भूत-प्रेत और डायन का सच || आत्मबोध पर (2019)

Acharya Prashant

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भूत-प्रेत और डायन का सच || आत्मबोध पर (2019)

रागेच्छासुखदुःखादि बुद्धौ सत्यां प्रवर्तते। सुषुप्तौ नास्ति तन्नशे तस्मादुद्देस्तू नात्मनः॥

आसक्ति, कामना, सुख, दुःख इत्यादि का तभी तक अनुभव होता है जब तक बुद्धि कार्य कर रही होती है, सुषुप्ति अवस्था में बुद्धि के न रहने पर इनकी भी प्रतीति नहीं होती है। इसीलिए इनका सम्बन्ध बुद्धि से है, न कि आत्मा से।

—आत्मबोध, श्लोक २०

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, श्लोक में सुषुप्ति का उल्लेख आया है। मुझे रात में भूतों से डर लगता है। क्या भूत होते हैं या नहीं होते हैं? मैं गाँव से हूँ और मेरे गाँव में भूतों के बहुत सारे क़िस्से और कहानियाँ हैं। डर इतना गहरा बैठ गया है कि रात में अकेले में कुछ दिख जाता है तो जान ही निकल जाती है। कृपया प्रकाश डालें।

आचार्य प्रशांत: सुषुप्ति माने चेतना की गहरी नींद की अवस्था। जब तुम बहुत गहरी नींद में होते हो, इतनी गहरी नींद कि चेतना की सामान्य चंचलता एकदम ही थम जाए, उसको कहते हैं सुषुप्ति। जब जगे हुए हो तो देखा है मन में कितनी हलचल रहती है? सो जाओ तो हलचल कम हो जाती है लेकिन थोड़ी-बहुत तो रहती ही है। सोने पर भी कुछ-कुछ चल रहा होता है, सपने आ रहे होते हैं। फिर नींद जब और गहरा जाती है तो मन की हलचल और थम जाती है। उस अवस्था को कहते हैं सुषुप्ति।

आगे पूछा है, "क्या भूत होते हैं?"

जो पढ़ रहे हो उसी से पूछो न! पढ़ तो लिया तुमने कि चेतना की कितनी अवस्थाएँ होती हैं, चेतना में जो होता है वो क्या होता है। अरे जब आदि शंकराचार्य तुमसे कह रहे हैं कि समस्त जगत ही मिथ्या है तो जगत के भूत भी तो मिथ्या हो गए न। या ऐसा होगा कि जगत मिथ्या है पर जगत में जितने भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल हैं वो सब सत्य हैं?

आत्मबोध, तत्वबोध पढ़ रहे हो, वो भी शंकराचार्य के साथ, वो तो नेति-नेति के सम्राट थे; जितनी चीज़ें थीं सब उन्होंने काट दीं, नेति-नेति विशारद उनका नाम था। सब नकली है, वो बस चुड़ैल असली है? ऐसा तो नहीं हो सकता, कि हो सकता है? जब वो चीज़ें भी भ्रम मात्र हैं जो आमतौर पर दिखाई देती हैं, सर्वमान्य हैं, सार्वजनिक हैं—सब मानते हैं कि दीवार है, शंकराचार्य तुम्हें बता गए, तुम पढ़ भी रहे हो, सीख भी रहे हो कि दीवार भी मिथ्या है। ब्रह्म सत्य है, जगत पूरा मिथ्या है। तो अब भूत, चुड़ैल की क्या हैसियत?

और तुमने देखो जो श्लोक भी भेजा है उसमें सुषुप्ति की बात है। जिस भूत की इतनी भी हैसियत नहीं कि वो सुषुप्ति में प्रवेश कर सके, उसको तुम अपने हृदय में क्यों प्रवेश करने दे रहे हो? सुषुप्ति में जब चेतना का कोई विषय नहीं बचता, तो बताना चेतना में भूत बचता है क्या? तुम ये तो कह सकते हो कि सपनों में भूत आए, पर ये थोड़े ही कहोगे कि बिना सपने के ही भूत आ गए? 'सो रहा था, सपना नहीं था पर भूत थे।' सोते में अगर भूत आए तो यही तो कहोगे सपना आया, या ये कहोगे 'सो रहा था, बिना सपने के भूत आया?'

भूत तो चेतना की हलचल है, तुम्हारी मान्यता है। जैसे तुम्हारे पास सौ कहानियाँ हैं वैसे ही एक कहानी है भूत। कोई भी कहानी बना लो। एक ही दो प्रकार के भूत थोड़े ही होते हैं, पचास तरह के होते हैं। जिस भी चीज़ से तुम डरो वो भूत। अतीत की जो भी घटना अभी भी तुम पर हावी हो, वो भूत है। आगे की जो तमन्ना तुम्हें चैन ना लेने देती हो वो प्रेत है। जो वासना तुमको पकड़े हुए हो वो चुड़ैल है। जिस इच्छा, जिस वासना के कारण तुमने बहुत पिटाई खायी हो, वो डायन है। यही हैं भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल, और क्या होते हैं?

बहुत उम्मीद हो कि ऐसा कुछ करेंगे तो कुछ मिल जाएगा, उसका नाम जिन्न है, या जिन्नात है। जिन्न यही कहता है न 'क्या हुक्म मेरे आक़ा, बताइए? सारी इच्छाएँ पूरी करता हूँ', तो तुम्हारी अपूर्ण इच्छाओं का ही नाम जिन्न है। जिस बोतल में जिन्न बंद रहते हैं वो खोपड़ा है; यहीं सारी इच्छाएँ बैठी हैं। सब चेतना के अंदर की ही चीज़ें हैं, बाहर कुछ नहीं! जो तुम्हें बहुत डराता हो कि मार-पीट कर अभी कचुम्बर कर देगा, वो दैत्य-दानव है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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