बोध क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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बोध क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: प्रश्न है, ‘जिसको हम बौद्धिक स्तर(इंटेलिजेंस कोशिएंट, आई.क्यू.) बोलते हैं वो अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग होता है, इस बात का क्या अर्थ है?’

वक्ता: शायद ये सवाल यहाँ से आ रहा है कि मैंने ‘इंटेलिजेंस’ शब्द का प्रयोग किया था| मैंने कहा था कि मूलतः तुम ‘इंटेलीजेंट’ हो, तो शायद इसलिए मन में ये संदेह उठ रहा हो| तुमने अभी तक यही सुना है कि ‘इंटेलिजेंस’ तो अलग-अलग होती है, और उसको उस आई.क्यू., बौद्धिक स्तर नाम की विधि से नापा भी जाता है| तो मूलतः सब एक समान ‘इंटेलीजेंट’ कैसे हो सकते हैं?

देखो जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ, वो आई.क्यू.,बौद्धिक स्तर नहीं है, बिल्कुल भी नहीं है| वो ‘इंटेलिजेंस’ है तुम्हारी समझ, तुम्हारी दृष्टा हो पाने की क्षमता| तुम बस अलग हट कर, साक्षी होकर घटना को देख पा रहे हो, यही ‘इंटेलिजेंस’ है|

साक्षी हो पाने की क्षमता को ही ‘इंटेलिजेंस’ कहते हैं| कुछ हो रहा है, मन में कुछ हो रहा है, दुनिया में कुछ हो रहा है, और मैं उसको बस देख पा रहा हूँ, बिना उसमें लिप्त हुए|यही ‘इंटेलिजेंस’ है|

जिसको तुम एक विधि के द्वारा नापते हो, एक बौद्धिक स्तर(इंटेलिजेंस कोशिएंट), उसका संबंध तो कुशलता, निपुणता से है| उसका वास्तविक ‘इंटेलिजेंस’ से बड़ा कम संबंध है| उसमें नापा जाता है तुम्हारी संख्यात्मक निपुणता(न्युमेरिकल एबिलिटी) कैसी है, उसमें स्मृति(मेमोरी) का बड़ा स्थान होता है, कि तुम कितना जल्दी बातों को याद रख पाते हो| बौद्धिक स्तर की योग्यता बहुत सारे कामों में व्यवहारिक रूप से उपयोगी है, पर वो ‘इंटेलिजेंस’ नहीं है| वो तो एक प्रकार का कौशल मापने का स्तर है, एक दक्षता है| उसका अपना उपयोग है, पर उसको हम ‘इंटेलिजेंस’ ना समझ लें|

जो लोग उस पैमाने पर ऊपर बैठे हैं, जिनका बौद्धिक स्तर १३०-१४० का होता है, वो अच्छे वैज्ञानिक बन सकते हैं| पर मैं जिस ‘इंटेलिजेंस’ की बात कर रहा हूँ, उससे तुम बनते हो एक पूर्ण इंसान| और इसको नापा नहीं जा सकता, ये या तो होती है या नहीं होती| तुम या तो दृष्टा हो, साक्षी हो, या नहीं हो|

तो, बौद्धिक स्तर(आई.क्यू.) परिवर्तनीय होता है, उसमें किसी का स्कोर ७० भी आ सकता है और १५० भी आ सकता है| जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ, इसमें दो ही स्कोर आते हैं; शून्य या एक| क्योंकि तुम या तो ध्यान में होते हो या नहीं होते हो, वो या तो है या नहीं है| बौद्धिक स्तर(आई.क्यू.) तो परिवर्तनीय होता है, उसमें शून्य से दो-सौ तक कुछ भी गणना हो सकती है| जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ, इसमें या तो कुछ होगा या कुछ भी नहीं होगा, शून्य या एक|

जैसे की अभी, या तो तुम ध्यान में हो या नहीं हो, या तो स्पष्टता से सुन पा रहे हो या नहीं सुन पा रहे हो| सुन पा रहे हो तो ‘एक’ और नहीं सुन पा रहे हो तो ‘शून्य’| इसमें कोई बीच का तल नहीं है|

ध्यान का अर्थ है, या तो तुमने जान ही लिया, या तुम अपने विचारों में खोए रहे| इसमें बीच का कुछ नहीं| इसलिए जिस ‘इंटेलिजेंस’ की मैं बात कर रहा हूँ उसे बोध या समझ भी कहते हैं| तुम या तो समझते हो या नहीं समझते हो, बीच का कुछ नहीं है| तो ‘इंटेलिजेंस’ है समझ, दृष्टा होना, साक्षी होना| और वो या तो तुम होते हो, या नहीं होते, इसमें बीच का कुछ नहीं|

समझ गए?

सभी श्रीतागण(एक स्वर में): जी सर|

‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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