क्या पेड़ लगाकर क्लाइमेट चेंज रोका जा सकता है?

क्या पेड़ लगाकर क्लाइमेट चेंज रोका जा सकता है?

मोहन: इतने दिनों से कहाँ था? दिखाई नहीं दिया?

सोहन: भाई! घूमने गया था। पास के हिल स्टेशन तक मस्त 4 लेन रोड बनी है!

मोहन: अच्छा, वही जो पहाड़ काटकर और पेड़ों को जलाकर बनी है?

सोहन: तुझे क़ानून नहीं पता? विकास के लिए जो पेड़ कटते हैं, उसकी भरपाई के लिए दूसरी जगह पर 10 पेड़ लगते हैं। 😕

मोहन: अच्छा। ये बता काटा गया जंगल कितना पुराना होगा?

सोहन: हज़ारों-लाखों साल पुराना होगा।

मोहन: हज़ारों-लाखों साल पुराना जंगल की भरपाई शिशु-समान पौधे लगाने से हो जाएगी? 😐

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सोहन भाई जैसी सोच कई लोग रखते हैं (शायद आप भी)। ऐसा लगता है कि यदि क्लाइमेट चेंज से बचना है तो पेड़ लगाना एक कारगर उपाय है। बात तर्क-संगत भी लगती है।

तर्क ये है: पेड़ कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO2) को सोख लेते हैं। तो पेड़ लगाने से पर्यावरण में CO2 की मात्र कम होगी। CO2 की मात्रा कम होने से पृथ्वी का औसत तापमान भी कम होने लगेगा। और ये बात पूरी तरह गलत भी नहीं है। नए पेड़ बिलकुल लगाए जाने चाहिए। लेकिन अब कुछ सवाल हमें पूछने होंगे:

1️⃣ क्लाइमेट चेंज से बचने के लिए कितने पेड़ लगाने होंगे?

शोधकर्ताओं का कहना है उसके लिए अगले 25 साल में 1600 करोड़ हेक्टर भूभाग पर पेड़ लगाने होंगे।

जानते हैं यहाँ कितनी बड़ी ज़मीन की बात हो रही है?

भारत के कुल भूभाग का 5 गुना! या ऐसा कहिए, दुनिया में जितनी भूमि पर खेती होती है, उससे भी कई हेक्टर ज़्यादा।

यानी क्लाइमेट चेंज को सिर्फ़ पेड़ लगाकर नहीं हराया जा सकता। क्योंकि जितनी ज़मीन चाहिए उतनी उपलब्ध ही नहीं है!

हम बड़े चालाक हैं! हम सोचते हैं जंगल काटने का अपराध-भाव, शिशु-समान पौधे लगाकर ढका जा सकता है। लेकिन हमें समझना होगा: एक सैकड़ों साल पुराने विशाल वृक्ष को काटने की आप कोई भरपाई नहीं कर सकते।

पेड़ों का विज्ञान समझिए: जो जंगल पृथ्वी पर हमें विरासत में मिले हैं वो अपने भीतर बहुत सारा कार्बन सोखे हुए हैं। इसलिए जंगलों को वैज्ञानिक 'कार्बन-सिंक' भी कहते हैं। क्योंकि जैसे-जैसे कोई पेड़ बड़ा होता है वो वातावरण में से CO2 सोख लेता है। लेकिन इस प्रक्रिया में सैकड़ों साल लग जाते हैं।

2️⃣ क्लाइमेट चेंज से बचने के लिए हमारे पास इतना समय है?

तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिए - मात्र 5 साल बचे हैं! और हम ये सोच रहे हैं कि सिर्फ़ कुछ पेड़ लगाकर हम स्थिति को नियंत्रण में ला सकते हैं। ये असंभव है। सबसे पहली आवश्यकता है कि जो जंगल हमारे पास अभी बचे हुए हैं उनकी रक्षा की जाए।

3️⃣ आज हमारे जंगलों की क्या स्थिति है?

पिछले 5 वर्षों में सबसे अधिक पेड़ काटने वाले देशों की सूची में - भारत दूसरे नंबर पर है!

इस समय हर देश की सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए जंगलों का संरक्षण। नहीं तो बाढ़, हीट वेव, सूखा, बेमौसम बरसात व तटीय शहरों का डूबना एक आम बात हो जाएगी।

असम, हिमाचल, सिक्किम में आई भारी बाढ़, फसल ख़राब होने की वजह से सब्ज़ियों के बढ़ते दाम, उत्तर भारत की भीषण गर्मी और प्रदूषण - ये सभी बदलाव पृथ्वी के लाखों साल के इतिहास में पहले कभी नहीं देखे गए।

इसलिए एक ऐसी क्रांति की आवश्यकता है जो पहले कभी नहीं देखी गई।

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आज ज़रूरत है अधिक-से-अधिक लोगों को जगाने की। लेकिन जो लोग 25-50 करोड़ लोगों तक अपनी बात 1 सेकंड में पहुँचा सकते हैं, वे सबसे बड़े वैश्विक संकट से बेखबर हैं, बेहोश हैं।

आचार्य प्रशांत और आपकी संस्था एक भगीरथ संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हमें शीघ्र-अतिशीघ्र अधिकतम लोगों तक पहुँचना है। जिसके लिए बड़े संसाधनों की आवश्यकता होती है।

आपकी संस्था आपके लिए संघर्ष में है, साथ दें। स्वधर्म निभाएँ: acharyaprashant.org/hi/contribute

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This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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