बोध खरीदा नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2014)

Acharya Prashant

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बोध खरीदा नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2014)

वक्ता: छात्रों से अब यह बात कह रहा हूँ| तुम्हें शिक्षक से ऐसे नहीं मिल पायेगा कि तुम वहाँ यह सोच कर जाओ कि देखो मैं तो छात्र हूँ, कॉलेज की फीस देता हूँ, कॉलेज ने कोर्स चलाया है, तो मैं ज्ञान खरीदने जा रहा हूँ| ऐसे नहीं मिल पायेगा| समझ में आ रही है बात?

इस तरीके से तुम्हें विज्ञान का ज्ञान मिल सकता है, गणित का ज्ञान मिल सकता है, भौतिकी का ज्ञान मिल सकता है, पर जीवन का ज्ञान तो गुरु से ही मिलता है| और वहाँ पर रवैया बिल्कुल दूसरा रखना होता है, बिल्कुल ही दूसरा रखना होता है|दूसरी ओर गुरु का भी दायित्व है ये देखना कि शिष्य को उससे घृणा ही न हो जाये| और शिष्य को भी ये देखना है कि गुरु-गुरु होता है|

असल में जबसे शिक्षा व्यवसाय बनी है, तबसे तुम छात्रों को लगने लग गया है कि हर कोई बिकाऊ है| तुमको लगने लग गया है कि तुम जो कोर्स कर रहे हो, वो तुमने खरीदा है कुछ पैसे दे कर| तुम सोचते हो कि हमने पैसे दिए हैं इसलिए हमें ये कोर्स कराया जा रहा है| तो कहीं न कहीं मन में ये बात बैठी हुई है कि हमने ये कोर्स ‘ख़रीदा’ है| ये गुरु नहीं, विक्रेता है जो हमें सेवा-प्रदान कर रहा है| गुरु सेवा-प्रदाता नहीं होता| गुरु तुम्हें सेवा-प्रदान करने नहीं आया है|

मैं फिर से कह रहा हूँ कि विज्ञान का शिक्षक विक्रेता हो सकता है, जीवन-शिक्षा का शिक्षक विक्रेता नहीं, गुरु होता है| और तुम अगर ये नज़रिया रख कर सेशन में जाओगे कि वह शिक्षक आया था और मुझे उसकी प्रतिपुष्टि(फीडबैक) देनी है, कि हम उनके पढ़ाने का मूल्यांकन करेंगे, तो उससे तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा|

ये नज़रिया, ये उपभोक्ता वाली मानसिकता इतनी गहरी है कि मैंने जो ई-ग्रुप्स बनाये हैं संवाद वाले, उसमें एक कॉलेज के एक -दो धुरंधर छात्रों ने मुझसे सवाल किया कि मैंने उनको क्यों नहीं शामिल किया, जैसे की यह मेरी उनके प्रति जवाबदेही हो| गुरु होने के नाते ये तो मेरी मर्ज़ी है कि मैं किन छात्रों को शामिल करूँ या न करूँ| पर देख रहे हो न, जैसे कि तुम पूछते हो कि मेरा पिज़्ज़ा तीस मिनट में क्यों नहीं आया, ठीक उसी तरह से वो पूछ रहे हैं कि उन्हें भी क्यों नहीं शामिल किया गया है|

बोध खरीदा नहीं जाता है|

चाहे वो तुम्हारा जीवन-विद्या कोर्स हो, या चाहे ये बोध-शिविर हो, यह तुमने खरीदा नहीं है पैसे देकर| यह तो अनुग्रह होता है, कृपा होती है| तुम करोड़ रुपये दे दो, तुम्हें नहीं मिलेगा| यह ज्ञान खरीदा ही नहीं जा सकता |

गुरु और शिष्य में एक अच्छा सम्बन्ध हो तो उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता| वो दुनिया के रिश्तों में सबसे अद्भुत रिश्ता है क्योंकि उसमें कोई खून का रिश्ता नहीं है| उसमें कोई भोग का रिश्ता नहीं है| वो ज्योति से ज्योति जलने वाला रिश्ता है| तो उससे सुन्दर रिश्ता कोई हो नहीं सकता| (हँसते हुए) और वही रिश्ता अगर विक्रेता और ग्राहक का रिश्ता बन जाए तो उससे बेहुदा रिश्ता कोई नहीं हो सकता |

-‘ज्ञान सेशन’ पर आधारित | स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त है |

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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