Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
भीष्म ने प्रतिज्ञा क्यों की? || महाभारत पर (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
5 min
77 reads

प्रश्नकर्ता: मुझे दिखाई पड़ रहा है कि सत्यवती के पिता का लालच एक भयानक युद्ध का बीज था। भीष्म एक कुशल राजनेता और विद्वान होते हुए भी ये देख क्यों न सके? क्या उनका अपना भी कोई लालच था? हमारे जीवन में जब लालच बीज रूप में ही हो तो उसे कैसे देखें? लालच किन-किन रूपों में आ सकता है? क्या इसे देख पाना संभव भी है? क्या लालच का तभी पता चलता है जब परिणाम सामने आते हैं?

आचार्य प्रशांत: बहुत सारी बातें बोली हैं आपने। हाँ, भीष्म का अपना लालच था। भीष्म का लालच था कि उन्हें एक सुयोग्य पुत्र कहलाना था, उन्हें सत्य से ज़्यादा पिता प्यारे थे। उन्होंने जो भी प्रतिज्ञा ली, किसकी ख़ातिर ली? पिता के सुख की ख़ातिर। और ये भी वो देख रहे हैं कि पिता इसलिए नहीं दुखी हैं कि पिता को शिव नहीं मिल रहे, कि राम नहीं मिल रहे; पिता दुखी इसलिए हैं क्योंकि उनको सुगंधित तन वाली सत्यवती नहीं मिल रही थी।

अब पिता दुखी बैठे हैं कि पहली पत्नी भग गई, पहली कौन थी? गंगा। पहली पत्नी भाग गई तो बड़ा अकेलापन लगता है, फिर गए तो वहाँ पर वो मछुआरिन दिखी, सत्यवती। अब कहानी कहती है कि पहले उससे दुर्गंध आती थी, फिर ऋषि आए, ऋषि ने उसको कुछ वरदान दे दिया तो वो सुगंधित हो गई, उससे सुगंध की लपटें-सी निकलने लगीं, ऐसी वो। बात कुछ नहीं है, मछुआरिन है तो शरीर से थोड़ी बास आना ज़ाहिर-सी बात है। फिर कोई ऋषि आए होंगे, कुछ जड़ी-बूटी दे गए होंगे कि लगा लिया कर तो बदबू कम मारेगी। वो ऋषि जड़ी-बूटी भी दे गए, साथ में एक बच्चा भी दे गए।

(श्रोतागण हँसते हैं)

पहले ऐसे ही था, मामला खुल्लम-खुल्ला। महाभारत तुमको बड़ी शिक्षा देगी, यहाँ कोई शर्म-लिहाज़ नहीं है, आवश्यकता भी नहीं। बात मज़ाक से आगे की भी है। तो वैसे तो पिता हैं, राजा का धर्म होता है प्रति-क्षण प्रजा की सेवा में उद्यत रहना। ठीक? और ये कौन-से राजा हैं जो इसी दर्द में तड़पे जा रहे हैं कि वो कामिनी मछुआरिन नहीं मिल रही? और भीष्म को ये देखना चाहिए था न? और उसके बाद, जैसी वो, वैसे ही उसका बाप। वो कह रहा है कि “नहीं, नहीं, ये नहीं है, वो नहीं है। राजा की बीवी होने से क्या होगा, राजपाट की भी तो कुछ आश्वस्ति दो।" और फिर एक-के-बाद एक भीष्म प्रतिज्ञा ही किए जा रहे हैं, कभी कह रहे हैं, “गद्दी पर नहीं बैठूँगा”, कभी कह रहे हैं कि “कुँवारा रह जाऊँगा”, और फिर कह रहे हैं कि “नहीं, सदा सिंहासन का सेवक रहूँगा।" तो ये भीष्म का लालच था कि सुयोग्य पुत्र कहलाओ, भीष्म ने भी देह के रिश्ते को बड़ी प्रधानता दे दी। भीष्म-प्रतिज्ञा न हुई होती तो महाभारत नहीं हो सकती थी।

जब भी कभी तुम सच से ज़्यादा किसी को भी अहमियत दोगे, चाहे वो तुम्हारा बाप ही क्यों न हो, नतीजे बहुत बुरे आएँगे। भीष्म ने यही कहा है कि “बाप बड़ी चीज़ है, बाप की ख़ातिर कुछ भी कर जाओ।” तो लो, हो गई महाभारत फिर।

और क्या कह रहे हैं? कह रहे हैं, “हमारे जीवन में जब लालच बीज-रूप में ही हो तो उसे कैसे पकड़ें?”

दिक़्क़त यह नहीं है कि बीज-रूप में जब लालच होता है तो आप उसे पकड़ नहीं पाते, पकड़ तो लेते ही हैं, पर भरोसा बहुत होता है अपने-आप पर कि हम इस बीज को अंकुरित नहीं होने देंगे। और भी भरोसा होता है, कि बीज जब वृक्ष बनेगा तो हममें इतनी ताक़त है कि उस वृक्ष को काट डालेंगे। ये भरोसा हटाइए, ज़रा सतर्क रहा करिए। बीज दिख तो जाते ही हैं, पकड़ में तो आ ही जाता है कि लालच कब उठ रहा है।

मैं बताता हूँ कि कैसे पकड़ में आ जाता है। दूसरों का लालच तो आप तुरंत पकड़ लेते हैं न? दूसरा ज़रा-सा भी लालच प्रदर्शित करे, आप पकड़ लेते हैं न? आप कहते हैं, “देखो, ये लालची हो रहा है।" जिस दृष्टि से आप दूसरों के लालच पकड़ लेते हैं, उसी दृष्टि से अपना भी जानते तो होंगे ही कि ये काम मैं लालचवश कर रहा हूँ। जानते हैं, पर एक झूठा भरोसा है अपने ऊपर, आप कहते हैं, “थोड़ा-सा लालच दिखा भी दिया तो क्या हो जाएगा? हममें बहुत दम है, लालच का अगर कुछ परिणाम आएगा तो उसको झेल लेंगे।“

ये अपने ऊपर से झूठा भरोसा हटाइए। जब भी दिखाई दे कि ज़रा-सी भी ग़लती हो रही है, बिलकुल चौंक जाइए, ठिठक जाइए, खड़े हो जाइए, डर जाइए, कहिए कि, "अनर्थ हो रहा है।" विष पी जाएँ, इससे विष-वृक्ष उठेगा, "और जब उठेगा तो मेरी उसके सामने कोई हैसियत नहीं होगी, असहाय हो जाऊँगा। अभी मौका है, अभी रोक दूँ, अभी न रुका तो कभी नहीं रुकेगा।"

“लालच किन-किन रूपों में आ सकता है?”

जितने रूप होते हैं, सब लालच के होते हैं। रूप माने लालच। ये मत पूछिए कि लालच किन-किन रूपों में आ सकता है, जो भी चीज़ रूप-धारी है, वो ललचा सकती है, सदैव सतर्क रहें। जब आप पूछ रहे हैं कि लालच किन रूपों में आ सकता है, तो शायद आप यह सुनना चाहते हैं कि लालच किन रूपों में नहीं आ सकता है। कोई भेद मत करिए, प्रत्येक रूप यह ताक़त रखता है कि आपको आकर्षित कर दे और फिर आपको आसक्त कर ले।

“क्या इसे देख पाना संभव भी है?”

संभव ही नहीं है, लगातार हो भी रहा है।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles