देहं से सोऽहं तक || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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देहं से सोऽहं तक || आचार्य प्रशांत (2014)

आचार्य प्रशांत: हर तादात्म्य का सम्पूर्ण अस्वीकार, सिर्फ शरीर से तादात्म्य का नहीं, ये है ‘नाहं’। ये ध्यान का फल है। ध्यान जितना गहरा होगा, ‘नाहं’ उतनी जल्दी आएगा। ध्यान, आपके तीक्ष्ण अवलोकन का फल है। जितनी तीक्ष्णता से आप अवलोकन कर पाओगे उतनी जल्दी आप ‘नाहं’ कह पाओगे। इसको रमण ऐसे कहा करते थे कि ‘नाहं’ से पहले आता है ‘देहं’। देहं, नाहं, कोऽहं, सोऽहं। जो अवलोकन नहीं करता उसके लिए वो सिर्फ क्या है?

प्रश्नकर्ता: ‘देहं’।

आचार्य: ‘कोऽहं’ क्या है? ये कोई क्यों पूछेगा, ‘मैं कौन हूँ?’

जब व्यक्ति व्यथित होता है, तभी ये सवाल उठता है। एक तरीके से ये अशांति से उपजा सवाल है। ‘कोऽहं’ जो है वो अशांति से निकला सवाल है। पुरानी मान्यताएँ, धारणाएँ जब टूटती हैं, तब सवाल उठता है, ‘कोऽहं’। यह वो तो नहीं जो सोचा था आज तक, तो फिर मामला क्या है, चक्कर क्या है? जो कुछ मान कर बैठा था, वो तो नहीं है। तो फिर सच्चाई क्या है?

प्र२: ‘कोऽहं’ कौन पूछता है?

आचार्य: अहंकार ही पूछता है। जानना, पूछना, सवाल कैसा भी हो, अहंकार का ही है। दिशा बदल रही है। यूँ समझ लो एक आदमी एक तरफ बड़ी तेज़ी से गाड़ी चलाए जा रहा है, तो ‘कोऽहं’ एक यू-टर्न है। उसकी दिशा क्या है? अभी तक गाड़ी किधर को जा रही है?

प्र२: बाहर की तरफ जा रही है। अपने स्रोत से दूर।

आचार्य: बाहर की तरफ जा रही है, ‘देहं’। ‘कोऽहं’, परिवर्तन का बिंदु (पॉइंट ऑफ इन्फलेक्शन ) है। पॉइंट ऑफ इन्फलेक्शन क्या होता है? जहाँ वक्र (कर्व ) में ढलान (स्लोप ) बदलती है। तो ‘कोऽहं’ वो बिंदु है, जहाँ पर यू-टर्न होता है। चाहे ‘देहं’ हो, चाहे ‘नाहं’ हो, चाहे ‘कोऽहं’ हो, चाहे ‘सोऽहं’ हो। पूछने वाला, करने वाला होता तो हमेशा अहंकार ही है। उसके अलावा और कौन है? ‘सोऽहं’ क्या है? बोलिए।

प्र३: मैं स्त्रोत हूँ।

आचार्य: ‘सोऽहं’ में हम ये ही क्यों नहीं कह देते हैं? ‘सोऽहं’ में हम नाम क्यों नहीं दे देते हैं? क्योंकि ये पता हो जाता है ‘सोऽहं’ में कि इसके अलावा जो कुछ भी है, वो ‘मैं’ में आ जाएगा। सोऽहं में ‘सोऽहं’ ही कहा जाता है, कोई नाम या कोई विषय नहीं दिया जाता। उसकी बड़ी सीधी-सी वजह है।

‘सोऽहं’ में जो रखोगे, ‘सो’ माने, ‘वो’। ‘सो’ में जो भी रखोगे वो ठीक होगा। मैं यह नहीं कह रहा ग़लत होगा, वही ठीक होगा। (एक कोयल की आवाज़ की तरफ इंगित करते हुए) ये अभी कूक रही थी, तुम कह दो, ‘मैं कोयल हूँ’, तो ग़लत नहीं कहोगे। जो ‘सोऽहं’ में बोलता है वो पूरे यकीन से बोलता है। हम नहीं बोल पाएँगे, हम ऐसे ही बोल देगें। ‘सोऽहं’ का मतलब है: जो कहो सो हम। संस्कृत में नहीं है बस समझाने के लिए है। तो ये हम, और वो पत्थर भी हम। ‘नाहं’ क्या था?

प्र२: हर तादात्म्य का सम्पूर्ण अस्वीकार (टोटल रिजेक्शन ऑफ ऑल आईडेन्टिफिकेशन )।

आचार्य: हर तादात्म्य का सम्पूर्ण अस्वीकार (टोटल रिजेक्शन ऑफ ऑल आईडेन्टिफिकेशन )। अब ‘सोऽहं’ समझो क्या है। पूर्ण से समग्र एकात्मकता (कम्प्लीट आईडेन्टिफिकेशन विद दा टोटल )। ‘नाहं’ था, हर तादात्म्य का सम्पूर्ण अस्वीकार (टोटल रिजेक्शन ऑफ ऑल आईडेन्टिफिकेशन ) और ‘सोऽहं’ है, पूर्ण से समग्र एकात्मकता (कमप्लीट आईडेन्टिफिकेशन विद दा टोटल )। तो जो कहो वो ‘सोऽहं’। सम्पूर्ण तादात्म्य किसके साथ? पूर्ण के साथ, बँटे हुए के साथ नहीं। जैसे हवा का, बादल का, पानी का, सूरज का, पक्षी का, सम्पूर्ण तादात्म्य। कोई भेदभाव नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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