एक धोखा चल रहा है और आपने मुझे उसका हिस्सा बना लिया है।

बंदा दिन भर दुकान चलाता है। उसमें अपनी जितनी भी घटिया हरक़तें हो सकती हैं, करता है। और शाम को क्या करता है? राम भजो! राम भजो! राम भजो भई!

चर्च में भी मास सिर्फ़ रविवार को ही होता है। सातों दिन नहीं होता। “६ दिन तुम - ठीक है जाओ - हम नहीं देख रहे। जो करना है करो। ‘जीज़स इज़ स्लीपिंग! ’ (जीज़स सो रहे हैं!)” सातवें दिन, जब तुम्हारे पास कुछ करने को नहीं होगा, जीज़स जग जाएँगे। और वो तुम्हें एकदम ठीक पाएँगे। ठीक है! यह तो चर्च आए हुए हैं। "अच्छे बच्चे हैं। इनकी सिफ़ारिश हो स्वर्ग में मेरे पिता से।" और फिर जीज़स फिर सोने चले जाते हैं। ६ दिन तुम मज़े लो!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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