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ब्रह्मचर्य क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

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प्रश्नकर्ता: ब्रह्मचर्य क्या होता है?

आचार्य प्रशांत: ब्रह्मचर्य के दो अर्थ होते हैं। जो ज़्यादातर लोग जानते हैं वो ये होता है कि संभोग ( सेक्स ) नहीं करना और ये बड़ी तुच्छ बात है। तुमने तो ब्रह्म को बिलकुल लंगोटे से बाँध दिया है। ब्रह्म को क्या पड़ी है कि तुम सेक्स कर रहे हो या नहीं।

ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ है, ब्रह्म में आचरण करना। और ब्रह्म माने बँटा-बँटा नहीं रहना, पूरा रहना। ब्रह्म का मतलब है, जो कुछ हो सकते हो, पूरे तरीके से हो जाओ, छोटे नहीं रह जाओ। ‘ब्रह्म’ शब्द आया है ‘वृहद’ से, ‘वृहद’ माने विस्तार, बड़ा होना।

अहंकार तुम्हें छोटा बनाता है, सीमित बनाता है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है बड़ा, ब्रह्मचर्य का अर्थ है मन छोटा नहीं है, संकुचित नहीं है, बँटा हुआ नहीं है। मन बहुत बड़ा है, सब समाया हुआ है उसमें। मैंने भी अपने आप को छोटा सा नहीं बना रखा है कि मेरी तो पहचान बस इतनी है कि मैं इसका बेटा हूँ, मैं इस जगह पढ़ता हूँ, मैं इस जगह रहता हूँ, यही हूँ मैं बस। मैं बड़ा हूँ और यही है ब्रह्मचर्य का अर्थ। ब्रह्मचर्य समझ लो अहंकार से विपरीत है।

ब्रह्मचर्य समझ लो अहंकार से मुक्ति है। आज़ादी ही ब्रह्मचर्य है। अतीत और भविष्य से मुक्ति ब्रह्मचर्य है, दूसरों के प्रभावों से मुक्ति ब्रह्मचर्य है। यही सब है ब्रह्मचर्य, और कुछ नहीं।

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